ब्लॉगिंग की ताकत दिनों दिन बढ रही है , जी हां हिंदी ब्लॉगिंग की ताकत बढ रही है , बावजूद इसके कि दो सबसे बडे एग्रीगेटर बंद हो चुके हैं , बावजूद इसके कि आए दिन गूगल और ब्लॉगर जैसे प्लेटफ़ार्मों पर तकनीकी दिक्कतें भी साथ ही बढ रही हैं , और हां बावजूद इसके , कि आज फ़ेसबुक और ट्विट्टर जैसी साईटों ब्लॉगरों को काफ़ी प्रभावित कर रहे हैं और ब्लॉगरों का एक बडा तबका जो हिंदी ब्लॉगिंग में अनियमित है , किंतु वो सोशल नेटवर्किंग साइट में काफ़ी सक्रिय है । इन तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद ब्लॉगिंग की ताकत बढती जा रही है । यदि ब्लॉगिंग पर कानून बना कर उसकी नकेल कसने के सरकार के कदम को थोडी देर के लिए दरकिनार भी कर दें तो भी आए दिन जिस तरह से कभी मीडिया , तो कभी साहित्य ब्लॉगिंग पर निशाना साध रहा है उससे ही ये प्रमाणित हो जाता है कि प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से ब्लॉगिंग सबकी नज़र में इतनी अहमियत तो बना ही चुका है कि चाहे उसकी आलोचना की जाए या प्रशंसा , उसकी उपेक्षा कतई नहीं की जा सकती है । ब्लॉगिंग , ब्लॉग लेखन , पोस्टों की दिशा , ब्लॉगिंग में आ रही सामग्री हमेशा ही ब्लॉगरों के लिए खुद ही एक बहस का विषय रहा है और इस पर गाहे बेगाहे लिखा पढा भी जाता ही रहता है । इन दिनों देखा पढा कि , ब्लॉगिंग और अखबारों को आधार बना कर ब्लॉगर मित्रों ने कई सारी पोस्टें लिखीं । इन पोस्टों में बहुत सारे सवाल , बहुत से सुझाव , और बहुत सारी आपत्तियां भी इस बात को लेकर उठाई गईं कि , बेहिचक , बेझिझक अखबारों द्वारा न सिर्फ़ ब्लॉग पोस्टों को उठाया के अखबारों में प्रकाशित किया जा रहा है बल्कि कई अखबारों ने तो इसमें गाहे बेगाहे अपने हिसाब से उसका संपादन और एडिटिंग भी कर डाली है ।
सबसे पहले बात , ब्लॉग और अखबार के संबंध की । आज इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंदी ब्लॉगिंग में न सिर्फ़ अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने वालों में प्रिंट तो प्रिंट , इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी मीडियाकर्मी न सिर्फ़ हैं बल्कि वे नियमित रूप से ब्लॉग लिख व पढ रहे हैं । न सिर्फ़ ब्लॉग बल्कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी उनकी उपस्थिति बहुत प्रभावी महसूस की जा रही है । ताज़ा घटनाओं , मीडिया का नज़रिया , और उनकी खुद की भूमिका तक पर न सिर्फ़ क्रिया प्रतिक्रिया का सतत सिलसिला चल निकलता बल्कि कई बार तो रिश्ता इतना भावनात्मक हो जाता है कि सीधे सीधे लोग आमने सामने आ जाते हैं । उदाहरण के लिए मशहूर ब्लॉगर और मीडियाकर्मी श्री रवीश कुमार (कस्बा ब्लॉग वाले ) द्वारा एनडीटीवी पर पेश किए जाने वाले एक कार्यक्रम रवीश की रिपोर्ट को बंद किए जाने के विरोध में इसके लिए फ़ेसबुक पर बाकायदा एक मुहिम भी चलाई गई । यानि कि इसका सीधा सा अर्थ ये निकलता है कि आज ब्लॉगिंग और हिंदी अंतर्जाल खुद मीडिया के लिए भी एक आलोचक और पूरक की भूमिका निभा रहा है । अब चूंकि ये ज्यादा तीव्र, ज्यादा तल्ख और स्पष्ट है इसलिए शायद ज्यादा चुभ जाता है । जिस तरह से अखबारनवीस ब्लॉगिंग से जुडे हुए हैं उसी तरह से बहुत से ब्लॉग और बहुत सारे ब्लॉगर , हिंदी समाचार माध्यमों और विशेषकर अखबारी खबरों के सहारे ही बातों को उठा कर उन पर पोस्टें लिख रहे हैं । बेशक बहुत बार विभिन्न अखबार और पत्र पत्रिकाओं ने हिंदी ब्लॉगिंग के लिए बुरा या बहुत बुरा ही लिखा है लेकिन इसके बावजूद अभी तक किसी भी समाचार पत्र ने ये विरोध नहीं दिखाया जताया है कि उनकी फ़लानी ढिमकानी पोस्ट या किसी समाचार को हिंदी के किसी ब्लॉगर ने ब्लॉग पोस्ट बना लिया है । मुझे लगता है कि शायद उन्हें पता भी नहीं होता और वे इसकी कोशिश भी नहीं करते होंगे ।
अब बात ब्लॉगपोस्टों को उठाकर अपने समाचारपत्रों में स्थान देने की , जब आज साहित्य , मीडिया और खुद सरकार तक हिंदी अंतर्जाल की बढती हुई ताकत को स्पष्ट महसूस कर रहे हैं ,उनकी बेबाकी से निपटने के लिए कायदे कानून ला रही है , जबकि यही सरकार , टेलिविजन समाचार चैनलों द्वारा मुंबई हमलों की आतंकियों की मदद कर देने तक जैसी रिपोर्टिंग किए जाने पर आज तक कोई बंदिश नहीं लगा सकी , वो न नंगेपन को रोकपाती है न ही बाजारूपन को । तो इस स्थिति में ये बात आसानी से समझी जा सकती है कि हिंदी अंतर्जाल अपने ब्लॉग , अपनी साईटों और ट्विट्टर तथा फ़ेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के कारण वो मुकाम तो अवश्य ही हासिल कर चुका है कि उसकी हटात ही उपेक्षा नहीं की जा सकती । यहां मैं ये भी बताता चलूं कि अखबारों के बडे से लेकर छोटे समूह और संस्करणों तक में खबर , फ़ीचर और सामग्री के रूप में अब ब्लॉग पोस्टों का छपना एक प्रवृत्ति तो बन ही चुकी है इसके अलावा कई समाचार पत्र जैसे सिरसा हरियाणा से प्रकाशित सच कहूं तो फ़ेसबुक के स्टेटस अपडेट तक को संपादकीय पृष्ठ पर स्थान दे रहा है । ब्लॉगरों द्वारा बार बार और अलग अलग पोस्टों द्वारा ब्लॉग पोस्टों को बिना अनुमति , बिना सूचना के और सबसे अधिक उसे तोडमरोड कर प्रकाशित किए जाने के कारण इसका विरोध जताया जा रहा है ।
सबसे पहले, बात ये कि इन तमाम अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में ब्लॉग पोस्टों को छांट कर लगाने वाले सूत्र भी ब्लॉगजगत से जुडे होते हैं । अधिकांश में तो वे खुद ब्लॉगर ही होते हैं जो कि उन समाचार पत्रों के साथ जुडे हुए हैं और इसलिए ताजी ब्लॉगपोस्टों तक उनकी पहुंच बनी रहती है । इन तमाम अखबारों में अधिकांश का भी एक निश्चित पैटर्न है और उसी के हिसाब से वे अपने स्तंभ जिसे भी उन्होंने ब्लॉग से जोडा हुआ होता है , जैसे ब्लॉग श्लॉग , ब्लॉग राग , ब्लॉग कोना , और अन्य । इनका स्थान होता है संपादकीय पृष्ठ , यानि अखबार का सबसे महत्वपूर्ण स्थान । कुछ घटनाओं को छोड दें तो अक्सर इन स्तंभों में हूबहू उन ब्लॉग पोस्टों में कोई छेडछाड नहीं करते और कम से कम इस मंशा से तो कतई नहीं करते होंगे कि वो पोस्ट का निहितार्थ ही बदल जाए । जैसा कि देखने पर ही पता चल जाता है कि अखबारों में इन ब्लॉग पोस्टों के चयन का भी एक आधार सा बना हुआ है , मसलन दैनिक हरिभूमि में अक्सर राजनीतिक विषयों पर लिखी गई पोस्टें , स्वाभिमान टाईम्स में सिर्फ़ कुछ चुनिंदा साईट्स और पोस्टें , राष्ट्रीय सहारा में नारी आधारित विषयों की ब्लॉग पोस्टें , और नवभारत टाईम्स तथा दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण में इनके अपने ब्लॉग प्लेटफ़ार्मों पर लिखे पढे जा रहे ब्लॉग पोस्टों के अंश ही प्रकाशित किए जाते हैं ।
