मुझे लगता है कि फ़िलहाल जो और जैसा राजनीतिक माहौल बना है और दिल्ली जैसे शहर में रहने के बावजूद भी किसी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रिया ज़ाहिर करने से पहले मन कुनैना सा होता हो तो फ़िर उससे बेहतर है कि सामाजिक मुद्दों पर ही फ़िलहाल ध्यान केंद्रित किया जाए क्योंकि , सरकार चाहे भारतीय जनता पार्टी की बने या किसी और की , आखिर मुद्दे तो उनके सामने भी हू बहू वही खडे हैं , सालों से मुंह बाए हुए , सो अब तय करता हूं कि फ़िलहाल इस राज़नीति जायके को मुंह में ही घुलने दिया जाए , क्यूं खामख्वा इतने शब्दों को अभी की राज़नीति के लिए ज़ाया किया जाए जो सिर्फ़ चंद महीनों बाद ही आउट डेटेड हो जाएंगी , बहुत कुछ घट बढ रहा है , बदल , उथल पुथल रहा है , क्यों नहीं उन्हें बनाया जाए अभी लेखनी का विषय , लेकिन चलते चलते चंद शब्द अपने हर खेमे के दोस्तों को कहना चाहूंगा ............
राजनीति , सियासत वालों के लिए बेशक प्रयोग का विषय रही है मगर आम लोगों के लिए ये एक विचारधारा को मानने सराहने जैसी रही है और लोकतंत्र की सबसे बडी खूबियों में से एक होती है वैचारिक भिन्नता के बीच सामंजस्य । यूं तो एक दूसरे का परस्पर सम्मान करने की परिपाटी अब एक भूली बिसरी परंपरा बन चुकी है आज की राजनीति पे बिल्कुल भी फ़िट नहीं बैठती और बैठे भी क्यूं , जब हम समाज में एक दूसरे के प्रति इतने असहिष्णु हो चुके हैं कि एक दूसरे की विचारधाराओं तक का सम्मान सिर्फ़ तभी तक करने लगे हैं जब तक उसमें असहमति का कोई वायरस न हो .............और क्या सचमुच ही हमें इस कदर आक्रामक हो जाने का हक सिर्फ़ इसलिए मिल जाना चाहिए कि फ़लां अपने जैसा नहीं सोच रहा या लिख रहा ।
जितनी भी मेरी राजनीति समझ है उसके हिसाब से अब आगे के लिए मुझे कुछ बातें बिल्कुल साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है , आप की दिल्ली सरकार बहुत जल्द लुढकने वाली है , बस टोटल मिला के प्रोग्राम ये बनाया जा रहा है कि लगे कि पोलिटिकल सुसाईड हाकिम लोगों ने खुद किया है , दूसरी बात कांग्रेस अब उस शरशैय्या पर पडी है कि उनके लिए पानी का इंतज़ाम भी उनके मुंह के करीब टोटी लगा कर ही करना बांकी है रह गया है , बची भारतीय जनता पार्टी , तो इस बात कि इस बार पूरे देश में ...नरेंद्र मोदी को जिस तरह राष्ट्र नायक के रूप में न सिर्फ़ देश बल्कि अब तो विश्व भी देख रहा है .....उसके बाद किसी शक शुबहे , चुनौती को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए मिशन 2014 की ओर अपना पूरा फ़ोकस रखना चाहिए । आजकल जितनी ज्यादा उर्ज़ा दिल्ली की राजनीति पार्टी जो सिर्फ़ तीस दिनों में , भारतीय राजनैतिक इतिहास की सबसे ज्यादा खटकने वाली पार्टी बन गई है , उसका पोस्टमार्टम करने में खर्च की जा रही है उसका ज्यादा अच्छा सदुपयोग , खुद को सबसे बेहतर विकल्प साबित करने और करके दिखाने के लिए किया जाना चाहिए ।
आपको देश चलाने के लिए जनता में एक गजब की कमिटमेंट दिख रही है , और कमाल की बात ये है कि अब ये खुलकर दिख रही है तो फ़िर ऐसे में लोग आपको सुनना चाहते हैं , बोलते कहते हुए देखना चाहते हैं , आपकी योजनाओं , आपका दृष्टिकोण , आपकी प्रक्रियाओं , आपके हुनर , आपकी जांबाजी की कायल होना चाहती है तो यकीनन ही आपको अपनी सारी उर्ज़ा सिर्फ़ और सिर्फ़ सकारात्मक बहसों/तथ्यों/कार्यों/विमर्शों/योजनाओं .....में ही व्यय करना चाहिए । चेहरा कोई भी हो , क्रांति का नायक कोई भी कहलाए , यकीन मानिए देश को उस पर फ़ख्र और सिर्फ़ फ़ख्र ही होगा ,लेकिन आप अपनी उन दूरगामी नीतियों को साझा तो करिए , ये देश की जनता है पिछले पैंसठ सालों में और कुछ समझी हो न हो कमबख्त इकोनोमिक्स और पॉलिटिक्स खूब अच्छे से समझती है ...........
तो अब मिला करूंगा आपसे , इसी जगह कुछ बेहद अहम सामाजिक मुद्दों के ऊपर अपनी नज़र डालते हुए
देश में बढते यौन अपराध : एक विश्लेषण ................जल्दी ही पढवाता हूं आपको
राजनीति , सियासत वालों के लिए बेशक प्रयोग का विषय रही है मगर आम लोगों के लिए ये एक विचारधारा को मानने सराहने जैसी रही है और लोकतंत्र की सबसे बडी खूबियों में से एक होती है वैचारिक भिन्नता के बीच सामंजस्य । यूं तो एक दूसरे का परस्पर सम्मान करने की परिपाटी अब एक भूली बिसरी परंपरा बन चुकी है आज की राजनीति पे बिल्कुल भी फ़िट नहीं बैठती और बैठे भी क्यूं , जब हम समाज में एक दूसरे के प्रति इतने असहिष्णु हो चुके हैं कि एक दूसरे की विचारधाराओं तक का सम्मान सिर्फ़ तभी तक करने लगे हैं जब तक उसमें असहमति का कोई वायरस न हो .............और क्या सचमुच ही हमें इस कदर आक्रामक हो जाने का हक सिर्फ़ इसलिए मिल जाना चाहिए कि फ़लां अपने जैसा नहीं सोच रहा या लिख रहा ।
जितनी भी मेरी राजनीति समझ है उसके हिसाब से अब आगे के लिए मुझे कुछ बातें बिल्कुल साफ़ साफ़ दिखाई दे रही है , आप की दिल्ली सरकार बहुत जल्द लुढकने वाली है , बस टोटल मिला के प्रोग्राम ये बनाया जा रहा है कि लगे कि पोलिटिकल सुसाईड हाकिम लोगों ने खुद किया है , दूसरी बात कांग्रेस अब उस शरशैय्या पर पडी है कि उनके लिए पानी का इंतज़ाम भी उनके मुंह के करीब टोटी लगा कर ही करना बांकी है रह गया है , बची भारतीय जनता पार्टी , तो इस बात कि इस बार पूरे देश में ...नरेंद्र मोदी को जिस तरह राष्ट्र नायक के रूप में न सिर्फ़ देश बल्कि अब तो विश्व भी देख रहा है .....उसके बाद किसी शक शुबहे , चुनौती को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए मिशन 2014 की ओर अपना पूरा फ़ोकस रखना चाहिए । आजकल जितनी ज्यादा उर्ज़ा दिल्ली की राजनीति पार्टी जो सिर्फ़ तीस दिनों में , भारतीय राजनैतिक इतिहास की सबसे ज्यादा खटकने वाली पार्टी बन गई है , उसका पोस्टमार्टम करने में खर्च की जा रही है उसका ज्यादा अच्छा सदुपयोग , खुद को सबसे बेहतर विकल्प साबित करने और करके दिखाने के लिए किया जाना चाहिए ।
आपको देश चलाने के लिए जनता में एक गजब की कमिटमेंट दिख रही है , और कमाल की बात ये है कि अब ये खुलकर दिख रही है तो फ़िर ऐसे में लोग आपको सुनना चाहते हैं , बोलते कहते हुए देखना चाहते हैं , आपकी योजनाओं , आपका दृष्टिकोण , आपकी प्रक्रियाओं , आपके हुनर , आपकी जांबाजी की कायल होना चाहती है तो यकीनन ही आपको अपनी सारी उर्ज़ा सिर्फ़ और सिर्फ़ सकारात्मक बहसों/तथ्यों/कार्यों/विमर्शों/योजनाओं .....में ही व्यय करना चाहिए । चेहरा कोई भी हो , क्रांति का नायक कोई भी कहलाए , यकीन मानिए देश को उस पर फ़ख्र और सिर्फ़ फ़ख्र ही होगा ,लेकिन आप अपनी उन दूरगामी नीतियों को साझा तो करिए , ये देश की जनता है पिछले पैंसठ सालों में और कुछ समझी हो न हो कमबख्त इकोनोमिक्स और पॉलिटिक्स खूब अच्छे से समझती है ...........
तो अब मिला करूंगा आपसे , इसी जगह कुछ बेहद अहम सामाजिक मुद्दों के ऊपर अपनी नज़र डालते हुए
देश में बढते यौन अपराध : एक विश्लेषण ................जल्दी ही पढवाता हूं आपको
सही निर्णय लिया है !
जवाब देंहटाएंफोटो बहुत सुन्दर है !
:) :)
हटाएंराजनैतिक चर्चाओं से मन हटाकर उन्हें थोड़ा काम करने दिया जाये।
जवाब देंहटाएंखासकर जब कुछ मित्र वैचारिक मतभेद को सीधे मनभेद तक की स्थिति में पहुंचाने को उतारू हो :) :)
हटाएंधर्म और राजनीति के मुद्दे एक अंतहीन बहस में उलझ कर रह जाते हैं
जवाब देंहटाएंहमेशा