शनिवार, 22 अगस्त 2009

माफ़ कीजियेगा , ब्लॉग्गिंग में ये ठेका आपको दिया गया है ..या आपने खुद ही ...


जब लगातार कुछ दिनों तक एक ही तरह की आक्रोशात्मक पोस्टें ...वो भी हिंदी ब्लॉग्गिंग ..हिंदी ब्लोग्गेर्स..(कभी परोक्ष तो कभी प्रत्यक्ष रूप से ) देखा तो रहा नहीं गया ..और अपनी पिछली पोस्ट में मुझे उनके लिए कुछ न कुछ कहना ही पड़ा ...कम से कम वो तो जरूर ही .....जो उस वक्त मेरे मन में आया...मित्रों और अग्रजों ने पढ़ा ..टीपा ..और जाते जाते कह गए ..की नहीं अभी हिंदी ब्लॉग्गिंग की विशेषताओं पर कुछ भी लिखने से पहले ...अभी इसी मुद्दे पर जो थोडा बहुत बच गया है ...उसे भी ठेलते-उड़ेलते जाओ....वर्ना कल को मलाल रह न जाए ..हमने कहा ठीक है

नज़र दौडाई तो ..पता चला की ..इन दिनों ..( वैसे ये हो सकता है की ..चल पहले से रही हो ..मगर हमें ही न पता चला हो ...) ठेकेदारी खूब चल रही है ब्लॉग्गिंग में ...क्या कहा ...आपको पता नहीं चला की ..इसके टेंडर कब निकले ..अरे हमें ही कौन सा पता चला ...अभी तो मुकम्मल तौर यही पता नहीं है की इसके लिए टेंडर निकले भी थे या नहीं ..निकले तो ब्लोग्वानी , चिट्ठाजगत के अलावा ...और किस ईम्प्लोय्मेंट न्यूज में निकाले गए ...मगर ये तो तय है की ...ठेकेदार आ ही गए..कौन से ..ठेकेदार और कैसे ठेकेदार ,,...आइये आप भी देखिये न ....

इन दिनों कुछ लोग ..कभी पोस्ट के नाम पर, कभी सन्देश के नाम पर,,कभी टिपण्णी के नाम पर ...चाहे किसी भी नाम पर .....मगर ठेकेदारी धर्म की ही हो रही है ...कोई धर्म ग्रन्थ पढने को कह रहा है तो ..कोई कह रहा है ..की आप फलाना धर्म में क्यों हो ..जबकि धिमकाना धर्म तो ज्यादा बढ़िया है ...सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो ये है की ..इन तमाम ठेकेदारों में ..कोई भी निकट भविष्य में न तो किसी मठ का मठाधीश बनने वाला है ....न ही जसवंत जी या किसी और की जगह उसे किसी राजनितिक पार्टी में कोई जगह मिलने वाली है ..तो फिर भैया ये धर्म युध्ध /जिहाद/क्रुसेड ...अमा यहाँ क्यूँ छेड़ रखे हैं ....क्या कहा ..आपको हिंदी ब्लॉग्गिंग में धर्म पर लिखने -खीजने का ठेका मिला है ....ओह हो ...

अब अगले ठेकेदारों से मिलते हैं ......इन्हें लगता है की नारियों/महिलाओं/स्त्रियों ...के नाम पर ..उनकी समस्याओं के नाम पर ..सिर्फ इन्ही को लिखने का ठेका मिला हुआ है ....क्यूँ भाई ....क्या हम पुरुष नहीं लिख सकते ....और यदि साबित करने पर आ गए तो ...तो आपकी जानकारी के लिए बता सकते हैं की ..जितनी मेहनत आपने वर्ष भर में अपनी पोस्टों में सिर्फ आपत्ति /विरोध/प्रतिक्रया जाहिर करने में खर्च की है ..उससे ज्यादा तो हम अपने एक आलेख में आकडों को इकठ्ठा खर्च करने में लगा देते हैं ....यहाँ भी कुछ दिलचस्प है ...जो बेहतर और सार्थक लिख रहे हैं ..वे ठेकदार होने का दावा नहीं कर रहे ..और जो ऐसा नहीं कर पा रहे ..वो ठेकेदार घोषित किये हुए हैं खुद को ....ऊपर से तुर्रा ये की ..यदि जरा सा टोक दिया जाए ..तो बस समझिये आ गयी आपकी शामत ....क्यूँ भाई क्या इतिहास में आज तक महिलाओं पर जो भी अत्याचार हुआ है उसमें कभी किसी स्त्री /महिला का हाथ या कोई दोष नहीं रहा...नहीं...... तो आइये न ..मैं दिखाता हूँ की ..दहेज़ प्रतारणा/दहेज़ ह्त्या/ सेक्स रैकेट ..जैसे गंभीर अपराधों के लगभग सत्तर प्रतिशत मामलों में महिलाओं की भागीदारी होती है ..मैं नहीं कोर्ट के आकडें बताते हैं ..खैर ये तो बहस का मुद्दा है ....यहाँ तो बात इतनी सी है की ..कभी कुछ सार्थक/ कुछ तथ्यपरक, विषद -वृहद् दृष्टिकोण वाला ...या यूँ कहूँ की कुछ अपनी तरफ से भी लिखा कीजिये न ..ताकि दूसरों को भी आपत्ति/विरोध/ दर्ज करने का मौका मिले....(यहाँ ये स्पष्ट कर दूं .की ऐसा सिर्फ कुछ ब्लोग्स और ब्लोग्गेर्स के साथ है ..अन्यथा स्त्री विमर्श और स्त्री विषयों पर कुछ ब्लोग्स तो कमाल का काम कर रहे हैं ......और हाँ मुझे ये भी पता है की इन पंक्तियों के बाद उन तथाकथित ठेकेदारों को खूब आपत्ति होने वाली है ...और मैं बहस के तैयार भी हूँ ...मगर बात वही की ये ठेकेदारी आपको दी गयी है ..या आपने खुद ही...

