गुरुवार, 14 जुलाई 2011

अब या तो निपटाइए , या निपट ही जाइए ..झा जी कहिन






कल के मुंबई बम धमाकों के बाद सिर्फ़ दो बातें दिमाग में घूम रही हैं , पहली ये कि , तो क्या अब दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में रहने वाले हमारे जैसों को ऐसे ही किसी आतंकी हमले में मरने या किसी अपने के मर जाने की खबर सुनने की आदत डाल लेनी चाहिए ..और दूसरा ये कि ....सरकार की सारी बकवास , आतंकवादी घटनाओं से परे जाकर बस इतना कहने का मन है ...या तो निपटाइए ....या अब खुद ही निपट जाइए ..बस अब बहुत हुआ।


मैंने अभी अपनी इस पोस्ट में ये संभावना जताई थी कि अभी जिस तरह के हालात हैं और आसपास यानि पाकिस्तान , बांग्लादेश , और चीन जैसे देशों की जो मंशा भारत के प्रति है उसमें ये बहुत कुछ अपेक्षित सा ही था कि देर सवेर भारत को ये दंश झेलना ही था , बल्कि कहा जाए कि ये तो एक शुरूआत भर है तो शायद ये गलत नहीं होगा । ये भी अब देश के महानगरों की एक नियति सी बनती जा रही है कि उन्हें , देश के सबसे विकसित शहरों में रहने का खामियाजा ऐसे भुगतने के लिए अभिशप्त होना पड रहा है । इन बम धमाकों से पहले और इसके बाद कुछ भी ऐसा अलग या अनोखा नहीं होगा जो कि अब तक न हुआ हो । सरकार द्वारा इसकी भर्तस्ना , अपने तमाम आका टाईप के दोस्त देशों के आगे जा जाकर बताना कि , देखो हमें तो फ़िर मारा । कुछ अलग करना हो तो सामने ही अमेरिका का उदाहरण है , जिसने बिना किसी कानून , बिना किसी सीमा की परवाह करते हुए आतंकी ओसामा बिन लादेन को उसीके बिल में जा कर मारा । न सिर्फ़ उसे मारा बल्कि अब ऐसे समाचार आ रहे हैं कि पाकिस्तान की आर्थिक सहायता में भी भारी कटौती की गई है ।


पडोसी देश पाकिस्तान , आज विश्व में आतंकियों , स्मगलरों , अंतरराष्ट्रीय अपराधों का गढ माना जाता है । और बार बार इसके पुख्ता प्रमाण मिलते रहने के कारण इसमें कोई संदेह भी नहीं है । तो ऐसे में जब भारत एक ऐसे देश का पडोसी है , न सिर्फ़ पडोसी बल्कि उसका दुश्मन नंबर एक है ( लाख क्रिकेट की कूटनीति हो या संगीत, सिनेमा के जुडे हुए तार , और चाहे भारत माने न माने लेकिन ये हकीकत है कि आज भी पाकिस्तान भारत को इसी रूप में देखता है) ,तो क्या ये स्वाभाविक नहीं है कि आने वाले समय में इन आतंकी घटनाओं के और भी बढने के आसार हैं । देश की तमाम सुरक्षा संस्थाएं , एजेसियां और पुलिस को अब अगले बहुत समय तक अपने उच्चतम सुरक्षा मोड में रहना चाहिए , लेकिन अफ़सोस कि आज देश के राजनीतिज्ञों को घपलों घोटालों में पैसा बटोरने से ही फ़ुर्सत नहीं है । जिस तरह से कसाब , अफ़ज़ल जैसे आतंकियों को पाल पोस कर न्याय दिलवाने के नाम पर रखा जा रहा है और पिछले तमाम आतंकी घटनाओं में एक भी नेता और और उनके नाते रिश्तेदारों के बाल भी बांका नहीं होने के कारण मन में संदेह होता है कि कहीं ये आपसी सांठगांठ तो नहीं कि , तुम हमें बचा के रखो, हम तुम्हें बचाए रखेंगे ।


इन घटनाओं पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कई लोगों ने कहा कि , बहुत बडी गलती हुई थी उस दिन संसद पर हमले को नाकाम करने में हमारे सैनिकों ने अपनी जान देकर इन राजनीतिज्ञों को बचाया जो ऐसे आतंकी हमलों पर ओछे बयान की राजनीति करते हैं । काश कि उस दिन एक आध भी निपट लिया होता तो जरूर ये नौबत शायद उतनी जल्दी जल्दी नहीं आती जितनी कि आ रही है । आने वाला समय इस लिहाज़ से बहुत ही ज्यादा संवेदनशील और नाज़ुक होगा , क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता जहां बढने के आसार हैं वहीं आने वाले कुछ महीने भारत में त्यौहारों और पर्व का मौसम होता है , ज़ाहिर है कि आतंकियों के लिए ये एक और मौका होगा । सबसे बडा सवाल ये है कि आखिर कब तक ? 

19 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो अपने से ही शर्मसार हैं...दुनिया का हर देश अपनी सुरक्षा का इंतजाम ख़ुद देखता है और अपने नागरिकों की जिम्मेदारी भी लेता है और हम हैं कि कोई हमारे नागरिकों को मारकर ,हमारे ही समाचार-चैनलों में कब्जाकर अट्टहास लगता है और हम या तो बड़े मुल्कों को चिट्ठियां भेजते हैं या कड़े कागज़ी प्रस्ताव पारित करते हैं !अपनी खाज ख़ुद ही खुजलानी पड़ती है,यह इस तंत्र के अलावा सबको पता है.
    आपने कह दिया तो ये ख़ुद ही निपट जायेंगे...निपटाने का माद्दा इनमें नय है भाई !

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  2. लगता है धीरे धीरे यह सब सहने की आदत डालनी होगी, रक्त खौलते खौलते वाष्पित हो जायेगा।

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  3. कहीं ये आपसी सांठगांठ तो नहीं कि , तुम हमें बचा के रखो, हम तुम्हें बचाए रखेंगे ।

    ऐसा ही लगता है ...
    संसद में एक आध नहीं सबको ही निपटा दिया होता एक साथ ...कश कुछ तो हुआ होता

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  4. @संसद में एक आध नहीं सबको ही निपटा दिया होता एक साथ ...कश कुछ तो हुआ होता

    संगीता स्वरुप(गीत)जी,
    इतना शुभ शुभ न बोलियेगा जी,
    फिर भृष्टाचार,घोटालों,महंगाई का क्या होगा?

    अजयजी,
    आप और हम कितनी भी झख मारें.यह सरकार टस से मस नहीं होनेवाली.

    मेरे ब्लॉग पर आपके दर्शन को एक अरसा हो गया है.'सीता-जन्म'आपको करुण स्वर से पुकार रहा है.काश! हम सब के हृदय में 'सीता-जन्म'हो पाए.

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  5. सबसे बडा सवाल ये है कि आखिर कब तक ?
    जिनको उत्तर देना चाहिए वे मंहगाई लादते चले जा रहे हैं ताकि किसी को सोच-विचार की फुरसत ही न रहे...

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  6. "न हम निपटा सकते हैं न कोई निपटाने देगा ...??? यह देश अब हमारा नही रहा ...यहाँ हमे यू ही जिन्दगी गुजारनी हैं ..बद से बदतर !!!!!!

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  7. Ajayji....hamare qaanoon napunsak hain jo angrezon ne banaye hue hain...jabtak janata is bareme jagrut nahee hotee,yahee sab chalega!

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  8. सही बात है भैया, अब झेलें भी तो आखिर कब तक?

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  9. आखिर कब तक का एक ही जवाब है जब तक जनता चूडियाँ पहन कर बैठी रहेगी ये सब होता रहेगा।

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  10. सही बात है भैया, अब झेलें भी तो आखिर कब तक?


    आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

    आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.

    अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

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  11. इन सबके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम भी हैं ..... मतदान के अधिकार का उपयोग न करना ,या बिना सोचे समझे हुए कर के ,इन महानुभावों को शक्ति सम्पन्न करते जाना .... महानुभावों को तो स्विस बैंक का रस्ता खोजने से ही वक़्त नहीं मिलता ... किसी और को दोष न दे कर आम जनता को ही जिम्मेदारी लेनी होगी ......

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  12. शायद समय नजदीक आता जा रहा है.

    रामराम

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  13. नई पुरानी हलचल में आज आप अपने ब्लॉग की चर्चा देखें...मेरा प्रथम प्रयास....

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  14. बहुत सही बात काही है सर ।

    सादर

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. काश कि सरकार इस बात का जवाब दे सकती कि आंखिर कब तक ?
    पर हम उन लोगो कि हिम्मत और जज्बों को सलाम करते हैं जो इन हादसों में अपनों को खो देने के बाद भी सिर्फ दर्द सहकर खामोश रहते हैं और कुछ प्रतिक्रिया न होने पर भी होंसला बनाये रखते हैं |
    ज्वलंत विषय पर चर्चा बहुत अच्छा लगा दोस्त काश हम कुछ कर पाते |

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला

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