शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

ब्लोग बैठक (सिलसिलेवार रपट -६)



बैठक में जब टिप्पणियों की बात चली तो सबसे पहले आया जिक्र , सुमन जी की सदाबहार और आजकल खूब चर्चा में आई टिप्पणी nice का । उनकी टिप्पणी nice का जिक्र छिडने की देर थी कि पहले सबके होठों पर मुस्कुराहट आई जो जल्दी ठहाके में बदल गई । इसी बीच जिक्र चला कि आखिर टिप्पणी कैसे की क्यों की जाए कहां की जाए । कई मित्र ब्लोग्गर्स ने सीधे सीधे ही कहा कि कुछ पाठक तो बिना पढे ही हर पोस्ट पर लगभग एक जैसी टिप्पणी कर जाते हैं जो कि गलत लगता है । कुछ मित्रों ने बताया कि कई बार वर्ड वेरिफ़िकेशन होने के कारण टिप्पणी करने का मन ही नहीं करता । टिप्पणियों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात कही भाई खुशदीप सहगल जी ने ।खुशदीप भाई ने बताया कि होना तो ये चाहिए कि टिप्पणी कुछ इस तरह से की जाए कि वो लिखी गई पोस्ट का पूरक बने या कि पोस्ट में कही गई बात को विस्तार दे सके । उनकी बात सार्थक टिप्पणियों की कसौटी को जांचने के लिहाज़ से तो ठीक लगी ,किंतु फ़िर भी हर पोस्ट में ऐसा कर पाना और सबके लिए ऐसा कर पाना प्रायोगिक रूप से संभव नहीं है । मान लें कि कोई कविता या कोई कहानी कोई पाठक पढता है तो उसमें पूरक टिप्पणी क्या की जा सकती है और फ़िर आलोचना प्रशंसा भी तो मूल भावना होती है टिप्पणियों की । और जैसा कि मैं कह चुका हूं कि टिप्पणियों से ही लेखक को पता चलता है कि पाठक ने उसकी रचना को किस रूप में और किस तरह से लिया है । और सबसे जरूरी बात ये कि चाहे ब्लोग्गर कोई भी हो कैसा भी हो टिप्पणी जरूरी होती है और सबको ही अच्छी लगती हैं ।हां इन्हीं टिप्पणियों के मनोविज्ञान पर जब बात हो रही थी तो बात ही बात में ये बात भी चली कि टिप्पणियों में एक दस्तूर ये बनता जा रहा है कि लोग एक दूसरे को ही टिप्पणी करते हैं , मतलब तू मुझे मैं तुझे करूं ..और कहीं न कहीं यही बात उस तथाकथित गुटबाजी को जन्म देने का कारण बनते हैं । खुशदीप भाई ने बहुत जोर देकर कहा कि ये गलत है और होना ये चाहिए कि जब कोई पाठक किसी पोस्ट को पढे तो सिर्फ़ उस पोस्ट पर अपनी बेबाक राय रखे , उसे ये नहीं देखना चाहिए कि इस पोस्ट का लेखक कौन है , वो कितने समय से ब्लोग्गिंग कर रहा है , उसे वरिष्ठ लेखक समझा जाता है नवोदित लेखक । और ठीक इसी समय नीशू तिवारी जी ने सवाल उठाया कि क्या सचमुच ऐसा हो भी रहा है ???जाहिर है कि उनके इस प्रश्न को पूरे हिंदी ब्लोग जगत को समझना और उसका उत्तर ढूंढना होगा ॥


अब इससे पहले कि रिपोर्ट की आखिरी किस्तों की तरफ़ बढा जाए यदि विनीत भाई की कही बातों को यहां फ़िर से ( फ़िर से इसलिए कि उनकी कही बहुत सी बातों को आप खुशदीप भाई की रिपोर्ट में पढ चुके हैं ) नहीं रखूं तो फ़िर ब्लोग बैठक की इस रपट में कुछ खाली सा तो रह ही जाएगा । विनीत भाई ने अपना परिचय देने के बाद ब्लोग्गिंग के भविष्य पर जो कुछ कहा वो कुछ कुछ समाज को ही प्रतिबिंबित करता है । विनीत भाई ने बताया कि आने वाले समय में इंसान के जीवन में जितनी तेजी से उपभोगवाद बढ रहा और आज शहरी समाज में जिस तरह से जीवन जीने के पैमाने बदल रहे हैं और अस्पताल अब hospital tourism में बदल रहा है , स्कूल अब एसी और नौन एसी कैटेगरी में बदल कर five star hotel वाली संसकृति अपनाते जा रहे हैं , कहने का मतलब ये सभी बुनियादी आवश्यकताओं से लेकर सुविधाओं तक में बदलाव आ रहा है । मगर जितनी तेज़ी से ये प्रवृत्ति बढ रही है बहुत जल्द ही वो समय भी आ जाएगा जब पश्चिमी समाज की तरह ही भारतीय समाज भी इन सबसे उकता कर बिल्कुल नौस्टैल्जिक हो जाएगा । पुराने दिनों को , पुरानी परंपराओं को, पुरानी जीवन शैली को और अपनी सभी पुरानी यादों को सब सहेजना और उसे याद करना चाहेंगे । यही सब लेखन में भी दिखेगा , और सच कहूं तो अभी ही दिख रहा है । इसका अंदाज़ा तो किसी किसी पोस्ट से हो ही जाता है जब भी अपनी कोई अपनी पुरानी यादों को पोस्टों से सजाता है तो कैसे वो पसंद की जाती हैं ।



बात चलती जा रही थी और इस बीच मुझे हाल के मैनेज़र साहब ईशारे ईशारे में बता चुके थे कि ,...भाई साहब भाषण तो बहुत हो चुका अब थोडा सा राशन पर भी सबका ध्यान दिलवाईये ....क्योंकि बेचारे नान, रोटी, चावल, पनीर, गोभी, रायता ,पापद सलाद और बेचारे ठंडे हो रहे गुलाबजामुन को थोडी पता है कि आप लोग इस ब्लोग बैठक में सब कुछ भुला देते हैं । मैंने भी सबको वहां से भोजन करने के लिए आग्रह किया और कहा कि बांकी बातें हम खाते पीते और उसके बाद भी कर सकते हैं । भोजन से मेरा थोडा कम ही लगाव रहता है इसलिए मैं इतना ही बता सकता हूं कि कुल मिला के स्वादिष्ट था जिसके लिए मैं शर्मा जी को अलग से धन्यवाद दे आया था । भोजन के बाद बात उन्हीं मुद्दों पर होती रही और सभी अपने आसपास बैठे ब्लोग्गर्स से और सभी से बातचीत करते रहे । इस बीच बात उठाई डा. टी एस दराल जी ने कि ब्लोग्गिंग को कितना समय दिया जाना चाहिए । उनका मानना था कि ब्लोग्गिंग में जरूरत से अधिक समय देना उचित नहीं है, और उन्होंने इस बात को भी उठाया कि एक ब्लोग्गर को कितने ब्लोग्स पर लिखना चाहिए , उनके हिसाब से ब्लोग एक ही हो तो अच्छा होता है । ये बात पहले भी उठती रही है और बहुत बार इस पर चर्चा भी होती रही है । सबका मत था कि ब्लोग्गिंग के साथ अपने परिवार, समाज और अपनों के प्रति आपकी जिम्मेदारी को निभाने में कहीं कोई कमी नहीं आनी चाहिए । अब फ़िर मेरी बारी थी बोलने की , क्योंकि खुशदीप भाई मुझे इस बात के लिए ही डांट चुके थे कि झाजी ने एक बार अपनी बिटिया के बीमार होने के बावजूद चर्चा की थी जो उन्हें अच्छी नहीं लगी , जहां तक ब्लोगों की संख्या की बात थी जो मैंने इस बात का खुलासा किया मैं लगभग बाईस ब्लोगस से जुडा हुआ हूं और नियमित अनियमित रूप से उनपर लेखन चलता रहता है तो सतीश सक्सेना जी सरवत जमाल जी और अन्य सभी मित्र ब्लोगर्स मुस्कुरा उठे । लेकिन जिस एक बात को मैं कहना चाहता था उसके लिए बिल्कुल ठीक उसी समय मेरे साथ मेरी बगल में उस समय उपस्थिति दर्ज़ करा रहे भाई नीरज जाट जी , जो कुछ देर पहले ही सीधा मेरठ से चल कर पहुंचे थे ,का उदाहरण सामने रखा । मैंने अपनी बात रखते बताया कि एक से अधिक ब्लोग्स की जरूरत मुझे क्यों पडी , और यही बात कमोबेश शायद हरेक ब्लोग्गर जिनके एक से अधिक ब्लोग हैं , उनके साथ लागू होती है , कि जब आप एक साथ बहुत सी बातों को कहना लिखना चाहते हैं , मसलन कविता भी , गंभीर लेख भी , चर्चा भी , टिप्पणियों का संकंलन भी ,किसी क्षेत्र विशेष पर , और कुछ भी कभी भी ....कहने का मतलब मिज़ाज़ के हिसाब से अलग विधाओं और अलग शैली में लिखना चाहते है तो ये बेहतर है कि आप उसे अलग अलग ....पाठकों के सामने रखें ।

दरअसल इसके पीछे भी कुछ तर्क हैं मेरे , मान लीजीए कि आपका कोई पाठक सिर्फ़ आपकी कविताओं को पढने का इच्छुक है तो कोई दूसरा आपके हल्के फ़ुल्के लेखन को , कोई सिर्फ़ गंभीर लेख पढन पसंद करता है तो फ़िर उसे उसी ब्लोग में पहुंचाया जाए ।इसका एक और फ़ायदा ये होता है कि जब कोई आपको सर्च इंजन में ढूंढता है तो फ़िर न सिर्फ़ आपके अनेक ब्लोग्स ,आपकी पोस्ट्स, बल्कि विभिन्न पोस्टों पर दी गई आपकी टिप्पणियां भी परिणाम में दिखती हैं तो है न दोहरा लाभ । और इससे अलग एक ये जरूरी बात कि हरेक ब्लोग्गर को किसी न किसी क्षेत्र विषय की विशिष्टता पर अपनी कलम जरूर चलानी चाहिए ताकि जब भी हिंदी ब्लोग्गिंग में किए जा रहे विशेष कार्यों की बात हो तो उन जैसे ब्लोग्स का जिक्र हो । उदाहरण के लिए , पर्यटन के लिए जो काम नीरज जाट जी का , ज्योतिष के क्षेत्र में संगीता पुरी जी का ब्लोग कानून के क्षेत्र में लोकेश जी का अदालत, द्विवेदी जी का तीसरा खंबा , सांपों पर लिखा जा रहा लवली जी का ब्लोग , हिंदी शब्दों के इतिहास पर लिखा जा रहा अजित वडनेकर जी का ब्लोग , अवधिया जी का रामायण पर लिखा जा रहा ब्लोग और इस जैसे तमाम ब्लोग्स ही हिंदी ब्लोग्गिंग को विशिष्टता प्रदान करने वाले ब्लोग्स की श्रेणी में रखे जा सकेंगे । इसलिए सभी की कोशिश ये होनी चाहिए कि कम से कम एक ऐसा चिट्ठा तो उनके भी खाते में जरूर ही हो ।

बस इन्ही सब छोटे मोटे मुद्दों पर बातचीत करते कब समय बीत गया पता ही नहीं चला । वैसे भी इस बैठक का मुख्य उद्देश्य राज भाटिया से आमने सामने एक हसीन मुलाकात करके जिंदगी के लिए कुछ हसीन पलों को सहेजना था सो हम ज्यादा ब्लोग्गरनुमा नहीं रह पाए । और जो भी बातें रह गईं उन्हें अगली बार किसी बहाने से आयोजित होने वाली किसी बैठक के लिए छोड दिया गया । आप लोग भी जब बैठक आदि करें करवाएं तो बांटियेगा अनुभव हमसे भी । अब आखिरी किस्त में इस बैठक से जुडी कुछ दिलचस्प और बहुत ही मनोरंजक पलों और बातों को आपके सामने रखने का प्रयास करूंगा । यदि इसके बाद भी कुछ छूट गया हो तो साथी ब्लोग्गर्स के साथ आप भी मुझे क्षमा करेंगे इसका विश्चास है मुझे ।


23 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छा लगा ये रिपोर्ट भी पढकर !!

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  2. कुछ नही छूट रहा भैया पता है आप का पोस्ट पढ़ कर पता चला की कुछ तो हम वहाँ रह कर छोड़ गये थे आपके माध्यम से वो सब जानकारी भी मिल गई.. धन्यवाद भैया

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  3. आपके द्वारा दी गयी ब्लागर बैठक की सिलसिलेवार रिपोर्ट के लिये हार्दिक आभार। बहुत मेहनत और बहुत बढिया तरीके से आपने ये रिपोर्टें (कडियां) पेश की हैं। अब इन्हें एक बार फिर से इकट्ठा पढूंगां।
    आपके लिये एक nice अभी आता ही होगा
    मन करता है दो-तीन ट्र्क भरकर nice वाले सज्जन को भेज दूं।

    प्रणाम स्वीकार करें

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  4. अब भी...छूट गया...झा जी, अब स्मार्ट बनने की कोशिश मत कीजिए, जल्दी से उस जड़ी-बूटी का नाम बताइए, जो आपने यादाश्त बढ़ाने के लिए गटागट गटकी हुई है...माइक्रोचिप भी दिमाग में फिट कर लिया जाए तो भी इतनी बातें, बिना कागज़-कलम, बिना टेप रिकार्डर याद नहीं रखी जा सकती...मैं तो शुक्र मना रहा हूं कि आपने पत्रकार बनने का फैसला नहीं किया...नहीं हम तो कुंभ में ही किसी अखाड़े में लंगोट पहने सुल्फा खींचते नज़र आते...

    जय हिंद...

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  5. बहुत उम्दा तरीके से की गई सिलसिलेवार रिपोर्ट.....
    धन्यवाद्!

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  6. झाजी आप कहीं शार्टहैंड तो नही जानते जो बीच बीच मे चिट बना बना कर रख ली हो और अब विस्तार से बता रहे हैं.:)

    बहुत सुंदर, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. बहुत कामयाब मिलन रहा। विचार-विमर्श से सभी के भंडार में वृद्धि होती है और कुछ खाली नहीं होता। व्यर्थ की बहसों से कुछ निकलता नहीं है। कुछ कहने सुनने के लिए तो ब्लाग है ही। वहाँ खूब आराम से अपनी बात कही जाए। मिलन में तो सीखने का माहौल बनाना चाहिए। वही आप ने किया।

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  8. अजय भाई. मेरी बातों को रिपोर्ट में शामिल करने के लिए शुक्रिया। बस एक अनुरोध है कि मैंने अफने परिवेशगत स्थितियों को कहीं से भी पाश्चात्य के साथ जोड़कर बात नहीं कही। मैं कभी भी इस तरह बनाम लेकर बात करना पसंद नहीं करता। ऐसा करने से अंत तक आते-आते एक को बेहतर और दूसरे को बदतर साबित करने के दबाव बन जाते हैं जो कि मैं नहीं करना चाहता। मैंने ये जरुर कहा कि हमारे बीच से स्पेस का एहसास खत्म होता जा रहा है। हमें हॉस्पीटल और स्कूल के बीच का फर्क सिर्फ बोर्ड से पता लग पाता है। इस बात को मैंने एक मेटाफर के तहत कहा क्योंकि सब जगह ऐश्वर्य हावी है।
    बाकी बातें आपने बिल्कुल दुरुस्त फरमाया है। शुक्रिया।..

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  9. जी बहुत बहुत शुक्रिया विनीत भाई ,सब बातों को स्पष्ट करने के लिए , आपकी बातों को नहीं रखता तो रिपोर्ट पूरी कहां होती , आभार आने के लिए भी और टिप्पणी के लिए भी आपका
    अजय कुमार झा

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  10. बहुत विस्तृत रिपोर्ट -लगता है विज्ञान ब्लॉगों की जन स्वीकृति के लिए अभी बहुत परिश्रम करने की जरूरत है .

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  11. बहुत अच्छी लगी ये रिपोर्ट और टिप्पणी पर चर्चा भी धन्यवाद्

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  12. झा जी आप ने बहुत सुंदर रिपोर्ट दी, ओर चित्र भी बहुत सुंदर, इन सब से हट कर आप की पार्टी ओर उस की सफ़लता की झलक आप के चेहरे से साफ़ झलक रही थी, ओर खुशी भी होती है, जब हम अपने काम मै सफ़लता हासिल करे.
    फ़िर से धन्यवाद

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  13. हमे तो जी अगली पोस्ट का इन्तजार है. देखते हैं क्या क्या मनोरंजक बातें आती हैं निकलकर.

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  14. आदरणीय झा जी नमस्कार!
    आपके द्वारा की गई दिल्ली ब्लोगर्स की रिपोर्टिंग मैंने पढ़ा पढ़ा ही नहीं अपितु अनुभव किया कि यह (मैं स्वयं) छत्तीसगढ़ का एक अदना सा ब्लॉग का अभी स्वाद चखने वाला भी वहीँ कहीं दुबका बैठा है(मानसिक रूप से) . अपना परिचय देने में शर्मा रहा है. तात्पर्य जीवंत रिपोर्टिंग. पढ़कर मजा आ गया और एक दूसरे पर छीटाकशी के बजाय ब्लॉग लेखन के लिए सभी को प्रेरित करने वाले विचार पसंद आये.
    बहुत बढ़िया

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला