उस दिन सुबह सुबह जब मुझे सफ़र के दौरान पाबला जी का मैसेज मिला शायद सुबह आठ सवा आठ का कोई वक्त रहा होगा , मैं ट्रेन की खिडकी पर बैठा बैठा चौंक पडा था और मेरे हावभाव देख कर सहयात्री भी । मेरे मुंह से निकला ओतेरे कि ! कसाब को टांग दिया " । सहयात्री हैरान मेरा मुंह देखने लगे । पूरी खबर जानने के लिए मोबाइल में भास्कर डॉट कॉम देखना शुरू किया , सिलसिलेवार खबर मिल गई , और निरंतर मिलती गई । सहयात्रियों में बातचीत शुरू हो चुकी थी , और मेरे मुंह से बेसाख्ता निकला ," कसाब को टांग दिया गया , ठीक हुआ , लेकिन अब शायद सरबजीत की रिहाई नहीं होगी कभी " । साथ बैठे सहयात्री ने कहा , " हां असर तो पडेगा " मैंने कहा नहीं , यही होगा , मुझे आभास हो रहा है।
फ़िर कसाब के बाद अफ़ज़ल की बारी आई । इस बीच दिमाग से सरबजीत का मुद्दा निकल चुका था कि अचानक ही फ़िर से समाचार चैनलों में सरबजीत का नाम चमकने लगा , वजह भी पता लग गई और अपने आभास पर यकीन भी हो चला । मुझे लगा कि ये आभास मुझे अकेले को ही नहीं हो रहा था शायद , खैर ।
सरबजीत पर हमले की आशंका के बाद उसका गहन चिकित्सा कक्ष में रखे जाने की खबर मुतमइन सा कर गई , क्योंकि अस्पतालों में आईसीयू की रेपुटेसन अब कैसी है किसी से छुपी नहीं है इसलिए सच या झूठ कहा ये भी गया कि मौत तो पहले ही हो चुकी थी , लेकिन पहले न सही बाद में तो वो निश्चित कर ही गई । लेकिन शरीर के घर पहुंचने पर पता चला कि जीवन रक्षक कुछ अंगों को पहले ही निकाल लिया गया है , अब बेशक पाकिस्तान से बयान आ सकता है कि वे अंग तो सरबजीत के शरीर में कभी थे ही नहीं ।
मौत के साथ सरबजीत की जिंदगी खत्म हो गई , मगर इस देश में तो सियासत फ़ौजियों के कफ़न और ताबूत तक में हो चुकी है तो फ़िर ये तो मौत भर थी । सियासत और सरकार ने गरीब देश के गरीब खजाने से , जो कि हमेशा घाटे में ही चलता है , करोडों लाखों की पोटली , उस गमगीन परिवार के माथे पर रख दी । बिना ये सोचे कि सरबजीत के जैसे सैकडों कैदी अभी भी पडोस के जेल के किसी साथी की दो चार ईंटों से सर फ़ुटवाने की राह देख रहा है , बिना ये सोचे कि पोटली , किसी शहीद फ़ौजी के परिवार के माथे पर रखी पोटली से ज्यादा कम भारी तो नहीं हो गई , लेकिन जितनी बडी सियासत , उतनी बडी पोटली ।
इधर जाने कहां से इस हत्या के बाद सरबजीत की मौत को शहादत न मानने और उसे कतई भी शहीद तो नहीं ही , माने जाने का वैचारिक द्वंद भी शुरू हो गया । सरबजीत के रूप में एक भारतीय का कत्ल वो भी चिर दुशमनों के हाथों , अब चाहे लाख क्रिकेट और म्युज़िक के पुल बनाकर इन्हें दोस्ती के फ़ट्टे पर बिठाइए पर असल में उस फ़ट्टे के नीचे दो तलवारें आपस में तनी ही मिलेंगी , जैसा दिल से सोचने वाले इसे उसकी शहादत ही मान रहे हैं जबकि इसे दूसरे नज़रिए से देखने दिखाने वाले ..सीधे सीधे सरबजीत को आतंकी कहने से जरा बच ही रहे हैं । यूं असल में देखा जाए तो सरबजीत की हत्या और मौत पर बोलने का हक सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके परिवार को ही है । इसके फ़ौरन बाद भारत में भी एक पाकिस्तानी कैदी के साथ मारपीट करने की खबर भी आ ही गई , यानि अभी ये सिलसिला एकदम से थम नहीं जाएगा ।
अब बात कानून की , पडोसी देश की जो अदालत , पाकिस्तानी हुक्मरान तक को दुम दबा कर भागने पर मजबूर कर दे रही हो , उसे आखिर ये तथाकथित मंजीत और सरबजीत वाली थ्योरी दिखी या दिखाई क्यों नहीं दी , समझने की कोशिश हो रही है । वैश्विक कानून और अंतरराष्ट्रीय विधि , विषयों और देशों के आचरण और उनकी शक्ति के अनुसार ही लागू होती है , ये पिछले दिनों इटली के आरोपी सैनिकों वाले मामले और अब सरबजीत के मामले में स्पष्ट दिख ही रहा है । जो भी प्राकृतिक कानून भी यही कहता है कि न्याय सिर्फ़ होना नहीं चाहिए बल्कि न्याय होते हुए महसूस भी होना चाहिए
बहुत ही सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये इसे एक बार अवश्य देखें,
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बिल्कुल सही कहा आपने, आपकी बात से सहमत हूं कि न्याय होते हुये महसूस भी किया जाना चाहिये.
