शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

दिस इज रोड राजनीति ,माई डीयर !

मुझे पता है कि , आप और हम इस राजनीति शब्द से इतने उकता चुके हैं कि अब तो इसे सुनने का मन भी नहीं करता, लेकिन हुजूर क्या करें अब तो अगले चुनाव तक यही शब्द सुनने और सुनाने को मिलता रहेगा। आप चाहे आँख और कान बंद करे , खिड़की, दरवाजे, सब कुछ बंद कर लें, पता नहीं कहाँ कहाँ से ये शब्द आपके सामने निकल कर आ जायेगा, खैर अब जब झेलना ही है तो झेलिये,........

अभी हाल ही में पता चला कि भारत ने अफगानिस्तान में २०० किलोमीटर की लम्बी सड़क बन कर प्रधानमंत्री के हवाले कर दी , मतलब उनके राष्ट्र के सुपुर्द कर दी। लीजिये मैंने कोई मजाक की बात थोड़े की है जो आप मुस्कुराने लगे, बिल्कुल सौ प्रतिशत सच्ची बात कही है। दरअसल इसके पीछे बहुत उच्च स्तर की राजनीति चल रही थी जिसका पता हमने अपने विश्वस्त सूत्रों से लगा लिया। यहाँ अपने देश में अव्वल तो सड़क बनाने का काम बिल्कुल बंद हो चुका है, यहाँ तो मेट्रो और बड़े बड़े फ्लाई ओवर बन रहे हैं, जिसे अपने देश की ठेकेदार और इंजिनियर नहीं बल्कि जापान, फ्रांस, जर्मनी आदि की कंपनी और उनकी मशीनें बना रही हैं। यहाँ तो जो सड़कें अंग्रेजों ने बनाई थी, अपने ठेकेदारों को खाने कमाने के लिए उन्ही से इतना मिल जाता है कि इससे अलग सोचने और करने की फुर्सत कहाँ सब तरफ़ चेपी मारने का काम चल रहा है, कहीं गड्ढा ख़ुद रहा है तो कहीं गड्ढा भरा जा रहा है, कभी टेलीफोन की तारें बिछ रही हैं, तो कहीं पानी की पाईप लाइन तो कहीं सीवर लाइन।

ऐसी स्थिति में ठेकेदारों की नयी नस्ल के लिए कम काज ढूँढना बड़ा ही मुश्किल हो गया। इसी समस्या पर जब विचार विमर्श किया गया, जाहिर है कि ऐसे विचार विमर्श हम अपने सबसे बड़े शुभ चिन्तक अमेरिका से ही करते हैं, तो उन्होंने बताया कि अजी कौन सी समस्या है, हमने इराक़ और अफगानिस्तान की सारी सड़कें, गली मोहल्ले तोड़ फोड़ दिए हैं, आप अपने सारे टैलेंट को वहां भेजें। हमने भी फैसला किया कि इराक़ दूर है सो अफगानिस्तान से ही शुरुआत की गयी। वैसे इससे अलग एक राजनीतिज्ञ ने भारत के इस कदम को बिल्कुल अलग दृष्टिकोण से देखते हुए बताया कि , इससे भारत और अफगानिस्तान के बीच करीबी बढ़ जायेगी। जब भी वे इस सड़क पर बने सैकड़ों गड्ढों को देखेंगे तो उन्हें भारत की सड़कों और भारत की याद आयेगी। धीरे धीरे हम उन्हें सड़क का असली उपयोग, यानि सड़कों पर धरना-प्रदर्शन, आन्दोलन, बंद , जाम वैगेरह के बारे में भी प्रशिखन देंगे।
हमारे ज्यादा पूछने पर वे झल्ला उठे और कहने लगे, एक तो हम इस मंदी में रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं, वो भी समाज सेवा के तडके के साथ आप उस पर भी हामी पर तोहमत लगा रहे हैं, अजी समझा कीजिये, दिस इस रोड राजनीति , माई डीयर.

4 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला