वर्ष 2007 के आखिरी महीनों में जब लिखतन से अचानक इस खिटपिट की ओर मुडे थे तब कंप्यूटर से भी इतना ही परिचय था कि दफ़्तर में काम करते हुए , टाईपराईटर पर टाइपिंग सीखने के बाद अब हम कंप्यूटर के सोफ़्ट कीबोर्ड पर भी कुलांचे तो भरने ही लगे थे अलबत्ता तब ये बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि बहुत जल्दी ही हिंदी अंतर्जाल के एक ऐसे सदस्य बन जाएंगे कि भागीदारी हिस्सेदारी सी महसूस होने लगेगी ।
ब्लॉगिंग की शुरूआत भी बहुत ही मज़ेदार ढंग से शुरू हुई थी । कादम्बिनी का वो अंक , जिसमें तफ़सील से पढकर हमने ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम रखा । और उस समय हिंदी ब्लॉग्स और ब्लॉगर्स की संख्या भी लगभग एक हज़ार के भीतर ही थी । वो दौर भी कमाल का था और वो ही क्यों उसके बाद से लेकर अब तक का सफ़र और हिंदी ब्लॉगिंग में होते परिवर्तन , बढते दायरे और प्रभाव का अफ़साना भी कम दिलचस्प नहीं रहा । जिंदगी में आते उतार चढावों की तरह ही ब्लॉगिंग भी निरंतर चढती उतराती रही । एक समय ये भी आया कि हमने अपने सारे ब्लॉग्स पर लिखना स्थगित करके सीधे साइट की ओर रुख किया | मगर ब्लॉग्स बहुत ज्यादा दिनों तक सूने आंगन की तरह नहीं देख पाए ।
किंतु अब जब देखता हूं तो पाता हूं कि , पिछले कुछ वर्षों का आर्काइव , उनसे पिछले के कुछ वर्षों के मुकाबले पासंग भी नहीं है । ऐसा शायद बहुत सारी अन्य वज़हों के अलावा , शायद फ़ेसबुक और ट्विट्टर जैसी साइटों पर अधिक समय देना भी नि:संदेह रहा । इस बीच ब्लॉगिंग में जिन दो चीज़ों की कमी और खली , नए और तेज़ एग्रीगेटरों की कमी और पाठकों की टिप्पणी करने को लेकर निष्क्रियता ।हालांकि नए ब्लॉगरों के आगमन और पोस्ट लिखने की उनकी रफ़्तार ने ब्लॉगिंग के धार में कमी नहीं आने दी । इस बीच बडे स्तर पर भी ब्लॉग संगोष्ठी / सम्मेलनों की धमक और चमक ने भी खबरों में स्थान बनाए रखा । चाहे वो नेपाल की राजधानी काठमांडू हो या गांधी का क्षेत्र वर्धा ।
बदलते हुए परिवेश में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का महत्व और प्रभाव जितनी तेज़ी से बढता जा रहा है उतनी ही ज्यादा बडी जिम्मेदारी इन पर उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले लोगों के कंधों पर भी आ रही है । अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए दंगों में इन साइटों के दुरूपयोग का नमूना भी देखने को मिला था , किंतु अच्छी बात ये है कि ब्लॉगिंग फ़ेसबुक और ट्विट्टर के उत्तेजनामयी तीव्र व्यवहार से कहीं अलग ठहरा हुआ और ठोस सा दीख पडता है ।
बदलते हुए परिवेश में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का महत्व और प्रभाव जितनी तेज़ी से बढता जा रहा है उतनी ही ज्यादा बडी जिम्मेदारी इन पर उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले लोगों के कंधों पर भी आ रही है । अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में हुए दंगों में इन साइटों के दुरूपयोग का नमूना भी देखने को मिला था , किंतु अच्छी बात ये है कि ब्लॉगिंग फ़ेसबुक और ट्विट्टर के उत्तेजनामयी तीव्र व्यवहार से कहीं अलग ठहरा हुआ और ठोस सा दीख पडता है ।
ब्लॉगिंग का ये सफ़र अब चलते चलते मुझे सातवें वर्ष में लेकर आ गया है । आने वाले समय में लेखन पठन और टिप्पणियों को लेकर भी ज्यादा संज़ीदा और गंभीर हो सकूं यही कोशिश रहेगी । एक बात और ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों में हमने ब्लॉग बैठकियों का एक गजब का दौर भी देखा था । मुझे पूरी उम्मीद है कि बहुत जल्दी ही दिल्ली में हम फ़िर से बहुत सारे ब्लॉगर मित्र बैठ कर कुछ औपचारिक अनौपचारिक सी बातें करने वाले हैं । ब्लॉगिंग का ये सफ़र बदस्तूर चलता रहे ,और बहुत सारे वे साथी जो अलग अलग कारणों से थोडी बहुत दूरी बनाए हुए हैं वे भी यदा कदा ही सही उपस्थिति दर्ज़ कराते रहें तो और भी अच्छा लगेगा ।
यह तो शुरुआत है भाई साहब ... लंबा सफर बाकी है ... पर चिंता न करें अपन दोनों साथ साथ चलते चलेंगे |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शिवम भाई आपका , आभार
हटाएंwaah badhaai
जवाब देंहटाएंek blog meet to bantee hi haen jab rakhae bulla lae , bas khaanaa peena naa ho saadgi sae milna ho jaaye
शुक्रिया रचना जी । मैं ध्यान रखूंगा इस बात का
हटाएंcongrats
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी जी
हटाएंजब तक गूगल साथ देता है , यह सफ़र चलता रहेगा ! अब चाहें भी तो आप/ हम छोड नहीं पायेंगे ! शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंआप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं सर
हटाएंAapne bahut mustaidi se hindi ko net par samriddh kiya hai ... kuchh bloggers ke likhe hue me ek najar daal hi lete hain hamlog ... jisme aap bhi hain chahe tippni ki jae ya nahi ... aaj tippni ki jaroorat dikh rahi hai ... bahut bahut badhai aapko !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया और आभार आपका संगीता पुरी जी । साथ और स्नेह बनाए रखिएगा
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबुलेटिन टीम का आभार । पोस्ट को स्थान व मान देने के लिए
हटाएं@ Dr Sahab ji se sehmat hoon
जवाब देंहटाएंजब तक गूगल साथ देता है , यह सफ़र चलता रहेगा !
हां संजय आप सही कह रहे हैं , सहमत हूं
हटाएंबधाई। लिखते चलिये।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर जी
हटाएंएक बात समझ आ रही है कि आज अधिकांश ब्लागर इतने बड़े बन गए हैं कि वे केवल लिखते हैं, टिप्पणी नहीं करते हैं। इसलिए जो चर्चा का वातावरण बना था अब वो समाप्त हो गया है।
जवाब देंहटाएंहां ये भी एक बडा कारण है
हटाएंआपका ये सफर यूँ ही चलता रहे ... कई सात वर्ष जुड़ते रहें ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार आपका दिगम्बर जी
हटाएंजब तक ब्लॉग रहेगा ब्लॉग्गिंग नहीं छूटने वाली :)
जवाब देंहटाएंसच कहें तो इसे हम छोडना भी नहीं चाहते हैं जी
हटाएंसप्त वर्ष से शत वर्ष तक चले आपका साहित्य..
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