रविवार, 7 सितंबर 2014

डबल डैकर ट्रेन और गुलाबी नगरी का पहला दिन (जयपुर यात्रा संस्मरण -II)


दिल्ली से जयपुर जाने का कार्यक्रम ज्यों ही बना तो अनुज ने स्वाभाविक रूप से नई नवेली डबल डैकर ट्रेन का चुनाव किया । मैं अपने बचपन में पुणे से मुंबई ऐसी ही एक डबल डैकर ट्रेन में बैठ चुका था , मगर निश्चित रूप से वो इतनी शानदार नहीं थी । गोलू और बुलबुल रेल के उस डब्बे में ही दो और अन्य बच्चों को साथी बनाया और फ़िर पूरे रास्ते बच्चे खेलते कूदते , कब सफ़र कट गया पता ही नहीं चला ।


दिल्ली(सराय रोहिल्ला स्टेशन से ) जयपुर ,जाने वाली डबल डैकर

प्लेटफ़ार्म पर प्रतीक्षारत गोलू बुलबुल एंड मम्मी

प्लेटफ़ार्म पर रवानगी के लिए तैयार डबल डैकर ट्रेन

सीट पर बैठते ही खुराफ़ात शुरू , अरे ये क्या है देखूं तो ....ओह ट्रे है :)





देखूं  और भी कुछ है क्या

मम्मा आप अपने पर्स में से क्या निकाल रहे हो
रात्रि दस बजे जयपुर स्टेशन से सीधे उसके निवास स्थान , पवनपुत्र कालोनी , करनी पैलेस की ओर हम चल पडे । इस बीच एक भारी गफ़लत ये हुई कि एक बैग जिसमें कुछ कपडे व सामान था , घर पर सामान उतारते हुए भूलवश ऑटो में ही छूट गया और ऑटो का नंबर नहीं नोट कर सकने का खामियाज़ा ये हुआ कि अंतत: कोशिशों के बाद भी वो ऑटो और बैग नहीं मिल पाए ।

खैर अगली सुबह ही कार्यक्रम के अनुसार सबसे पहले बिडला मंदिर की ओर रुख किया गया । हमें जयपुर भ्रमण कराने के लिए अनुज ने सारी जिम्मेदारी वहां के एक मित्र मिंटू जी पर सौंप दिया इस निर्देश के साथ कि वो भी हमसे आ मिलेंगे ।

साफ़ सुथरे शांत इस शहर की एक खूबसूरत सी लाल बत्ती
ऊपर टीले पर स्थापित भव्य बिडला मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार

श्वेत संगमरमर के पत्थरों से निर्मित बिडला मंदिर , जयपुर
बिडला मंदिर से निकले तो आज्ञा हुई कि पास में ही स्थित अत्यंत प्राचीन गणेश मंदिर की ओर जाना है । अदभुत प्रतिमा और छटा बिखेरता गणेश मंदिर

गणेश मंदिर , जयपुर
इसके पास ही स्थित थे दो और दर्शनीय स्थल । पहला था संग्रहालय "एलबर्ट हॉल " और दूसरा था मनोरम सिनेमा हॉल " राज मंदिर " ॥..राज मंदिर में " हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया" लगे होने की खबर के बाद , अनुज को आदेश दिया गया कि वो टिकट लेकर वहां पहुंचे और यहां हम सब , अनुज का परिवार सहित , को संग्रहायल देखते हुए राज़मंदिर पहुंच जाएंगे ।

अलबर्ट हॉल , जयपुर

अलबर्ट हॉल , मुख्य सूचना पट्ट



प्राचीन युग की चादरों , कालीनों को देखते आयुष जी अपनी मम्मी के साथ , बुलबुल पार्श्व में मस्ती करते हुए

प्रदरशन हेतु रखे गए प्राचीन अस्त्र शस्त्र

प्राचीन कालीन शिल्प


मिस्र की ममी कला

इसके पश्चात रुख किया गया , जयपुर के आलीशन सिनेमा हॉल "राज़ मंदिर" की ओर , बाहर से किसी भी सिनेमा थियेटर की तरह साधारण सा दिखने वाला ये सिनेमा , इसकी आंतरिक साज़ सज़्ज़ा , कैफ़टेरिया , बैठने की व्यवस्था , दीवारों पर किया गया अदभुत काम , रौशनी ,  झूमर , छत आदि सब कुछ सम्मोहित करने वाला है ।

राज़मंदिर का मुख्य द्वार

अंदर हॉल के ठीक बीचों बीच रखी  हई ये पुष्प संचिका और उसके ठीक नीचे दिग्गज अभिनेता, निर्देशकों के उद्गार


मनमोहित और  चकित करने वाली आंतरिक साज़ सज़्ज़ा

सलीकेदार सजावट
रौशनी में चमकता हुआ दर्शक लाउंज़
शोकेस में कुछ विशेष फ़िल्मों से जुडी यादों को सहेज़ कर रखा गया है


मध्यांतर में चाय कॉफ़ी का आनंद लेते दर्शक





सिनेमाहॉल की  बेहद खूबसूरत छत


इसके बाद थकेमांदे सीधा अनुज के निवास स्थान का रुख किया गया । दोपहर के विश्राम के बाद कार्यक्रम बना निकट  ही स्थित "अक्षरधाम मंदिर" को देखने का । सो सारी सवारियां तैयार होकर वहां के लिए चल दीं । क्या अदभुत छटा बिखेर रहा था अक्षरधाम मंदिर । 














अक्षरधाम मंदिर , जयपुर

"विश वैल " यानि इच्छा कूप में सिक्के उछालते हुए बटालियन के सारे लोग


वहीं साथ ही अहाते में स्थित रेस्त्रां में  मीठी लस्सी का आनंद उठाने के बाद बच्चे काफ़ी देर तक मंदिर के उद्दान में कुलांचे भरते रहे ।....रात नौ बजे तक पुन: निवास स्थान की ओर वापसी ......॥

अगली पोस्ट में चलेंगे घूमने , हवामहल , जलमहल , रायगढ , जयगढ , और जाने कहां कहां .............आप चलेंगे न

12 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चित्र और यात्रा वृतांत.....

    जयपुर के दर्शनीय स्थल सच में मनमोहक हैं ....

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  2. अपने शहर को दूसरों के माध्यम से देखना अधिक लुभाता है !

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  3. बहुत दिनों बाद आपको पढ़ रहा हूँ, बढ़िया रिपोर्ट। शुभकामनायें !

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    1. हां अर्से से एक मुलाकात भी लंबित है अपनी , देखिए कब संयोग बनता है

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  4. राजस्थान प्रसिद्ध है अपने किलों के लिये। फोटो पसंद आई है सुन्दर तस्वीरें.

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  5. जब से दिल्‍ली-जयपुर डबल डेकर चालू हुई है, मैं भी इसमें सफर करने की सोच रहा हूँ। अब तक मौका नहीं लग पाया। लेकिन आपकी इस पोस्‍ट को पढ़कर रेल यात्रा भी हो गई और जयपुर दर्शन भी।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला