गुरुवार, 20 अगस्त 2009
हिंदी ब्लॉग्गिंग पर प्रश्नचिन्ह लगाने से पहले .......?
हिंदी ब्लॉग्गिंग या ब्लोग्गेर्स पर जब भी कोई सकारात्मक आलेख पढता हूँ तो खुशी होती है , विशेषकर जब हम ब्लोग्गेर्स खुद भी इन विषयों पर लिखते हैं . ये कुछ कुछ आत्म मंथन करने जैसा होता है . सबसे अच्छी बात ये होती है की विषय एक होने के बावजूद सबका दृष्टिकोण अलग अलग होता है. अन्य पाठक (ब्लोग्गर्स ) भी इसे खूब रूचि लेकर पढ़ते हैं ....
लेकिन पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ कि........ कुछ ब्लोग्गेर्स अकारण ही (मुझे अब तक ऐसी पोस्टों को लिखे जाने का ना तो एक भी सार्थक कारण दिखा और न ही कोई परिणाम ) कभी हिंदी ब्लॉग्गिंग पर निशाना साध रहे हैं तो कुछ उससे आगे जाकर सीधे -सीधे किसी का नाम लेकर कोई पोस्ट डाल रहे हैं ...जिसका कम से कम एक उद्देश्य .....सिर्फ विवाद पैदा करना तो है ही ...... आलोचना उचित है , किसी का विश्लेषण करना भी तार्किक बात है .....मगर उससे पहले कुछ सीमाएं ..कुछ अहर्ताएं भी तय होनी चाहिए....किसी भी परिस्थिति में किसी भी ब्लॉगर को दुसरे पर निजी आक्षेप तब तक करना सर्वथा अनुचित है (कम से कम सार्वजनिक रूप से तो जरूर ही ) जब तक यह एक मात्र और अंतिम विकल न हो . मैं अब सीधे सीधे कुछ प्रश्न उन तमाम ब्लोग्गेर्स से पूछना चाहूँगा ....इसलिए नहीं कि वे यहाँ जवाब दें,(क्यूंकि ब्लॉग्गिंग में यदि आप किसी के प्रति उत्तरदायी हैं ...तो खुद के ) ..उन सबसे जो लगातार हिंदी ब्लॉग्गिंग या ब्लोग्गर्स को अपने उपहास के निशाने पर रखे हुए हैं ....
आप कितने समय से ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं....? तात्पर्य सिर्फ यह है कि ...क्या आपको लगता है कि आपने हिंदी ब्लॉगजगत पर इतना समय बिता दिया है कि ..इसकी अच्छाई/बुराई ...दशा/दिशा ..को समझ गए हैं .
क्या आपको नियमित रूप से हिंदी ब्लॉग्गिंग में बुराई ही दिख रही है...मेरा मतलब जैसा कि ..बहुत से लोग ..सिर्फ चाँद लाईनों की पोस्ट में फटाक से लगातार आरोप पर आरोप मढ़ते जा रहे हैं....यदि हाँ, तो क्या आलोचना करते समय अन्य जिस भाषा की ब्लॉग्गिंग में वो बात हिंदी से बेहतर है उसका उल्लेख आपने किया .....
क्या आलोचना से पहले हिंदी ब्लॉग्गिंग की विशिष्टता, विकास ,उपलब्धि,दिशा, जैसी बातों पर भी आपका ध्यान गया है और आपने उन पर भी कुछ लिखा है. ...तात्पर्य सिर्फ यह कि ...कहीं ऐसा तो नहीं कि आप किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर ऐसा लिखने को प्रेरित हुए हैं...या किसी अन्य बात से नाराज होकर सारा गुस्सा ...हिंदी ब्लॉग्गिंग पर ही उतार दिया....
सबसे जरूरी बात ...ये कि ...जब आप आलोचना कर रहे हैं तो क्या आपकी भाषा /शैली संयत है. शालीनता की हद में है. कहीं आप किसी का मजाक तो नहीं उड़ा रहे हैं...या जाने अनजाने ..आपकी पोस्ट उनके लिए अपमान का / दुःख का बायस तो नहीं बन रहे ..
बातें और भी बहुत सी हैं...मगर फिलहाल तो मेरे कहने का आशय सिर्फ इतना है कि .....सिर्फ उंगली उठाना.....आरोप लगा देना...सारा दोष मढ़ देना ...या गलतियां ढूँढना ...आपत्ति दर्ज करवा देना ....सिर्फ इन दायरों में अपनी लेखनी को अपने विचारों को प्रतिबंधित न करें....
उम्मीद है कि ..हिंदी ब्लॉग्गिंग के प्रति सम्मान को बरकरार रखने में आप सब मेरा साथ देंगे ....
आपने बडी सटीक और सामयिक बात लिखी है. पर अफ़्सोस यहां इस तरह का कुछ ना कुछ होता ही रहता है. अगर इन व्य्र्थ की बातों से हटकर कुछ रचनात्मक किया जाय तो बहुत अच्छा हो पर यहां कुछ शार्टकट ( जिसे आजकल कट पेस्टिया विधी के नाम से भी जाना जाता है) लगाने वाले इसे पापुलर होने का ज्यादा कारगर फ़ार्मुला मानते हैं. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अजय जी मै आपके बात से बिल्कुल सहमत हूं। मै भी कई दिनो से देख रहा हूं इसको, यहां कुछ लोग ऐसे है जिनका काम हि है बस आलोचना करना चाहे वह आलोचना के लायक हो या नही। और मैं आपको बात दुं कि कुछ लोग ब्लोग का गलत फायदा भी उठा रहे है,। कुछ लोग अपने धर्म को बढिया बता रहें है तो कुछ लोग खराब। अब तो लग रहा है कि ब्लोग भी सांप्रदायिक होता जा रहा है, जहां तक मेरा मानना है इसपे लगाम लगाना बहुत जरुरी है।
जवाब देंहटाएंउम्मीद है कि ..हिंदी ब्लॉग्गिंग के प्रति सम्मान को बरकरार रखने में आप सब मेरा साथ देंगे ....
जवाब देंहटाएंउम्मीद तो की ही जानी चाहिए !!
Bade suljhe hue vichaar rakhe hain aapne..poorn taya sahmat hun..
जवाब देंहटाएंSaadar
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.lbogspot.com
क्या ऐसे चनों का बेसन बाजार में उपलब्ध होगा
जवाब देंहटाएंया वे बरतन ही चीन्हते रहेंगे
वे बरतन का कारोबार ही क्यों नहीं शुरू कर देते हैं।
सामयिक और सौ टके की सटीक बात सहमत हूँ . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसामयिक और सौ टके की सटीक बात सहमत हूँ . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपहली बात तो ये है कि हिन्दी ब्लागिंग अभी अपरिपक्व स्थिति में है इसे परिपक्व होने में अभी बहुत समय लगने वाला है। दूसरी बात लोगों की मानसिकता की है, कुछ लोगों का जैसा आचरण अपने आसपास के समाज के साथ होता है, वो वैसा ही व्यवहार यहाँ भी करने लगते हैं ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा अजय बाबू!!
जवाब देंहटाएंअक्सर तो त्वरित प्रसिद्धि के लिए लोग इस तरह से किसी पर पोस्ट लिख देते हैं मगर इतने सालों में मैने देखा है कि इस तरह से प्रसिद्धि प्राप्त कर लेने की उम्र थोड़ी ही होती है और वो कहाँ खो जाते हैं, कोई नहीं जानता!!
आपकी बात से पूर्णत्या सहमत
जवाब देंहटाएंसहमत हूं शत-प्रतिशत।
जवाब देंहटाएंकथादेश के मीडिया अंक मे सुभाष धूलिया का लेख पढ़ें . ब्लॉगिंग फिलहाल तो सकारात्मक दिशा की ओर अग्रसर है . यह सब नकारत्मक व्यवहार अधिक दिनो तक नही चलने वाला >
जवाब देंहटाएंजब भी कोई अच्छा काम होता है। उस में अड़चनें आती हैं। क्यों कि जिन के हितों को जनहित से हानि होती है वे उसे क्यों होने देंगे?
जवाब देंहटाएंबड़ी सटीक बात कही है कबीर ने " निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छाबाए " लेकिन निंदा में भी नियंत्रण जरूरी है
जवाब देंहटाएंदे दिया साथ यार तुम भी क्या बात करोगे? पांच साल से देख रहे हैं आरोप-प्रत्यारोप वाले न जाने किधर चले गये! मुझे तो ब्लाग जगत में बहुत अच्छे लोग मिले। अच्छी बातें भीं।
जवाब देंहटाएंक्या बात कर रहें हैं अजय जी!? ब्लॉगिंग का मतलब ही है express yourself. अब कोई अपनी एक्स्प्रेस ट्रेन ले कर हिंदी ब्लॉगिंग पर चढ़े जा रहा है आपको समस्या क्यों हो रही? जब हम समाज की बुराईयाँ देखते हैं तो विदेशी देशों से तुलना कर कहते हैं कि देखो वह देश कितना अच्छा है, हमें तो अपना हिंदी देश बिल्कुल नहीं सुहाता।
जवाब देंहटाएंठीक वही बात ब्लॉगिंग में दिखती है। हिंदी ब्लॉगिंग के मुकाबले अन्य भाषाई ब्लॉगों की जी भर तारीफ, यहीं रोमन लिपि में करते हैं। फिर बता भी जाते हैं कि इसीलिए वो हिंदी ब्लॉगिंग को पसंद नहीं करते।
रोमन में हिंदी लिख कर टिप्पणी करने वाले अक्सर कहते हैं कि ब्लॉगिंग में रिश्ते नहीं बनाये जाते, यहाँ परिवार की अवधारणा ठीक नहीं। वही जब अपनी टूटी फूटी देवनागरी लिपि में कोई झटपट पोस्ट ठेलते हैं तो कहते पाये जाते हैं हमें बहुत अच्छे साथी मिले जो अपने सगों से बढ़ कर हैं।
जब कोई अपनी भावनाएँ express करता है तो बजाय स्वस्थ तार्किक टिप्पणी/ आलोचना/ विरोध के बजाये अन्य ब्लॉगरों (इसे अपने गुट के साथी पढ़ें) का आव्हान किया जाता है कि इसकी भर्त्सना में जुट जाएँ, इसकी फलां पोस्ट या ब्लॉग हटवा दिया जाए, झंडा दिखा दिया जाए।
तुर्रा यह कि अगर कोई एक सहज स्वभाव के तहत एक सामान्य सा सुझाव दे देता है किसी शब्द की वर्तनी ठीक करने के लिए, दूसरों की भावनायो का ख्याल रखने के लिए या उस पर आ सकने वाली किसी काल्पनिक/ वास्तविक विपत्ति का इशारा भी दे तो चढ़ाई कर दी जाती है कि इस सब का ठेका नहीं लिया हुआ आपने (या तुमने)
आप भी कहाँ हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति सम्मान को बरकरार रखने के लिए साथ मांग रहे। अव्वल तो कोई आने वाला नहीं और जो आएँगे वह एहसान की भाषा दिखाएँगे या उपहासी स्माईली लगा कर चलते बनेंगे।
आप तो अपने में मगन रहो। हम भी आपका साथ देंगे।
आलोचना करके ब्लॉग-लेखन कितने दिन तक किया जा सकता हा? आलोचना करते-करते कभी तो बोर होगा? जब बोर होगा तो चला जाएगा. न जाने कितने चले गए. आगे भी ऐसा होगा.
जवाब देंहटाएंहम तो आपकी बात से सहमत भी हैं और आपके साथ भी.
बहुत सही मुद्दा. ब्लौगर्स भी अब लेखन से ज़्यादा राजनीति में रुचि लेने लगे हैं क्या? एक्दम आपके साथ हैं.
जवाब देंहटाएंमुझे ये पोस्ट लिखते समय बिलकुल यही आशा थी.....और आप सबकी प्रतिक्रया देख कर यही लगा ....बात आप सबके मन में भी घर करे बैठी थी...मुझे यूँ तो ऐसी बातें लिखना ..कभी कभी अपनी सोच और सामर्थ्य को जाया करने जैसा लगता है ..मगर कई बार ये होता है की यदि समय पर इन बातों को सामने न लाया जाए तो ये हावी हो जाती हैं..और सारा माहौल खराब कर देती हैं ..जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहता था ..यकीनन आप भी नहीं चाहेंगे ,,..मुझे ख़ुशी है की आप मेरे साथ हैं...वैसे हिंदी ब्लॉग्गिंग की विशिष्टता और खूबियों को भी सामने रखूंगा ..मेरा विश्वास है की आईना दिखाने के बाद उनके पास मुंह चुराने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा .....आप सबका आभार
जवाब देंहटाएंमित्र हमें भी कुदा ही लिया आप ने टोपी बचाने के लिए कीचड़ में ,,, आखिर कुदाते भी क्यों न सम्मान बचाने की बात जो है,,, टोपी डूबी तो सम्मान डूबा,, हम रह रह सहेजते है (आखिर हिंदी ब्लॉग जगत हमारे सम्मान कि टोपी ही तो है जिसे हम कितने प्यार और सम्मान से सर पर लिए घूमते है पर क्या करे मित्र हर रोज कोई न कोई आकर बेइज्जत कर जाता है ,, हम फिर झाड़ते है और फिर लगा लेते है झाड़ पोछ कर ),,, रोज नई नई रचनाओं से इसे सजाते है ज्ञान बर्धक लेखो से सबारते है ,,, कोई आता है सीलन उधेड़ देता है कहता है सही नहीं सिली है कोई आकर मसल देता है क्रीज सही नहीं है और हद तो तब हो जाती है जब सर से उतार कर फेक देता है और कहता है लगाने कि तमीज नहीं अरे भाई बुराई करना तो आसान है कभी टोपी लगाईं भी है कभी सबारा भी है ,,, मै तो इन से यही प्रार्थना (प्रार्थना इसलिए कही मेरा नाम लेकर टोपी फिर ना उतार दे डर जो है ) करूँगा अरे भाई छोडो ये सब अगर सच में ब्लोगिग कीकिसी चीज को लेकर तुमारे दिल में दर्द है तो खुद एक मिशाल बन कर दिखाओ जो कुछ भी कर रहे है उनकी टांग ना खिचो (पर वो मानेगे नहीं चिल्लाने की आदत जो है ) हमारे गाव में लड़के कुछ कहते थे यैसे लोगो के लिए
जवाब देंहटाएंइन पर चिल्लाये की उन पर चिल्लाये
आकर चिल्लाये की जाकर चिल्लाये ,,
हम तो केवल चिलम चिल्ला है,,
भूखे चिल्लाये या खाकर चिल्लाये ,,
सो भाई चिल्लाने आगे बढ़ कर भी कुछ कर लो
सादर
प्रवीण पथिक