गुरुवार, 29 जनवरी 2009
चिट्ठे ही नहीं , चिट्ठी भी ..............
हाँ आज बात करते हैं चिट्ठियों की , मुझे मालूम है की आजकल के जमाने में यदि कोई चिट्ठी की बात कर रहा हो तो उसे लोग किसी भी अजूबे की तरह ही देखेंगे। लेकिन यकीन मानिए कम से कम भारत में अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों से चिट्ठी बिल्कुल विलुप्त नहीं हुई है, अलबत्ता फोन, मोबाईल के आने से मरणासन्न जरूर हो गयी है। और मेरे जैसे कुछ लोगों की जिद और आदत के कारण ही शायद आज डाक घर का सम्मान बिक भी रहा है, अन्यथा उन्हें भी तो इसी वजह से पता नहीं कौन कौन से नए काम दिए जा रहे हैं ? खैर मुझे जैसे और भी हैं अभी, वैसे भी चूँकि मैं विभिन्न रेडियो प्रसारणों का नियमित श्रोता हूँ और जाहिर तौर पर उन्हें लिखता भी रहता हूँ इसलिए मैं तो अभी भी कम से कम चालीस पचास पोस्टकार्ड ही एक महीने में लिख डालता हूँ।
मगर मैं आज बात उन पत्रों की भी नहीं कर रहा, आज मैं बात कर रहा हूँ उन पत्रों की जिन्हें आम तौर पर संपादकों के नाम पत्र कहा जाता है। पत्रकारिता की पढाई के दौरान शुरू हुए इस काम को पहले शौक की तरह लिया था, बाद में ये आदत बन गयी, वो भी ऐसी की अभी तक नहीं छोटी। अब मजबूरी में उन पत्रों में चिट्ठी लिखना छोड़ दिया है जिनमें मेरे आलेख छपते हैं। मगर आज ये ख़ास बात उन सबके लिए लिख रहा हूँ जिन्हें लिखने से प्रेम है, जरूर लिखा करें, जो भी मन करे। अब देखिये न मुझे बैठे बिठाए, पहले दैनिक जागरण से फ़िर दैनिक हिन्दुस्तान से क्रमशः एक हज़ार , और पन्द्रह सौ का पुरूस्कार मिला। यकीन मानिए ये उन मेहंतानों से बिल्कुल ही भिन्न और ख़ास है जो मुझे अपने आलेखों के लिए मिलते हैं।
तो कहिये क्या ख्याल है आपका पत्र लिखने के बारे में......
वैसे जो भी ये चाहें की उन्हें भी कोई चिठ्ठी लिखे तो बेझिझक अपना पता छोडें, यकीन रखें कम से कम एक पत्र तो मेरे जरूर मिलेगा, यदि मुझे लिखना चाहें, तो भी अपना पता दूंगा। और हाँ , आप शुरू तो करें , कैसा लगा ये आप ख़ुद मुझे बताएँगे.....
आपने पुरस्कारों की बात छेड कर चिट्ठी के प्रति लगाव बढा दिया । अब ध्यान रखेंगे । वैसे भी महान लोगों के लिखे पोस्टकार्ड संग्र्हालयों की शोभा बढाने में मददगार होते हैं । क्या पता कल हमारे- आपके लिखे पत्र भी किसी संग्रहालय की धरोहर बन जायें
जवाब देंहटाएंठीक कहा आपने. एक अरसा हो गया मुझे चिट्ठी लिखे.
जवाब देंहटाएंआजा तुझको पुकारे मेरे गीत रे...इसे सुनना चाहते हैं: दिल्ली से अजय कुमार झा....अब समझा..वो आप हो!! :)
जवाब देंहटाएंवैसे वाकई चिट्ठी लिखे एक अरसा बीता..और ईमेल में वो आत्मियता और इन्तजार का मजा कहाँ.
बहुत ही अच्छी बात है सराहनीय
जवाब देंहटाएंchitthhi likhne mein alag maza hai.. hamne bhi bahut likhi hain..
जवाब देंहटाएंभैया हमको चिट्ठी लिखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता !
जवाब देंहटाएंचिठ्ठी तो लिखे हुए ज़माना हो गया है ।चिठ्ठा तो वास्तव में नकारत्मक शब्द लगता है ।चिठ्ठे से अच्छा तो ब्लॉग लिखे। चिठ्ठी में तो बहुत मिठास और अपनापन लगता है ।
जवाब देंहटाएंबधाई।
जवाब देंहटाएंअपने डाकपते को नेट पर सार्वजनिक करना एक सुरक्षित कदम कतई नहीं है. थोड़ा सावधानी बरतें।
आप इतनी चिट्ठियाँ लिख जाते हैं, अच्छा लगा सुनकर्।
जवाब देंहटाएंaap sabne meri chhotee see chitthi ko padh kar itne saare uttar diye maja aa gaya, aur masijivi bhai aapkee naseehat kaa khyaal rakhungaa.padhne aur saraahne ke liye dhanyavaad.
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