मुझे तो पता भी नहीं था कि आज मित्र दिवस है ......क्योंकि आजकल तो सबकुछ , मतलब अपने घर के दिन दिवस के अलावा ..सब कुछ वाया ...इस अंतर्जाल की दुनिया के ही पता चलता है ..। और पिछले दिनों की भारी ब्लॉगिंग ( जैसे भारी गोलीबारी होते है वैसी ही ) के परिणामस्वरूप उसके कुछ साईड इफ़्फ़ेक्ट ...भी पडे ....अरे यार पडते कैसे नहीं ......जब ब्लॉगवाणी (एग्रीगेटर) पर भी पड गया तो ..हम तो ठहरे एक ब्लॉगर । तो हुआ ये कि मुई इस गर्दन पर कुछ ऐसा असर पडा कि शतुर्मुग हो लिए भई अपन तो । ऊपर से रही सही कसर इस हमारे लैपटॉप ने पूरी कर दी । कमबख्त ने अंदर ही अंदर लगता है कि हमारी शतुर्मुर्गी गर्दन से कुछ डील कर ली थी .....तो कुल मिला कर कुछ दिनों में हाल ये हुआ कि ........या तो हमारी गर्दन अकडी रहती थी ..और जैसे ही उसकी अकडन कम होती ....ये कंप्यूटर अकड बैठता ..चलिए छोडिए । अब धीरे धीरे गाडी पटरी पर दोबारा आने लगी है । बस ऐसा समझिए कि ...........झाजी रिपोर्टिंग ऑन ड्यूटी सर ......।
तो मैं दोस्ती की बात कर रहा था ......। कहां से याद करूं ........तबसे शुरू करता हूं जब शायद ये दोस्ती का ज़हाज़ ......अरे फ़्रैंडशिप यार ...चलना शुरू भी नहीं हुआ था । वो दो भाई थे ..शायद जुडवां ही थे ..अनिल विनोद .....और दोनों ही अनुज संजय के सहपाठी थे ....हम दोनों भाईयों के साझा दोस्त थे । शायद लूडो , कैरम , बैडमिंटन और इन जैसे सभी खेलों के स्वाभाविक और अनिवार्य पार्टनर की उपयोगिता भी पूरी कर देती थी .....हमारी ये जोडी । पापा के ट्रांसफ़र के साथ ही ये जोडी टूट गई मगर आश्चर्यजनक रूप से हमें हमारी ये मित्र जोडी ......पिताजी की अगली पोस्टिंग पूना में भी मिली ...मगर वो बस एक सुखद संयोग था क्योंकि स्कूल में वे हमारे साथ नहीं थे । इसके बाद यदि सहपाठी के रूप में देखूं तो जो न भूल सकने वाले दोस्त मिले ...वो थे पटना के पास के शहर ....दानापुर में , जहां हम शायद पांच वर्षों तक रहे । अपने स्कूल के दिनों के सभी दोस्तों की सूची में से यदि सिर्फ़ चंद दोस्तों को अपने करीबी सूची में रखूं तो उनमें सबसे पहला नाम है सीमांत अरूण का ..। ये दोस्त भी ..बस स्कूल तक ही साथ रहा ...उसके बाद वो भी कहां और मैं भी कहां । मगर शायद ही कोई यकीन करे कि पूरे सत्रह साल के बाद ..मुझे वो दोस्त फ़िर मिला ....। जब ऑर्कुट की चर्चा पहली बार सुनी थी तो ..यही सुना था कि ..इसके सहारे लोग अपने बरसों पुराने दोस्त मिल चुके हैं .........बस यही सुनकर हमने भी हाथ पांव मारे .......। और हाथ मारना सफ़ल रहा ....अंदाजे से बढाया दोस्ती का हाथ ..........जब उधर से मिला तो वही पुराना सा ...अपना सा एक हाथ निकला । फ़िर तो उस दिन घंटो बतियाया उससे .....। आज भी उसे एक प्यारा सा संदेश भेजा है ............कमबख्त काम में इतना व्यस्त कि .........क्या कहूं ।
मगर गांव में बिताए कुछ सालों में जो दोस्त मिले .......वो अनमोल रहे ....अमिट रहे .....और अब तक साथ हैं .....खूब जम के कूट कुटौव्वल होती है .......लानत मलामत भी ...। शहर से गांव जब पहली बार पहुंचा तो ...पढाई लिखाई में यदि वो मुझ से दूर थे तो .क्या ...आम अमरूद और जामुन के पेड पर चढने की फ़ुल्लम फ़ुल ट्रेनिंग , तालाब पोखर ,नदी नाले में तैरने , पानी के अंदर गोते लगाने की ट्रेनिंग, कीर्तन मंडली में ढोल मंजीरे बजाने की ट्रेनिंग , भांग की ठंडई के बाद जोगीरा गाने की ट्रेनिंग , मछली , केकडे पकडने की ट्रेनिंग , भुट्टे भूनने , गन्ना चूसने से लेकर लिट्टी बनाने जैसे सभी दुर्लब कार्यों की ट्रेनिंग में वे मेरे द्रोण समान गुरू रहे । और ऐसे ही उनका घर रहा हमारा चौबिसिया घंटे वाला आश्रम ........बस पहुंच जाओ और काकी को जो भी मन हो कह दो ....चावल की मोटी रोटी .., हरी मिर्च के साथ , या फ़िर हरे छिलके वाले मूंग की चटनी , या तिलकोड का तरुआ ...या वो होंठ से जीभ चिपकने वाली चाय ...। सब के सब छोटे थे उम्र में मुझसे .....बिपिन , आमोद , संजीव , जयप्रकाश, गुलाब , । इनमें सबसे प्रिय ...बिपिन था मुझे और अब भी है । शादी बच्चे में ..सबमें मुझ से आगे ...शायद जिंदगी की दौड में भी । आज तीन तीन पुत्रियों का पिता है । जब काकी की आंखों में उस दिन चिंता देखी पोतियों की शादी की तो मेरे मुंह से निकल पडा कि , आप चिंता क्यों करती हो काकी , बेटियां इस गधे की अकेली थोडी हैं , मेरी भी हैं । बिपिन ने लाख छुपाया ..मगर उसकी आंखों के भीगे हुए कोर मुझे भी रुला गए थे । अभी कल ही तो फ़ोन आया था कि ," मैंने अपनी टैक्सी ले ली है यहां कलकत्ते में " । सोच ही रहा हूं कि अब कलकत्ता हो कर आऊं कभी अचानक उसे चौंका दूं
इन दोस्तों के बीच सबसे प्यारा , सबसे अच्छा और सबसे अज़ीज़ एक और शख्श रहा , हमेशा ही मेरे साथ रहा ,,,,,,,,,,,मेरा छोटा भाई संजय । पापी पेट की मजबूरियों ने , उसे जयपुर में और मुझे यहां दिल्ली में पटक दिया है । कुछ मतांतर के बावजूद , कुछ दुनियादारी के बावजूद ,वो मेरा मेरा दोस्त है .....मेरा प्यारा दोस्त ........मेरा अनुज ,,,,संजय ।
और अब जबकि पिछले सालों से अपना बहुत सारा वक्त यहां इस अंतर्जाल पर गुजार रहा हूं ....तो ऐसे में यदि उन दोस्तों का जिक्र न करूं ..जो अंतर्जाल से निकल कर ..मेरे अंतसमन तक समा चुके हैं ..तो फ़िर ये पोस्ट कुछ अधूरी सी ही रहेगी । मेरे बारे में मेरी श्रीमती जी अक्सर एक बात ताने के रूप में बार बार सुनाती हैं ..वो ये कि आप तो किसी से भी एक बार मिलो ..वो आपका दोस्त भी बन जाता है ........." ।अब मेरा फ़ंडा ये है कि ...जब रिश्ता कायम करने के लिए यदि दुश्मनी और दोस्ती ...दो ही विकल्प हैं तो फ़िर ...........दोस्ती ही सही । इस आभासी दुनिया में ......एक तो यार मुझे ये नहीं पता चलता कि ..ये आभासी दुनिया कैसे है भाई .........चलिए छोडिए इस बहस को ...........तो इस दुनिया में ...बी एस पाबला जी , अविनाश वाचस्पति जी ,राजीव तनेजा जी , अरविंद मिश्र जी , ताऊ जी , उडन जी , सतीश सक्सेना जी , ललित शर्मा जी , अनिल पुसदकर जी , प्रशांत ,काजल कुमार जी ,अभिषेक , स्तुति पांडे, संगीता स्वरूप , संगीता पुरी जी ,शिवम मिश्रा जी , महफ़ूज भाई , शिखा जी , अदा जी , खुशदीप भाई , दिनेश राय द्विवेदी जी , राज भाई , वंदना जी , निर्मला जी, अजित गुप्ता जी ,शरद कोकास जी , संजीव तिवारी जी ,भाई महेंद्र मिश्रा जी , मीनाक्षी जी ,अवधिया जी , गिरिजेश जी , सतीश पंचम जी , अनीता कुमार जी , इरफ़ान जी ,अनामिका जी , अभिषेक जी , आकांक्षा जी , रश्मि रविजा जी , और तमाम मित्र सभी तो हैं ही ...............
आख़िरी पैरे में मेरा नाम नहीं छपा !
जवाब देंहटाएंहा हा हा काजल भाई ......घुसेड दिया है बीच में चुपके से ............देखिए ...।हैप्पी दोस्ती डे ..
जवाब देंहटाएंहा हा हा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई :-))
अरे यार , याद नहीं आता तो अपने ही ब्लॉग की शीर्ष टिप्पणीकार लिस्ट देख लेते ।
जवाब देंहटाएंहा हा हा !
हैप्पी फ्रैंडशिप डे ।
हैप्पी फ़्रेंडशिप डे … झा जी।
जवाब देंहटाएंचलिए हम अगले साल के आपके पोस्ट में अपने नाम के आने का प्रयास करते हैं, क्योंकि हैप्पी फ़्रेंडशिप डे … तो साल में एक बार ही आता है।
सभी तो हैं ही ............... hahaha ye badhiya raha
जवाब देंहटाएंहा हा हा आप सबने खूब पकडा मुझे ..लगता है पार्ट टू लिखना पडेगा ....
जवाब देंहटाएंभैया, खतरनाक चकाचक पोस्ट है..
जवाब देंहटाएंमस्त ..एकदम मस्त...
और अभिषेक का जो जिक्र किये हैं ऊ हमरे नाम है न :P की कोनों औरो अभिषेक भी है :):P
हां भई हम दोस्त थोड़े ही न हैं......हमें शायद शहीद दिवस वाले दिन याद करेगे....
जवाब देंहटाएंयार मेरा लौट आया रे, यार मेरा लौट आया...
जवाब देंहटाएंआज तो झा जी की पोस्ट पढ़ कर यही गाने को मन कर रहा है...
बचपन के संग-साथी ज़िंदगी के मेले में बिछड़ बेशक जाएं लेकिन दिल से कभी दूर नहीं होते...
जय हिंद...
02.08.10 की चिट्ठा चर्चा में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/
झा बाबु कैसे है ?
जवाब देंहटाएंअजीब लगा ना .............???
मुझे भी लगा .........जब 'शिवम्' या 'शिवम् भाई' की जगह एकदम से 'शिवम् मिश्रा जी' पढने को मिला !
महाराज कोनो नाराज़गी है का ???
अरे अजय भाई ......जो भी नाराज़गी हो .......इतनी तो नहीं हो सकती कि भाई भाई ना रहे ??
खैर हैप्पी दोस्ती दिवस आपको भी !
मित्र दिवस की बधाई...बढ़िया याद किये मौक्का खालिस पर.
जवाब देंहटाएं:)
का झा जी !!
जवाब देंहटाएंऐसे कोई गाईब होता है का...?
चलिए अब सब ठीक है...आ तो गए हैं न अब..अब मत भागिएगा...
हैप्पी दोस्ती डे ..
हाँ नहीं तो..!!
बढ़िया पोस्ट ...पुराने दोस्तों को याद करके लिख दिया ताकि सनद रहे ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
आप मेरे पहले फॉलोवर बने थे। हालाँकि यह शब्द सही सन्दर्भ में प्रयुक्त नहीं है।
जवाब देंहटाएंउस दिन की खुशी अलग ही थी - एक संगी तो मिला !
hame bhi banaiye na apna dost.....
जवाब देंहटाएंs k jha
chd.
चलिए इस दिन और कुछ हुआ हो या न हुआ हो आपने अपने पुराने संगी साथियों को याद किया ...और आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई मित्र सूची में अपना नाम देख कर ...आभार
जवाब देंहटाएंहा हा हा .......मुझे ये तो पता था कि आप सब मुझे छोडने वाले तो हैं नहीं ...अपने अपने एंगल से मेरा पोस्टमार्टम तो करके ही मानेंगे । दराल सर , आप तो पडोसी हैं , सो माफ़ कर ही देंगे । शिवम भाई .......यार कभी कभी गलती से गलती हो ही जाती है ...अभिषेकवा ..और कौन होगा रे ..तुमही हो बच्चा लाल ..संगीता जी ,,आप आश्वर्य न करें बिल्कुल भी ,, शैलेंद्र जी ,,आप तो भाई हैं छोटे ..और दोस्त भी ..आप सबका एक बार फ़िर से शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया प्रस्तुती ,आप दोस्ती निभाना भी बखूबी जानते हैं ,मैं एक बार इसको आजमा चूका हूँ आप कोर्ट के व्यस्त समय में से भी मेरे लिए समय निकालकर मेरी हर संभव सहायता करने का प्रयास किया था ...आप आभासी दुनिया की दोस्ती को भी एक इंसान की तरह निभाने का प्रयास करते हैं यह अनुकरणीय है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत बहुत बधाई. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
जवाब देंहटाएंएक तू ना मिला
सारी दुनिया मिली भी तो क्या है
झा जी, दोस्ती जिन्दाबाद!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंझा जी पोस्ट तो बहुतै बढ़िया है। आपकी पोस्ट के बहाने हमने भी अपने लंगोटिया से लेकर कोट-टाई वाले दोस्तों को याद कर लिया।
जवाब देंहटाएंबहरहाल एक पोस्ट आपके मिजाज़ की लिखी है, शायद आपको पसंद आए। ज़रा झांकिएगा -
"टाट पर मखमल का पैबन्द"
http://khalishh.blogspot.com/2010/07/blog-post.html
बढ़िया पोस्ट है आपकी...पर और बढ़िया तब हो जाएगी जब इसको एडिट करके "सिरीलंका" का नाम भी जोड़ दीजिए...।
जवाब देंहटाएंबाकी आपको भी तनिक देर से ही सही पर हैप्पी वाला फ्रेंडशिप मुबारक...दिन नहीं बोल रहे हम क्योंकि मित्रता किसी एक दिन की मोहताज नहीं होती न 😊