पिछले दिनों व्यस्तता के बीच ये भी ख्याल नहीं रहा कि नेट कनेक्शन भी जाने कबके अनशन पर जा चुके हैं , वर्ष २०११ के जाते जाते बहुत कुछ घट घटा रहा था कुछ हमारे बेहद पास भी । बहरहाल हमारे लिए तो कुछ ऐसा सा फ़ील हो रहा था मानो रोजिन्ना कोई खबर इंतज़ार में बैठी हो जैसे , फ़िर सोच रहे थे कि कह रहा है भाई लोग कि वर्ष २०१२ से ज्यादा का लाईफ़ टाईम वैलेडिटी का उम्मीद मत करिए । लेकिन एतना भेरी इंपोर्टेंट समय में भी हमारा ब्लॉगियाना तो दूर फ़ेसिबुकियाना भी दूभर हो गया था । जर्मनी से राज भाटिया जी के दिल्ली आगमन की सूचना और पिछले बरस की तिलियार झील परिसर ब्लॉग बैठकी की याद से अंदाज़ा लग गया था कि फ़िर इस बार ये हम ब्लॉग मित्रों के आमने सामने और कुछ पल साथ साथ बिताने का बहाना बनेगा ।
इस बीच अंतर सोहिल की आती पोस्टों और राज भाई के ब्लॉग एग्रीगेटर पर भी इसकी सूचना आ रही थी , स्थान का नाम पता चल चुका था ..सांपला , दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा में स्थित और अपने अंतर सोहिल जी का ग्राम । वहां पहुंचने पर पता चला कि सांपला सांस्कृतिक मंच द्वारा पिछले वर्ष से वर्षांत समारोह के रूप में काव्य सम्मेलन का आयोजन किया जाना शुरू हुआ था और ये दूसरा वर्ष था ।
दिन में सभी ब्लॉगर मित्रों के मिल बैठ बतियाने की योजना ने इसे और भी यादगार बना दिया । इस सिलसिले में मेरे पडोसी ब्लॉगर भाई शाहनवाज़ सिद्दकी जी से मेरी बातचीत हो रही थी और वहां चलने न चलने को लेकर आखिर तक असमंजस की स्थिति बनी हुई थी । बहरहाल चौबीस दिसंबर की सुबह आठ बजे ये तय हुआ कि सांपला पहुंचा जा सकता है । शाहनवाज़ भाई , राजीव तनेजा जी और खुशदीप सहगल जी , संवाद तीनों के बीच चल रहा था और सांपला पहुंचने की योजना भी । खैर शाहनवाज़ भाई और मैंने तय किया कि हम शास्त्री पार्क मेट्रो से आगे का सफ़र तय करेंगे , बस या रेल से ये राजीव भाई से पूछ कर तय किया जाएगा । राजीव भाई से बात हुई तो आदेश हुआ कि नांगलोई रेलवे स्टेशन ,मेट्रो स्टेशन पर उतरें वे वहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
मेट्रो में सफ़र करने वालों में नियमित न सही लेकिन कह सकते हैं कि बहुत बार तो किया ही है । शाहनवाज़ भाई और मैं , बातों में मशगूल थे और ज़ेहन में स्टेशन था नांगलोई मेट्रो स्टेशन , लेकिन मेट्रो रूट मानचित्र पर देखा तो पाया कि वो उस रूट पर नहीं है । ओह ! यानि पहली गडबड , अब तो वापस बस अड्डे वाले मेट्रो स्टेशन पर जाना होगा ,लेकिन नहीं , सीट पर बैठे कुछ युवा जो हमारी बातों से स्थिति समझ चुके थे उन्होंने बताया कि नहीं , इसके लिए मेट्रो इंदरलोक मेट्रो स्टेशन से बदलनी होगी , उफ़्फ़ बाल बाल बचे । उतरे और रूट बदला , हमारा गंतव्य नांगलोई मेट्रो स्टेशन , वहां भी चक्कर पे चक्कर एक नांगलोई मेट्रो स्टेशन और दूसरा नांगलोई रेलवे स्टेशन मेट्रो स्टेशन (एक बात और ये हुई कि हमने टिकट पीरागढी स्टेशन तक का लिया था और अब हम उतरने वाले थे उससे तीन स्टेशन आगे तो राजीव भाई द्वारा पता चला कि उतरने पर बांकी का किराया वहां चुकाया जा सकता है , चुकाने का तरीका भी बडा दिलचस्प किस्सा है फ़िर कभी ) , आगे का हाल ये था कि राजीव भाई ने कहा ..खंबा नंबर ४२० पर मिलिए । उफ़्फ़ यानि घनघोर इतिहास रचने की फ़ुल कुल तैयारी थी ।
