इस सफ़र की शुरुआत और पहले पड़ाव तक पहुंचे की कहानी आप पढ़ चुके हैं | वहां
पहुँचते ही सबसे पहले जो बात सबके मुंह से निकली वो ये कि जोरों की भूख लगी
है सो पहले पेट पूजा की जाए | शिमला में प्रवेश करते करते बारिश की
फुहारों ने भी स्वागत करते हुए जता और बता दिया था कि अब अगले एक सप्ताह तक
हमें इस भीगे भीगे मौसम का साथ मिलने वाला है |
फ़टाफ़ट ही गर्म पानी से स्नान करके सब थोड़े तरोताजा हुए और इसका दूसरा प्रभाव ये पड़ा कि भूख और ज्यादा तेज़ हो गयी , सुबह से हलके फुल्के नाश्ते और फल वैगेरह खाए होने के कारण अब भरपूर खाने की जरूरत महसूस हो रही थी | मित्र अरविन्द जी का साथ ऐसे समय पर काफी उपयुक्त रहा और श्रीमती जी के पंजाबी खाने के स्वाद को जानते हुए उन्होंने सामने ही दिख रहे इकलौते ढाबेनुमा छोटे से रेस्तरां की तरफ कूच किया | यहाँ ये बता दूं कि पहाड़ों में जाते समय आप अपनी जीभ और स्वाद को या तो वहां उपलब्ध होने वाले कम मसालेदार भोजन के लिए अभ्यस्त कर लें या फिर उन्हीं फास्ट फ़ूड पर निर्भर हो जाएँ जो शहरों में पेट और सेहत का कचरा किये हुए हैं , क्योंकि यहाँ हर तीन रेस्तरां में से एक पर आपको पंजाबी ढाबा , पंजाबी होटल जैसा लिखा हुआ कुछ दिख जाएगा मगर बकौल श्रीमती जी , इनमें वो स्वाद कहाँ | खैर हमारा तो ये मानना है कि जब भूख लगे तो जो सामने मिले वही अमृत है ...और खाने पीने में हमारी कोइ विशेष आदत या परहेज़ भी नहीं है जैसा देश वैसा भेष |
|| | |||
उसी ढाबे से लिया गया एक चित्र |
अगली सुबह शिमला के एक सबसे पसंदीदा प्वाइंट कुफरी जाने का कार्यक्रम बना | बकौल अरविन्द जी वहां कुछ पल तो आनंदायक रूप से मनाये जा सकते थे | लेकिन तब ये अंदाजा नहीं था कि आनंददायक होने के अलावा वे पल ताउम्र के लिए यादगार भी बन जाने वाले थे | नियत स्थान पर पहुँच कर ज्ञात हुआ कि कुफरी के उस दर्शनीय प्वाईंट तक सिर्फ घोड़े बैठ कर जाया जा सकता था | हालांकि बाद में जब उस रास्ते पर चले तो हकीकत महसूस करते भी देर नहीं लगी | मैं चूंकि फ़ौजी परिवार में पला बढा हुआ था इसलिए , घुड़सवारी , तैराकी , आदि में सिद्धहस्त था किन्तु बच्चे और उनसे भी अधिक बच्चों की मम्मी ने वहीं सत्याग्रह ठान दिया कि चाहे जो भी हो वे घोड़े पर नहीं बैठेंगी | खैर जैसे तैसे मनाया गया , और सवारी चल दी कुफरी के उस टेलीस्कोप प्वाइंट की ओर|
रास्ते में जो मैंने स्पष्टतः महसूस किया कि कम सौ सवा सौ घोड़ों पालने पोसने वाले कुछ लोगों ने जानबूझकर रास्ते को न सिर्फ संकरा बल्कि कहीं और लाई गयी कीचडनुमा मिट्टी से इतना अधिक दुर्गम और खतरनाक बना दिया था कि वे जो कुछ लोग घोड़े पर बैठकर जाने को तैयार नहीं हुए और जिन्होंने ये कोशिश की भी उनके लिए ये ज्यादा बड़ी सिरदर्दी साबित हुई | मुझे लगता है कि सरकार व् प्रशाशन को इस बात की पूरी जानकारी भी होगी | पूछने पर इस बात से साफ़ इनकार करते हुए राईस थामे मदन जी ने बताया कि क्या करें बाबू साहब , आखिर हमारी कमाई का ज़रिया और कोइ है भी तो नहीं || श्रीमती जी और इनकी पूरी बिरादरी यानी ..महिला ब्रिगेड ...चीत्कार ..मारते हुए , कई बार इतनी जोर से ..खुद घोड़े भी हैरान परेशान होकर सोचने लगते थे कि आखिर हम कर तो कुछ भी नहीं रहे फिर ये महिलाएं हमें डरा क्यूँ रही हैं |
घोड़े पर सवारी गांठते गोलू और बुलबुल |
श्रीमती जी की भाव भागिमा देख कर आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं |
आगे जो नज़ारा आखों के सामने था , वो आप भी देखिये ....
फिलहाल के लिए इतना ही , पोस्ट लम्बी हो जायेगी और आप हो जायेंगे बोर इसलिए ..आगे की यात्रा अगली पोस्ट में ....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबुलेटिन टीम का आभार
हटाएंआकर्षक ।
जवाब देंहटाएं