ये तो तय बात है कि ब्लॉग जगत और हिंदी अंतर्जाल में अब जो कुछ पढा लिखा जा रहा है वो प्रिंट के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि विधा और शैली लगभग वही है जो प्रिंट माध्यमों में इस्तेमाल की जाती है । चूंकि अधिकांश मे ब्लॉग का , ब्लॉगर का और ब्लॉग यूआरएल का भी ज़िक्र होता है इसलिए ये आसानी से समझा जा सकता है कि इसे ब्लॉगजगत से लिया गया है । इसका एक प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभ न सिर्फ़ हिंदी ब्लॉगजगत को , ब्लॉगर को ये होता है कि प्रिंट के पाठकों से उसकी पहली मुलाकात एक ब्लॉगर के रूप में होती है । पाठक उन्हें पढ कर जिज्ञासावश उन यूआरएल को क्लिक करके उन ब्लॉगों तक पहुंचते हैं और उनमें से बहुत से उसी डोर को थाम कर खुद ही ब्लॉगिंग की दुनिया में उतर जाते हैं । किसी भी विधा में अपनी बात रखने कहने वाले का सबसे पहला मकसद होता है कि वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और इस लिहाज़ से ब्लॉग पोस्टों को अखबार में स्थान दिए जाने से जो आवाज हिंदी अंतर्जाल पर ही रहती है वो उससे आगे निकल कर जाने कितने हाथों में और कितनी नज़रों तक पहुंच जाती है । मुझे लगता है कि ये परंपरा उतनी अनुचित भी नहीं है जितना कि उसे करार दिया जा रहा है । अब बात उन विरोधों की । पहला विरोध ब्लॉग पोस्टें बिना अनुमति के उठा ली जाती हैं । ये सर्वथा ही गलत है और अनुचित भी कम से कम सूचना तो देनी ही चाहिए और हो सके तो पारिश्रमिक भी । अखबार में ब्लॉग पोस्टों का चयन और उसे प्रकाशित करने वाले लोगों की ये जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे कम से कम उस पोस्ट के लेखक को सूचित तो अवश्य ही करें । रही बात पारिश्रमिक की तो ये फ़िलहाल तो दूर की कौडी है । जब पिछले पांच वर्षों में ब्लॉगर जैसे प्लेटफ़ार्म से एक धेला भर नहीं निकलवा पाए तो फ़िर अखबारों पे ये शुल्क देने की अनिवार्यता लादना शायद जल्दबाज़ी होगी । लेकिन इसके बावजूद भी अगर ब्लॉगर को ये लगता है कि उनकी ब्लॉगपोस्ट को लेकर या उसे प्रकाशित करके उस अखबार ने मेल की है और भविष्य में वे ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं तो उन्हें फ़ौरन से पेश्तर ही ब्लॉग पर कॉपीराईट नोटिस लगा देना चाहिए और हो सके तो कॉपी की सारी गुंजाईश ही खत्म कर देनी चाहिए । आज तक शायद ही कोई ब्लॉग पोस्ट अखबार में इस कॉपीराईट का उल्लंघन करने के बावजूद लगाई गई हो ।
लेकिन समस्या ये भी शायद कि , एक तरफ़ तो ब्लॉग पोस्टों के छपने और कौन कौन सी छप रही हैं उसमें पर्याप्त जिज्ञासा होने जताने के बावजूद गाहे बेगाए विरोध के स्वर सिर्फ़ विरोध करने के उद्देश्य जैसे लगते हैं । ये नहीं भूलना चाहिए कि , किसी भी अखबार , किसी भी पत्रिका या अन्य किसी ऐसे साधन में ब्लॉग पोस्टों का स्थान ऐसा कतई नहीं है कि बिना उनके काम नहीं चलेगा । ऐसी ही आपत्तियों ने अब तक बहुत से समाचारपत्रों से ब्लॉग कोनों को समाप्त भी करा दिया है उदाहरण के लिए अमर उजाला से ये अब समाप्त हो चुका है । एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि अक्सर देखने में ये आया है कि ब्लॉगर मित्रों को अपनी ब्लॉगपोस्ट के प्रकाशित होने का पता ब्लॉग्स इन मीडिया पर आने के बाद ही पता चल पाता है जिसके बाद वे विरोध प्रकट करते हैं , यानि कि शायद उस पोस्ट के वहां न आने की स्थिति में शायद उन्हें ये पता भी न चले कि अमुक पोस्ट अमुक समाचार पत्र में छपी है । जबकि खुद अंतर्जाल पर इस तरह की बहुत सारी चोरियां रोज़ हो रही हैं और की जा रही हैं जिनका पता ही जाने कितने समय बाद चल पाता है । और जिस तरह से इनका विरोध हो रहा है कभी कभी लगता है कि क्या ब्लॉगस इन मीडिया पर प्रकाशित पोस्टों की जानकारी देनी बंद कर देनी चाहिए ? मैं यहां एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर दूं कि मेरे लिए ब्लॉग और प्रिंट मेरे दो एक साथ चलने वाले कार्यक्षेत्र हैं हालांकि मूल रूप से मै एक नौकरीपेशा व्यक्ति हूं और ये दोनों ही गौण क्षेत्र हैं ।इसलिए ऐसा कतई नहीं है कि मैं अखबारों द्वारा ब्लॉगपोस्टों को मनमाने तरीके से लेकर कहीं भी छाप लिए जाने की बढती प्रवृत्ति को सही या उचित ठहरा रहा हूं , किंतु सीधे सीधे विरोध से बेहतर है कि अखबारों के लिए विकल्प उपलब्ध कराया जाए ।
पहला और स्पष्ट तरीका । ब्लॉग के ऊपर सूचना , वो भी बिल्कुल साफ़ साफ़ कि बिना अनुमति के इस ब्लॉग की कोई भी सामग्री , कोई भी पोस्ट या पोस्ट अंश प्रकाशन के लिए नहीं ली जा सकती ,जो चाहें तो इसमें पारिश्रमिक वाली शर्त भी जोड सकते हैं । इससे अखबारों को ये ध्यान रहेगा कि यदि वे इन ब्लॉगों से कोई पोस्ट अंश ले रहे हैं तो फ़िर आगे की कार्यवाहियों के लिए तैयार रहें । इसके अलावा एक ऐसे तंत्र का विकास जो कि ब्लॉग और अखबारों के बीच एक सूत्र का काम करे और ये सुनिश्चित करे कि उसके द्वारा ही विभिन्न समाचार पत्र पत्रिकाओं के लिए ब्लॉग पोस्टों में से सामग्री भेजी जाएगी जिसके लिए उन्हें न सिर्फ़ उस तंत्र की तरफ़ से सूचना भेजी जाएगी बल्कि अखबारों द्वारा दिया गया पारिश्रमिक भी दिया जाएगा , जैसे कि समाचार एजेंसियां करती हैं । दूसरा तरीका ये कि ब्लॉग लेखक खुद ही पत्र पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में अपनी पोस्ट की सामग्री , पोस्ट के रूप में न सही , सामग्री के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं ताकि वो आलेख ,फ़ीचर आदि के रूप में प्रकाशित हो सके । इससे न सिर्फ़ प्रिंट में एक लेखक के रूप में पहचान स्थापित होगी बल्कि यथोचित मानदेय भी प्राप्त हो सकेगा । और ऐसा करते समय , पते के स्थान पर आप अपना ब्लॉग पता इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि लोगों को ब्लॉगिंग के प्रति उत्सुक बनाया जा सके ।
इनसे अलग उन ब्लॉगर मित्रों के लिए , जिन्हें अपनी ब्लॉग्पोस्टों को कहीं भी छापे जाने पर विरोध है वे सिर्फ़ कॉपीराईट नियमों का हवाला देकर सूचना लगा दें तो भविष्य के लिए निश्चिंत हो सकते हैं । लेकिन फ़िर भी ये तय कर लें कि प्रिंट के माध्यम से ज्यादा लोगों तक आपकी बात पहुंचने का मार्ग आप अवरुद्ध तो नहीं कर रहे हैं । यहां उन समाचार पत्रों से भी निवेदन है कि जो भी व्यक्ति ब्लॉग्पोस्टों से जुडे स्तंभ देख रहे हैं , वे चयन से पहले निश्चित रूप से पोस्ट को पढते तो होंगे ही तो क्या उनका ये फ़र्ज़ नहीं बनता कि वे पोस्ट लेखक को धन्यवाद न सही , पारिश्रमिक न सही , कम से कम उसकी सूचना देकर आभार व्यक्त करें । और यदि कहीं उन्हें ये लगता है कि ये तो सार्वजनिक अंतर्जाल पर मुफ़्त उपलब्ध है इसलिए इसकी कोई जरूरत नहीं है तो वे सर्वथा गलत हैं क्योंकि इनका इस्तेमाल वे अपने वाणिज्यिक लाभ के लिए तो कर ही रहे हैं । और फ़िर ये कोई कठिन काम भी नहीं है । बार बार विरोध होने के बावजूद भी अखबारों की तरफ़ से ऐसी कोई पहल का न किया जाना अनुचित जान पडता है । मुझे लगता है कि स्थिति काफ़ी स्पष्ट हो गई होगी । और आज जबकि हिंदी ब्लॉगिंग अभी कई परिवर्तनों के दौर से गुजर रही है , कई कठिनाइयों का सामना कर रही है तो ऐसे में जो काम निश्चित और निर्बाध रूप से चलना चाहिए , वो है ..., निरंतर पठन ,और बेहतर लेखन ।
आपकी बात सही है।
जवाब देंहटाएंअजय जी मुद्दा तो आप का सही है और यह बात भी सही की जो अखबार वाले पोस्ट लेते हैं ब्लॉग की वो वही लोग हैं जो ब्लॉगर भी हैं और अखबार से भी जुड़े हैं. अब ऐसे लोग अगर ब्लॉगर के बारे मैं नहीं सोंचते तो क्या किया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंवैसे आप ने किसी अखबार के रिपोर्टर को खबर भेजते अवश्य देखा होगा. उनकी खबर मैं उसके विचार कम और bite 1 aur Bite 2 दूसरों के विचार अधिक हुआ करते हैं. क्या आप बता सकते हैं यह Bite क्या होता है?
आपने कहा एक ऐसे तंत्र का विकास जो कि ब्लॉग और अखबारों के बीच एक सूत्र का काम करे .ख्याल अच्छा है और ऐसा तंत्र इमानदारी से बन जाए तो क्या कहना लेकिन यहाँ भी गुटबाजी शुरू हो जाएगी और अपने अपनों के लेख़ अख़बार मैं जाएंगे और उनको ही पारश्रमिक मिलेगा.
क्या आप बता सकते हैं यह Bite क्या होता है?..
जवाब देंहटाएंनहीं इसकी जानकारी मुझे नहीं है मासूम भाई
यहाँ भी गुटबाजी शुरू हो जाएगी और अपने अपनों के लेख़ अख़बार मैं जाएंगे और उनको ही पारश्रमिक मिलेगा.
मेरी समझ में ये नहीं आता कि आप लोग आशंकाओं और संभावनाओं को इतना क्यों हावी होने देते हैं आखिर । आज लगभग चालीस हज़ार हिंदी ब्लॉग्स हैं , जाने कितनी ही साईटें और कितने ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं ..इनमें गुटबाजी क्या और कितनी रह पाएगी खुद ही अंदाज़ा लगाएं । शुरूआत से पहले उसके नकारात्मक परिणामों के प्रति आश्वस्तता थोडी जल्दबाज़ी जैसा होगा ।
हमको तो लग रहा है कहीं ये पोस्ट भी कल के अखबार में दिखाई न दे दे....:P
जवाब देंहटाएंsahmat hun aapse,lekin mera ye manana hai ki akhbar agar kisi blog ko chhap raha hai to us par aaptti nahi hona chhiye,is se use jyada pathak milte hain.is se blog jyada se jyada logon taq pahuncne lagega,han rupya-paisa de na de credit jarur milna chahiye,aur agar blog ka mehnatana bhi milne lage to ye to sone pe suhaga ho jayega,waise aaj na sahi kal akhbar wale iske liye payment karenge jarur,aisa mera manana hai.
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग पर एक सार्थक व सटीक लेख...
जवाब देंहटाएंhttp://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/05/blog-post_07.html
जवाब देंहटाएंनारी ब्लॉग की मुहीम रंग लाई
नारी ब्लॉग की मुहीम रंग लाई
राष्ट्रिये सहारा ने ये ना केवल लेखिकाओ के नाम देना शुरू किया अपितु ईमेल आईडी बना कर लेख माँगने की प्रक्रिया भी शुरू की । ब्लोग्स इन मीडिया मे ये पढ़ा (ब्लॉग लेखकों की आपत्ति पर, कतरन में दिया नोट भी उल्लेखनीय है)
लिंक क्लिक करके चित्र पर गयी तो पढ़ा
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नोट :
हमारी कोशिश है कि हम कुछ असाधारण ब्लॉगों को अपनी महिला पाठकों तक पहुंचाएं, जो न कंप्यूटर-फ्रेंडली हैं या उनके पास इस तरह की तकनीकी अभी नहीं है। कुछ ब्लॉग लेखक इस पर आपत्ति करते हैं इसलिए यदि आपको अपने ब्लॉग पाठकों तक पहुंचाने हैं तो कृपया हमको लिंक भेजें, धन्यवाद
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चलिये क्षमा ना सही कम से कम सुधार तो हुआ । अब जिनको अपना ब्लॉग / पोस्ट भेजनी हैं वो भेज सकते हैं फ्री मे छपने के लिये । वैसे महिला पाठक तक बात अगर लेखक के नाम के साथ जाती तो क्या जागृति नहीं आती ????
सार्थक आलेख...विचारणीय...
जवाब देंहटाएंअभी भी ब्लॉग को प्रचार एवं प्रसार की आवश्यक्ता है...मात्र १% लोगों की पहुँच ब्लॉग तक है पूरी आबादी की ...तब ऐसे में समचार पत्रों के माध्यम से अगर इस विधा को प्रसार मिल रहा है तो मुझे तो इसमें कुछ आपत्ति नजर नहीं आती.
हम तो ब्लॉग पर लिखकर यूँ भी पाटःअकों को पढ़वाने के लिए अपना लिखा रख आये थे...यदि अखबार उसे कुछ और पाठकों तक पहुँचाता है तो इसमें आपत्ति क्या होना चाहिये...
वह दिन भी आयेगा जब अखबार बिना आपको छापे काम न चला पायें तब मेहनताने की बात भी सामने आये तो उचित है.
बढ़िया और सार्थक आलेख...
जवाब देंहटाएंआलेख और परामर्श अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंअख़बार अपने रिपोर्टर्स तक को टाईम पर और वाजिब पेमेंट देते नहीं हैं ब्लॉगर को कहाँ से देंगे ?
दबाव ढंग से पड़े तभी देंगे और इसके लिए ब्लॉगर्स की दो चार एजेंसियाँ ऐसे होनी चाहियें जैसे कि वार्ता और PTI .
.......
कुल मिलाकर अच्छी पोस्ट है।
बूढ़ों के प्रति चिंता देखें
http://pyarimaan.blogspot.com
अजय भाई आवाज जरूर बुलंद करनी चाहिए। इस से ब्लागरी का महत्व तो बनेगा ही। अखबारों द्वारा प्रकाशन में एक अनुशासन भी बनेगा।
जवाब देंहटाएंपहली आग लगाने में अधिक प्रयास लगते हैं, फूँकना भी पड़ता है।
जवाब देंहटाएंबहुतै भयानक लिख मारयो है,इतना अपन के बारे मा डिटेल मा पहिली बार पढ़ा है.हम तो खुश होत हैं कि हमरी पोस्ट अख़बार मा छपे ,पैसा-रूपया तो नहीं ,हाँ तनी,इन्फोर्म कर दें तो उचित है !
जवाब देंहटाएंहो सकता है. किया जा सकता है. थोड़े से प्रयास जरूरी हैं.
जवाब देंहटाएंदुनाली पर देखें
बाप की अदालत में सचिन तेंदुलकर
जय हो बड़के भईया ... बहुत खूब ... शेखर सही बोला ... कल के अखबार में यह पोस्ट होगी ही होगी !!
जवाब देंहटाएंwah jhaa jii
जवाब देंहटाएंsaargarbhit mimaansaa
झा जी बढ़िया कहिन्…॥
जवाब देंहटाएंNirantar pathan aur lekhan....yahee sahee hai!
जवाब देंहटाएंएक विचारणीय और सार्थक आलेख. वैसे समीर भाई की बात मुझे जँची.
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
अभी तो लोगबाग टिप्पणी को ही पारिश्रमिक समझ संतोष किए बैठे हैं। अच्छे काम का अनुपात बढ़े तो आपकी सलाह पर अमल बिल्कुल संभव।
जवाब देंहटाएंब्लागर मार्गदर्शन के लिए एक बेहतरीन है ...हमें इसका लाभ उठाना चाहिए ! आभार !
जवाब देंहटाएंएक आचारसंहिता की ज़रूरत तो है भाई ।
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