रविवार, 19 जून 2011

भ्रष्टाचार : अवाम का पैगाम , सत्ता के नाम .....ये मेरा संदेश है ..





         पिछली पोस्ट में मैंने ज़िक्र किया था कि सरकार b--feedback@nic.in मेल पते पर आम आदमी के विचार मांग रही है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो संक्षेप में फ़िलहाल सरकार को ईशारा कर दिया है कि आम आदमी , मेरे जैसा आम आदमी क्या सोच रहा है । आप भी अपनी राय जरूर भेजिए सरकार को ,।
सरकार ने अब जब आम जनता की सलाह-सुझाव और शिकायत सुनने का विचार बनाया है और विभिन्न माध्यमों  से उन्हें आमंत्रित भी कर रही है तो ये परिस्थिति कुछ अजीब सी है । अभी ज्यादा समय भी नहीं बीता जब प्रशासन ने रात में सोते हुए लोगों पर लाठी चार्ज़ करके लोकतंत्र की मूल भावना को ही तार तार कर दिया । अब बेशक वो अपने तर्कों और दलीलों से अपनी बर्बर कार्यवाही को नकारे और फ़िर उसे न्यायोचित साबित करने का प्रयास करे । आज आम जनता और विशेषकर वो आम लोग भी जिन्हें सत्ता लाख चाहने पर भी किसी दल या विचारधारा से बांध नहीं सकती वो भी बेशक ऊपर से तटस्थ दिख रहे हों किंतु भीतर से आक्रोशित जरूर हैं ।

अन्ना हज़ारे जैसे वृद्ध समाज सेवी और राम्देव जैसे योगगुरू यदि देश में बंद रहे भ्रष्टाचार और उसमें खुद सरकार की बडी भूमिका को देखकर जब इसके खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं तो सरकार और उसके जिम्मेदार मंत्री जिस तरह की भाषा और जो रवैय्या न सिर्फ़ आम नागरिकों के समूह जिसे "सिविल सोसायटी " नाम भी शायद इसीलिए दे दिया ताकि उस पर निशाना साधा जा सके , पर बल्कि अपने साथी राजनीतिज्ञों और विपक्ष में बैठे सभी प्रतिनिधियों के खिलाफ़ अख्यतियार किए हुए हैं उससे सरकार खुद आम नागरिकों को क्या संदेश देना चाह रही है ये समझना मुश्किल है । सरकार और उसमें बैठे शीर्ष लोगों की चुप्पी और इससे भी ज्यादा भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों के विरूद्ध प्रतिशोधात्मक व्यवहार खुद न्यायपालिका द्वारा तय किए मापदंड कि " भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले का संरक्ष्ण राज्य का अनिवार्य नियम है " के बिल्कुल विपरीत है । 


जहा तक भ्रष्टाचार की बात है तो स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक सर्वेक्ष्ण के मुताबिक ६२ प्रतिशत देशवासी मानते हैं कि भारत में भ्रष्टाचार लाईलाज़ स्तर तक पहुंच गया है । खुद न्यायपालिका तक ये टिप्पणी करती है कि भ्रष्टाचारियों को सरेआम फ़ांसी पे टांग देना चाहिए जबकि एक पूर्व न्यायमूर्ति खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं । देश के केंद्रीय मंत्रीमंडल से आधा दर्जन मंत्री तिहाड जेल में हैं वो भी किसी देशभक्ति और जनसेवा करते हुए नहीं गए बल्कि जनता के पैसों के गबन के आरोप में , इसके अलावा देश भर के तमाम राजनीतिज्ञों , मंत्रियों के खिलाफ़ कहीं न कहीं कोई न कोई मामला लंबित है । प्रशासन में सर्वोच्च स्तर से लेकर एक चपरासी तक "बाहरी कमाई " के लिए बेहाल और मिलने को लेकर आश्वस्त हैं । भ्रष्टाचार , अपराध , राजनीति , मीडिया , प्रशासन , न्यायपालिका तक का एक ऐसा गठजोड बन गया है जो आम आदमी को चीन की दीवार सरीखा लगता है । जिसके साथ आम आदमी अपना सर टकरा के फ़ोड तो सकता है लेकिन उसे पार नहीं कर सकता । ऐसा नहीं है कि ये स्थिति रातोंरात बन गई है और ऐसा भी नहीं है कि ये फ़टाफ़ट बदल भी जाएगी । किंतु अब ये तय है कि आम लोग इससे बहुत अधिक त्रस्त और क्षुब्द हैं । 


अब जबकि आम लोग इस दुश्चक्र को नहीं तोड पा रहे हैं वो वे उन कानूनों की मांग उठा रहे हैं , और अब आने वाले समय में ऐसी ही कई मांगों और कानूनों के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं जिनके उपयोग से स्थिति को रोक कर ठीक करने की दिशा में मोडा जा सके । यूं तो मौजूदा कानूनों में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए जाने कितने ही कानून बने हुए हैं लेकिन उनमें से कोई भी कानून न तो भ्रष्टाचारियों को कानून का भय दिखा पाया है , न सजा दिलवा पाता है और सबसे अधिक जरूरी बात ये कि आम जनता की गाढी कमाई से राजकोष की मोटी परत को छील कर खा जाने वाले तमाम भ्रष्टाचारियों से धन की उगाही नहीं करवा पाता । आज जरूरत इस बात की है कि सरकार , उसके नुमाइंदे , प्रशासन सब खुद आगे बढ कर भ्रष्टाचार को खत्म किए जाने वाले हर कदम का साथ दें न कि येन केन प्रकारेण उन्हें कुचला जाए और उनका दमन किया जाए , जैसा कि सरकार कर रही है । सत्ता को ये नहीं भूलना चाहिए कि दमन का रास्ता एक बार पहले भी आजमाया जा चुका है और देश ने आपातकाल तक भुगता हुआ है , और आपातकाल के बाद का समय और परिणाम भी किसी से छुपे नहीं है । पडोस में हो रही हलचल और विश्व पर बढते आतंकी हमलों की आशंका के मद्देनज़र ये बहुत ही संवेदनशील समय है ।


इसलिए सरकार को अब जनता के मन को टटोल कर वही करना चाहिए जो आम अवाम चाहता है । सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि जिस जनादेश से सत्ता पाने का दंभ वो बार बार भर रही है वो जनता खुद अब अपना जनादेश सड्कों पर उतर कर देने को बाध्य हो रही है तो फ़िर इससे अधिक विकट स्थिति और क्या हो सकती है । आम जनता से मिले संदेशों का सरकार के लिए क्या मह्त्व होगा , उससे सरकार के नज़रिए में कितना फ़र्क आएगा और जनता द्वारा लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए मांगे जा रहे कानून कब बनेंगे ये तो भविष्य तय करेगा । किंतु फ़िलहाल इतना जरूर कहा जा सकता है कि पहले ही बहुत देर हो चुकी है इसलिए अब समय आ गया है कि कुछ फ़ैसले ले लिए जाएं । आम जनता मानसून सत्र की तरफ़ देख रही है । यदि इस मानसून सत्र में कुछ भी सार्थक निकल कर नहीं आया तो फ़िर , आने वाले वो दिन देश और समाज के साथ साथ सरकार के लिए भी परिवर्तनकारी साबित होंगे ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. आज आम जनता और विशेषकर वो आम लोग भी जिन्हें सत्ता लाख चाहने पर भी किसी दल या विचारधारा से बांध नहीं सकती वो भी बेशक ऊपर से तटस्थ दिख रहे हों किंतु भीतर से आक्रोशित जरूर हैं ।
    ajaybhai aapki baat se sahemat hu mai sarkar ko ab janta ka rookh dekhkar hi kadam uthane chahiye

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  2. निश्चित ही आने वाले निकट भविष्य में अनेक परिवर्तन होंगे..अभी तो सब झुनझुना पकड़ाने वाली बातें है मन महल्लाव के लिए लेकिन यह आग जो भड़की है...बुझेगी तो कुछ बदल कर.

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  3. परिवर्तन बहुत ही शीघ्र होगा, कल से ही संकेत आने लगे हैं। मनमोहन सिंह के स्‍थान पर राहुल गांधी विराजेंगे। कांग्रेस को लग रहा है कि अगले चुनाव में तो हमारी हार निश्चित है इसलिए अभी ही राहुल गांधी को प्रधान मंत्री का पद दे दिया जाए तो शायद लोगों की सोच की दिशा बदल जाए।

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  4. बस यही उम्मीद है कि कभी तो वह सुबह आएगी जब सरकार की नींद टूटेगी और वह सच में कोई ठोस कदम उठाएगी इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए !

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  5. शायद ही कोई हो जिस पर भ्रष्टाचार का सुप्रभाव पड़ता हो।

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  6. भ्रष्टाचार वाकई अब सरकार के लिए सरदर्द बन गया है.

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  7. अब अपने आक्रोश को क्रियान्वित करने की ज़रुरत है,वह भी सरकार के हिंसक तरीके से नहीं,बिलकुल गाँधीवादी प्रयोग से !

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला