रविवार, 3 मई 2009

नहीं भूलता वो थप्पड़




इस बार परिक्षा के लिए प्रवेश पत्र काफी पहले ही मिल चुका था और इसलिए मैंने सोचा की आरक्षण करवा ही लूँ, सर्दियों के मौसम के कारण ट्रेन में ज्यादा भीड़ भाद होने की गुंजाइश भी कम थे, किंतु पता नहीं क्यूँ इस बार मैं साधारण डिब्बे में जाना नहीं चाहता था।


अपनी आदत के मुताबिक ट्रेन के लिए समय से काफी पहले ही पहुँच गया । उन दिनों ये एक तय कार्यक्रम सा बन गया था, परिक्षापत्रोंr का आना और हमारा दो जोड़ी कपड़े , थोड़े से पैसे , और कुछ प्रतियोगी पत्रिकाएँ और ज्यादातर साधारण डिब्बों में यात्रा , ढेर सारे दोस्तों की मंडली के साथ मैं निकल पड़ता था, मगर चूँकि इस बार मेरा आरक्षण था सो दोस्तों का साथ तो छूट ही गया था। ट्रेन आयी तो अनुमान के मुताबिक ज्यादा भीड़ नहीं थे, मेरे कूपे में मेरे अलावा एक अन्य व्यक्ति की सीट थे। मैंने एक उक्ती सी निगाह उस पर तो , स्वाभाविक रूप से साथ ले जा रहा पत्रिका को थोडा उलटने लगा मगर अब ये सर्द रात की। वजह से हुआ या किसी और कारण से ये तो नहीं पता मगर, जली ही मुझे नींद के झोंके ने आ to swaabhaavik roop se saath le jaa raha patrikaa ko thodaa ulatne laga, magar ab ye sard raat kee wajah se hua ya kisi aur kaaran se ye to nahin pata magar jaldee hee mujhe neend ke jhonke ne aa घेरा। एक थपकी आयी ही थी की अचानक एक खटका सा हुआ, कूपा खुला और अप्रत्याशित रूप से एक युवती कूपे के अन्दर आयी...
देखिये मुझे आगे दो तीन स्टेशन के बाद उतरना है, क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ। इससे पहले की मैं कुछ कहता , साथ की सीट पर बैठे व्यक्ति ने कहा , जी जरूर आप बैठ जाएँ।
न जाने मुझे कुछ ठीक नहीं लगा, मगर मेरे लिए तो दोनों ही अनजान थे सो मैं चुप ही रहा।
झोंके के बीच ही कब आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला।
थोड़ी देर बाद अचानक आँख खुली तो देखा की लडकी जोर जोर से चिल्ला रही है और मदद मांग रही , मैं बिल्कुल हडबडा गया , इससे पहले की कुछ समझता बाहर से बहुत से लोग आ पहुंचे। उस युवती ने रोते हुए कहा की उस साथ बैठे व्यक्ति ने उसके साथ ग़लत करने की कोशिश की है। मैं तो पहले से ही शशंकित था इस डर से कहीं बाहर से आए लोग कहीं मुझे भी उस व्यक्यती के साथ न समझ लें , मैं ख़ुद ही चीख पड़ा.....
मुझे तो पहले ही शक था, ये आदमी ठीक नहीं है, पकड़ के पीतो इसे, कोई पुलिस को बुलाओ, सब मेरे साथ हाँ में हाँ मिलाने लगे, और इससे पहले हम उठ कर उस तक पहुँचते, वो व्यक्ति बोल पड़ा , देखिये आप मेरी बात सुनिए, दरअसल ये जो बोल रही हैं वो झूठ है.....मैं तो , दरअसल मेरा तो ....
मगर वो और कुछ कहता इससे पहले मैं और एक और व्यक्ति उस पर पिल पड़े , मैंने खींच कर उसको एक थप्पड़ जड़ दिया। दूसरे व्यक्ति ने उसका गिरेबान पाकर कर जोर से ढका दे दिया, उसके नीचे गिरते ही उसका कम्बल गिर गया।
उसके दोनों बाजुओं की जगह सिर्फ़ स्वेटर की दो झूलती बाहों ने जैसे मुझे पर वज्र पात कर दिया ......उसकी दोनों बाजुएँ कटी हुई थी.....
सब अचानक ही सन्न हो गए, और मेरी तो टांगें ही काँपने लगी...
अरे चलो चलो ये लडकी सच में झूठ ही बोल रही है , ये कहते हुए सब के सब बाहर की तरफ़ चल दिए और इसी अफरा तफरी में वो लडकी भी कूपे से निकल गयी॥
देखिये दरअसल मैं ये कह रहा था की ये सब इस त५रैन में अक्सर होता है और ये लडकी और इसका गैंग इस तरह से लूट पात करते हैं....
मेरा हाथ अचानक ही अपनी जेब पर गया और दूसरा झटका लगा, मेरा पर्स मेरे जेब में नहीं था...
क्या हुआ कुछ गायब हुआ क्या...
हाँ मेरा पर्स, मैंने बड़ी मुश्किल से अटकते हुए कहा, मैं उससे आँखें नहीं मिला पा रहा था ....आप मुझे माफ़ कर दें ....
कोई बात नहीं , ....इसके बाद पूरे सफर में उसने न सिर्फ़ मुझ से बहुत सी बातें की बल्कि उसने मुझे आगे के लिए पैसे देने की पेशकश भी की .....
वो थोड़ी देर बाद ही वो थप्पड़ भूल चुका था, मगर मैं उस थप्पड़ की गूँज अभी भी अपने कानों में सुनता हूँ..........

10 टिप्‍पणियां:

  1. इतना मार्मिक प्रसंग... शब्द नहीं है, मेरे पास..

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  2. mujhe prasang padhne to dobara aanaa hoga..abhee to apnee galatee maan lene aayee hun..asuvidhake liye maafee chahtee hun..
    "nekee kar.." lekh astitv me hai...maine bedhyaneeme kewal sheershak pe click kar diya tha aur utnaahee alagse publish ho gaya...ab jayen...lekh hai...
    Aue isee tasveerkee mai ek din apne fiber aart me tabdeelee karke aapko pesh karungee...dono tasveeren saath,saath lagayenge aap?

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  3. अत्यंत शिक्षाप्रद आपबीती है .

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  4. कहीं बहुत दूर तक झकझोरा है इस संस्मरण ने.

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  5. किस तरह लोग भावनाओं में आप को उलझा कर लूटने का धंधा चलाते हैं? उस का यह स्पष्ट उदाहरण है।

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  6. ajay ji, kya yah ek vastvik ghatana hai? agar ha to yah wakai bura tha... aap jis bahas ki bat kar rahe the wo kaha tak pragati kar gaya hai....

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  7. sabse pehle to aap sabse kshama chaahtaa hoon beech maein hindi rupaantaran na ho paane ke kaaran kya karun blogger thoda rootha hua hai, aur ye ghatna bilkul sachci hai 1992 kee hai....

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  8. क्या कहूँ....?ठीक ऐसे ही जैसे किसी साइकिल वाले की खुद की गलती पे लोग कार वाले पर चढ़ दौड़ते है....

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  9. आपके संस्मरण पढ़कर लग रहा है कि दुनिया में कैसे कैसे लोग है जो कुछ भी करते है .

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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