जवाब देंहटाएंरामराम
बदला ही लिया गया है, बात समझ में आनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंखिसियानी बिल्ली ने खम्भा नोचा है.
जवाब देंहटाएंजिस ने अपनी ज़िन्दगी के २२ साल दुश्मन देश की कैद मे गुजारे हो केवल इस जुर्म के लिए कि वह एक भारतीय नागरिक है ... फिर उसका जुर्म तो कभी साबित हुआ भी नहीं था ... और एक बार को यह मान भी लें कि उस ने पाकिस्तान मे बम धमाके किए ... तो किस के कहने पर किए ... भारत सरकार के कहने पर ही न ... एक विशेष सियासी नीति के तहत ही न ... मतलब कि वो अपना फर्ज़ अदा कर रहा था एक जासूस के रूप मे ... एक रॉ एजेंट के रूप मे ... और फिर यह मत भूलिए उसको पाकिस्तान मे मौत उसके जुर्म के लिए नहीं मिली ... उसकी हत्या हुई !!
जवाब देंहटाएंफिर वो 'शहीद' कैसे नहीं हुआ ???
जब हमारे देश मे यह प्रथा रही है कि कोई नेता अगर मारा जाये तो उसे हाल 'शहीद' घोषित कर दिया जाता है ... कई सौ एकड़ जमीन पर उस की समाधि बनती है तो आज वक़्त आ गया है कि एक आम बंदा भी 'शहीद' कहलाए ... क्यों कि 'शहादत' पर किसी नेता की बपौती नहीं है !!
बदकिस्मत सरबजीत की मौत की पाकिस्तान से ज्यादा जिम्मेदार निकम्मी भारत सरकार है। अगर उसका नाम सरबजीत सिंह न होकर सरबुद्दीन खान होता तो उसे छुड़ाने के लिये सरकार और कथित बुद्धिजीवी जमात जमीन-आसमान एक कर देते।
जवाब देंहटाएंबदकिस्मत सरबजीत और निकम्मी भारत सरकार « श्रीश पण्डित प्रणीतम्
देश का एक साधारण नागरिक भी ऐसे अन्याय का शिकार होता है तो उसे शासकीय सम्मान का पूरा हक है।
जवाब देंहटाएंरही बात वैचारिक जुगाली करने वालों की, किसी घटना में मुस्लिम एंगल आते ही उनकी सारी संवेदनायें जाग जाती हैं। कुछ तो आंख बंद करके सब मुस्लिमों को दोषी बता देंगे और कुछ बल्कि अधिकतर आंख बंद करके उनकी फ़िक्र में हुंआ हुंआ शुरू कर देंगे। किसी मुस्लिम को तो मैंने सरबजीत की हत्या को शहादत मानने पर उंगली उठाते नहीं देखा। ये शोर मचाने वाले ज्यादातर वही होते हैं जो ज्यादा दिमाग रखते हैं। क्या कीजियेगा? सबके अपने एजेंडे हैं भाई।
बिल्कुल सही
जवाब देंहटाएंयह आदान प्रदान नया नहीं है।
जवाब देंहटाएंविशेष लोगों की महत्वाकांक्षा में आम लोगों की बलि होती ही आई है, हो रही है. बड़े लोग आपस में अच्छे से मिलते हैं. उमर कम है. मुहब्बत में बीते तो सार्थक है. न्याय दुनिया में जिसे नसीब हो जाये, वह नसीब वाला है.
जवाब देंहटाएंदुखद खेल...... जाने हम कब चेतेंगें
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंWow such great and effective guide
जवाब देंहटाएंThank you so much for sharing this.
Thenku AgainWow such great and effective guide
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Thenku Again