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चांदी की छत |
बहुत समय से कहीं बाहर निकल पाने का अवसर आते हुए भी कहीं न कहीं कुछ न कुछ ऐसी वजह निकल ही आती थी की ठीक आखिरी वक्त पर भी वो स्थगित हो जाया करता था | पिताजी के फ़ौजी जीवन के कारण पहले ही पूरा बचपन यायावरी रहा सो देश के बहुत सारे भागों के बहुत सारे खूबसूरत शहरों ,नगरों को मैं अपने विद्यार्थी जीवन में ही देख चूका था | जो रही सही कसर थी वो अपनी प्रतियोगिता परीक्षाओं के दौर में पूरी हो गयी |वैसे जब भी घूमने फिरने की बात होती है मैं अक्सर एक बात मित्रों को कहता हूँ की इंसान की जितनी उम्र है कम से कम उतनी जगहों को देखने का अवसर तो उसे जरूर मिलना चाहिए और इंसान को भी उनका लाभग उठाना चाहिए |
लगभग सात वर्षों पूर्व जब सपरिवार डलहौजी और खजियार गए थे तो श्रीमती जी को गोल गोल चढ़ाई उतराई वाले पहाडी रास्तों ने काफी डरा दिया था | इस बीच मित्र अरविन्द जी ने बताया कि उनका शिमला , मनाली , होते हुए मणिकरण साहिब की तरफ जाने का कार्यक्रम बन रहा है और यदि हमारा भी निश्चित हो जाए तो वे अभी ही चलेंगे | बच्चों की जिद और ललक के आगे तो मम्मी जी भी बेबस सो तय हो गया की हम सब मित्र अरविन्द जी के साथ उनकी मारुती डिजायर में एक सप्ताह की यात्रा पर निकलेंगे | सभी स्थानों पर हमारे ठहरने आदि की व्यवस्था अरविन्द जी ने पहले ही कर दी |
सुबह पांच बजे तडके ही निकल जाने का लाभ ये रहा की हम ग्यारह बजे तक चंडीगढ़ से आगे निकल कर शिमला की और बढ़ चुके थे | बच्चे अपनी मम्मी के साथ पिछली सीट पर बैठ कर तेज़ी से आसपास से निकलते शहरों , सड़कों, दुकानों को देखते हुए चले जा रहे थे | आगे हम और मित्र अरविन्द जी जो हमारे साथ ही आगे चालक की सीट पर बैठे थे उनके साथ विमर्श चलता रहा | कभी उनके टूर ट्रेवेल्स ले अनुभव तो कभी सामने आ रहा योग दिवस , कभी राजनीति , कभी धर्म , कभी बीत रहा शहर |कार का पहिया घूमता रहा और घड़ी की सुई भी .............हम अब फिर भीड़ भाड से बाहर थे ......श्रीमती जी एकदम साफ़ सुथरी सड़कें देख कर कम से कम दो बार टोल टैक्स दिए जाने की वकालत कर चुकी थीं ..वैसे अब तक सडकें वाकई अच्छी थीं ...
मैं अपने जीवन में इतनी बार और इतने विविध परिवहन माध्यमों से सफ़र करता रहा हूँ की सफ़र , विशेषकर यदि यात्रा सपरिवार करनी हो तो और ज्यादा आवश्यक हो जाता है , के लिए की जाने वाली तैयारी , आपात समय के लिए सामान दवाई आदि , मानचित्र , मयूर जग , और दो मोबाइल के संग एक कैमरा और , डोरी , टार्च वैगेरह को मैं इस बीच सिलसिलेवार निपटा चूका था | वहां के मौसम और पिछले एक सप्ताह के मानसून का हाल भी देख चूका था |
कहते हैं पहाड़ों का सौन्दर्य सबसे ज्यादा पहाडी रास्तों पर ही देखने को मिलता है और यकीनन ये सच ही है | एक मैदानी सैलानी के रूप में अगले एक सप्ताह तक हम सब पहाड़ों से मुलाक़ात और जान पहचान करने वाले थे | बिटिया बुलबुल थोड़ी असहज सी होने लगी थी और बार बार उल्टियां करने लगी थी .................
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देखिए कुछ फ़ोटोज़ .....................
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शिमला के लिए प्रवेश मार्ग पर |
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रास्ते का दृश्य |
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गिरते टूटते पहाड़ और रास्ते |
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मनमोहक नज़ारा ..है न |
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फ़िल्मी से दृश्य |
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रास्ते हैं प्यार के |
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हरी भरी धरती और बाग़ बगीचे |
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बादलों को चूमते पहाड़ |
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सफ़र के पहले ठिकाने पर |