गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

दिल्ली ब्लोग बैठक (सिलसिलेवार रपट -५)






जैसा कि कल की पोस्ट में मैं बता रहा था कि श्री सरवत जमाल जी ने अपनी बात शुरू करते हुए नए ब्लोग्गर्स की कठिनाईयों के बारे में बात की और अपनी कुछ शुरूआती कठिनाईयों के बारे में भी बात की । उनकी इसी बात में पूरी सहमति जताते हुए पद्म सिंह जी ने भी बताया कि उन्हें भी ब्लोग्गिंग में आए हुए अभी कुछ ही समय हुआ है और साथ ही अन्य ब्लोग्गर्स मित्रों ने भी इस मुद्दे पर अपनी अपनी बात रखी । जहां तक मैं समझा वहां उपस्थित और आम तौर पर हर नए ब्लोग्गर के साथ जो मुख्य समस्या आती है वो है पाठकों द्वारा उनको न पढा जाना , या कि पाठक जो पढते भी हैं , मगर उन्हें पता ही नहीं चलता कि कौन हैं वे पाठक और वे आखिर उन्हें क्यों पढते हैं ? दूसरी और सबसे प्रमुख समस्या होती है तकनीक की जानकारी । अब ये बिंदु ऐसा था कि जिस पर मुझ जैसा अनाडी क्या सलाह देता जिस खुद ही कुछ ज्यादा नहीं पता । हमारे बीच थोडे बहुत तकनीक के जानकार जो ब्लोग्गर थे वे थे कनिष्क कश्यप जी ब्लोग प्रहरी वाले , मगर पहुंचे तब जब अधिकांशत: ब्लोग्गर्स जा चुके थे ।इस समय मुझे पिछली ब्लोग बैठक में उपस्थित और तकनीक के लिहाज़ से बहुत ही समृद्ध ब्लोग्गर श्री बी एस पाबला जी की बहुत याद आ रही थी , और जैसा कि मैंने कहा भी था उनसे कि उन जैसे ब्लोग्गर्स की उपस्थिति ब्लोग्गिंग में आने वाले सभी मित्रों के लिए एक कार्यशाला आयोजित करके उठानी चाहिए , जो कि शायद भविष्य में संभव हो सके ।हमें तो खुद ही जाने कितनी मुश्किलों के बाद तो लिंक लगाने, हिंदी में टिप्पणी करने जैसी मूल बातें ही जान पाया हूं । इसी सिलसिले में मयंक सक्सेना जी ने भी एक दिलचस्प खुलासा करते हुए बताया कि उनके एक वरिष्ठ सहकर्मी जो ब्लोग लिखते हैं उन्हें भी न तो ब्लोगवाणी के बारे में पता था न ही ये कि अपने ब्लोग को ब्लोगवाणी से कैसे जोडा जाए । मेरा भी सभी उपस्थित ब्लोग्गर्स से सीधा सीधा सवाल था , कि वे लोग कितने संकंलकों (aggregators ) को खोल कर ब्लोग्स पढते हैं , मेरा मतलब , चिट्ठाजगत और ब्लोगवाणी जैसे लोकप्रिय संकंलकों के अलावा । जवाब अपेक्षित था । .....नहीं , और बहुत से ब्लोग्गर्स मित्रों ने तो शायद रफ़्तार , आई ई डी जी, हिंदी ब्लोग्स, रफ़्तार और भी बहुत से संकंलकों को खोल के ही नहीं देखा था ।


उसके बाद मैंने उन सबसे यही बात कही कि आम तौर पर होता ये है कि हमें ब्लोग्गिं के बारे में पता चलता है हम ब्लोग बनाते हैं और धडाधड लिखना शुरू कर देते हैं , सोचते हैं कि लोग शायद अपने आप पढना शुरू कर देंगे , टिप्पणी करना शुरू कर देंगे । शायद ही किसी नए ब्लोग्गर ने , खासकर जो ब्लोग्गिंग की तकनीक से अच्छी तरह वाकिफ़ न हो उसने कभी इस बात पर गौर किया हो कि अपने ब्लोग तक पाठकों की पहुंच बढाने के लिए उसे किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए । और सच में तो ये उतना मुश्किल भी नहीं है । इनमें से अधिकांश ऐग्रीगेटर्स में सिर्फ़ एक ही प्रचलित प्रक्रिया काम करती है उन संकंलकों तक पहुंचिए , खुद को रजिस्टर कराईये और वहां मौजूद दिशा निर्देशों का पालन करते हुए अपने ब्लोग को वहां जोडने की कोशिश करें । जहां तक इसमें और बांकी अन्य मुश्किलों के लिए भी तकनीकी सहायता की बात है तो वहां मौजूद ब्लोग्गर्स ने मेरे ऊपर और भाई राजीव तनेजा जी के ऊपर ही ये जिम्मेदारी डाल दी कि जितना संभव हो सके आसान भाषा में तकनीकी जानकारी बांटने का प्रयास करेंगे । मगर मुझे लगता है कि ये समस्या का स्थाई हल नहीं है । मैंने वहां एक सुझाव रखा कि ब्लोगवाणी ,चिट्ठाजगत, रफ़्तार और सभी अन्य संकंलकों के मुख्य पृष्ठ पर एक कोने में ब्लोग्गिंग तकनीक की जानकारी दे रहे ब्लोग का स्थाई लिंक लगा रहना चाहिए । मसलन , ब्लोग ई टिप्स, ब्लोग बुखार, ब्लोग मदद, राहुल प्रताप जी का ब्लोग , और भी अन्य कुछ । क्योंकि इन ब्लोगस पर समय समय पर तकनीक संबंधी जानकारियां उपलब्ध कराई जा रही हैं ।इसके अलावा मैंने वहां उपस्थित अन्य ब्लोग्गर्स से ये आग्रह किया कि सिर्फ़ लिख कर चल देने भर से या फ़िर कि पढ के टिप्पणी कर देने भर से न ही पाठकों की संख्या बढेगी और न ही ब्लोग्गिंग का विस्तार हो सकेगा । इसके लिए ब्लोग्गर्स को फ़ीडबर्नर जैसी सुविधाओं से अपने ब्लोग को लैस करना होगा । न सिर्फ़ इतना ही बल्कि स्टैट काऊंटर द्वारा उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाते हुए ब्लोग्गर्स को ये जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें पढने वाले पाठक कौन हैं ,कहां से आते हैं , क्या ढूंढते हैं , कितनी देर तक ब्लोग पर रुकते हैं , कितने पाठक एक बार आने के बाद दोबारा आते हैं आदि जैसे प्रश्न हैं जिनका जवाब तलाशने की कोशिश करनी चाहिए । हो सकता है अभी ये सब करना झंझट लगे मगर यदि आप सचमुच चाहते हैं कि पाठक बने और पढें तो देर सवेर , जब भी फ़ुर्सर मिले इस बात की कोशिश जरूर होनी चाहिए । जी हां ......इन सब प्रश्नों का उत्तर तलाशना मुमकिन है ,न सिर्फ़ मुमकिन बल्कि आसान भी है ...कैसे इसके लिए तो मैं तकनीक सबल ब्लोग्गर्स से निजी तौर पर आग्रह करूंगा कि वे कुछ पोस्टें इस पर लिखें ।

इन्हीं बातों के बीच में बात चली अनामी बेनामी प्रोफ़ाईल धारियों की बढती संख्या और उनकी टिप्पणियों की । जो इन दिनों बेहिसाब संख्या में बढती जा रही हैं । इस बात को सबसे पहले उठाया भाई खुशदीप जी ने , जिनकी एक पोस्ट पर पिछले दिनों एक बेनामी महाशय कुछ ज्यादा ही स्नेह बरसा गए थे । इसके बाद बात छिडी कि क्या ये संभव है कि आखिर ये कौन लोग हैं , मैंने इस बात को जोर देकर कहा कि ये हमारे आपके बीच से ही हैं जो भी हैं और जानबूझ कर इस तरह की बातें की जाती हैं ताकि सकारात्मक दिशा में बढते हुए किसी ब्लोग्गर को दिशा से भटकाया जा सके । फ़िर प्रश्न हुआ कि क्या ये संभव है कि किसी तरह से ये पता लगाया जा सके कि इन सबके पीछे कौन लोग हैं । मैंने अपने एहतियाती उपायों को बताया कि किस तरह से उन टिप्पणियों के समय शैली, आदि को देख कर अंदाज़ा तो लगाया जा सकता है । मगर राज भाटिया जी ने बताया कि उसमें कुछ खामियां होने की गुंजाईश होती है ,और यदि बिल्कुल सही सही पता करना है तो उसके लिए कुछ खर्च करना पड सकता है । इसपे सभी ब्लोग्गर्स का एक साथ मानना था कि यदि ऐसा संभव है तो सामूहिक रूप से इस दिशा में काम किया जाना चाहिए और एक आध को पकड कर बेकनकाब किया जाना चाहिए । इसी संदर्भ में सरवत जमाल जी ने एक किस्सा बयान किया कि किस तरह से लखनऊ में उन्होंने और श्री जाकिर अली रजनीश जी ने ऐसे एक बेनामी को पकडा था । मगर कुल मिला कर उस समय यही बात हुई कि इस तरह के प्रोफ़ाईलधारियों की उपेक्षा ही सबसे बेहतर उपाय है । इसी के साथ उनकी टिप्पणियों पर भी बात हुई और टिप्पणियों के मनोविज्ञान पर हुई बातें कल होंगी ।

18 टिप्‍पणियां:

  1. अजय भईया ये बताईये जब मीटिग चल रही थी तो आप तो हमारे साथ ही थे , तो इतनी बढिया रिपोर्ट कब बना रहें थे भईया , पता नहीं कैसे आप कर लेते है ये सब , आपका भी जवाब नहीं , आज जो आपने तस्वीर लगाई है उसमे कुछ दिख ही नहीं रहा ।

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  2. ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत के अलावा तो मैंने भी आज तक कोई और aggregator खोल कर नहीं देखा.. :(
    अरे भैया आप कुछ भूल रहे हैं.. रिपोर्ट अभी पूरी नहीं हुई.. ;)
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

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  3. वैसे तो हम सब कुछ वहीं सुन- देख लिए थे पर आपकी शब्दों में उन बातों की पुनरावृत्ति और भी बढ़िया लगी आपने कितनी बारीकी से हर बात का गौर किया और यहाँ प्रस्तुतिकरण में भी कोई कसर नही छोड़ी...मान गये भैया लाज़वाब है आप भी ..

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  4. एक बात समझ में आई कि ब्लागीर मिलन में कम से कम एक तकनीकी विशेषज्ञ अवश्य होना चाहिए।

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  5. हाँ जाकिर के पकड़ने और पोल खुलने के बाद वह छ्द्मनामी अपना ब्लॉग ही छोड़कर भाग निकला -अंगार अब दूसरे नाम से मौजूद है .....और अपने ही कुछ नादान साथी उसकी लगातार मदद कर रहे हैं यह जानते हुए भी की जन्मना दुष्ट कभी सुधर नहीं सकते -इन्हें दण्डित ही किया जाना चाहिए -अन्यथा वे समाज को अंततः बहुत बड़ा नुक्सान पहुचायेगें !

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  6. बढ़िया विस्तार से रिपोर्टिंग कर रहे हैं, शाबाश!!


    वैसे बेनामियों का उपाय तो इग्नोर करना ही है. अगर सब मिल कर फैसला ले लें कि बेनामियों की टिप्पणी अप्रूव ही नहीं करेंगे चाहे अच्छी या बुरी, तो शायद समाधान हो.

    जारी रहिये.

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  7. अजय भाई सही जा रहे हो
    सेरियल किलर की त्रह सेरियल फ़िलर बन गये हो

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  8. बहुत इंतज़ार करवा रहे हो अजय भाई मगर बढ़िया पोस्ट !

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  9. आपके कारण इतने विस्‍तार में रिपोर्ट पढने को मिल रही है .. इतनी बाते आप याद कैसे रखते हें .. एक एक लाइन .. गजब याददाश्‍त है .. तारीफ करनी होगी .. टिप्‍पणियों के मनोविज्ञान का इंतजार कर रही हूं!!

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  10. बहुत ही विस्तृत रिपोर्ट और बेहद उपयोगी बाते.

    रामराम.

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  11. मनोविज्ञान
    या मन का बढ़ता ज्ञान
    बदौलत अजय झा जी।

    मन आपका
    रख लेता है सबका ध्‍यान
    जब भी आप
    स्‍कूटर पर लेने जाते थे
    तो साबित हुआ
    मन अपना ब्‍लॉगर्स के पास
    छोड़ जाते थे।

    मैं वहां रहा
    मन भी वहीं
    पर याद रहा
    कुछ भी नहीं।

    पर आप दिला रहे हो
    तो याद आ रहा है
    पर याद दिलाने से
    बिना दिलाये आता है कैसे
    झा जी अगली कार्यशाला में
    यह भी सिखलायेंगे
    हम भी सीखेंगे
    सब सीखेंगे।

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  12. बढ़िया रिपोर्ट। कुछ तस्वीरें नईं।

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  13. ब्लोगर मिलन की रिपोर्ट अब सीरियस मुद्दों से होती हुई सार्थकता का प्रमाण देती हुई अच्छा प्रभाव छोड़ रही है । बधाई।

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  14. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया लगा ! बधाई!

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला