मंगलवार, 2 मार्च 2010

अमां आलोक मेहता जी ...बाशिंदे नई दुनिया के ...मगर सोच वही दकियानूसी . यार इत्ता अपने ब्लोग पर लिखा होता तो ..........




हाल ही में होली में रंग गुलाल की गोली बम बारूद सभी बरसाने में लगे हुए थे । ऐसा लग रहा था कि जैसे हर किसीको ..हर किसी को बधाई देनी है ..सभी दे भी रहे थे ..मुझे तो लग रहा था कि पोस्टें हुलस हुलस के एक दूसरे से गलेमिल रही हैं और कह रही हैं ....अजी हमें पता है ..तुम्हें पता है ..माना कि सभी ब्लोग्गर्स को पता है ..कि ये आभासीदुनिया है ....मगर होली को थोडी पता है ...ये सब तो बस होलियाते जाओ ...। मगर अचानक ही उस दिन
यहां पर पढने को मिला कि नई दुनिया के संपादक श्रीआलोकमेहता जी हिंदी ब्लोग्गिंग को लेकर अपने उद्गगार व्यक्त किएहैं हालांकि इसमें उन्होंने वो कला भी दिखाई कि होली के बहाने कई अपने मन की बात को कह जाते हैं और साथसाथ कह देते हैं कि बुरा न मानो होली है । जैसे कि आप किसी को भर भर के गलियाईये और साथ साथ में ये कहतेजाईये कि बुरा न मानो होली है ...तो चाहे अगली होली से पहले ..हो सके तो दिवाली तक आपको ही फ़ूंक डालने कामन बना चुका हो मगर ..बुरा तो नहीं मानेगा । सो हम कैसे मानते ..बावजूद इसके कि उन्होंने ये सुंदर विचार रखेहिंदी ब्लोग्गिंग के बारे में ...साभार पाबला जी की इस पोस्ट से

ब्लॉग दुर्बुद्धि जमात का कूड़ा-कचरा है...
हरेक ने ब्लॉग की अपनी दुकान खोल रखी है...
ब्लॉग में कोई कितनी ही भद्दी-गंदी बकवास-सी गालियां उलच दे, कोई सरकार, कोई मालिक, कोई पुलिस या सेनातक कुछ नहीं बिगाड़ सकती...
ब्लॉग पर लिखने वाला नाली साफ करने वाली स्टाइल में बदबूदार सामग्री दुनिया-जहां में फैला दे, कोई बाल बांकानहीं कर सकता...
ब्लॉग प्रभुओं का एक शब्द, अमेरिकी, चीनी राष्ट्रपति या ब्रिटिश प्रधानमंत्री तक, नहीं कटवा सकता है...खासकरहिंदी ब्लॉग पर उनका बस ही नहीं चल सकता...
ऋषि-मुनियों की परंपरा में हिंदी के ब्लॉग बाबाओं को मुदित, क्रोधित, आनंदित होने का अधिकार सुरक्षित...
वे कुपित होकर ब्लॉग में बड़े से बड़ा शाप दे सकते हैं...
महाभारत के चरित्रों की तरह कोई भी झूठ फैला सकते हैं...
अपना ब्लॉग बना भद्दी गाली का जवाब भद्दी गाली से दे सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि उसे कोई पढ़े…
ब्लॉग की बकवास का जवाब बकवास से क्यों नहीं दे सकते हैं?
आकाश लोक के रास्ते आ रहे ब्लॉग पढ़कर अपनी आंखें खराब क्यों करते हैं

इस लेख में बताया गया है कि
इनके स्तर का आनंद लीजिए, जानिए-पहचानिए और फिर भूल जाइए
संभव है, यहां उनकी सामग्री छपने के बाद वे अपने ब्लॉग से यह सामग्री गायब ही कर दें

बताईये भला आप में से कितने ब्लोग्गर्स हैं जिन्हें ये दिव्य ज्ञान हुआ है अब तक हिंदी ब्लोग्गिंग के बारे में औरदेखिए हमारी नई दुनिया के इन महान कलम के सिपाही को कि इन्होंने ..इतनी जल्दी ..जल्दी इसलिए कि बाद मेंपता चला कि मेहता जी हिंदी ब्लोग्गिंग में भी अपना आलोक फ़ैला रहे थे ..मगर जैसा कि अक्सर होता है ..हमआप जैसे बेहद तुच्छ ब्लोग्गर्स ..इन जैसे स्टार ब्लोग्गर्स को दाल तो दाल मुर्गी का भाव भी नहीं देते ...दें भी कैसेयदि पहले ही पता हो कि पट्ठा एक दिन ..इसकी खुन्नस अपने अखबार के माध्यम से निकाल लेगा और पूरीदुनिया को बता देगा कि देखो जी हिंदी ब्लोग्गिंग ये है ....और फ़िर सब मानेंगे कैसे नहीं ...अरे हद है यार ...कौन साकोई सर्टिफ़िकेट दिखाना है इसके लिए संपादक महोदय को तभी तो ..जाने कौन दुनिया से दो नाम निकाला औरअपने मन का सब चेप मारा ....करते भी क्या ऐसा मौका भी कौन सा बार बार आता है जिंदगी में ....और साल में भी तो ये कम्बख्त होली एक ही बार आती है ...यदि दो चार बार और आती तो ...फ़िर तो ब्लोग्गिंग के साथ साथ सभीब्लोग्गर्स पर भी हाथ साफ़ कर लेते मजे में ...।

अब उनसे हम वो वाकये कैसे बांटें कि हमने भी जब जिंदगी में कुछ कर गुजरने की सोची थी और पत्रकारिता कीडिग्री लेने के बाद जब चप्पलें चटका रहे थे ( देखिए जी चप्पलें चटकाना उस समय पत्रकारिता का मौलिक संघर्षटाईप का होता था ) तो उसी दौरान हमें एक बडे ही अजीज से वरिष्ठ मित्र का साथ मिला ..उन्होंने कहा झाजी आपलिखते ही हो कभी छपा भी करो न ..हमने कहा कि छपें कैसे अब इस जनम में तो बाबूजी की प्रिंटिंग प्रेस लगने सेरही ..उन्होंने तपाक से .कहा अरे आप हमें दे देना हम कब काम आएंगे । हमने भी ऐसा ही किया ...थोडे से थोडेज्यादा दिनों तक इंतजार किया ..फ़िर मन को मना लिया सोचा ...लगता है कि उन भाई की भी कुछ खास नहीं चलीअपनी तो खैर क्या चलती .....मगर एक दिन अचानक उस छोटे से आलेख को छपा हुआ देखा ..बडा मन प्रसन्नहुआ .....बस प्रसन्नता में थोडी सी कमी इसलिए हुई कि ..भाई साहब ने कुछ ज्यादा चलाते हुए ..उस आलेख कोअपने नाम से छपवा दिया या लिया था ....आखिर इतने बडे बैनर राष्ट्रीय सहारा में हम कैसे छपते ....बाद में सुनाकि बहुत तरक्की की उन्होंने .....उन्हें भी देर सवेर कोई पुरस्कार तो मिल ही जाएगा ..और फ़िर हिंदी ब्लोग्गर्स कोगरियाने के लिए ..कौन सा उनके पुरस्कार पर कोई सेंध लगने वाली है ???

मेरे पल्ले एक बात और नहीं पडी कि .आखिर आलोक जी को हिंदी ब्लोग्गिंग में वो सब नहीं दिखा जो आजकलअमर उजाला , दैनिक जागरण , जनसत्ता , हरिभूमि , और अन्य अखबारों को दिखता है .....दूसरी बात ये लगी कियदि उन्हें हिंदी ब्लोग्गिंग के बारे में इतनी सच्ची सच्ची जानकारी और अनुभव प्राप्त हो गए थे ...हालांकि मुझे अभीभी उस वटवृक्ष की तलाश है ..जिसके नीचे बैठ कर उन्हें इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई ...तो फ़िर पूरे दमखम के साथउन्हें ये बात अपने उस ब्लोग पर कहनी चाहिए थी । अजी कहते क्या खाक ..सुना कि चौबीस घंटे के अंदर हीअपना बोरिया बिस्तर समेट कर निकल लिए भाई नई दुनिया में ।

मानता हूं कि बेशक दिल्ली में दैनिक जागरण , हिंदुस्तान , अमर उजाला , नवभारत टाईम्स के पाठकों के बीचउन्हें हम जैसे कुछ ऐसे पाठक तो मिल ही गए होंगे कि वे बता सकें कि देखो जी नई दुनिया को इत्ते ढेर सारे पाठकतो मिल ही गए हैं कि ......और किसी को न सही हिंदी ब्लोग्गिंग को तो गलिया ही सकते हैं । मगर बेचारे गलियातेगलियाते भी ..यदि ये बताने का कष्ट कर जाते कि आखिर वो कौन सी बात थी जिसने उन्हें होली के दिन ..होलिकादहन पर ज्यादा कंस्ट्रेट करा दिया ।

आज तो बस इतना ही अभी तो कुछ दिनों तक के लिए अच्छा काम मिल गया है ..कल सोचते हैं जरा अपने निरीहकलाकर बेचारे बेसहारा ..........मकबूल फ़िदा हुसैन जी .. ... ..

पिक्चर अभी बांकी है मेरे दोस्त
................

17 टिप्‍पणियां:

  1. ज़रूरी विषय है . ठीक किया आपने

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  2. नई दुनिया का संपादक ब्लागीरी को गरियाने लगे तो समझ लीजिए अखबार की दुनिया का एकाधिकार फिर टूट रहा है। इस बार इसे तोड़ने का श्रेय हिन्दी ब्लागरों को मिल रहा है।

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  3. अजी कहते है खिसायनी बिल्ली खंम्बा नोचे, अब जब से ब्लागिंग शुरु हुयी इन लोगो की पूछ कम हो गई इस लिये ऎसा लिख रहे है ओर भडास निकाल रहे है...छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी,
    नये ब्लांग पे लिखे हम मिल कर नयी कहानी... हम हिन्दुस्तानी....

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  4. तरस ही खा सकते हैं मेहता जी की सोच पर..और नई दुनिया को शुभकामनाएँ दे सकते हैं..

    और तो क्या कहें.

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  5. मैं खुद भी एक पोस्ट मेहता जी की उस होलीमय रचना पर करना चाह रहा था -आप तो जैसे निवाला ही छीन लिए महराज!
    अलोक मेहता के उस आर्टिकल को मैंने नयी दुनिया का इंगित होली परिशिष्ट मंगाकर पढ़ा -
    सूत्र वाक्य यही है -"ब्लॉग की बकवास का जवाब बकवास से क्यों नहीं दे सकते हैं?"
    उन्होंने खुद बकवास करने की बात स्वीकारी है और वह भी होली के परिशिष्ट में तो तकाजा है इस पद्मश्री प्राप्त को हम बख्श ही दें इस बार -और चुनौती भी दें की आ जाओ न सम्पादक जी यहीं ब्लॉग वूड में तब देखें कौन जयादा बकवादी है!
    संपादकों को तो मिर्ची लगनी ही है -ब्लॉग उनका लगातार मुंह जो चिढ़ा रहे हैं -रखे रहो अपनी गलीज संपादकी अपने पास -देखों यहाँ बिना साभार आपके हम वह रच दे रहे हैं जो तुम जम जमांतर नहीं रच पाते .....आओ अब इधर तनिक शागिर्दगी करो .....हिन्दी की संपादकी के दिन अब लदने वाले हैं और आलोक मनाता जैसे सम्पादक भी लादेन बन जाने वाले हैं लादेन बोले तो अतीत हुआ मुआमला .
    एक मोहतरमा थीं -जो अब प्रसार भारती के एक पद से सुशोभित हैं ,उन्हें भी एक ज़माने में संपादकी का बड़ा रोबताब था .....एक कहानी में कई गलतियां निकाल कर वापस की तो धर्मयुग ने तुरत ही उसे प्रमुख कहानी के रूप में छापा .....अब ब्लॉग जगत में हम बिना इनके नखरों ,अल्प ज्ञान को झेले अपना लिखा विखा खुद छाप ले रहे हैं तो इनकी .........(अभी भी होली आफ्टर - इफेक्ट है ससुरा ) ..... में मर्चा लगना सहज ही है ......
    मेहता जी बुरा न मानो होली है !

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  6. यहीं तो विडंबना है ब्लॉगिंग की अच्छी और सार्थक बातों को छोड़ कर लोग बेकार कीं बातों में लगे रहते है...

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  7. ब्लॉग की प्रतिस्पर्धा से घबरा गए हैं।
    ज़ाहिर है --ब्लोगिंग में जान है।

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  8. राज भाटिया जी ने सही कहा कि...खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे ....

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  9. सही कह रहे है उन्हें नई दुनिया वृक्ष के नीचे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई है .... की ब्लागिंग से तल्ला झाड़ लो यहाँ उन्हें मालूम हो गया है की यहाँ ब्लागिंग में उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है ....शायद उन्हें यह दिव्य आभास हो गया है की ब्लागिंग में कोई कमाई नहीं होती है जो मीडिया में अक्सर छाप कर हो जाती हैं ....

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  10. सही कह रहे है उन्हें नई दुनिया वृक्ष के नीचे दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई है .... की ब्लागिंग से तल्ला झाड़ लो यहाँ उन्हें मालूम हो गया है की यहाँ ब्लागिंग में उन्हें कोई पूछने वाला नहीं है ....शायद उन्हें यह दिव्य आभास हो गया है की ब्लागिंग में कोई कमाई नहीं होती है जो मीडिया में अक्सर छाप कर हो जाती हैं ....

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  11. पता चला है कि वे सब साजो-सामान सहित गायब हो गये है।

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  12. क्या मुझे लाठी-बल्लम निकालने की ज़रूरत है?

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  13. साम्राज्य दरकने के पहले ऐसी घटिया बाते बडे बडे हवा महलों से निकलती हैं. वक्त ही तय करेगा.

    हे ईश्वर...कल्याण करना.

    रामराम.

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  14. पता नहीं क्या सोचकर मेहताजी ने ये सब लिखा, और अखबार के लिये ब्लॉग को क्यों चुनौती के रुप में देखा जा रहा है, यहाँ तो कुछ ही पाठक हैं शायद अखबार के १ % भी नहीं फ़िर भी, क्यों इनकी हवा खराब है ? पता ही नहीं लग रहा है।

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  15. महफ़ूज भैया……आप भी……हा हा हा ।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला