वर्तमान में देश का जो भी राजनीतिक
परिदृश्य दिख रहा है वो शायद भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार , भाई भतीजावाद
, परिवारवाद , और नैतिकता के पत्तन का चरम है । इससे पहले बेशक कई बार इस
तरह होता दिखा है कि सत्ता में बैठी हुई सरकार , उसके मंत्री , और नुमाइंदे
पूरी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं , घपलों घोटालों की एक श्रंखला तब
भी देखने को मिलती रही है । किंतु उन सबसे आगे बढकर इस बार तो जैसे बेशर्मी
का लबादा ओढ कर सरकार , विपक्ष , और राजनीतिज्ञों के नाते रिश्तेदारों ,
बडे व्यापारिक घरानों और मीडिया हाउसेज़ तक ने एक ही उद्देश्य पर चलना शुरू
किया है । जितना और जैसे भी हो सके ज्यादा से ज्यादा देश के धन संसाधनों को
लूटना , उस लूट खसोट का पता चलने पर , पूरी ढिठाई के साथ उसे सिरे से
दरकिनार करना , चीख चीख कर जांच जांच का शोर मचाना , क्योंकि उन्हें पता है
कि आज तक किसी भी जांच किसी भी मुकदमें की अंतिम परिणति के रूप में किसी
भी रसूखदार को कभी रत्ती भर भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है । और अंत में फ़िर
एक ही थाली के चट्टे बट्टे की तरह एक दूसरे की करतूतों पर पर्दा डाल देना ,
क्योंकि वे ये भी देख चुके हैं कि देश की सहिष्णु जनता , अशिक्षिति लोग और
गरीम अवाम कभी भी खुल कर पश्विमी देशों की तरह अपनी लडाई पुरज़ोर तरीके से
सडकों पर संगठित होकर लड नहीं सकती , राजनीतिक रूप से संगठित होकर परिवर्तन
की लडाई भी दूर की कौडी है ।
पिछले
कुछ वर्षों में कुछ गैर राजनीतिक लोगों द्वारा असाधारण माद्दा और दुसाहस
दिखाने के प्रयासों को भी देश के तमाम राजनीतिज्ञों ने अपनी कुटिल नीतियों
द्वारा बार बार हतोत्साहित करने का प्रयास जारी रखा है । बाबा रामदेवा
द्वारा उठाया गया मुदा "विदेशों में भारतीयों द्वारा जमा किए गए काले धन की वापसी " सिविल सोसायटी के सदस्यों द्वारा भ्रष्टाचार से लडने के लिए लोकपाल विधेयक बनाने का मुद्दा " । एक एक करके लगभग सभी
मंत्रियों के खिलाफ़ उजागर हुए बडे घोटालों के बाद उनके खिलाफ़ स्वतंत्र जांच
और गिरफ़्तारी का मुद्दा , और अब अन्ना हज़ारे और जनरल वी के सिंह द्वारा
उठाए जा रहे " राइट टू रिजेक्ट , जज़ेस अकाउंटिबिलिटी बिल आदि जैसे मुद्दों
को सिरे से न सिर्फ़ दरकिनार करके , बल्कि इन मुद्दों को उठाने वालों के साथ
दुश्मनों जैसा व्यवहार और इसे बार बार लोकतंत्र पर हमला , संसदीय अधिकार
का हनन और जाने क्या क्या कहते फ़िर रहे हैं ।
राजनीतिक जमात को शायद ये भ्रम है , और क्यों न हो , आखिर उसने पिछली आधी शताब्दी में आम जनता को महंगाई , गरीबी , आतंकवाद , भ्रष्टाचार , न्यायिक दोहरापन सहते रहने के बावजूद बेहस धैर्यपूर्वक ,और सहनशील है , इतनी तो जरूर ही कि वो अपने हाथों में जंगल के उस कानून को नहीं ले रही है । पडोसी देशों की सेना और सुरक्षा एजेंसियों से विपरीत देश की सेना व सुरक्षा एजेंसियां बेहद निष्टावान और अनुशासित रही है , ये राजनीतिज्ञों के लिए दूसरी खुशकिस्मती रही है ।
आने वाले वर्षों में देश में आम चुनाव होने वाले हैं । अभी बेशक स्थिति जो भी जैसी भी दिख रही हो किंतु इतिहास को देखते हुए कुछ नहीं कहा जा सकता कि चुनाव पूर्व परिदृश्य क्या होंगे और चुनाव परिणाम क्या होंगे । आम जनता के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण समय है , यकीनन अभी कोई स्पष्ट विकल्प ऐसा नहीं दिख रहा है जो हठात ही देश को कोई नई दिशा दे सके , किंतु आम जनता को फ़िर अपनी आंखे खुली रख के फ़ैसले के लिए तैयार होना होगा । और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि आज और अभी से अपने अपने हिस्से की लडाई को न सिर्फ़ शुरू करना होगा बल्कि उसे पूरी ताकत से लडना भी होगा । यदि आप सचमुच ही देश को बदलना चाहते हैं , अपनी हैसियत बदलना चाहते हैं तो आगे बढिए ...बेहिचक , बेझिझक , बेखौफ़ .........................