सोचा था कि इस पोस्ट में दिल्ली ब्लोग्गर्स बैठक की तीसरी कडीं में उस बैठक की बची हुई बातें , भविष्य में आयोजित की जाने वाली बैठकों की रूपरेखा और इसके लिए एक निश्चित स्थान का चयन जैसी बातों का जिक्र करूंगा ..........मगर जो सोचा है वही हो ये जरूरी तो नहीं है न । बस ये समझिए कि उस बैठक में , संगीता जी ने जहां ब्लोग्गिंग में आने से सभी शहरों में पहले से ही कुछ परिचितों की मौजूदगी का एहसास होने की बात कही । वहीं ललित जी ने भी ब्लोग्गिंग की ताकत पर अपनी राय रखी । इसके बाद कुछ औपचारिक और अनौपचारिक बातों के बीच विदाई का समय हो चुका था सो सब वहां से समूह चित्र खिंचवाने के बाद निकल पडे ।
अब संगठन पर कुछ बातें , बेबाक बात कहूं तो ठीक रहेगा । हालांकि अब भी मेरा मानना यही है कि देर सवेर संगठित होने की जरूरत तो पडेगी ही । मगर इधर कुछ दिनों से जो हालात बन रहे हैं , और भाई लोग जिस तरह से इसे निशाने पर रखे हुए हैं उसने सोचने पर मजबूर कर दिय है कि आखिर संगठन बनेगा किसके लिए । हमने क्या कोई प्रधानमंत्री चुनना है , क्या कोई आंदोलन खडा करना है , देश की स्थिति बदलनी है , या कि हमें इस संगठन बनाने से अपने अपने घरों की रसोई का जुगाड करना है भाई ? समझ में नहीं आ रहा है कि यदि ये सब नहीं करना है तो फ़िर ब्लोग्गर्स के एक होने को , वो भी बिना किसी दबाव या राजनीतिक सामाजिक आर्थिक बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ,इस तरह से निशाने पर क्यों लिया जा रहा है ? आखिर किनकी नीयत पर शक किया जा रहा है ? और क्यों किया जा रहा है ? कौन कर रहा है ? मैं आप , सब , ।
ओहो ! मैं तो भूल ही गया था कि संगठन का विरोध इसलिए हो रहा है क्योंकि सबको डर है कि इससे गुटबंदी बढेगी , इससे कुछ लोग आपस में इकट्ठे होकर एक जैसा (और जाहिर है कि नकारात्मक और विध्वंसक ही , जैसा कि सोचा जा रहा है ) सोचेंगे । शायद किसी ब्लोग्गर के खिलाफ़ , या शायद बहुत से दूसरे ब्लोग्गर्स के खिलाफ़ मोर्चा बनाएंगे । और कुछ शब्दों में मठाधीशी करेंगे । वाह क्या सोच है , क्या बात है ? हैरत की बात है कि यदि ईरादे विध्वंसक ही होंगे तो फ़िर तो ये अब कहने की बात नहीं है कि जलजला , ढपोरशंख , कूप कृष्ण , अम्मा जी जैसे लोगों को इस ब्लोगजगत को दहलाने के लिए किसी संगठन की जरूरत कभी नहीं महसूस होगी । और हममें से ही कोई एक , ऐसा ही कोई नकाब ओढ कर कभी भी बिना संगठन बनाए पूरे ब्लोगजगत का रुख मोड देता है ।
अब रही बात तो ब्लोग्गर्स बैठक की । तो विचार तो यही था कि अब कोई एक ऐसा स्थान तय किया जाए जिसे निश्चित रूप से हम ब्लोग्गर्स बैठक के लिए ही निर्धारित कर दें ताकि समय पडने पर , या बाहर से किसी ब्लोग्गर मित्र के आने पर कम से कम हमें जगह तय करने में कोई जद्दोजहद न करनी पडे और किसी के लिए ये चिंता की बात न हो । जब मन किया सब मिल लिए । सोचा ये भी था कि आने वाले समय में तकनीक में महारत हासिल ब्लोग्गर्स मित्रों को दिल्ली आमंत्रित करके सभी तरह की तकनीकी सहयोग , जानकारी आदि देने समझाने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा । और ............. छोडिए जी जाने दीजीए । .
.अब जबकि ये स्पष्ट हो चुका है कि ऐसे आयोजनों का एक दूसरा अर्थ भी होता है , इसे और भी एंगल से देखा और दिखाया जाता है । और हफ़्ते , महीने , साल बाद कोई इनके आयोजन पर ही प्रश्न चिन्ह उठा देता है तो कोई फ़ोन करके हिसाब किताब निपटाने की बात करता है । और सबसे बडी बात ये है कि ये वही लोग होते हैं जो आपके साथ बैठक में , आपके साथ इस ब्लोग जगत में , आपके साथ बनने बनाने वाली सभी योजनाओं में साथ होने रहने की हामी भरते हैं ।
अब तो यकीनन यही मन कर रहा है कि कुछ समय के लिए हम भी अनाम ही हो जाएं कोई नाम नहीं कोई पहचान नहीं , कोई संपर्क नहीं कोई संवाद नहीं , कोई लिहाज़ नहीं , कोई ठेकेदारी भी नहीं । कोई दिल्ली नहीं , कोई मुंबई नहीं , कोई मीट नहीं , कोई मसाला नहीं ...............और मैं तो अब यही करने वाला हूं ...बगैर किसी लिहाज़ के .....................और अभी भी किसी केए इतनी औकात नहीं हुई है कि वो किसी ब्लोग्गर को खरीद सके .........जब हो जाएगी ...तब देखा जाएगा ॥
गुरुवार, 27 मई 2010
सच कहा जा रहा है कि ब्लोगजगत को इसकी जरूरत नहीं है ......अजय कुमार झा
भविष्य की एक ब्लोग बैठक का दृश्य
हर अच्छी बात का प्रारंभ में विरोध होना स्वाभाविक है, पर बाद में उससे होने वाले फायदे देख सब मान जाते हैं..
जवाब देंहटाएंNice. Bahut Khoob!
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है इस विरोध के कारन एक बात और अच्छी होगी, और वह है संगठन के बारे में गंभीरता से चिंतन. विरोध के स्वर सुनाई देने के बाद ब्लोगर्स को अब और भी गंभीर होकर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंहर अच्छी बात का प्रारंभ में विरोध होना स्वाभाविक है, पर बाद में उससे होने वाले फायदे देख सब मान जाते हैं..
जवाब देंहटाएंमुझे बिना किसी आधार के वाद-विवादों से नफरत है. पता नहीं क्यों विवाद उत्पन्न होते हैं या किये जाते हैं, कभी इस मुद्दे पर कभी उस मुद्दे पर... यह एक निहायत ही दुखद स्थिति है..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअचानक क्या हुआ झा जी? ह्रदय की पीड़ा समझ मे आ रही है। सबसे मुख्य बात है प्रतिष्ठा की। इसीलिये दुनिया भर के ढ्कोसले यहां देखने पढ़ने को मिलते हैं। खैर, बरतनों के समूह मे रखे जाने से टकराहट तो होनी ही है। पर यदि कोई उद्देश्य लेकर कुछ करने को सोचा जा रहा है तो आजमा के देखने मे क्या बुराई है? और हां आप क्यों अपने आपको हटाना चाहते है यहां से?
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंमै तो आप सब के सामने छोटा हूँ लेकिन आपके पोस्ट का आखिरी वाक्य ही मै दुहराना चाहूँगा कि और अभी भी किसी केए इतनी औकात नहीं हुई है कि वो किसी ब्लोग्गर को खरीद सके .........जब हो जाएगी ...तब देखा जाएगा ॥
रत्नेश त्रिपाठी
... विरोध करने वाले बकवास कर रहे हैं ... मुझे तो लगता है संघठन में घुसने के लिये वे अभी से रास्ता बना रहे हैं ... विरोध करने वाले महाशय कौन आ गये हैं !!!
जवाब देंहटाएंझा जी .,,,मुझे लगता है ,,,किसी भी बात का शुरू में कुछ विरोध तो होता ही है ,,अब विरोधी विरोध करे या ,,,चीखे-चिल्लाये ,,,,अधिक ध्यान मत दीजिये ,,,///आदेश नहीं विनती है समझे
जवाब देंहटाएंबिना किसी लागलपेट के मैं इस पोस्ट का ही विरोध करता हूँ.
जवाब देंहटाएंवह लड़ा नहीं
बस फितरत की
और जीत गया.
चन्द लोगों के मंसूबे यूँ तो प्लेट में सजाकर कोई पूरा नहीं करता.
बेनामियों को नामी बनाने की जुगत करते करते नामी का बेनामी बनने का ऐलान ... हद है भाई.
बुरा जो देखन मैं गया .............बुरा ना मिलया कोई ............जो देखा मन आपणा ......... मुझ सा बुरा ना कोई !!
जवाब देंहटाएंसंगठन का विरोध जो करते है, वो ही कल मिन्नत करेगे इस का सद्स्य बनाने के लिये, चलिये कदम आगे बढाये हम साथ है, ओर मिटिंग के लिये अगर दिल्ली से बाहर जगह हो तो... उस के बारे आप से फ़िर बात करुंगा..
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बात समझ नही आती भाई जिस ने साथ चलना है चलो कोई जवर्दस्ती तो नही , लेकिन जिन्हे साथ नही चलना वो ना चले लेकिन विरोध क्यो? उन्हे हम से दिक्कत क्या है, उन्हे हमारे इस संगठन से कोन सी हानि होती है? जरा आगे आ कर वो बताये तो सही...
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुती जिनलोगों को संगठन की जरूरत नहीं है उनके ऊपर संगठन थोपने की हमारी औकात भी नहीं है / आज इस देश का और समाज का हाल इसलिए बुरा है की हर अच्छे काम में कुछ लोग अरंगा लगाते ही हैं और हम पीछे हट जाते हैं / जिससे ढोंगी ,तीकरमी ,चालबाज लोगों की चालें कामयाब हो जाती है और हम अपनी झूठी प्रतिष्ठा में ही मरते रह जाते हैं / अरे इस देश में गाँधी,भगत सिंह,आज़ाद,सुभाष चन्द्र बोश को भी लोग गाली देते हैं और तो और भगवान को भी नहीं छोड़ते तो आप और सच्चे लोगों को क्या वो छोड़ देंगे ? ऐसी बातें तो होती रहेंगी जब तक आप सच्चे रहेंगे / लेकिन अगर हम इमानदार और सच्चे हैं तो हमें आपने लक्ष्य की ओर हर चीज को नजरंदाज कर बढ़ना ही होगा / वैसे आपकी जैसी इक्षा हो वैसा कीजिये हमें इस ब्लॉग के सहारे की जरूरत नहीं है अपने आन्दोलन के लिए हमें अपने सत्य,न्याय और इंसानियत के मकसद के ईमानदारी के अपने प्रयासों और इस प्रयास में लगे लोगों के सहयोग पड़ भरोसा है / हम लोग कुत्ते के भोंकने से नहीं डरते हैं क्योकि हमने भेड़ियों को भी इन्सान बनाया है /
जवाब देंहटाएंफूट न होती तो भारत ghulam ही क्यों होता ? अपने मालिक तक कि पुकार पर तो ब्लोग्गेर्स ध्यान नहीं दे रहे हैं .
जवाब देंहटाएंhttp://vedquran.blogspot.com/2010/05/countless-blessings-of-god.html
जवाब देंहटाएंअटकलों आशँकाओं और विरोध में अँतर है, झा जी ।
जो कुछ दिख रहा है, वह विरोध नहीं है ।
कहीं कोई पुतला वुतला जलवाओ,
तो विरोध जैसा विरोध भी दिखे
Ajay ji-
जवाब देंहटाएंListen to your heart.
जब जब कुछ अच्छे विचार पहल हुए है उनके विरोध में आवाज़ें उठाने वाले भी तैयार हो जाते है और यह बहुत दिनों से चलता आ रहा है और चलता रहेगा..ब्लॉगर्स सम्मेलन में उपस्थित लोग काफ़ी सुलझे हुए और समझदार ब्लॉगर्स थे जो यह मान के चल रहें है कि ब्लॉग उनके लिए केवल एक मनोरंजन का माध्यम नही है किसी अच्छी रोशनी की तलाश में दूर-दूर से आपस में मिलने चले आते है....हमें दूसरों की विध्वंसक बातों को सोचना छोड़ कर के आगे की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए हम सब साथ साथ है...नमस्कार भैया..
जवाब देंहटाएंमुझे तो लगता है कि संगठन से सबसे ज्यादा फ़ायदा होने वाला है अगर कोई ब्लॉगिंग छोड़ने की बातें करता है तो कम से कम उसे जबर तरीके से खेंच कर वापिस लाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंकाश कोई संगठन होता तो आप इत्ता नहीं कहते :) ब्लॉग संगठन में जाने का भी कारण बताओ नोटिस होता और उसे कोई नहीं सुनता, क्योंकि ब्लॉगर बनना एक डॉन बनने जैसा है, कि आने का तो रास्ता है पर जाने का नहीं। :)
अरे भाई संगठन बनाने के लिए क्या आपको किसी की इज़ाज़त चाहिए ?
जवाब देंहटाएंसकारात्मक कदम के लिए सिर्फ अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनिए ।
संगठन में शामिल होने की च्वाइस ब्लोगर्स पर छोड़ दीजिये ।
क्या कहिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छिपी रहे ...
जवाब देंहटाएंनकली चेहरा सामने आए...असली सूरत छुपी रहे
किसी की परवाह करने की ज़रूरत नहीं है अजय जी...आप अपना कार्य करते रहे ...
अजय विरोध करने वाले तो आदतन विरोध करते हैं,उनकी परवाह क्यों की जाये?आप तो आपना काम करिये,संगठन खड़ा करने की शुरूआत करिये फ़िर देखन आप खुद हैरान रह जायेंगे संगठन का जब आकार लेने लगेगा।और एक बात और आप जैसे बहादुर लोग मैदान छोड़ने की बात क्यों कर रहे हैं?बैठकें भी होती रहनी चाहिये,ये भी एक दूसरे को जानने के लिये ज़रूरी है।मैं आपके साथ हूं।
जवाब देंहटाएंअपने मन की करिये पंडितजी।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है , हम आपके साथ हैं ।
जवाब देंहटाएंajay ji aapka balog kaphi aagha laga.starting m to aghi bat ka virod hota h chinta ki bat nhi h.duniya h.
जवाब देंहटाएंअजय जी विरोधी को लतियाने का बढ़िया तरीका रुक जाना नहीं है
जवाब देंहटाएंबल्कि चलते जाना है .आप पांच को लेकर चलिए पचास ,फिर
पांच सौ ,फिर पांच हज़ार हो जायेंगे .
अब आगे ये शुरूआती के पांच में से कोई एक विरोधी न हो जाये
यह सोचकर चलना भी गलत है. ज्यादा उत्साह भी दुःख का कारण होता है.
सामान्य भाव से समान सम्मान देते हुए आगे बढे .
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जवाब देंहटाएंआप आगे बढिए... हम और हमारे जैसे बहुत लोग मिलते जायेंगे...
जवाब देंहटाएंसबकी सुनना जरुरी नहीं है, और ये संभव भी नहीं है.
फूट डालो और राजनीति करो ...........
जवाब देंहटाएंकुछ लोगो का काम ही यही होता है ........
और इसलिए ये विरोध हो रहा है .....
अनिल जी एक ब्लोग है जिसप पर आपकी राय चाहिए प्लीज कमेंट दिजिए http://socialissues.jagranjunction.com/2010/05/28/disabled-fetus-killing/
जवाब देंहटाएंविरोध करने वालों व अनामियों की परवाह हम क्यों करें ? विध्वंसक तत्वों का काम तो विध्वंस करना ही है तो क्या हम इनके डर से सृजन करना छोडदे ?
जवाब देंहटाएंअजय जी जो फैसला संगठन बनाने के बारे में लिया चूका है क्या वो हम इन असामाजिक तत्वों के दबाव में छोड़ देंगे ?
कल को ये अनामी व असामाजिक तत्व हमें कहेंगे कि ब्लॉग लिखना छोड़ दो , तो क्या हम उनके आगे समर्पण कर ब्लॉग लिखना छोड़ देंगे ?
मैदान हम नहीं , उन अनामियों को छोड़ना होगा !
-किसी भी संगठन का जितना ज्यादा विरोध होता है
वह संगठन उतना ही ज्यादा मजबूत बनता है |
काहे परेशान हो रहे हैं झा जी..आप कार्यवाही जारी रखिये.
जवाब देंहटाएंआज तो बहुत तमतमाये हुए हैं आप्। अजी गुस्सा छोड़िये ब्लोगिंग नहीं। दराल साहब ठीक कह रहे हैं
जवाब देंहटाएंवाह क्या सोच है , क्या बात है
जवाब देंहटाएंजहाँ बात होगी, वही विवाद भी होगा. यह तो प्रकृति का नियम है.
जवाब देंहटाएंब्लोगर का रुझान अन्य बातों की अपेक्षा लेखन और केवल लेखन में रहे तो ब्लॉग जगत का अधिक भला होगा.
जवाब देंहटाएंआइए अनाम होकर मिलते हैं। अपना नाम अपना काम छोड़कर मिलते हैं। कहिए कब मिलेंगे दिल्ली में ही। दस पंद्रह तारिख रखते हैं....किसी पर तो सहमति बन जाएगी। फिर मिलेंगे बिना किसी काम के. बिना किसी उद्देश्य के। फिर हो सकता है कुछ बन जाए.
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