खैर वहां ब्लॉगर मंडली को देखते ही एक एग्रीगेटर के फ़्रेश पेज खोलने का मज़ा मिल गया । वहां से काफ़िला दो वाहनों में सांपला की तरफ़ बढ निकला । राजीव तनेजा जी पायलट की सीट संभाल चुके थे और हम उनके मोबाईल में पेसल वाला दिशा पता सूचक आन कर दिए थे , अब सारा टेंसन या तो ऊ सूचक यंत्र को था या राजीव भाई को हम मस्त उसको पकड के बैठे रहे । बीच बीच में फ़ोन ऑफ़ फ़्रैंड लाईफ़ लाईन का यूज करते हुए गंतव्य स्थल पर पहुंच गए । मौसम खुशगवार , चटक खिली हुई धूप । धर्मशाला के विशाल अहाते में गोलाकार बैठे सांपला के युवा और कुछ हमारे अंतर्जालीय साथी ।
बडा सकून सा महसूस रहे थे कि तभी आसपास मौजूद सुरक्षा दस्ते का आभास हुआ । पता चला कि ब्लॉगर मिलन का पूरा क्षेत्र इन विशेष वानर कमांडो की गहन सुरक्षा दायरे में है ।
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सांपला पहुंची पहली खेप |
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पहली खेप,दूसरी खेप की खोज खबर लेते हुए |
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स्वागत को लपके अंतर सोहिल |
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धर्मशाला का मुख्य द्वार |
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लो जी दूसरी टोली भी आ पहुंची , श्रीमती राज भाटिया , अंजू चौधरी , संजू तनेजा जी , वंदना गुप्ता और राजीव तनेजा जी , जाकिट वाले महफ़ूज़ अली |
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हाय मैं ,महफ़ूज़ अली ..बोईंग सात सौ सात से उतर के हाथ डोलाते हुए |
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वंदना जी कार से बाहर ,महफ़ूज़ भाई पोज़ मारते हुए और शाहनवाज़ भाई कार के अंदर झांकते हुए |
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बस पोज़ बदल गया है |
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देखिए कैसे गोलमगोल हुए खडे हैं सब ,मुकेश सिन्हा ,केवल राम जी , संजय भास्कर , वंदना गुप्ता , अंजू चौधरी , संजू तनेजा और महफ़ूज़ अली |
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कैप्शन जोड़ें |
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श्रीमती राकेश , सर्जना शर्मा ,केवल राम जी , श्री एवं श्रीमती राज़ भाटिया ,पीछे संजय भास्कर , वंदना गुप्ता जी एवं संजू तनेजा जी |
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ब्लॉगर बैठक की सुरक्षा के लिए शार्प शूटर की भी व्यवस्था थी |
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चाय पकौडे चालू आहे |
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वही वही चालू आहे |
सभी आपस में घुल मिल रहे थे ,लेकिन ये मिठास और मीठी हो रही थी जब ग्राम
परिवेश में पहुंचे हम सब अंतरसोहिल के स्नेह से डूबे मीठे गन्ने चूसने में
मग्न हो गए । आगे का किस्सा कुछ यूं रहा
कुछ धूम गर्म थी , कुछ ईख नर्म थी ,
थोडी सी तकल्लुफ़ , थोडी मीठी शर्म थी
मगर , चाय पकौडों की गर्मी और गन्नों के मीठे रस के दौर के बीच , बांकी
साथियों के इंतज़ार का पल कैसे बीत गया पता ही नहीं चला , । घडी दोपहर के दो