ऐसे ही कुछ ठेकेदार ..हैं दूसरों के नाम पर सीधा सीधा ..उल जलूल , बेतुका, और कभी कभी तो वाहियात ही ...लिख कर अपनी कथनी और करनी को ब्लॉग्गिंग का नाम दे रहे हैं ...खुद पर कुछ कहा जाए तो ऐसे बिदकते हैं ...जैसे आजकल बारिश का नाम सुन कर दिल्ली नगर निगम बिदक रहा है ....और पूछो तो कहेंगे ..की हम तो ब्लॉग्गिंग इसलिए करते हैं की खुद हमें मजा आये ..दूसरों को इससे क्या फर्क पड़ता है ..इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता ..ऐसा इसलिए है ..क्यूंकि अभी तक आपकी ठेकेदारी के विरोध में किसी और ने टेंडर नहीं भरा ..जिस दिन भर दिया न ..आपको आपही के अंदाज़ में समझानी का ..कसम से ..नज़ारा बदल जाएगा ..विश्वास रखिये ..आपकी ठेकदारी-दुकानदारी सब खतरे में पड़ जायेगी ....वैसे क्या ये ठेकेदारी भी ....नहीं नहीं ये तो आपने खुद ही अपने नाम कर ली है...

अब अंत में ..मुझे पता है ..की मुझ से भी पूछा जाने वाला है ..की क्यूँ भैया ये हिंदी ब्लॉग्गिंग पर लिखने का ठेकेदार आपको किसने बना दिया ...कौन कहता है ....हम तो खुद ही चाहते हैं ..और लोग भी टेंडर भरें..मगर हिंदी को गरियाने/धकियाने/कटघरे में खडा करने के लिए नहीं ...और करिएगा तो हमारे जैसे चौकीदारों को भी झेलना होगा..बेशक आपको बातें बुरी लग सकती हैं ..अंदाज और शैली भी थोड़ी सी रुखी लग सकती है ......मगर करें क्या आपको प्यार से समझ ही नहीं आ रहा न कुछ भी ...एक बात का ध्यान रखिये ...ये सब तभी तक चल पता है ..जब तक कोई खुल्लम खुल्ला आपको आपकी तरह बताने/समझाने से परहेज़ कर रहा है ...मगर कब तक ..किसी न किसी दिन तो इसके लिए भी कोई हम जैसा चौकीदार ही ठेकेदार बन जाएगा ...

बस अब और नहीं ....अब अगले आलेखों में हम आपको बताएँगे/दिखाएँगे/सुनायेंगे/पढायेंगे/ की हिंदी ब्लॉग्गिंग में वो कौन सी खासियत है ..वो कौन सी बात है ..जो आपको नज़र नहीं आती ...और सिर्फ दोष ही दिखता है .....यकीन मानिए ...हमने आपका नज़रिया न बदल दिया तो कहियेगा....

यदि लिखते समय ..भाषा/शैली/ ..कुछ तल्ख़ लगी हो तो ..अन्यथा न लें ..सिर्फ ये समझें की मेरा उद्देश्य कान के उस मोटे परदे के भीतर वो आवाज पहुंचाने की है ..जिसे आप शोर समझ कर बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं ...,..हिंदी ब्लॉग्गिंग क्या है .....कम से कम मेरी नज़र में ...ये आगे ...

20 टिप्‍पणियां:

  1. नही ,आप बिलकुल बजा फरमा रहे हैं -अब ये फरमान आया है की पुरुष लोग अपना रास्ता नापे ! हद है कैसे कैसे ठसक लिए पड़े हैं लोग यहाँ ! जो संविधान प्रद्दत्त मूल अधिकारों पर भी हल्ला बोल रहे हैं !

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  2. बहुत सही कहा आपने. ठेकेदारी यहाँ भी जोरशोर से चल रही है.

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  3. अजय जी
    सादर वन्दे !
    आपने बिल्कुल ठीक लिखा है ! इन विद्वानों ने तो अपने को भगवान से भी ऊँचा समझ लिया है, और आज की नारी इतना जागरुक हो गयी है कि बात समझाने व समझने कि जगह धमकियां देना शुरू कर दीं हैं.
    और ये सभी अपने आप को एक दुसरे से बड़ा साबित करने में अनाप-सनाप लिखते जा रहे हैं. इसका अंत क्या होगा नहीं मालूम लेकिन आप कि तरह प्रयास होना ही चाहिए.
    रत्नेश त्रिपाठी

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  4. भाई एसे लोग स्वयं ही सिमट कर रह जाते हैं...न कोई उनके ब्लाग पढ़ता है न ही प्रतिक्रियाएं

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  5. खासियत जानने को बेताब हो उठा हूँ.

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  6. ऐसा भी होना चाहिए
    जिसे न पढ़ना पढ़े
    और न टिपियाने की
    पसंद चटकाने की
    हो जरूरत
    बेमुहूर्त
    गाल बजाने वालों को
    शब्‍दों का ढोल चटकाने वालों को
    और आर्य जी
    जागरूक हो गई है नारी
    मतलब
    जाग कर रूक गई है नारी
    अपने ही उपर चला रही है आरी
    दे रही है सबको खूब गारी
    गलत ?
    गलत लिखा हो तो सारी।

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  7. अरे बाप रे ! कोई तहलका टाइप खुलसा होने वाला है शयद !!!

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  8. इस हिन्‍दी ब्‍लाग जगत में मैं तो भुक्‍त भोगी हूं .. पर न तो भविष्‍यवाणी करना छोड सकती .. और न ही टिप्‍पणी करने की प्रवृत्ति को .. और हिन्‍दी ब्‍लाग जगत को छोड पाना तो असंभव है .. लाचार हूं भई !!

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  9. अरे भैये...इतने सारे ठेकेदारों को झेल लिया, तो आप को भी झेल ही लेंगे:)

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  10. मै इसे आपके सकारात्मक विचार कहूँ या नकारात्मक समझ मे नही आ रहा है लेकिन भाई यह इस माध्यम की शैशवावस्था है अत: इस तरह की अतिशयोक्तियाँ सम्भव हैं । इसे न तो धर्म के मठाधीशों वा सम्प्रदायवादियों का मंच बनने देना है ना ही इसे स्त्री विरुद्ध पुरुष के अखाड़े के रूप मे इस्तेमाल होने देना है । आप इस दिशा में चिंतित हैं यह आपकी भविष्योन्मुखी प्रवृत्ति को दर्शाता है । निश्चित ही आप इस माध्यम के भविष्य को लेकर चिंतित हैं लेकिन इस जनतंत्र में आप किसकी अभिव्यक्ति पर लगाम लगा सकते हैं । दिशा निर्देश देने के लिय हम में से अभी कोई सक्षम नही है । किसी की बुद्धि को चुनौती देना आसान नहीं है। ऐसा न हो कि व्यर्थ के इस व्यायाम मे आपका परिश्रम अकारथ सिद्ध हो । दूसरे बाहरी जगत मे भी अभी इस माध्यम की छवि अपने निर्माण की प्रक्रिया में है ऐसा न हो कि विवादों से उसे कोई नुकसान पहुंचे . साहित्यिक जगत मे भी अब विवादों को दरकिनार कर रचनात्मक लेखन की ओर ध्यान दिया जा रहा है । उस पथ पर चलने से बेहतर यह नही होगा कि हम अपना रास्ता स्वयं तलाशे ?-- आपका शुभाकान्क्षी- शरद कोकास

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  11. बहुत खूब अजय जी,

    बहुत कम ही हिंदी ब्लॉगर ऐसे हैं जो सटीक तथ्य व तर्क सहित बहस करते हैं। हालांकि अच्छी बहस भी किसी नतीजे पर कभी खतम नहीं हो सकती, फिर भी माद्दा तो रखते हैं।

    धर्म और राजनीति पर तो कुछ ना कहने का निश्चय कर, मैं ब्लॉग जगत में आया था।

    बाकी बात रही आधी दुनिया होने का दावा करने वाली प्रजाति की। तो इनके बारे में यहीं ब्लॉग जगत में कहीं पढ़ा था कि स्त्री नम्बर 1 बनो ना कि पुरूष नम्बर 2! इनमें से किसी एकाध सद्स्य की बात छोड़ दी जाए तो तकरीबन सभी एक निश्चित दिशा में बढ़िया लिख रहे हैं, विशिष्ठ विधायों में।

    यहाँ मुझे उड़न जी की बात थोड़ी असहज कर रही। हमसे बेहतर वे जानते हैं कि कितनी खासियतें हैं इस ब्लॉगजगत की। यदि वे एक बार और अपना कथ यहाँ दोहरा दें तो इसे एक चुनौती जैसा स्वीकारने को मैं व्यक्तिगत रूप से तैयार हूँ।

    और फिर बार-बार हिंदी ब्लॉगिंग को शैशवावस्था में कह कर क्या हम-आप ऐसा नहीं कर रहे जैसा किसी बच्चे को हमेशा पीछे धकिया जाता है कि तुम बच्चे हो, सीखने में समय लगेगा। क्या शैशवावस्था में डले संस्कार बड़े होने पर सराहे नहीं जाते? फिर शैशवावस्था से आगे ले जाने की जिम्मेदारी इसी परिवार के सद्स्य की होगी या किसी दूसरी भाषा वालों की?

    आप अपना प्रयास जारी रखें, लेकिन अपनी मूल शैली और भावनायों को बरकरार रखते हुए। कम से कम मेरा सहयोग तो मिल जाएगा। अच्छाइयाँ बहुत होती हैं, ब्लॉगजगत में भी हैं। मेरा ख्याल है श्रम उसी ओर किया जाना निर्विवाद व सार्थक होगा। पता नहीं क्यों साधु-बिच्छू की कहानी याद आ रही।

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  12. सही सोच है, सही दिशा है और आवश्यक गति है। गतिशील रहिए, कारवॉ बनते रहेगा। कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना पर चौकीदार तो अपनी भूमिका निभाएगा ही परिंदा फड़फड़ाए या कोई सांखल बजाए, ्समय आई आवाज़ पर प्रतिक्रिया सजगता का प्रतीक है।

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  13. बजा फरमा दिया या बजा दिया बाझा ?
    चलो भाई आप जिस बिमारी को ठेकेदार कहते है हम गरीब ब्लोगर उसे सामन्तवादी रोग के नाम से पुकारते है।

    आभार एवम गणेशोत्सव पर हार्दिक मगलकामनाऍ
    यह पढने के लिये किल्क करे।
    हिन्दी ब्लोग जगत के चहूमुखी विकास की कामना सिद्धिविनायक से

    मुम्बई-टाईगर
    SELECTION & COLLECTION

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  14. अरे वाह अजय भाई, आपतो बहुत बढ़िया बेड़ा उठाये हुए हैं। ये सारी चिन्ताएं किसी भी संजीदा ब्लॉगर को परेशान करती होंगी। आप भी बेचैन हैं तो अच्छा है। बहुत से वरिष्ठ लोग इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की समय-समय पर कोशिश कर चुके हैं, लेकिन यहाँ मुश्किल यह है कि एक पक्ष कुछ भी ऊल-जलूल कहने को स्वतंत्र होता है और दूसरा पक्ष शालीनता की भाषा से बँधा हुआ बहस को कुछ दूर तक ले जा पाता है फिर अगले पक्ष के थोथे और दिशाहीन तर्कों से किनारा कर लेना पड़ता है। मूल बात जस की तस पड़ी रह जाती है।

    मैं इस पोस्ट कर जिस समय टिप्पणी कर रहा हूँ उस समय तक आपकी अगली पोस्ट पर भी ४७ टिप्पणियाँ आ चुकी हैं और मेरी बात को सिद्ध करने के लिए कहीं और जाने की जरूरत नहीं रह गयी है। अब आप भी उस सूची में शामिल हो चुके हैं जो इस दुर्धर्ष प्रवृत्ति से कभी न कभी दो-दो हा्थ आजमाकर वह ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं जिसके बाद आपने और टिप्पणियाँ न करने का अनुरोध तक कर डाला है।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला