मंगलवार, 16 नवंबर 2010

दिल्ली ब्लॉगर संगोष्टी एवं विमर्श की आखिरी रिपोर्ट ..उडनतश्तरी जी उवाच ,,,कुछ दिलचस्प बातें ....now jha ji ..reported all sir ..




कल की इस पोस्ट पर आप सब पढ ही चुके हैं कि किस तरह से बालेन्दु दधीच जी ने , अपने आंकडों और सर्वेक्षण रिपोर्टों के माध्यम से बताया कि , वर्ष २०१० हिंदी ब्लॉगिंग की प्रगति के लिहाज़ से सबसे बुरा वर्ष रहा है । पिछली पोस्ट में डॉ. अमर कुमार जी ने जानना चाहा कि क्या उन कारणों की भी चर्चा की गई जिनके कारण ये परिणाम निकल कर सामने आए । तो जहां तक मुझे याद है कि श्री बालेन्दु दधीच जी ने बताया था कि ऐसा नहीं है कि दुर्दशा सिर्फ़ हिंदी ब्लॉगिंग की ही हुई है । उन्होंने खुलासा करते हुए बताया कि हाल हीं सबसे बडे ब्लॉग एग्रीगेटर ने एक सर्वेक्षण किया और पाया कि लगभग बीस करोड ब्लॉग्स में से सिर्फ़ पचहत्तर लाख ही ऐसे ब्लॉगस थे जिन्हें पिछले चार महीने में अपडेट किया गया था । और इसीसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि लोगों का ब्लॉग लेखन पठन के प्रति रुझान कम हुआ था । इसका दूसरा कारण बताया गया कि पिछले एक वर्ष के दौरान जितने आननफ़ानन में ब्लॉग बने सामग्री के नाम पर उनकें मौलिकता और जिसे कंटेट यानि विषय वस्तु कहते हैं , वो अधिकांशत: कूडा कचरे की तरह फ़ैला । आम आदमी जब अंतर्जाल पर कुछ भी तलाशने की कोशिश करता है तो उसे पहले वो कूडा कचरा ही ऊपर तैरता हुआ मिल जाता है । इसी क्रम में उन्होंने जिक्र किया कि किस तरह से पिछले साल हिंदी ब्लॉगर्स ने अपना सबसे लोकप्रिय एग्रीगेटर खो दिया , उन्होंने सिरिल जी एवं मैथिली जी से इस बात पर विमर्श का हवाला देते हुअ बताया कि निकट भविष्य में ब्लॉगवाणी के वापस लौटने की कोई उम्मीद नहीं है ।


बाद में और बहुत बाद में आने वालों में से डॉ. टी एस दराल जी ,एग्रीगेटर ब्लॉगप्रहरी के संचालक श्री कनिष्क कश्यप जी , और भाई मयंक सक्सेना जी रहे जो ट्रैफ़िक जाम में फ़ंसने के कारण समय पर नहीं पहुंच सके । डॉ टी एस दराल ने बडी ही दिलचस्प बातें साझा करते हुए बताया कि किस तरह से बार बार अशोक चक्रधर जी से संयोग भरी मुलाकातों ने उन्हें ब्लॉग की ओर मोड दिया । उन्होंने बताया कि वे , अपने क्षेत्र यानि न्युक्लियर मेडिसिन , अपने शौक फ़ोटोग्राफ़ी और सामाजिक सरोकार के मुद्दों को लेकर ब्लॉगिंग करते हैं । बालेन्दु दधीच जी को कहीं निकलना था मगर उन्होंने मुख्य अतिथि श्री समीर लाल जी यानि उडनतश्तरी जी को सुन कर जाना ही ठीक समझा ।




समीर जी ने , अपनी पोस्टों के अनुरूप ही अपने मस्त और बिंदास अंदाज़ में अपनी बातों को रखा । उन्होंने बताया कि ब्लॉगिंग के उद्देश्यों में अपनी बातों को अपने मुद्दों को रखने के अलावा हिंदी की सेवा का एक स्वत: जुडा हुआ उद्देश्य जरूर ध्यान में रखा जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि चाहे मजबूर होकर ही सही आज अंतर्जाल , मोबाईल सेवाएं और ऐसी ही तकनीक से जुडी हुई सभी क्रियाओं में हिंदी के बढते हुए दखल को स्वीकार करना ही होगा । आज यदि आप किसी को दीवाली , जन्मदिन की मुबारकबाद हिंदी भाषा में दे रहे हैं तो ये हिंदी के बढती हुई ताकत के कारण ही है । उन्होंने एक दिलचस्प बात को साझा करते हुए कहा कि , उन्होंने कुछ समय पहले ही टिप्पणियों के साथ एक संदेश देना शुरू किया था कि सभी ब्लॉगर्स हिंदी हित को भी ध्यान में रखते हुए इसे आगे बढाने में अपना योगदान दें , किंतु उसे अपने ब्लॉग पर और भी अधिक टिप्पणियां बटोरने के लिए किया जाने वाला जैसा कुछ बताया गया । यहां उन्होंने बताया कि अक्सर ब्लॉगजगत में उनके और श्री अनूप शुक्ला में किसी तरह की प्रतिस्पर्धा और मनमुटाव को लेकर तरह तरह की बातें कही लिखा और पढी जाती हैं , मगर हकीकत ये है कि गद्य लेखन के मामले में अनूप शुक्ला ही उनके गुरू रहे हैं तो फ़िर गुरू से कैसी प्रतिस्पर्धा । आगे कहते हुए उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कुछ मनमुटाव होता भी है तो उसे गौण किया जाना चाहिए । उन्होंने कहा कि अक्सर होता ये है कि , कोई भी किसी को आरोपित या संबोधित करते हुए कोई पोस्ट लिखता है तो उसका लिंक सबको दे देता है सिवाय उसके जिसके बारे में वो लिखा गया है और यही बात ईशारा करती है कि मंशा साफ़ नहीं है । उन्होंने जोर देकर ये बात कही कि , अपने अनुभव से वे कह सकते हैं कि आज तक विवादास्पद लेखन की शैली अपना कर कोई बहुत दिनों तक ब्लॉगिंग नहीं कर सका है ।उन्होंने एक अन्य महत्वपूर्ण बात कही कि यदि कोई ये सोच कर हिंदी ब्लॉगिंग में आया है कि उससे वो कमाई कर लेगा तो ये फ़िलहाल दिवास्वप्न की तरह ही है । आज ब्लॉग्स की संख्या पचास हज़ार है तो भी और कल को दस लाख हो जाएगी तो भी और ये भी कि जो लोग टिप्पणी के आने न आने से परेशान होते हैं उन्हें ये बात समझनी चाहिए कि , जब उन्होंने पहली पोस्ट लिखी होती है तब तो उन्हें पता भी नहीं होता कि टिप्पणी होती क्या है तो फ़िर ऐसे में उसकी चिंता में क्या परेशान होना ।उन्होंने बात को बहुत ही दिलचस्प तरीके से समझाते हुए कहा कि जब आप कोई सिनेमा देखने जाते हैं तो तो क्या उस फ़िल्म के हीरो हीरोईन को धन्यवाद देने जाते हैं , याकि उसे ये अपेक्षा रहती है कि हर दर्शक उसे आकर धन्यवाद देगा । उन्होंने सबको धन्यवाद दिया और भविष्य के लिए सबको शुभकामनाएं दीं ।

इसके बाद श्री बालेन्दु दधीच और श्री प्रेम जनमेजय जी आज्ञा लेकर वहां से निकल पडे और शुरू हुआ विमर्श का छोटा सा दौर । यहां पर अनिल जोशी जी ने सबसे आग्रह किया कि साथी ब्लॉगर्स और वहां मौजूद मीडिया छात्र यदि समीर जी से कुछ पूछना चाहें तो पूछ सकते हैं । यहां पर दीपक बाबा जी ने समीर जी की बात पर कहा कि ऐसा नहीं है कि हिंदी ब्लॉगिंग से कमाई नहीं होती बल्कि इतने सारे मित्रों पाठकों का मिलना भी किसी कमाई से कम नहीं है इस पर समीर जी ने स्पष्ट किया कि उनका ईशारा आर्थिक यानि धनोपार्जन की ओर था । इसके बाद कुछ रोचक प्रश्नों की शुरूआत हुई । रचना जी ने समीर जी से जानना चाहा कि , आखिर उन्हें ये कैसे पता चल जाता है कि कोई नई पोस्ट लिखी गई है और वो हर जगह मौजूद होकर कैसे टिप्पणी कर पाते हैं । इस पर मैंने चुटकी लेते हुए कहा कि वे उडनतश्तरी हैं यानि एलियन ..ऊपर से ही देख भांप जाते हैं । मगर रचना जी ने इसे गंभीरतापूर्वक जब जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि चिट्ठाजगत से प्राप्त डाक में नए चिट्ठों की जानकारी मिलती है और वे उसी के माध्यम से पोस्टों तक पहुंच जाते हैं । रचना जी ने बात को आगे बढाते हुए प्रश्न किया कि आप दूसरों को एक नया चिट्ठा बनाए बनवाने का आग्रह करते हैं जबकि आप लोग खुद अपने घरों में अपनी पत्नियों का एक एक ब्लॉग क्यों नहीं बनवाते ? समीर भाई ने बिल्कुल स्पष्ट किया कि ब्लॉगिंग में आने लाने का आग्रह किसी से बलपूर्वक या अनिच्छा से नहीं लाया जा सकता है वही इसमें आएगा जिसकी इसमें रुचि होगी इसलिए जो श्रीमती जी लोग खुद ब्लॉगर्स के ब्लॉगिंग को इतना समय दिए जाने को लेकर परेशान रहती हैं वे भला क्योंकर ब्लॉगिंग में आएंगी । यहां मैंने हस्तक्षेप करते हुए बताया कि इसके लिए बेहतर तरीका ये है कि हम जहां भी संवाद कर रहे हैं , पत्र व्यवहार आदि कर रहे हैं , कहीं लिख पढ रहे हैं वहां पते के विकल्प के रूप में ब्लॉग्स्पॉट पते का उपयोग कर सकते हैं । मैंने उदाहरण देकर बताया कि समाचार पत्र में मेरे एक लेख पर मेरा यूआरएल देख कर एक पाठक का पत्र आया था कि ये ब्लॉग स्पॉट क्या बला है और फ़िर जिज्ञासावश जब उसने जानना चाहा तो मैंने उसे ब्लॉगिंग की जानकारी दी ।

इसके बाद मयंक भाई , अपनी कैमरामैन टीम के साथ जुट गए समीर जी का साक्षात्कार लेने के लिए

और बांकी सभी ब्लॉगर बंधु फ़िर वही । चाय की चुस्कियां ....अरे हां शायद मिसर जी ने जानना चाहा है कि क्या क्या था ...समोसे थे गर्मागर्म , चाय , बिस्कुट , और मीठा ....। इसी दौरान औपचारिक बातचीत चलती रही आपस में । रचना जी मुझ से शिकायत की कि मैं पोस्ट लेख को बोल्ड न किया करूं पढने में कठिनाई होती है और मैंने परिवर्तन कर भी दिया है ।

अब कुछ रोचक बातें जो मेरे साथ हुईं ।

भाई अरूण सी रॉय ने मेरा परिचय जानना चाहा और ये भी कि मेरे ब्लॉग का नाम क्या है , उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी मुझे पढा नहीं । अब ब्लॉग के बारे में क्या बताता ? मन ही मन कह रहा था कि जी बस समझिए कि दर्जन भर केले हैं ..और फ़िर बात बात में पता चला कि वे न सिर्फ़ मैथिल हैं बल्कि पडोसी ग्राम के हैं ।

संजू भाभी ने ये बात बार बार कही कि मैंने लुक बदल लिया है इसलिए वे मुझे पहचान नहीं पाईं और रही सही कसर तब पूरी हो गई जब मैंने सुनीता शानू जी को नमस्ते की और उन्होंने कहा कि वे मुझे पहचान नहीं पाईं और मैं कौन हूं । मुझे फ़िर से बताना पडा कि मैं अजय कुमार झा हूं और फ़रीदाबाद के ब्लॉगर सम्मेलन में मैं उनके साथ आधे घंटे तक बातचीत करता रहा था ।

इसके बाद भाई कनिष्क कश्यप जी ने बताया कि वे सिर्फ़ समीर जी के नाम के कारण और उनसे मुलाकात के बहाने ही आए हैं अन्यथा अपने एग्रीगेटर को लेकर वे काफ़ी व्यस्त थे । उन्होंने ब्लॉगप्रहरी को लेकर अपनी भविष्य की योजनाएं मुझ से साझा कीं ।

हाय हमारी ही फ़ोटुएं नहीं आईं , जो एकाध आईं झेलिए




मुझे रिपोर्ट लिखने का , और विशेषकर प्रेस रिलीज तैयार करने का जिम्मा सौंप दिया गया ...

