यूं तो मैं किसी नए सफ़र पर निकलने को हमेशा ही लालायित रहता हूं ..मगर चूंकि अलग अलग वजहों से पिछले एक डेढ माह में मैं पंजाब विशेषकर ...जालंधर , होशियारपुर....और अलावलपुर (वहीं समीप ही एक कस्बा ) जा चुका था इसलिए जब इस बार पुन: बच्चों और श्रीमती जी को वापस लाने का कार्यक्रम बना तो कुछ अरुचिकर सा लगा । कुछ घरेलू समस्याओं के कारण और सफ़र की थकान का सोचकर इस बार मन उत्साहित नहीं था ...मगर बीच में जब श्रीमती जी ने सूचना दी कि इस बार ..अमृतसर जाने और स्वर्ण मंदिर , जालियांवाला बाग तथा दुर्गयाना मंदिर देखने जाने का विचार बन रहा है ..या कहें कि तैयारी की जा चुकी है तो मन कई बातें सोच कर थोडा सा हुलसित जरूर हुआ । अमृतसर मैं शायद तब गया था जब सिर्फ़ सात वर्ष का था और इसके बावजूद मुझे जालियांवाला बाग के शहीदी कुआं की कुछ धुंधली याद तो थी ही मुझे ...अमृतसर वो पहला शहर होने जा रहा था जिसे पहले बचपन में और अब पुन: दोबारा देखने जाने का मौका मिलने वाला था मुझे । एक नया शहर ...और बहुत कुछ नया देखने जानने को मिलेगा ..यही सोच कर मन को संतोषित कर लिया ।सफ़र में मेरा एक फ़ंडा है ..और वो ये कि ..अकेले सफ़र करना है तो न बस की परवाह न रेल यात्रा की ..कहने का मतलब ये कि ....मुझे कोई टेंशन नहीं होती ....चाहे जिस माध्यम से रास्तों को नाप लूं ..हां मगर कोशिश सिर्फ़ ये रहती है कि ...दिन और रात के सफ़र को अपने हिसाब से करूं । तो अब तय ये हुआ कि ..चूंकि सफ़र रात को करना था तो फ़िर शाम को चल कर पूरी रात बस में सोते जगते बिता कर सुबह तडके ही होशियापुर पहुंचा जाए । मैं शाम को तकरीबन आठ बजे निकल कर साढे आठ बजे तक ..दिल्ली के अंतर्राज्यीय बस अड्डे पर पहुंच गया । तो तय ये किया कि रात में दिल्ली बस अड्डे से चंडीगढ के लिए काफ़ी बसें चलती हैं जो वातानुकूलित भी होती हैं और बेहद आरामदायक भी ...और चंडीगढ से मैं होशियारपुर के लिए निकल सकता हूं ..मगर रास्ते में ऑटो वाले सत्यप्रकाश जी से बहुत सी दिलचस्प बातें हुईं ...। पहले दिल्ली की बदलती सडकों से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों तक की बातें । सत्यप्रकाश जी ने मेरे द्वारा दिल्ली के विकास के सभी तर्कों को सिरे से खारिज करते हुए ये कहा कि ...साहब ये कोई ऐसा काम नहीं था जिसके लिए राष्ट्रमंडल खेलों का बहाना तलाशना जरूरी । मुझे इस बात की जानकारी थी कि कुछ निजि बसें लालकिले से भी निकलती हैं ..इसलिए मैंने पूछा कि क्या लाल किले से बस लेना ठीक होगा । सत्यप्रकाश जी ने कहा नहीं साहब , कहां उनके चक्करों में पडिएगा ..वे तो सब के सब ठग है दूना चौगुना किराया भी वसूलेंगे और कोई गारंटी भी नहीं । मैंनें कहा ....मगर लूटते तो ये सरकारी वाले भी हैं सत्यप्रकाश जी । ..सही कह रहे हैं साहब ..........मगर यहां लुटने से इतनी तसल्ली तो होगी न ..कि आपको सरकार ने खुद लूटा है ....न कि आप जैसे ही किसी व्यक्ति ने .......। मैं अवाक था उसके लाजवाब तर्क से ।मगर चंडीगढ जाने वाली बस के लिए लगी टिकट की लाईन में अचानक ही अपने एक सहयात्री से पूछ बैठा कि बस चंडीगढ कब तक पहुंचा देगी ..उत्तर मिला ज्यादा से ज्यादा चार पांच घंटे ....ओह तो फ़िर तो मेरा सारा कैलकुलेशन ही गडबड हो जाएगा ..अब रात एक दो बजे तक चंडीगढ पहुंचने का मतलब है कि समय से पहले ही पहुंच जाना । इसलिए फ़ौरन उस लाईन छोड के निकलना पडा । थोडी बहुत भाग दौड के बाद पता चला कि एक बस सीधा होशियारपुर के लिए भी निकलने वाली है .....लगभग दस बजे के करीब । सुबह पांच बजे तक होशियारपुर पहुंचा देगी । बस बस ..यही सर्वथा उपयुक्त है ..ये सोच कर काउंटर से टिकट लेकर हम्लगे घूमने बस अड्डे पर ही चारों तरफ़ ।अच्छी अच्छी किताबें हमेशा से ही मेरी कमज़ोरी रही हैं और यदि अकेले सफ़र करना हो फ़िर इससे बेहतर सहयात्री और कोई हो भी नहीं सकता । घूमते घामते बुक स्टॉल पर पहुंचा तो जिस किताब पर नज़र पडी ..वो थी फ़ाइव प्वाइंट समवन । नाम खूब सुन रख था थ्री इडियट्स भी कई बार देख रखी थी ..सो लपक लिया । किताब की प्रस्तावना और शुरूआत के कुछ पन्नों को पढ कर ही लग गया कि ये पुस्तक उस पिक्चर से भी ज्यादा आनंद देने वाली है ।हालांकि उस समय उससे ज्यादा पढ भी नहीं सका क्योंकि बस में रोशनी बंद कर दी गई थी ।मगर एक ख्याल मेरे मन में तभी आ गया था कि लौट कर अपने पास रखी एक हज़ार से अधिक पुसत्कों को पढ कर उन पर कुछ लिखने के लिए एक अलग ब्लॉग बनाऊंगा ..।
बस में मेरे साथ जो सहयात्री मिले वो थे मनदीप सिंह जो , होशियारपुर से भी आगे मुकेरियां जा रहे थे । मनदीप ने मुझे न सिर्फ़ पूरे रास्ते में पडने वालों शहरों के बारे में कुछ न कुछ बताया बल्कि अपने बारे में भी थोडा झिझकते हुए बताया । यहां से मेरे भीतर छुपी एक पत्रकार की आत्मा जाग चुकी थी जिसने आगे जाकर क्या क्या देखा और दिखाया ..अगली पोस्टों में जिक्र करूंगा ।
बस थोडी देर बाद ही दिल्ली हरियाणा की सीमा पर खडी थी जहां कतार में खडे सैकडों ट्रक दिखे । वे सब दिल्ली में प्रवेश के लिए प्रतीक्षारत थे । मैं उन्हें देख कर सोच रहा था ...आह ! इनकी जिंदगी ..चार पहियों पर दौडती । एक जगह से दूसरी जगह ..कभी दीवाली ...कभी होली ...तो कभी कोई और त्यौहार छूटते छोडते .....कैसी चलायमान सी होगी । सोचता हूं कि काश कोई ट्रक डाइवर भी ब्लॉग लिखता तो जाने कितनी ही बातें हम जान पाते उनके बारे में । बस वहां से निकलने के बाद रात तकरीबन दो बजे तक कुरुक्षेत्र बस अड्डे पर रुकी
कुरूक्षेत्र बस अड्डा अंधेरे में
आपके इस पोस्ट से एक सुखद बात समझ में आई है की इस देश का एक ऑटो वाला भी इस देश के कर्ता-धर्ता से अच्छी और सच्ची समझ व सोच रखता है ...निश्चय ही यह देश खूंखार लूटेरों के बाबजूद ऐसे ही आम सच्चे लोगों की सोच की वजह से पूरी तरह लुटने से बचा हुआ है ...
जवाब देंहटाएंभैया जी...मजा आ गया आपके साथ सफर कर के..वैसे फाइव पॉइंट समवन पढ़ा न आपने? थ्री इडीअट्स से कहीं बेहतर है वो किताब :)
जवाब देंहटाएंऔर अगली पोस्ट जल्दी से छापिए :)
मजेदार !
जवाब देंहटाएंफिल्म भी देख ली थी फिर भी अब सिलसिलेवार सब जानने के लिये उत्सुक हूँ।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
बढिया और सच बात कही जी सत्यप्रकाश जी ने
जवाब देंहटाएंबीच रात में कहीं पहुचने से अच्छा है कि सफर लम्बा हो जाये।
जवाब देंहटाएं`आपको सरकार ने खुद लूटा है ....न कि आप जैसे ही किसी व्यक्ति ने .......'
जवाब देंहटाएंभाय़ा मैं ने तो नहीं मैं ने तो नहीं :)
आप का लेख पढ कर ऎसा लगा कि उस बस मे हम भी बेठे हे, मजेदार यात्रा, होशियार पुर मे हम पेदा हुये थे, जनाब आप तो हमारे घर के पास से धुम कर आ गये, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर यात्रा वृतांत .....
जवाब देंहटाएं