गुरुवार, 30 अगस्त 2012

हिंदी ब्लॉगिंग की असहज़ कुप्रवृत्तियां





पोस्ट लिखने से पहले एक क्लेमर लगा दूं , (जी हां मुझे किसी डिस्क्लेमर की कोई जरूरत नहीं क्योंकि पिछले कुछ समय में इतने सारे ब्लॉगरीय अनुभवों से इतना तो जान ही चुका हूं कि अपने ब्लॉग के सब दादा हैं , कई तो परदादा भी हैं , हम भी देर सवेर हो ही जाएंगे , हां ध्यान रहे कि पोता कोई नहीं है ) तो क्लेमर ये कि इस पोस्ट का हर उस किसी से कुछ न कुछ लेना देना है , जिसे जो लेना हो ले ले जिसे जो देना हो दे दे ) ।
पिछले अनुभवों में एक सबसे बडा अनुभव ये रहा कि हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मकता का मोल अगर दो पैसा है तो नकारात्मकता का शेयर बाज़ार अरबों खरबों का है ,सम्मान का भाव टके का है तो अपमान की कीमत अनमोल है , फ़िर क्या तेरी क्या मेरी । और हां एक कमाल की बात ये कि , ये आपके चाहने न चाहने , होने न होने से नहीं होता ये होना है तो होता ही है ।


संदर्भ की जरूरत इसलिए नहीं क्योंकि हमेशा की तरह हिंदी ब्लॉगिंग में सबसे ज्यादा प्रवाहमान पोस्टें और गतिवान माहौल कभी होता है तो वो तभी होता है जब कोई ताज़ा ताज़ा ब्लॉगर सम्मेलन , मिलन , बैठकी हुई हो । आखिर हो भी क्यों न , यही तो वो समय होता है जब तमाम तरह के दंड पेले जा सकते हैं या पेले जाते हैं सो पिछले साल के अभूतपूर्व छीछालेदारी के बावजूद जब इस बार भी हमारे बीच के कुछ ब्लॉगर साथियों ने फ़िर से हिंदी ब्लॉगरों में से कुछ को सम्मानित करने की योजना बनाई तो तभी लग गया था कि ओह , बिग ब्लॉग सीज़न टू , कौन बनेगा ब्लॉगपति सीज़न टू भी कम हंगामेदार नहीं रहने वाला है । अब चूंकि इसकी धमक चमक तभी सुनाई देने लगी जब इसकी पहली रूपरेखा के रूप में एक पोस्ट सामने आई । जल्दी ही ये रूपरेखा और उसके बाद निकला नतीज़ा कुछ कुछ इस तरह का हो गया , कि कम से कम मुझे वो स्टार परिवार अवार्ड या फ़िर कलर्स परिवार अवार्ड सरीखा ही लगने लगा था । मगर चूंकि मामला सम्मान का था , प्रोत्साहन का था वो भी हिंदी ब्लॉगिंग , हिंदी ब्लॉगर्स का था तो हाथ तालियों के लिए अपने आप उठ गए । वैसे भी मेरा मानना हमेशा से यही रहा है कि जब हम खुद अपनी इज़्ज़त नहीं कर सकते , एक दूसरे का सम्मान नहीं कर सकते तो फ़िर काहे के लिए इतना उबाल मारते हैं जब सरेआम कोई मंच से कह जाता है कि अधिकांश हिंदी ब्लॉगर लंपट हैं , वो भी तब जब हम खुद लंपटई दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते तो वे कैसे चूकें जो जाने कबसे इसी ताक में बैठे रहते हैं कि कोई मौका मिले और जम के लताडा जाए इन ब्लॉगरों को , हुंह्ह कभी अपने को साहित्यकार समझने लगते हैं तो कभी पत्रकार , और संपादक तो खैर हईये हैं सबके सब ।


किसी के आतिथ्य की जिम्मेदारी निभाना सिर्फ़ वही समझ सकता है जो निभाता है ,वर्ना घर पर आने की खबर भर सुनकर कईयों को बांग्लादेश तक का वीज़ा बनवा कर जरूरी काम से निकलते देखा जा सकता है , ऐसे में ब्लॉगर जमात , वो भी हिंदी ब्लॉगर जमात का जमावडा लगाकर उनका आ बैल मुझे मार वाली हिम्मत कर जाना कोई कम पगलेटपन वाला बात नहीं है ,लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग करने जैसा पागलपन कर रहे हैं तो फ़िर ये पगलेटपना और ज्यादा हो जाए तो इसमें चौंकना कैसा । लेकिन ये उदवेग इतने भर से ही नहीं रुका सा लगा और सम्मान कार्यक्रम होने तक वो लगभग सम्मान क्रियाकर्म हो चला । इस क्रियाकर्म की समाप्ति पर पता चला कि न सिर्फ़ निर्धारित वर्गीकरण ,बल्कि सम्मानित होने वाले तक बदल गए । कुछ नाम इतने अप्रत्याशित थे कि वे सहज़ प्रवृत्तियों से सीधे ही असहज़ता की ओर ले चले सबको । मुझे खुद "वर्ष २०११ का ब्लॉग खबरी " के रूप में नामांकित और सम्मानित किया गया लेकिन साथ में जोडा गया ब्लॉग "झा जी कहिन "जिसपर मेरी जानकारी के मुताबिक पिछले एक वर्ष में ऐसी कोई पोस्ट या चर्चा मैंने नहीं लगाई है जिसे एक ब्लॉग खबरी के रूप में लगा सकूं । किंतु इसके बावजूद भी मैंने हर्ष पूर्वक उस सम्मान को स्वीकार किया क्योंकि जब तालीम और तहज़ीब ने यही सिखाया है अब तक कि यदि कोई इज़्ज़त दे आपको तो सिर झुका के उसे स्वीकार करना ही मानव धर्म है ।


हां एक ब्लॉगर के रूप में एक ब्लॉग खबरी के रूप में बहुत सारे नामों पर, जिनका ईशारा बहुत सी पोस्टों में किया जा चुका है और अब भी किया ही जा रहा है , जरूर ही आश्चर्य और क्षुब्धता भी हुई , लेकिन मुझे हुई तो हुई । आयोजकों के लिए उन्हें सम्मानित करने (ध्यान रहे कि अपमानित करने के लिए यहां हिंदी ब्लॉग जगत में वज़हें तलाशनी नहीं पडतीं ) के लिए जरूर वाज़िब वजहें रहीं होंगी और सबसे अहम बात ये कि आखिर वे साथी ब्लॉगर्स हैं तो हमारे आपके बीच के ही तो फ़िर उनके सम्मानित हो जाने से कुढ के मर जाने लायक भावना नहीं पैदा हो सकी और माफ़ करिएगा हो भी नहीं पाएगी । मेरे लिए पिछले कुछ घंटों में इस संदर्भ में आई पोस्टों में सिर्फ़ वो पोस्टें सहेजनीय और स्मरणीय रहेंगी जिनमें हमारे साथी ब्लॉगर्स के मुस्कुराते चेहरे , एक दूसरे से बतियाते भाव वाली फ़ोटुएं देखने को मिलीं । शेष , इस पोस्ट सहित तमाम पोस्टें तो हमेशा की तरह गर्त में ही जाती रही हैं और जाएंगी । पुरस्कार समारोह के अतिरिक्त वहां निर्धारित विभिन्न परिचर्चाओं के बारे में कहीं कुछ विशेष न लिखे पढे जाने के कारण और भी निराशा हाथ लगी और ये और भी तब बढ गई जब एक बार फ़िर से एक सत्र को रद्द करने की पिछली भूल को दोहराए जाने का समाचार मिला , खैर ये भी ठीकरा आयोजकों के जिम्मे फ़ूटता है सो फ़ूटा ।