बजा रही थी । हम अहाते में पडते धूप को सेंकने के लिए गोले को सरकाते जा
रहे थे । दरवाज़े पर फ़िर हलचल हुई । लंबे चौडे पद्म सिंह के साथ ममता की
प्रतिमूर्ति इंदु पुरी , हम सबकी इंदु मां , मानो भावनाओं का ऐसा सैलाब उठा
लाईं थी कि सब कुछ बहता चला गया उन आंसूओं के साथ , सम्मान के साथ सब अंदर
हॉल की तरफ़ बढ चले । योगेंद्र मौदगिल , अलबेला खत्री जी भी हमारे बीच
पहुंच चुके थे । इस बीच अंतर सोहिल समय को बीतता देख आग्रह कर चुके थे कि
औपचारिक अनौपचारिक मुलाकात सिलसिले को प्रारंभ किया जाए या नहीं तो पहले
भोजन किया जाए । किंतु तय हुआ कि पहले परिचय और बातचीत का दौर चले । अंतर
सोहिल ने जिम्मा हमें थमाया और हमने पूरी बहादुरी से पहला नंबर पदम भाई को
थमाया । इसके बाद ब्लॉगर नाम , ब्लॉग नाम , अपना परिचय और अनुभव की बातें
चल निकलीं । हमारे बीच सांपला सांस्कृतिक मंच से जुडे सांपला के नवयुवक ,
विद्वान लोग भी सम्मिलित हो चुके थे । परिचय दौर हमेशा ही दिलचस्प रहता है
और सांपला के एक दिलचस्प डॉ साहब , भाई अलबेला खत्री और योगेंद्र मौदगिल जी
की उपस्थिति ने और प्रभावी बना दिया ।
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अब तो अगले पूरे बरस बस मीठी मीठी कविताएं चलेंगी |
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छील दना दन ,चूस दना दन |
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अलबेला खत्री जी ,वंदना गुप्ता ,पदम सिंह अंजू चौधरी , अंतर सोहिल ,महफ़ूज़ अली ,खुशदीप सहगल जी ,कनिष्क कश्यप जी ,मुकेश सिन्हा ,केवल राम और संजय भास्कर |
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खुशदीप सहगल , राजीव तनेजा , शाहनवाज़ और संजय अनेजा जी उर्फ़ मो सम कौन |
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हरदीप , मुकेश सिन्हा जी , संदीप पवार उर्फ़ जाट देवता और राकेश जी एवं श्रीमती राकेश जी |
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बातचीत तो चल रही है |
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पदम भाई राज भाई के गले लगते हुए और इंदु पुरी के स्नेह बंधन में संजू तनेजा |
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इंदु मां , तुस्सी ग्रेट हो |
खुशदीप सहगल जी ने अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि किस तरफ़ वे राकेश जी और सर्जना जी को ब्लगिंग में खींच लाए और आज दोनों अपना एक अहम मुकाम बना चुके हैं । योगेंद्र मौदगिल जी ने अंतर्जाल और ब्लगिंग को अभिव्यक्ति का एक नया फ़लक की संज्ञा देते हुए इसके बढते महत्व को बताया । हास्य कवि अलबेला खत्री जी ने एक के बाद एक कई सारे ब्लॉग बनाते जाने का दिलचस्प किस्सा बयां किया । शाहनवाज़ भाई ने तकनीकी बातों पर और अपनी भविष्य की योजनाओं का खुलासा किया । बातों बातों में टिप्प्णियों की घटती संख्या और नियमित पाठकों की सक्रियता में कमी, इसमें फ़ेसबुक और प्लस जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भूमिका आदि पर भी विमर्श चलता रहा । वंदना गुप्ता , इंदु पुरी और अंजू चौधरी ने ब्लॉगिंग के प्रति अपना असीम स्नेह प्रकट करते हुए इसे अपने बेहद निकट बताया ।
