गुरुवार, 23 जनवरी 2014

जनतंत्र की नई परिपाटी







"आम आदमी सोया हुआ शेर है , उंगली मत करना , जाग गया तो चीर फ़ाड देगा "
आजकल यह फ़िल्मी डायलॉग अक्सर टीवी पर देखने सुनने को मिल रहा है ।इसी के साथ
मुझे बरसों पुराना कहा गया एक ऐसा ही फ़िल्मी संवाद और याद रहा है कि "शरीफ़ आदमी
यदि अपनी पर आ जाए तो उससे बडा बदमाश कोई दूसरा नहीं हो सकता । "पिछले कुछ वर्षों में देश के राजनीतिक हालातों की जमीन कुछ ऐसा बन गई कि उसके फ़लक पे अचानक ऐसा ही एक आम आदमी उग आया , जिद्दी , खुद को नुकसान ,प्रताडित करके ,भूखे प्यासे रहकर जूझने लडने टाईप का आम आदमी , बेचारा आदमी .......

इन दिनों राज़धानी दिल्ली के राजनीतिक हालात कुछ ऐसे ही हैं । आज़ादी से पहले अनशन,
आंदोलन , धरना , प्रदर्शन की लडाई लड कर ब्रिटिस शासन को देश से बेदखल करने के
बाद सामाजिक संघर्ष के इस स्वरूप को भूली अवाम को अचानक ही पिछले कुछ सालों में साठ
सालों से अधिक तक बदलाव और परिवर्तित हो जाने आस के लगातार टूटते जने की उकताहट ने
दोबारा याद दिला दिया । इस बार गांव गया तो देखा कि समाचार पत्र धरनों और अनशनों की खबर से भरे पडे थे , देश को धरना देना ,प्रदर्शन करना , आमरण अनशन करना उन लोगों के सिखाया है जिनके दम पर आज इंडिया का ये डांडिया खेला जा रहा है , क्यों लोग बार बार यूं खुद को भूखा रख कर , सर्दियों में फ़ुटपाथ पे सोकर , पुलिस की लाठियां खाकर ,सरकार की नींद हराम कर दे रही है जनता ............

व्यवस्था के लगातार बढते निकम्मेपन और राजनीतिक भ्रष्टाचार ने लोगों के क्रोध और झल्लाहट
को इस कदर बढा दिया कि लोगों ने अपना प्रतिरोध/अपनी शिकायत के लिए सीधे सडकों का रुख
कर लिया । व्यवस्था और राजनीति इन साठ वर्षों में जितनी भी बदली कमबख्त बेडा गर्क करने को ही बदली। हम बदलते रहे , आप बदलते रहे ,समाज बदलता रहा मगर व्यवस्था और राजनीति
को हमने यूं किनारे किए रखा कि देखिए न बदबो मारने तक की स्थिति में पहुंच गया और हम
कभी आंखों पर पट्टी बांध कर न्याय पाते रहे तो कभी सडांध मारती राजनीति के नाम पर ही नाक भौं सिकोडते रहे ।

और अंत में जिसने हिम्मत भी दिखाई , बिना किसी राजनीतिक माई बाप,
बिना किसी ब्रांड और बिना किसी बैनर के ताल ठोंक दी वो भी मांद में घुस घुस के और रही सही कसर सडक पर बैठ कर मुख्यमंत्री दफ़्तर चला दिया , अब इस तरह की परिपाटियां तो जनतंत्रका मतलब ही बदल कर रख देंगीं , तो बदलने दीजीए न , साठ साल की व्यवस्था को अब रिटायर हो ही जाना चाहिए .......


इस देश में प्रशासन की नींव ब्रिटिश सरकार ने रखी थी जो स्वाभाविक रूप से सामंतवादी और
अफ़सरशाही के शासन की तरह था , आज़ाद देश ने भी इसे ज्यों का त्यों अपनाते हुए अपनों
के बीच से ही जाकर बेगानों की तरह व्यवहार करने की प्रवृत्ति अपना ली । अब जबकि ,इन
तमाम अफ़सरशाहियों को सीधे सीधे लोगों द्वारा चुनौती दी जा रही है , ललकारा जा रहा है ,
आईना दिखाया जा रहा है तो फ़िर प्रजातंत्र की इन नई परिपाटियों को यदि किसी बगावत,
अराजकतावाद की तरह परोसा और दिखाया जा रहा है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । लेकिन इतना तो अब स्पष्ट रूप से तय हो गया है कि आने वाले समय में देश को अभी बहुत से अरविंद केजरीवालोंपागल करार देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए , सुना है अशोक खेमका को भी बहुत जल्दी हीभ्रष्टाचार के आरोप में नौकरी से बाहर किया जा सकता है ...........क्या कहा रे ,एसडीएम
ने शशि थरूर को दी क्लीन चिट ....अबे इतना फ़ास्ट रिज़ल्ट एंड डिसीज़न ...

2 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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