इस कार्यक्रम की समाप्ति के आई पोस्टों में जब इस कार्यक्रम की चर्चा , खबर आने लगी तो उसके समांनांतर वो पोस्टें भी आईं जो बेशक कही तो सहज प्रवृत्तियों के रूप में थीं लेकिन सिर्फ़ चौबीस घंटों के अंदर टिप्पणियों का माल मसाला लगा के उसे इतना असहज़ कर दिया गया मानो इस वर्ष  हिंदी ब्लॉगिंग की सबसे बडी दुर्घटना यही घटी कि हमारे ही कुछ साथियों ने हमारे ही कुछ साथियों का सम्मान कर दिया । सो इसके एवज़ में न सिर्फ़ सम्मानित करने वालों , सम्मानित होने वालों को नामी बेनामी सुनामी बनके बनके हमारे ही कुछ साथी दो टके का कहते दिखे तो कुछ साथी पूरी प्रश्नावली दाग बैठे । देखने पढने वाली बात ये कि कुछ साथी जो पिछले दिनों ब्लॉग आपात काल में नज़रबंद थे अचानक ही ऐसी पोस्टों पर नूमदार होकर अपने ब्लॉगरीय अनुभव को साहित्यिक छटा से लपेट कर यूं पिल पडे मानो कंधों पर बोफ़ोर्स लिए बस इसी एक वज़ह से रुके हुए थे । और ऐसा नहीं है कि वे खुद कभी ऐसे किसी आयोजन , किसी सम्मेलन , किसी सहभागिता के हिस्सेदार नहीं बने या आगे नहीं बनेंगे , हां ये जरूर है कि तब इस रवैये में ठीक वैसा ही फ़र्क आ जाता है जैसा किसी की सोच और शैला में तब आता है जब बेटी के विवाह के समय दहेज़ को भर भर के कोसता व्यक्ति अपने बेटे की शादी के समय पूरी सूची लेकर खडा हो जाता है । सोचता हूं यदि यही सब वज़हें हिंदी ब्लॉगिंग को रफ़्तार देती हैं , उन्हें (दुर)गति प्रदान करती हैं तो चलिए यही सही । जो भी हो , ये सब भी आनी जानी है । तो आइए इस लंपटगिरी को इसी तरह प्रवाह देते रहें और एक दूसरे को यूं ही सम्मानित अपमानित करते और होते रहें ।



12 टिप्‍पणियां:

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  2. झा जी आप तो बहुत कुछ कह डाले और सटीक कह दिए, अब सब ऐरो गिरो नथ्थू खैरों को सम्मान तो नहीं दिया जा सकता न , क्या अच्छा होता यदि सम्मानों की फेहरिस्त में कुछ और सम्मान जोड़े जाते जैसे लम्पट श्री, लम्प्ताधीश, ब्लॉग चौ चौ शिरोमणि, ब्लॉग काव काव ,ब्लॉग टांग खीचू आचार्य, ब्लॉग भूतानंद , ब्लॉग मंत्री , ब्लॉग संतरी ,ब्लॉग मूर्धन्य, ब्लॉग बोलानंद,ब्लॉग टोलानंद, ब्लॉग तबलची आदि आदि तो शयद सबकी भड़ास पूरी हो जाती . अगर देश आज़ाद हुआ तो सब तरह से हुआ ना , बोलने को आज़ाद, गाली देने को आज़ाद , बस की खिड़की से थूकने को आज़ाद ,लिफ्ट में सीढ़ियों पे पान की चित्र कारी को आज़ाद , दुसरे की बौन्द्री में लघु ...... को आज़ाद . ब्लॉग भी इस आज़ादी से अधूरा नहीं है . यहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है किसी के लिए कुछ भी लिखिए. किसी के कार्य को सराहो मत मेज के नीचे से टांग खीचते रहो और टिप्पणी पाते रहो. बस , अगर कोई लम्पट कहे तो ठीक ही कहता है भले ये सहबद हमें खराब लगा मगर बिखरी लम्पती को क्या करें.... आमीन

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  3. हम तो परिकल्पना-समारोह से पहले जितने वजनी थे,अब भी उतने ही हैं.हो सकता है,अगले साल तक 'भूतपूर्व' हो जाएं !

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  4. LUCKNOW: Hindi bloggers are now getting their place in the sun. Drawn from India and the rest of the world, they will be honoured in Lucknow on August 27 for popularising the language in cyberspace.

    Parikalpana, a bloggers' organisation, would confer the awards on 51 persons during an international bloggers' conclave at the Rai Umanath Bali auditorium here, said Ravindra Prabhat, the organising committee's convenor.

    The participants, some of whom also blog in English and Urdu, have made Hindi popular in the United States, the United Kingdom, the United Arab Emirates, Canada, Germany and Mauritius.

    "The blogger of the decade prize would be conferred on Bhopal's Ravi Ratlami who has a huge following," added Prabhat, a noted Hindi blogger.

    The NRI bloggers who have confirmed their participation include Dr Poornima Burman, editor of Abhivyakti (an online book in Hindi published from Sharjah) and the Toronto-based Samir Lal 'Samir' who writes blogs in Hindi and English.

    London-based journalist Shikha Varshneya, a regular blogger who has written a book 'Russia in Memory', is also expected to attend the ceremony. The others include Sudha Bhargava (USA), Anita Kapoor (London), Baboosha Kohli (London), Mukesh Kumar Sinha (Jharkhand) and Rae Bareli's Santosh Trivedi, an engineer who left his job with the Uttar Pradesh Power Corporation Ltd, for blogging.

    Avinash Vachaspati, the author of the first book on Hindi blogging in India and DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India would also be there as would multi-lingual blogger Ismat Zaidi, who writes in Hindi, Urdu and English. Her Urdu ghazals are a hit on the web.

    Asgar Wajahat and Shesh Narayan Singh are also expected to participate, but a confirmation is awaited.

    The bloggers would discuss the future of the new media, its contribution to the society, especially the future of Hindi blogging and its role in the days to come.

    ---
    this is the news in ht dated 8th august lucknow edition

    santosh trevedi left his job for bloging REALLY ???

    avinash vachaspati wrote the first book on hindi bloging REALLY ??

    DS Pawala (Bokaro), the first to start Hindi blogging in India REALLY ??


    DONT YOU THINK ITS HIGH TIME WE FIRST PUT THE FACTS RIGHT

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  5. आपकी पोस्ट का शीर्षक पढ़कर ही मुझे पसीना आ गया है.'हिंदी ब्लॉगर्स की असहज कुप्रवृत्तियाँ'. गोया कुप्रवृत्तियाँ सहज होतीं तो सराहनीय होतीं. सुप्रवृत्तियों की जरूरत ही क्या है.
    आपके अनुसार हिंदी ब्सॉगरी में सकारात्मकता की जगह सकारात्मकता का न होना अधिक मूल्यवान दिखाई देता है फिर भी आप वहाँ टिके हुए हैं.सिर्फ इसलिए कि ब्लॉगरी को इसीसे गतिमयता मिलती है
    मैं भी महसूस करता हूँ कि बहुत सारे ब्लॉग पड़े हैं इंटरनेट पर जो अच्छे भी कहे जा सकते हैं पर उन्हें टिप्पणी का सौभाग्य नहीं निला है. मेरे ही फेसबुक पर एग्रीगेटर हमारी वाणी वाले छाए हुए हैं. किंतु ये मेरे ब्लॉग को पढ़ने की जहमत नहीं उठाते. संभवतः फीड बर्नर भी मुझसे रूठा हुआ लगता है.

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  6. यदि कोई किसी को सम्मानित कर रहा है तो किसी को कोई आपत्ति क्यों होनी चाहिए?

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  7. ram ram bhai


    लम्पटता के मानी क्या हैं ?

    कई मर्तबा व्यक्ति जो कहना चाहता है वह नहीं कह पाता उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिलतें हैं .अब कोई भले किसी अखबार का सम्पादक हो उसके लिए यह ज़रूरी नहीं है वह भाषा का सही ज्ञाता भी हो हर शब्द की ध्वनी और संस्कार से वाकिफ हो ही .लखनऊ सम्मलेन में एक अखबार से लम्पट शब्द प्रयोग में यही गडबडी हुई है .

    हो सकता है अखबार कहना यह चाहता हों ,ब्लोगर छपास लोलुप ,छपास के लिए उतावले रहतें हैं बिना विषय की गहराई में जाए छाप देतें हैं पोस्ट .

    बेशक लम्पट शब्द इच्छा और लालसा के रूप में कभी प्रयोग होता था अब इसका अर्थ रूढ़ हो चुका है :

    "कामुकता में जो बारहा डुबकी लगाता है वह लम्पट कहलाता है "

    अखबार के उस लिखाड़ी को क्षमा इसलिए किया जा सकता है ,उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिला ,पटरी से उतरा हुआ शब्द मिला .जब सम्पादक बंधू को इस शब्द का मतलब समझ आया होगा वह भी खुश नहीं हुए होंगें .

    यूं अखबार वालों की स्वतंत्र सत्ता नहीं होती है.अखबार श्रेष्ठ नहीं होता है औरों से ,अन्य माध्यमों से ,अखबार की एक नियत बंधी बंधाई भाषा होती है उसी के तहत काम करना होता है हमारे मित्र बाबू लाल शर्मा (पूर्व सम्पादक ,माया ,दैनिक भास्कर ,अब स्वर्गीय ) बतलाया करते थे वीरू भाई कुल २२,००० शब्द होतें हैं जिनके गिर्द अखबार छपता है .अखबार की एक व्यावहारिक सी भाषा होती है जिसमें कोई ताजगी नहीं होती .

    ब्लॉग ताज़ी हवा का झोंका है भाषा प्रयोग के मामले में .ब्लोगर जब लिखता है उसमें ताजगी होती है .आतुरता होती है मैं और ब्लोगरों से अच्छा लिखूं .आगे बढूँ .

    सही शब्द था "आतुरता "सम्पादक का यह वक्तव्य ज़रूर लम्पटता है जिसे अखबार ने शीर्षक बनाया है .अभिव्यक्ति की जल्दी में अखबार ऐसा कर गया अब अगर उसे पलट कर कोई लम्पट कहे तो यह उपयुक्त नहीं होगा .

    अब लोभ और लोभी शब्द एक ही धातु "लभ" से बनें हैं लेकिन लोभी शब्द अच्छे अर्थ में नहीं जाएगा .

    लौंडा लौंडिया का अर्थ वैसे तो लडका लडकी ही होता है लेकिन लखनऊ की नवाबी ने इसके अर्थ बदल दिए यह शब्द सामाजिक रूप से वर्जित हो गया .हरियाणा में तो इसे बहुत ही गर्हित मानते हैं ,सोडोटौमी से जोड़ देते हैं .

    इसी तरह लम्पट शब्द अब एक ख़ास चरित्र के मामले में आ गया है .यह चरित्र नीति का शब्द है ब्लोगर के लिए यह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता .

    वीरुभाई ,४३ ,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन

    ००१ -७३४ -४४६ -५४५१

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  8. मुझे आपसे केवल यह शिकायत है आप क्यों नहीं आये?
    बाकी तो आपने मन की ही बता कही है -
    एक सज्जन जो बहुत आमंत्रित करते थे एक शहर में, मुला जब पहुंचे तो मोबाईल ही आफ किये रहे ..
    बाद में बोले बैटरी ख़त्म हो गयी थी -तो कहीं और से तो कर सकते थे न भैया?
    ये दरिद्र लोग है चाय तो पिला नहीं सकते आप आयोजन की बात कर रहे हैं !

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  9. ब्‍लॉगरों द्वारा ब्‍लॉगरों का सम्‍मान किये जाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन इस बात का ध्‍यान रखना होगा कि सरकारी आयोजनों की तरह ये आयोजन भी चाटुकारिता, खेमेबाजी, आरोप-प्रत्‍यारोप के जाल में न उलझ कर रह जायें। इस दिशा में अभी ब्‍लॉग जगत को और परिपक्‍वता लाने की जरूरत है।

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  10. "पिछले अनुभवों में एक सबसे बडा अनुभव ये रहा कि हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मकता का मोल अगर दो पैसा है तो नकारात्मकता का शेयर बाज़ार अरबों खरबों का है ,सम्मान का भाव टके का है तो अपमान की कीमत अनमोल है , फ़िर क्या तेरी क्या मेरी । और हां एक कमाल की बात ये कि , ये आपके चाहने न चाहने , होने न होने से नहीं होता ये होना है तो होता ही है । "

    लायर साहब ! पूरे देश का ही यही हाल है मी लोर्ड !

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  11. ब्लॉग लेखन की गुणवत्ता बढ़ाने, इसे लोकप्रिय बनाने और अधिक से अधिक लोगों को इस माध्यम से जोड़ने के उद्देश्य से यदि कोई आयोजन होता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। यदि उद्देश्य कुछ अलग हों तो विवाद और छीछालेदर होना तय है। मुझे यह सब पढ़-सुनकर अफसोस हो रहा है।

    किसी भी स्पेस में निर्वात की स्थिति नहीं रह सकती। यदि अच्छे लोग अपना काम नहीं करेंगे तो खराब लोग उस जगह को भर ही डालेंगे। इसलिए अच्छे लोगों को आगे आना चाहिए। यह स्थिति जितनी राजनीति के लिए सही है उतनी ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए - कला, संस्कृति, साहित्य, खेल, प्रशासन, शिक्षा, मनोरंजन, उद्योग, व्यापार आदि कोई भी क्षेत्र इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं है। फिर ब्लॉगरी किस स्वर्गलोक से उतरी हुई विधा है?

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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