तो बस अब ....इस संगोष्ठी में जो कुछ हुआ और जितना भी कम ज्यादा मुझे याद रहा वो आपके सामने रखने की कोशिश की मैंने ...जो भूला भटका .....माफ़ करिएगा मित्रों ...अब कल से फ़िर पंजाब यात्रा संस्मरण की ओर लौटूंगा ...जब तक कि रोहतक मिलन की यादों को रखने का समय न आ जाए .....

29 टिप्‍पणियां:

  1. हाय हमारी ही फ़ोटुएं नहीं आईं

    हम होते तब ना :-)

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  2. आज मैं ऊपर, आसमाँ नीचे :-0)

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  3. सब से पहले पाबला जी आपको देख बेहद ख़ुशी हुयी ! ;-)
    इस मीटिंग बस आप की ही कमी थी !
    क्यों 'आबला जी' सही कहे ना हम ?
    वैसे आपने रूप कुछ ज्यादा ही dashing रख रखा है इस लिए लोगो को दिक्कत हो रही है !
    अब हर कोई तो इतना स्मार्ट नहीं ना हो सकता है .... है ना !

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  4. आपने बढ़िया रिपोर्टिंग करी ...सब कुछ बढ़िया परोसा ! समीर लाल तो छा रहे हैं :-)

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  5. वाह जी बल्ले बल्ले.
    ये होता है पोस्ट पढ़ने का मज़ा, वहां न रहते हुए भी वहां हुआ जा सकता है.

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  6. पाबला जी ,
    आपकी कमी तो सचमुच ही बहुत खली सर

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  7. शिवम भाई,
    चढाइए ....चने के झाड पे :):):)

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  8. हां , काजल भाई ,
    मेरी कोशिश भी यही थी कि सब बातें आप तक पहुंचें

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  9. बढिया रिपोर्टिंग करदी झा जी ने, अब तो रोहतक का इंतजार रहेगा।

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  10. रोहतक का इंतज़ार तो मुझे भी हालांकि शायद अभी अपने जाने पहुंचने के कार्यक्रम में थोडी फ़ेरबदल की संभावना है

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  11. चना जी मुझ से शिकायत की कि मैं पोस्ट लेख को बोल्ड न किया करूं पढने में कठिनाई होती है और मैंने परिवर्तन कर भी दिया है ।

    agrh swikar karnae kaa shukriyaa
    laekh professional look dae rahaa haen bas aap sahii lagey post ki heading kae font bhi sahii kar lae taaki puri heading ek line mae dikhae

    hamey dhyaan daena hoga abhi bhi bahut sae log purane system par hi kaam kartey haen

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  12. जी एक बार फ़िर से शुक्रिया रचना जी ,
    मैं कोशिश करूंगा कि आपकी ये शिकायत भी दूर हो सके वैसे महिला ब्लॉगर्स से अपनी एक शिकायत मैं अभी कुछ देर में ब्लॉग बकबक पर प्रकाशित करूंगा । पुन: शुक्रिया

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  13. समीरलाल जी की एक बात मैं भी उठाना चाहूँगा कि विवादास्पद विषय उठा कर बहुत अधिक दिन तक ब्लॉगिंग नहीं की जा सकती है। हमें अपने अन्दर से श्रेष्ठ देना होगा, दूसरे के ऊपर लिखकर नहीं।
    व्यक्तिगत आरोपों से तो सदा ही बचा जाये।

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  14. ये हुई न कोई बात...और भईया आप तो एकदम डैशिंग लग रहे थे...मुझे तो लगता है की कहीं भाभी जी फिर से आप पे फ़िदा न हो गयीं हों :) :)

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  15. ITNI JALDI.....KHAIR KOI BAAT NAHI...
    JITTI HAI....'O' KAFI HAI......


    PRANAM.

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  16. ‘बांकी सभी ब्लॉगर बंधु फ़िर वही । चाय की चुस्कियां ...’
    हाय समीर जी, फंस गए ना इंटरव्यूव के व्यूव्ह में... चाय़,बिस्कुट से वंचित :)

    अच्छी रिपोर्टिंग के लिए बधाई॥

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  17. हाय हाय संजय भाई , अमां दो घंटे की बैठक की रपट क्या दो महीने तक लोगे यार ..बच्चे की जान लोगे का :) :)

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  18. अरे अभिषेक रे , जब ऊ जादे फ़िदा हो जाती हैं हम पर फ़िदायीन हमला कर देती हैं बे ....अबे दुनु टाईम हमही को बनाना पडता है यार उस दिन बे ..तब आउर का ..

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  19. इसे कहते हैं विस्तृत विवरण ...... कुछ भी नहीं छोड़ा......

    बढिया अजय भाई.

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  20. मानो या ना मानों,
    यह बिना लाग-लपेट के की गयी रिपोर्टिंग है ।
    पर मैं समीर-भाई से इस बिन्दु पर असहमत हूँ कि विवादास्पद विषयों से बचना चाहिये ।
    यह असहमति इसलिये क्योंकि ऎसे विवादास्पद विषयों पर विमर्श की काफ़ी सँभावनायें रहा करती है, साथ ही एक दूसरे की पीठ ठोकते रहने से ब्लॉगिंग की विधा अँधे कुँये में पड़ी रह जायेगी । अलबत्ता परस्पर सँवाद को सँग्राम की शक्ल देना हमारी कमजोरी को दर्शाता तो है, पर हमारी ज़रूरत विमर्श के जरिये नेट पर उपलब्ध सँदर्भों में अपनी जगह बनाना होना चाहिये, तभी ऎसे डाटाबेस तैयार होंगे, जो हिन्दी पट्टी की माँग को पूरा कर सकेंगे ।
    हिन्दी प्रसार के नाम पर शुरु की गयी ब्लॉगिंग को मैं बुकस्टॉल पर नित नयी टाइटिल की बढ़ती सँख्या से अलग करके नहीं देखता । जो प्रचुर मात्रा में अल्पजीवी बिकाऊ माल तैयार कर तो रहा है, पर वह उतनी ही तत्परता से रद्दी की ढेर में शामिल भी हो जाता है । यह एक दयनीय चिन्ताजनक स्थिति है, जो कि ब्लॉगिंग की बढ़ती मृत्युदर का कारण है ।
    हमें हिन्दी प्रसार, हिन्दी विकास और हिन्दी को उपयोगी सामग्री उपलब्धता के भरोसे के माध्यम के रूप में स्थापित करने की ज़रूरत में फ़र्क करना होगा ।

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  21. डॉ . साहब ,
    सर आपकी सारी बातों से सहमत । सिवाय एक बात से आपकी असहमति से , आपने शायद ध्यान नहीं दिया कि उडन जी ने विवाद वाली बात का जिक्र , वो उनके और अनूप शुक्ल जी को मुद्दा बना कर या उनके बीच किसी मनमुटाव को आधारित कर लिखी पढी जा रही बातों के लिए कही थीं और मेरे ख्याल से उस विमर्श से कुछ खास हासिल नहीं होता ।

    ओहो मतलब उनके अलावा जिन्हें इससे भी हासिल हो जाता है हा हा हा :) :) :)

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  22. सर जी आप तो हमेशा ही बहुत बढ़िया और विस्तृत रिपोर्ट लिखते हैं... इस बार ही की तरह...

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  23. हालांकि रिपोर्टिंग बढिया और विस्तृत थी फिर भी लग रहा है कि अभी यह श्रंखला चलती रहनी चाहिये।
    खैर आपने विराम लगा दिया, पंजाब संस्मरण में तो मजा आ ही रहा है। लिखियेगा आगे।
    उसके बाद रोहतक का नम्बर लगेगा।
    धन्यवाद

    प्रणाम

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  24. इसे कहते हैं विस्तृत रपट ।
    ऊपर का तामझाम ज़रा बाज़ू मे लगा दे .. पोस्ट तक पहुँचने मे समय लगता है ।

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  25. रिपोर्ट में लगभग वह सब मिल गया, जो वहां पहुंच न पाने के बावजूद जानने की इच्‍छा थी, धन्‍यवाद.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला