एक महीने में पांच बार पंजाब की यात्रा ...कभी कार, कभी रेल ..और कभी बस द्वारा ......मन में बसा वो महीना ...
पहले ही सोच लिया था कि अबकि बार यदि पंजाब जाना हुआ ......तो उस यात्रा को इन भविष्य के पन्नों पर जरूर अंकित कर दूंगा .........ताकि आज से पचास साल बाद .......जब फ़िर किसी ऐसी ही यात्रा पर निकलूंगा .....और एक ऐसी ही पोस्ट लिख रहा होंउगा ....तो खुद ही दोनों पोस्टों को पढ कर अलग अलग अनुभव ले सकूंगा और ...तब शायद ऐसी ही पोस्टें मुझे उस बुढापे में मुझे जवान करती रहें ................................... जैसा कि आप सबको इस पोस्ट में बताया था कि ...मुझे घूमने फ़िरने की इतनी आदत है कि ...ये भी नहीं कह सकता कि वो मेरा शौक है ......और साल में, एक दो नई जगहों पर मैं कैसे किन बहानों ..और कभी हादसों , तो कभी महफ़िलों के सहारे पहुंच जाता हूं ..........मगर ये खूबसूरत इत्तेफ़ाक मेरे साथ अक्सर ही होता है । इस बार जिंदगी के रूट मैप पर ........जिस जगह को माईल स्टोन के रूप में गाडा गया था वो था ..................पंजाब का जालंधर , होशियारपुर और अलावलपुर गांव.....हालांकि इन शहरों में मैं पिछले सालों जाता रहा हूं ....मगर इस बार का सफ़र ..कई मायनों में खास था .......॥
इस बार तय हुआ कि इस बार ये लगभग चार सौ किलोमीटर का सफ़र .....साले की नई नकोर खरीदी गए .....सैंट्रो कार द्वारा तय किया जाए .......बच्चे तो बच्चे ..बडे और बडियां ..भी इस विचार से इतने खुश दिखे कि......... उन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये वही महिलाएं हैं जिनके लिए अपने नियमित सीरीयलों से थोडी सी भी दूरी बडी हा जानमारक साबित होती है ॥
साले साहब भी हाईवे पर अपना हाथ आजमाने को बेकरार बैठे थे ....हां भई लंबी दूरी में एकदम चिल्ड एसी का मजा उठाने के साथ , गाडी की अन्य खूबियां .....भी आजमानी थी । तो तय ये हुआ कि सुबह तडके ही निकला जाए ताकि बाद में ....दिल्ली हरियाणा के सिंधु बार्डर पर लगने वाले जाम से बचा जा सके ......और रुकते टिकते भी ....दोपहर तक पहुंच जाया जा सके ।
अक्सर सुबह खासकर वो तडके सुबह वाली यात्रा से बहुत कोफ़्त सी रहती है ...नहीं खुद तो मैं खैर सुबह उठने वालों में से हूं ..मगर मुझे सबसे बुरा लगता है छोटे बच्चों को सुबह सुबह अधकचरी नींद में उठा उठा कर ...तैयार करना ......मगर इस बार बच्चे भी शायद कार से जाने के नाम पर खूब उत्साहित थे , पूरी गैंग तैयार थी । साले साहब गाडी बडी ही कुशलता से चला लेते हैं ...सो थोडी ही देर में हम उस चिल्ड कार मैं बैठे हुअ हवा से बातें करते हुअ ...कब सीमा पार निकले पता ही नहीं चला । दिल्ली की एक खासियत या बदखासियत कहिए , वो ये है कि , इसकी सीमा के पार निकलते ही ...आपको ऐसा लगेगा कि आपने ....एक सांसों का मिनरल घूंट भरा है ...........। इन दिनों भारत में यदि किसी निर्माण कार्य पर सरकार का ध्यान है तो वो सभी राजकीय , और राष्ट्रीय राजमार्ग को दुरूस्त करने पर जोरों पर ।
इन दिनों कोई सोमा इंट्ररप्राईजेज़ नाम की कंपनी ,,,दिल्ली से आगे पंजाब में कम से कम जालंधर या शायद अमृतसर तक सडक को छ: लेन में करने का काम कर रही है ....इसलिए पूरे रास्ते आपको डाईवर्जन मिलेंगे ,,।
मगर रास्ते के दोनों ओर फ़ैली लंबी हरी मखमली चादर न सिर्फ़ आखों को बल्कि मन की भीतर तक जो शीतलता पहुंचाती है , वो बिल्कुल उस फ़िल्टर की तरह काम करती है जब आप सिर्फ़ एक ही परत से, सब कुछ निर्मल स्वच्छ हो जाता है ....... ओह क्या पूरा सफ़र आज ही तय कर लेंगे .......एक दिन में इतना सफ़र ..........न ..कल चलते हैं न आगे
वाह अच्छा लगा ये सफर ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंये क्या, बीच में ही ब्रेक लगा दिया।
जवाब देंहटाएंकई बार इस रोड से यात्रा की, आज फिर से आपके साथ निकलना अच्छा लगा।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बढ़िया यात्रा विवरण |
जवाब देंहटाएंयात्रा सैंट्रो कार से हो रही है और चित्र सुजुकी वेगन आर कार का दिख रहा है
चिल्ड एसी में स्थिर मन का भटकाव, कुछ सुन्दर निकलना ही था।
जवाब देंहटाएंघूम रहे हैं आपके साथ... :) जल्द वाकई में घूमेंगे.
जवाब देंहटाएंशेखावत जी ने पुलिस वाले की तरह सही पकड़ा ।
जवाब देंहटाएंदिल्ली से बाहर निकलकर हमें भी हमेशा बड़ा अच्छा लगता है ।
जी टी रोड पहले बहुत खूबसूरत होती थी ।
अरे! अचानक ही गाड़ी रोक दी?
जवाब देंहटाएंइतना लम्बा सफ़र... तो .... साले साहब की नई कार को चकले लगाने पर तुले हुए हैं जनाब :)
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल दुरूस्त फ़रमा रहे हैं रतन जी ..ये नई वाली मौडल की वैगन आर है ..मुझे भी देव झा जी ने बज पर बताया ..अब जो भी है इसकी फ़ोटो चेप दी है...ज्यादा कंफ़र्म करना है तो आ जाईये ....चलते हैं फ़िर से बैठ कर इसमें ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा यह सफर संस्मरण ..
जवाब देंहटाएंपंजाब की तो बात ही कुछ और है! अपन भी कई बार गए हैं, फिर से जाने की तमन्ना जाग उठी है.
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनायें हम तक प्रेम, स्नेह में लिपट पर पहुँचीं.
मित्रों की शुभकामनायें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं.
आभार
आपकी टिपण्णी और उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और शानदार रूप से आपने यात्रा का विवरण किया है! बहुत बढ़िया लगा ! बेहतरीन प्रस्तुती!
बात तो आपने नई-नकोर सैंट्रो से शुरू की पर फ़ोटुएं सारी वैगन-आर की दे दीं. क्यों (?) सैंट्रों से ऐसी भी क्या नाराज़गी हो गई...
जवाब देंहटाएंओह. मुझे जवाब, टिप्पणियां पढ़ने पर मिल भी गया..
जवाब देंहटाएंझा जी, आपने आज गुरदास मान का गाना याद करा दिया...
जवाब देंहटाएंअपणा पंजाब होवे...
घर दी शराब होवे,
मूली नाल गंडा होवे,
बाण वाला मंजा होवे
हो मंजे उते बैठा जट ओए बणया नवाब होवे,
अपणा पंजाब होवे...
( गंडा-प्याज, बाण-रस्सी, मंजा-चारपाई, जट-जाट)
(यहां बस मंजे की जगह सैंट्रो या वैगन आर जो भी है, की सीट पर बैठे झा जी का तस्सुवर कर लीजिए...)
जय हिंद...
वाह सफर की शुरुआत मे ही मज़ा आ गया औअर एक सांसों का मिनरल घूंट भरा है ..ऐसा लगता है कि कविता जन्म ले रही है । ऐसे ही 100 साल तक यात्रा करते रहें शुभकामना ।
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा का विवरण तो एटीआर विमान की तरह निकला कि अन्दर घुसते ही समाप्त। अरे कुछ तो आगे बढ़ते। चलिए इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंतो फिर अजय भाई.......... क्या तय रहा ............गाडी सैंट्रो थी या वेगन आर ??
जवाब देंहटाएंआगे की कहानी का इंतज़ार है!
अजय भाई....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और शानदार रूप से आपने यात्रा का विवरण किया है! बहुत बढ़िया लगा ! बेहतरीन प्रस्तुती!