मंगलवार, 16 सितंबर 2014

जयपुर भ्रमण , दूसरा दिन ..किलों और कानन के नाम (जयपुर यात्रा संस्मरण -III)

इन पिछली दो पोस्टों पोस्ट नंबर एक , और पोस्ट नंबर दो , में आप पढ चुके हैं कि अनुज द्वारा अचानक ही तय किए गय कार्यक्रम के अनुसार हम जयपुर प्रवास पर थे । पहले दिन की सैर में , बिडला मंदिर , मोती डूंगरी वाले गणेश मंदिर , राजमंदिर सिनेमा हॉल , अलबर्ट म्युज़ियम तथा अक्षरधाम मंदिर देख घूम कर सबका मन आनंदित था ।

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अगले दिन कार्यक्रम बना सभी महलों की ओर कूच करने का , गर्मी के तेवर देखते हुए निर्णय हुआ कि तडके छ; बजे ही घर से निकला जाए ताकि चढाई चढते हुए बच्चे परेशान न हों , मगर अनुज के मित्र और हमें  जयपुर घुमाने की जिम्मेदारी उठाने वाले मित्र मिंटू जी जे बताया कि कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि किले में प्रवेश का समय ही दस बजे का है । खैर अगली सुबह सबसे पहले जयपुर के हवामहल के पास सवारी पहुंची ।सडक के दूसरी ओर भाग कर हवामहल को कैमरे में कैद करने के अतिरिक्त थोडी देर उसे निहार कर आगे बढ लिया गया ।

हवामहल , जयपुर
इसके बाद जयपुर से बाहर निकलते ही आमेर जाने की ओर वाले रास्ते पर दाईं ओर बहुत बडी सी झील और उसमें स्थित जलमहल दिखाई दिया । बहुत ही मनोरम दृश्य लग रहा था । मिंटू जी ने सूचित किया कि , पिछली सरकार ने इस टूरिस्ट स्पॉट के रूप में अपेक्षित रखरखाव आदि का समुचित ध्यान नहीं रखा और प्रशासनिक लापरवाही और उदासीनता के कारण इसकी रौनक क्षीण पड गई । अब नई सरकार ने आते ही काम शुरू कर दिया है ।
जलमहल को देखने जाने के लिए सडक के किनारे बनी हुई हरित पट्टी


पार्श्व में जलमहल और इससे पहले का ये भवन , छत पर बैठे कबूतर , मनोरम छटा बिखेर रहे थे

जलमहल

परंपरा के अनुसार वहां उपस्थित पर्यटकों द्वारा आटे की लोई , ब्रेड के टुकडे आदि को उस जल में उछाल कर छोडने के बाद मछलियों के झुंड का उस खाने पर झपटना और छप छप ..बच्चे उसी को निभाते हुए
लगभग एक घंटे तक यहां उधम मचाने के बाद , सब निकल पडे आमेर के किले की ओर ।

आमेर का किला , शिलापट्ट

बेहद खूबसूरती और शिल्प से बना हुआ आमेर का किला इसमें स्थित दिलाराम बाघ , माता शिला देवी का मंदिर , था विशाल प्रांगण कुल मिलाकर एक गौरवपूर्ण स्थान का एहसास कराता है । किले और उससे जुडे अनेकों किस्से हमें मिंटू जी रास्ते भर सुनाते रहे

दिलाराम बाघ , आमेर का किला


बाग का सुंदर दृश्य



किले के साथ ही मौजूद झील

ऊपर दिखता आमेर का किला

ऊपर दिखता आमेर का महल या किला

बाग के घासों की देखभाल करता स्थानीय कर्मचारी

किले की चढाई शुरू कर दी गई

ऊपर से दिखता नीचे का दृश्य

खूबसूरत नज़ारा

रास्ते में हाथी पर बैठे हुए विदेशी पर्यटक भी मिले

ओह बहुत चढाई हो गई , मुख्य द्वार पर रखे तोप के पास ही सुस्ताया जाए

पत्थरों के फ़र्श वाला विशाल प्रांगण

अंदर की चहल पहल

आमेर का किला , भीतर का दृश्य

शिला माता का मंदिर , ऊपर की ओर जाती सीढियां

किले की बुर्ज़ से ली गई एक फ़ोटो



किले के पार्श्व से ली गई एक फ़ोटो ..देखिए क्या सौंदर्य है ...


अरे रुकिए रुकिए , आज ही इसी पोस्ट में ही सब घूम फ़िर लेंगे तो सब भागमभाग और गडबडझाला हो जाएगी , आमेर का किला , शिला माता का मंदिर और बुर्ज तथा बाग देखते देखते दो घंटे और बीत चुके थे और धूप काफ़ी तेज़ हो चली थी , अनुज संजय अपनी मोटर साइकिल पर अपनी धर्मपत्नी के साथ हमसे किले के नीचे आ मिले थे और हम सब चल पडे थे अब विश्व की सबसे बडी तोप और जयगढ नाहरगढ के किले को करीब से देखने जानने के लिए ...





4 टिप्‍पणियां:

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला