शनिवार, 31 जनवरी 2009

अमा, सुना है की प्रधानमंत्री के लिए मेरे नाम की भी चर्चा है

भारत के सच्चे और पुराने , मजबूत , और टिकाऊ, लोकतंत्र पर मुझे इसीलिये तो अटूट विश्वास है, और जब भी मेरा विश्वास डगमगाने को होता है कोई न कोई ऐसी बात हो जाती है की विश्वास बिल्कुल कुल्फी की तरह जम जाता है। देखिये न, ;पिछली बार ही चारों तरफ़ शोर मच गया था की इस बार तो लगता है की प्रधानमंत्री अपने भारत के मूल का नहीं बन पायेगा, और देखते देखते सहारे मूल शूल को पीछे छोड़ते हुए अपने शरीफ से पापा जी , गणित का हिसाब किताब देखते देखते, प्रधानमंत्री बन गए। अभी तो चुनाव की तैयारी पूरी तरह शुरू भी नहीं हुई है, और अभी से अगली सरकार और प्रधानमंत्री के नाम के बारे में चर्चा- परिचर्चा, शुरू हो गयी है। मैं तो इस सबसे बेखबर बैठा था की किसी मित्र ने बताया की सुना है इस बार हमारे नाम की भी चर्चा है प्रधानमंत्री के पद के लिए। लीजिये आपको भी विश्वास नहीं हो रहा है न, अजी यही तो लोकतंत्र की ताकत और चमत्कार है। देखिये मैं समझाता हूँ की दरअसल हुआ क्या होगा, या की लोग ऐसा क्यों सोच रहे हैं।

राजनीति में बढ़ते खतरे को देखते हुए, और अपने परिवार के इतिहास को देखते हुए, सोनिया जी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है की वे राहुल और ;प्रियंका में से किसी को इस संकट भरे पद पर नहीं बैठा सकती, ख़ुद वे बैठ नहीं सकती, चाहे इटली के पिज्जे की कसम खा कर भी हिन्दुस्तानी क्यों न बन जायें, अपने पापा जी, का स्वास्थय भी यही कह रहा है की अब वे रिटायरमेंट ले लें। ऐसे में जरूर उन्हें किसी न किसी नए चेहरे की तलाश होगी, हाँ हाँ मुझे पता है की आप मेरी तस्वीर देख कर यही सोच रहे होंगे की मैं तो किसी एंगल से नया चेहरा नहीं लगता, अजी आप लोगों के लिए न सही, उनके लिए तो हूँ ही.जब से दोस्ताना पिक्चर को लोगों ने पसंद कर लिया है तब से ही सबका ये विश्वास हो गया है की किसी भी नए चेहरे से राहुल गांधी को एडजस्ट करेने में कोई कठिनाई नहीं होगी। फ़िर मेरे नाम पर किसी को असहमति भी तो नहीं होगी, क्योंकि नाम ही कितने लोग जानते हैं मेरा?
ये भी हो सकता है की , सबने सोचा हो की एक कैंदिदैत , ब्लॉगजगत से भी होना चाहिए, तो वैसी स्थिति में भी मेरा ही नाम आगे आया होगा, क्योंकि उन्हें लगा होगा की जो बन्दा एक साल में हिन्दी में टिप्पणी करना नहीं सीख पाया, किसी का मजाक नहीं उड़ा सकता है, आलोचना तो दूर रही, तो वो राजनीति की दांव पेंच सीख कर हमें धोखा कैसे दे सकता है, वैसे भी अन्य सभी ब्लॉगर बिल्कुल गंभीर होकर ब्लॉग्गिंग कर रहे हैं, एक यही वेल्ला , कुछ भी लिखता रहता है॥

ये भी हो सकता है की मेरी काबिलियत से जलने वालों ने ये सोच कर मेरा नाम उछल दिया है की चलो राजनीति के साथ इसका नाम जोड़ देंगे तो अपने आप ही बदनाम हो जायेगा, मगर उन्हें क्या पता की मैं कौन सा मानने वाला हूँ, मैं तो साफ़ इनकार कर दूंगा...........

3 टिप्‍पणियां:

  1. इनकार करने से नहीं चलेगा !

    अबकी बार तो आपको पीएम बनना ही होगा जी :)

    जवाब देंहटाएं
  2. विवेक जी के कहने का आशय है कि आप उनका नाम प्रस्तावित कर दें.......... मैं तो रात ८ के बाद पीएम से कम होता ही नहीं..

    जवाब देंहटाएं
  3. haan sir ab to main bhee soch hee raha hoon ki ban hee jaaun, bataiye, jab har kshetra se log aa rahe hain to main bhee aa hee jaataa hoon.

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला