सोचा था कि इस पोस्ट के बाद अब इस विषय पर नहीं लिखूंगा , मगर कल जब चैट स्थिति पर इस बारे में कुछ तल्खी से लिखा तो कुछ मित्रों को ये बात नागवार गुजरी और उन्होंने मुझे उसे बदलने को कहा मैंने बदला मगर इस बार पहले से भी अधिक तल्ख हो गया , कल से आज तक इसी बहस में उलझा हुआ हूं कि,इस पूरी घटना में जितने भी समाचार , रिपोर्टें , नई नई बातें , जांच के नतीजे सामने आ रहे हैं उन्होंने मन को उद्वेलित किया हुआ है । अब भी सब कुछ वैसा का वैसा ही जैसा कि वो पहले दिन से था , पहले एक ने कोशिश करके दूसरे को लपेटा था तो अब दूसरे ने पहले के साथ वही किया है । यहां तक जहां तक ये सब अभी पहुंचा है उससे कुछ बातें स्पष्ट हो चुकी हैं ।इसमें दोनों ही पक्ष बराबर के दोषी हैं , क्योंकि आज जो भी परिस्थिति बनी है उसके लिए दोनों ही जिम्मेदार हैं । और ये बात अब दोनों को बखूबी पता चल रही है इसलिए एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं । एक पक्ष इसे प्रेम और अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ़ मां बाप द्वारा उठाया गया कदम का रंग दे रहा है दूसरा इसे लडकी का शोषण करके उसे इस स्थिति तक पहुंचाने का आरोप लगा रहा है ।अब ये बात भी लगभग तय होती जा रही है कि आरूषि मर्डर केस की तरह ही इसमें भी आखिर में यही कहा जाने वाला है कि कातिल का पता नहीं चला । और यदि पता चल भी गया तो जितनी अच्छी तरह से इसकी जांच प्रक्रिया, पोस्टमार्टम रिपोर्ट वैगेरह की गई है उससे कोई भी समझ सकता है कि अब किसी को भी सजा दिलवाने लायक काम तो नहीं ही हो सका है और आगे होगा भी नहीं । ये उनके लिए बहुत ही खुशी की बात है जो चीख चीख कर दोनों को ही निर्दोष बता रहे हैं ।ये हो हल्ला भी ज्यादा सिर्फ़ इसलिए मचाया जा रहा क्योंकि इससे कहीं न कहीं ये पत्रकार, मीडिया कर्मी , प्रशिक्षु पत्रकार और देश की सर्वोच्च संस्थानों में पढ रहे ऐसे सभी छात्र छात्राओं की छवि उनकी जीवन शैली पर भी एक बडा सा प्रश्न चिन्ह लगाता सा दिख रहा है । उसे जस्टीफ़ाई करने के लिए ही ये इतना बावेला मचा हुआ है ।अब इनसे अलग कुछ उन मुद्दों पर भी कुछ बातें आमने सामने हो जाएं जिन पर बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है :-इस पूरी घटना को जातिवाद और अंतर्जातीय प्रेम /विवाह के खिलाफ़ किया गया अपराध का मुलम्मा चढाने वालों के लिए कुछ प्रश्न हैं मेरे । मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि अब है कहां वो जातिवाद , बचा हुआ .एक समय था जब वोट तक देने के लिए ठेकेदार चलती थी और कुछ बडे ब्राह्मणों को ही नेता लोग ठेका दे दिया करते थे और हो जाता था सब , मैंने खुद ये महसूस किया हुआ है । अब हालात बहुत बदल चुके हैं , और सब जानते समझते हैं कि बदल चुके हैं । हां यदि आप हरियाणा , उत्तर प्रदेश के मेरठ , बुलंदशहर में किए जाने युगल प्रेमियों की हत्या से इसे जोड कर देख रहे हैं तो स्पष्ट बता दूं कि न तो झारखंड न ही बिहार में अभी भी ऐसी घटनाएं देखने सुनने में आ रही हैं । जो परिवार अपनी बेटी को अकेली पढने के लिए महानगरीय परिवेश में भेज सकता है वो सिर्फ़ इस वजह से कि उसे किसी दूसरी जाति के लडके से प्यार हो गया है उसकी हत्या कर देगा , ऐसी बात तुरत फ़ुरत में हजम नहीं होती । हां इसे ऐसा रंग देने वाले यदि ऐसी ही कुछ और घटनाएं , वो भी उसी क्षेत्र का उदाहरण यहां रख सकें तो शायद सोचना सरल होगा ॥अब बात इसकी कि जो इसे प्रेम और प्रेमियों के दुशमनों की करतूत के रूप में देख दिखा रहे हैं । आज प्रेम होना कोई अजूबा नहीं रहा है । और अब तो यदि जो इसे सिर्फ़ शारीरिक स्वछंदता में भी बाधा मान रहे थे उन्हें भी न्यायपालिका ने वैधानिक मान्यता देकर छूट दे ही दी है । मगर इसके बावजूद जब भी आप ऐसे रिश्तों में बंधते हैं तो फ़िर दो बातों का निर्णय तो करना ही होगा । जैसा कि भाई आवेश तिवारी जैसे प्रबुद्ध पत्रकार जब लिखते हैं कि ,"और हां, मुझे उनकी उम्र से जुड़ा शरीर के रहस्यों के प्रति प्रयोग की अंतहीन सीमाओं का स्वाभाविक सच भी नजर आता है, जिन पर पंडितजी लोगों को सर्वाधिक एतराज है, " तो फ़िर ये तो सोचना ही होगा कि क्या इस शरीर के रहस्यों के प्रति प्रयोग की अंतहीन सीमाओं का सच जानने के लिए पूरा समाज तैयार हैं । क्या ऐसे रिश्तों में पडकर लडकियों द्वारा , गर्भ धारण करना , यदि भूल या गलती न भी मानी जाए तो सचमुच ही अनुकरणीय कदम है और इतना सकारात्मक भी कि जब किसी घर की कोई युवती ,बच्ची (बच्ची इसलिए कह रहा हूं कि ये भी अब कोई अनोखी बात नहीं रह गई है ) अपने घर आकर अपने माता पिता भाई बहनों को आकर ये खबर दे कि बिना विवाह किए वो गर्भवती हो गई है ,तो प्रतिक्रिया क्या ऐसी होगी कि बहुत अच्छी बात है बिटिया आज इस काम के लिए जरूर एक दिन तुझे और हमें समाज याद रखेगा , न भी रखे तो हमारी बला से । तो यदि ऐसा ही है तो फ़िर ये जो हर आधे मिनट में गर्भ निरोधक औषधियों का विज्ञापन सबको जबरन दिखाया जा रहा है क्यों इतनी मेहनत कर/करवाई जा रही बेकार में । भई अब भारत को इन सब फ़ालतू बातों की जरूरत नहीं रही है ।अब जरा उन भाई साहब को देख लें जिन्हें न्याय चाहिए , आखिर उनके प्रेम को लोगों ने समझा नहीं । बात तो सही है , मगर कुछ बातें उन्हें जरूर बतानी चाहिए थी । आखिर वो कौन सी मजबूरी थी कि निरूपमा को इतने विकल्प होने के बावजूद इस गर्भवती होने की स्थिति में पहुंचना पडा । और इन परिस्थितियों में पहुंचने के बावजूद क्यों उसे अकेले ही सबकुछ झेलने के लिए भेजा गया । मेरे ऐसा मानने पर बहुत से साथियों ने ये कह कर एतराज़ जताया कि वो कैसे बचा सकता था । मेरी छोटी सी समझ में फ़िर ये नहीं आया कि निरूपमा की मौत से कुछ दिन या शायद कुछ घंटे पहले तक जो भी संवाद दोनों में होता रहा , क्या उसमें कभी भी इस बात का जिक्र नहीं हुआ कि घर में इस बात से कोई तनाव है । उसकी मौत के बाद परिवार जनों पर हत्या का मुकदमा दर्ज़ करवाने के लिए जितनी भागदौड बाद में की गई यदि उसका आधा प्रयास भी पहले किया गया होता तो शायद आज नज़ारा अलग ही होता । चलिए ये भी मान लिया ,कि पहले कुछ नहीं हो सका मगर क्या कोई इतना मजबूर हो सकता है कि उसकी मौत के बाद आखिरी बार ही सही उसे देख भी आए ।खुद न सही उनके परिवार का ही कोई , कोई दोस्त मित्र , ये जो आज मीडिया का जमावडा लगा हुआ है हो कोई भी । आज भी जब टेलिविजन पर प्रियभांशु को देखा तो मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि ये दुनिया का सताया हुआ ,टूटा हुआ , थका हुआ , वो प्रेमी है जिसकी प्रेमिका को कुछ दिन पहले कत्ल किया गया हो ।और न ही आज तक कोई इस बात की गारंटी दे सका है कि निरूपमा की मौत के सदमे से पीडित उसका ये प्रेमी अब जीवन में कभी भी प्रेम या विवाह नहीं करेगा ।अब कुछ सवाल निरूपमा की आत्मा से जिसका जवाब अब कभी भी मुझे नहीं मिलेगा॥ सबसे पहला ये कि जब वो उस पेशे में जाने के लिए प्रयासरत थी जिन्हें चौथा स्तंभ कहा जाता है , दूसरों के लिए लडने का जज़्बा लिए हुए आगे बढने की आदत सी हो जाती है आखिर उसमें रहते हुए निरूपमा ने खुद को इतनी मजबूरी की हालत में क्यों पहुंच जाने दिया । आखिर वो कौन से कारण थे जिनकी वजह से वो इन विपरीत परिस्थितियों में घर पहुंच कर भी न तो अपने उस सच को छुपा सकी न ही खुद को बचा सकी । आखिर उसे ये तो अंदाज़ा ही होगा कि उसके ऐसा कहने पर क्या क्या हो सकता है बेशक ये अंदाज़ा न भी हो कि नौबत कत्ल तक पहुंच जाएगी तो भी यदि उसे लगा कि कुछ गडबड है तो फ़िर उसे भी बहाने से या तो दिल्ली आ जाना चाहिए था , या फ़िर प्रियभांशु को ही बुला लेना चाहिए था । आज यदि इस तरह पढी लिखी लडकियां भी एक आसान शिकार बनने देती रहेंगी खुद को तो फ़िर कौन ......कौन बदलेगा इन स्थितियों को ....और कब बदलेंगी ये स्थितियां ।मुझे नहीं पता कि आगे जाकर इस पूरे घटनाक्रम का अंज़ाम क्या होगा । और दिल कह रहा है कि एक और आरूषि मर्डर मिस्ट्री की तरह मिस्ट्री तैयार की जा रही है ।मगर इतना ये मन कह रहा है कि हत्या उसके अपनों ने ही की है यदि हत्या है तो, आत्महत्या है तो वो भी अपनों के कारण ही की है और इसके लिए जिम्मेदार उनके अपने में से ही कोई ...माता , पिता, भाई , मामा या खुद उसका प्रेमी ..सभी बेशर्मी की चादर ओढे ..तूने तूने किया करके उस मासूम की मौत को भी शर्मसार कर रहे हैं ।बस इसके आगे अब कुछ सोचने कहने का मन नहीं है ...................................और हां एक आखिरी बात जो मुझे ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रेम और अंतर्जातीय विवाह की समझ नहीं है तो उनकी सूचना के लिए बता दूं कि मैंने खुद प्रेम विवाह किया है और अंतर्जातीय ही किया है , और ऐसा करने वाला शायद मैं अकेला नहीं हूं ।
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शनिवार, 8 मई 2010
निरूपमा ..तुम्हें अपने आप को यूं मरने नहीं देना चाहिए था ...अजय कुमार झा
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