ये तो मैं आप सबको पिछली पोस्टों में बता ही चुका हूँ कि बहन और बहनोई जिनका निवास पिछले दो दशकों से उदयपुर में ही है और उन्होंने जैसे निर्देश हमें दिए उसने हमें बहुत ही सहूलियत दी कैसे हम कम समय में अपनी इस पहली ट्रिप में ज्यादा से ज्यादा स्थान घूम सकें | ऐसे ही माउंट आबू के लिए निकलते समय हमसे उन्होंने कहा था की माउंट आबू से अपनी वापसी आप लोग शाम होने से पहले पहले की ही रखियेगा यानि आबू जाने के पहले दिन ही वहां का एक मुख्य आकर्षण "सनसेट पॉइंट " देख लें ताकि फिर उस रात्रि वहां विश्राम करने के बाद अगले दिन माउंट आबू के अन्य स्थल देख कर हम शाम ढलने से पहले ही आबू पर्वत के रास्ते की हद से बाहर निकल जाएँ | आबू जाते हुए और वापस आते हुए दोनों ओर घने जंगल और उनमें विचरते जंगली जीवों को देख कर समझ आया कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा था |
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उदयपुर से निकलते हुए हमें सुबह के आठ से ज्यादा हो चुके थे ,गुनगुनी धूप ,साफ़ सुथरे रास्ते और दोनों तरफ पहाड़ियों का सिलसिला ,बीच में ढाबे पर रुक कर पराठा और चाय का नाश्ता करते निपटते हम लगभग 11 बजे के आसपास माउंट आबू में दाखिल हो गए | अपने होटल "बंजारा" (जो कि बिलकुल अपने नाम के अनुरूप बंजारा आवारा सा ही निकला ) में हाथ मुँह धोकर तरोताज़ा होकर हमारा पहला ठिकाना बना नक्की झील |
नक्की झील माउंटआबू के सबसे खूबसूरत और लोकप्रिय दर्शनीय स्थल में से एक है | कहते हैं कि एक तरफ मैदान और एक तरफ पहाड़ी से घिरे इस खूबसूरत झील का निर्माण "नाखूनों से खोद या खुदवा कर हुआ था " इसलिए भी इसका नक्की झील पड़ा | झील के दूसरी तारफ भारत माता का एक छोटा सा खूबसूरत सा मंदिर भी बना हुआ है | नक्की झील अपनी बोटिंग सुविधाओं और राइड्स के लिए तो मशहूर है इसके साथ ही यहां माउंट आबू के पचास से अधिक दक्ष फोटोग्राफर भी पर्यटकों को झील के किनारे ,बोटिंग करते हुए ,राजस्थानी परिधान में और पास ही स्थित हनीमून पॉइन्ट पर विभिन्न्न भाव भंगिमाओं में फोटो खींचते देखे जा सकते हैं | सर्दियों के दिनों में भी धूप काफी तीखी और गर्म थी सो बोटिंग करते करते ही सबको तेज़ भूख लगने लगी | झील क्षेत्र में ही बने छोटे बाजार में किसी रेस्त्रां में दोपहर का भोजन किया गया जो कुल मिला कर संतोषजनक था |
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नक्की झील में मनोरम बोटिंग |
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तेज़ धूप में गरमी लगने लगी थी |
भोजन और भ्रमण के तुरंत बाद हम वहां से पास में ही स्थित सनसेट प्वाइंट के लिए निकल पड़े जो नक्की झील से बमुश्किल दो किलोमीटर की दूरी पर एक निर्जन और बियाबान सा स्थल है | वहां बने अलग अलग चबूतरेनुमा प्लेटफॉर्म पर शाम चार बजे के बाद से ही पर्यटक पहुँचने लगते हैं और देर शाम तक सूरज को पहाड़ों के बीच धीरे धीरे गुम होते देखना कैसी नैसर्गिक करिश्मे को महसूस करने जैसा है |
आजकल मोबाइल ने हमारे जीवन सहित ऐसी तमाम जगहों पर अपने उपयोग की सबसे अधिक गुंजाइश बना ली है | नतीजतन ,यहाँ भी हमारे अलावा भी लगभग सब आसपास के नज़ारों को ,और उनके बीच खुद को कैद करना चाह रहे थे | इन शब्दों को लिखते समय भी मैं पहाड़ों के बीच की वो उष्मा स्पष्ट महसूस कर पा रहा हूँ | शाम के गहराने से पहले ही हम वापसी का रुख कर चुके थे | चूँकि बियाबान जंगल होने के कारण वहाँ तेंदुए भालू आदि जैसे जानवरों के आ जाने की चेतावनी भी जगह जगह लगी हुई थी जिसे नज़रअंदाज़ करना उचित नहीं लगा |
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अपने हिस्से की धूप समेटते हुए |
अगला दिन हमारा माउंट आबू में आखरी दिन था सो एक सिरे से सब कुछ देखने का कार्यक्रम पहले से ही तय था , हम तड़के नाश्ता करके माउंट आबू और संभवतः राजस्थान की सबसे ऊँची पर्वत चोटी "गुरु शिखर " की और निकल पड़े। ..
शेष। .............इस यात्रा का आखरी पड़ाव और आखिरी पोस्ट पढ़ेंगे आप अगले भाग में |
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दूर चोटियों पर दिखता गुरु शिखर |