मैंने अपने विचार रखते हुए , ये कहा कि , मौजूदा समय संवाद का समय है । आज
सूचना का इधर से उधर होना और इतनी तीव्र गति से होना बहुत बडी उपलब्धि है ।
विश्व समाज को किस तरह से एक आत्मदाह की मोबाइल क्लिपिंग ने परिवर्तन और
जनांदोलन के जन्म का इतना मजबूत कारण दे दिया कि अब स्थिति भारत में भी ऐसी
पहुंच चुकी है कि सरकार और प्रशासन अपनी भावाव्यक्ति जाहिर करने वालों पर
नज़र रखने की फ़िराक में है । मैंने कहा कि आज , हम अंतर्जाल के मित्र इस
ब्लॉगर बैठक के बहाने दिल्ली के समीप बसे इस कस्बे से न सिर्फ़ खुद मुलाकात
करके जा रहे हैं बल्कि अब जब हम अपनी बातों में , अपनी यादों में सांपला की
चर्चा करेंगे तो सांपला के लिए भी ये खुशी की बात होगी और भविष्य के लिए
सहेजी जाने वाली अनमोल धरोहर साबित होंगी । मैंने वहां ब्लॉगर बनने की
इच्छा दिखाने जताने वाले बहुत से नवयुवक साथियों को स्पष्ट किया कि कोई
जरूरी नहीं कि आप ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आपको लिखना पढना जरूरी है ।
मोबाईल का उपयोग करिए ,मोबाइल से तस्वीरें खींच कर उन्हें दुनिया तक
पहुंचाइए , कोई समस्या , कोई उपलब्धि या कोई भी विशेष साधारण , कुछ भी
कल्पनीय अकल्पनीय , जो भी जैसे भी चाहें , लेकिन खुद को अभिव्यक्त करिए ।
वहां मौजूद सांपला के युवा साथियों ने जिस गर्मजोशी और स्नेह से हमारा
स्वागत किया वो नि:संदेह दिल को छू गया । वर्षांत पर काव्य सम्मेलन के
आयोजन की स्थापित हो रही परंपरा से भी वे खासे उत्साहित और आनंदित दिख रहे
थे ।
इसके पश्चात सभी भोजन में , और भोजन के साथ बातों में मशगूल हो गए ।
सर्दी की दुपहरिया , यी बीती वो बीती । वापसी की तैयारी हो ली । जिन
मित्रों को रात के काव्य सम्मेलन के लिए रुकना था उनसे विदा लेकर दिल्ली की
सवारियां निकल लीं । वापसी भी बिना गडबड के होती तो क्या होती । वापसी में
हुआ ये कि जैसे ही हम मेट्रो पकडने प्लेटफ़ार्म पर पहुंचे फ़ोटोग्राफ़र की
आत्मा चित्कार उठी और हम अपने मोबाइल से और शाहनवाज़ भाई बाकायदा कैमरे से
लैस , जो तडातड फ़्लैश ,क्लिक क्लिक , तभी सामने से मेट्रो आती दिखी ,कैमरा
चालू आहे । रुकते ही चालक कक्ष का दरवाज़ा खुला और शाहनवाज़ भाई को बुलाया
गया ,पीछे जो था उसे भी आवाज़ दी गई । हमारी समझ में माज़रा ठीक ठीक तो समझ
नहीं आया लेकिन इतना अहसास हो चुका था कि कुछ गडबड है । चालक ने बताया कि
आपने मेट्रो रेल की सामने से तस्वीर क्यों खींची , सुरक्षा अधिकारी को
बुलाकर हमें नीचे बने अधिकारी के कक्ष की ओर ले जाने को कहा गया । हमने
पूरी गुजारिश और क्षमा मांगते हुए बताया कि ऐसा भूलवश हुआ है और कहीं भी
फ़ोटोग्राफ़ी प्रतिबंधित है जैसी सूचना नहीं लगे होने के कारण ये हुआ । नीचे
सुरक्षा अधिकारी ने बात को समझते हुए हमें भविष्य में ऐसा न करने की सलाह
देते हुए जाने दिया ।
वापस लौटते हुए ठंड का प्रकोप बढ चुका था और
हम सब इस साल के एक दिन को यादगार दिन , और कभी न भूलने वाली स्मृतियों को
सहेज़ चुके थे । उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में इस तरह की मुलाकातें ,
हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मक माहौल लेकर आएंगी ।
ओह, आई मिस्ड गन्ना.
जवाब देंहटाएंआदि से लेकर अंत तक, सडक से लेकर मेट्रो तक सारे चित्र तो दे दिए और बढिया कमेंटरी भी... भई वाह!!!!!!
जवाब देंहटाएंमिलन के सुंदर चित्रों से सजी पोस्ट
जवाब देंहटाएंनाक का सवाल न खड़ा होता तो हम भी वहाँ होते। बाकी पोस्ट सुबह पढ़ कर टिपियाएंगे।
जवाब देंहटाएंहम जैसे पापीयों को पंढरपुर का सुख कहां..?
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा अच्छा लगा
तिलियार की याद ताजी हो गयी .. बहुत बढिया वर्णन किया है !!
जवाब देंहटाएंनाक के सवाल कहां
जवाब देंहटाएंनाक तो अब खुद है
एक जवाब लाजवाब
चिट्ठाकारी में तो है भरा
नाक कान माल असबाब
रिपोर्ट यह पहली है
जी नहीं पहेली है
अभी तो बातों की खुलेगी
जो बनी अब पहेली है
चिटठ्कारी का होगा अब से विस्तार
सब जन करेंगे इस विधा से प्यार
अगला चिटठाकार मिलना करेंगे
सांप ला में नहीं, सांप जा में
जिसमें मानव की दूषित प्रवृतियां
हो जाएं सभी समाज से त्याज्य
बढ़िया चित्रमयी वर्णन ...मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रमय प्रस्तुति से ऐसा लगा कि
जवाब देंहटाएं'live' telecast हो रही हो.
आपको मना किया गया था कि मेट्रो के
चित्र न लें,परन्तु आपने तो उन्हें यहाँ
लगा भी दिया.
मिलन का अहसास अति मीठा और सुखद रहा.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
आनेवाले नववर्ष के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार रहेगा,अजय भाई.
इस बार वीर हनुमान का बुलावा है.
वाह महाप्रभु ... खुद सैर करवाई घर बैठे बैठे ... जय हो !
जवाब देंहटाएंराकेश जी यही तो अभिव्यक्ति की हासिल की गई स्वतंत्रता है, इसका सुख बखाना नहीं जा सकता है।
जवाब देंहटाएंउम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में इस तरह की मुलाकातें , हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मक माहौल लेकर आएंगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ छूट गया है। सांपला आना तय था। अकेले भी नहीं पत्नी और बेटी के साथ। लेकिन महिने के आरंभ में हुई हर्पीज और ठीक 22 दिसंबर की रात को नाक में हुए संक्रमण ने आना निरस्त कर दिया। उस रात भर नाक में जलन से सो नहीं पाया। दूसरे दिन डाक्टर की दवा से कुछ आराम मिला। 24 को दुपहर जब आप लोग मिल रहे थे राज जी का फोन आया था। लेकिन अपनी विवशता ही दर्ज करा सका।
जवाब देंहटाएंहमारे यहाँ स्थाई वार्षिक मेलों की परंपरा है. जिन में लोग मिलते हैं, इसी कारण उन्हें मेला कहा जाता है। सांपला वास्तव में ब्लागर मेला स्थल बन गया है यदि इस का दिन भी तय कर दिया जाए तो इसे मेले का स्वरूप दिया जा सकता है। कविसम्मेलन वहाँ के स्थानीय लोगों को जोड़ ही रहा है। सबी ब्लागर केवल ब्लागर नहीं हैं। अपने अपने फन में माहिर भी हैं। यदि उन के फन की नुमाइश का इंतजाम भी हो तो 25 दिसंबर इस मेले के लिए उपयुक्त समय है। सब के लिए अवकाश का समय भी होता है।
बढ़िया लगी आपकी चित्रमय रिपोर्ट
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
..
सांपला ब्लोगर मिलन का सम्पूर्ण और दिलचस्प विवरण पढ़कर मज़ा आ गया ।
जवाब देंहटाएंमेट्रो वालों से ये तो पूछ लेते कि फोटो खींचने से उनका क्या बिगड़ जायेगा ।
बहुत सी यादें जुडी रहेंगी सापला की सांपला के ब्लॉगर मिलन बहुत ही आनद दायक पल थे
जवाब देंहटाएंसम्मेलन को सफल बनाने वाले सभी ब्लॉगर बंधुओं को शुभकामनाएं
....बढ़िया रिपोर्ट... तैयार की है आपने अजय भाई
सांपला मेले की पहली सम्पूर्ण रिपोर्ट !
जवाब देंहटाएंचित्रमय झांकी के साथ विस्तृत समाचार प्राप्त हुए ...
आभार !
chitr sunder haen
जवाब देंहटाएंmeeting aur reporting par no comment
haan metro kaa chitr aap ko nahin dalnaa chahiyae thaa kyuki yae galat haen karan bahut sae haen jis vajah sae yae manaa kiyaa jaataa haen
बहुत बढ़िया लगी आपकी चित्रमय रिपोर्ट .
जवाब देंहटाएंऐसे आयोजन से उर्जावान होतें होंगे ....सो इहै आशा में हमहू चले आये !
जवाब देंहटाएंजय जय !
घणी सूग्घढ सै फोटू पर के साल में गेडा लगावूंगी ओर चंगो लिखो ईख भी खायो टीन्डी टुककर धनों स्वाद माहरे गामा का
जवाब देंहटाएंतने सीसं दयूऊँ
अजय जी , आपके माध्यम हमारी भी मुलाक़ात हो गयी सभी ब्लौगर मित्रों से ! सभी चित्र बहुत अच्छे लगे ! फोटोग्राफी में आपका कोई मुकाबला नहीं ! बहुत अच्छा लगा इस ब्लौगर-मिलन के बारे में जानकार ! यदि मैं वहां होती तो अंतर सोहिल जी के साथ बैठकर दिल भरकर गन्ने चूसती ! बहुत दिन हुया 'गन्ने' के दर्शन हुए भी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चित्रमय रिपोर्टिंग
जवाब देंहटाएंजाना तो हम भी चाह्ते थे लेकिन चाह्ने भर से थोड़े ही कुछ होता है?
:-(
अब तक की सबसे शानदार रिपोर्टिंग...
जवाब देंहटाएंअजय जी अब तक का ... सबसे बढिया आँखों देखा हाल ....हम भी साक्षी हैं जी
जवाब देंहटाएंचित्र बयां करते ब्लॉगिंग की मिलन कहानी...
जवाब देंहटाएंसब से मिल कर बहुत अच्छा लगा, आप ने तो इस पोस्ट मे सचित्र विवरण दे दिया, रात कैसी बीती यह विवरण भी जल्द ही कोई साथी ब्लागर दे देगा, आप लोगो ने उस रात ना रुक कर बहुत खुछ खोया, सुबह ४ बजे तक का जगारण ओर फ़िर तडके सवेरे ६,३० पर जागने के बाद का चित्र, सच मे यह ब्लाग मिलन एक सुंदर याद गर बन गया, जहां बहुत से साथी मिले जिन्हे मिलने को दिल बैचेन रहता था,लेकिन फ़िर भी आप ने गन्नो के रस के साथ साथ ब्लाग मिलन का रस भी ले लिया,
जवाब देंहटाएंसब फोटुआ आपही के पास रह गया .. !! गए तो थे ही ... पर पढ़ने में छः-गुना मजा आया .. !!
जवाब देंहटाएंदिलचस्प वृत्तांत...!
जवाब देंहटाएंThe Great Wall of Hindi Bloggers...
सांपला मे हम सब का मिलना...........एक अद्भुत अनुभव .अविस्मरणीय घटना. यशोदा मैया को जिया मैंने ........जब तुम और महफूज़ गले लगे. सब सबसे मिलना मेरे लिए ईश्वर की मेहरबानी ही थी वरना...........हम तो एक दूसरों को जानते तक न थे.ब्लोगिंग की दुनिया मे आना सार्थक हो गया.ग्रेट इंदु माँ नही .....ग्रेट आप लोग हैं बाबु! मुझे वो दिया जो मैं डिज़र्व नही करती.इस काबिल नही हूँ ........पर इस और इतने प्यार को पा कर गदगद हूँ.
जवाब देंहटाएंekdam tasveer kheench di....aankhon ke samne,bahut achcha likhe hain.
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