गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
कृपया ...किसी के अंदर के जानवर को न जगाएं ....
कुछ सालों पहले एक पिक्चर देखी थी ....शायद नाम था विरासत । इस सिनेमा में नायक खलनायक की बहुत सी बातों को , उसकी गलत चालों को , उसकी बुरी मानसिकता को और जितने भी बुरे कृत्य होते हैं उन्हें झेलते हुए , बर्दाश्त करते हुए ....बार बार उससे ये आग्रह करता है कि ...वो उसके अंदर छुपे हुए जानवर को न जगाए ...वर्ना ये उसके लिए बहुत ही अहितकारी होगा । और ये बात वो नायक अपने पिता , पत्नी और बच्चों तक की खलनायक द्वारा हत्या हो जाने के बावजूद कहता ही रहता है ....मगर कहते हैं न शठ्म शाठ्येत चरेत ........और उसके लाख मनाते रहने के बावजूद खलनायक ...एक दिन उस नायक के अंदर छुपे जानवर को जगा ही देता है ....और वो जानवर उस खलनायक की हत्या करने पर मजबूर हो जाता है ।
जी हां अब आता हूं मुद्दे पर , ये निर्विवाद सत्य है कि ब्लोग्गिंग की विधा , एक निरंकुश और निर्बाध मंच है अभिव्यक्ति का , सभी के लिए ब्लोग्गिंग में आने के , ब्लोग लिखने के , पढने के अपने अपने निहितार्थ हैं । इसलिए ये स्वाभाविक ही है कि जहां बीस से पच्चीस हज़ार ( और खुशी की बात तो ये है कि ये संख्या दिनोंदिन बहुत बढती जा रही है ) लोग अलग अलग , प्रांतों से , अलग अलग परिवेश, व्यवसाय और यहां तक कि देश और समाज से भी इस ब्लोग्गिंग विधा में नियमित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रहे हैं तो उनके विचारों और लेखों में ...वैचारिक भिन्नता भी आएगी । टिप्पणी प्रतिटिप्पणी होगी , विचार विमर्श होगा , और बहसें भी होती रहेंगी । इन सबको न तो रोका जा सकता है न ही रोका जाना चाहिए । और अब तो ये कहना कि इसके लिए भी कोई आचारसंहिता या शब्द मर्यादा ..या ऐसा ही कुछ होना चाहिए ...सच पूछिए तो ये भी अब एक बेमानी सा कथन लगता है खुद को ही । आखिर कौन है यहां कम समझदार , कम ज्ञानी , जिसे कोई समझाए बुझाए .....और फ़िर किस हक से ?? और ये अब तो स्पष्ट दिख रहा है कि ये सब बढता ही जा रहा है । हां एक बात है कि अब तरीके और शैली अलग अलग देखने पढने को मिल रहे हैं ,,,,,,जाहिर है कि इसी को तो वो तथाकथित ...रचनात्मकता कहते हैं शायद । चलिए जी ये भी कीजीए किसने रोका है ???मगर !!!!!!!!!
हां , मगर आपकी अभिव्यक्ति सिर्फ़ तब तक ही आपकी रहेगी जब तक कि वो आप तक सीमित रहे । मैं देख रहा हूं कि कुछ मित्र ब्लोग्गर्स जाने अनजाने ( अब ये तो वही जानें कि ऐसा बार होना दिखना महज़ इत्तेफ़ाक पर इत्तेफ़ाक है या कि ये जानबूझ कर किया गया अनजानापन है ) बार बार अपनी टिप्पणियों से , अपनी पोस्टों से ( जिनमें आजकल एक नया चलन चला है दूसरों की पोस्टों का लिंक देकर , या फ़िर उनके नाम से ही कोई पोस्ट लिख मारने का ) किसी बहस को , किसी मुद्दे को अपने तरीके से रख रहे हैं और ऐसा करने में वे बार बार उस सीमा को पार कर रहे हैं जो न तो अभिवयक्ति के दायरे में आता है न ही किसी और .....क्योंकि जरूरी नहीं कि हर ब्लोग्गर भारत की तरह एक एक जबरदस्ती की धर्मनिरपेक्ष छवि को लादे घूम रहा हो । अब इश्वर के लिए ये मत पूछ बैठिएगा कि ..मेरा ईशारा किसकी या किनकी तरफ़ है ,। सीधे सीधे कहूं तो उन सबकी तरफ़ जिनको हर छोटी बडी बात में , कुछ लोगों के आपस में मिल बैठने में , आपसी संवाद स्थापित करने में , एक दूसरे से सहमति असहमति दर्ज़ करवाने में गुटबाजी नज़र आने लगती है । ब्लोग्गिंग को रसातल में ले जाने का षडयंत्र दिखने लगता है । और भी जाने किस किस टाईप की कमाल की फ़ीलींग आ जाती है । और हां मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मेरा किसी से कोई वैचारिक मतभेद हो रहा है या कि कोई टकराव हो रहा है । बात बस इतनी है कि कुछ छद्म प्रोफ़ाईलधारी ( जो कि जरूर ही किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए से लगते हैं ) पता नहीं क्यों और किस बात से नाराज़ होकर पूरे ब्लोगजगत को ही एक गलत दिशा में ले जाने में लगे हुए हैं । वे भी किसी मुगालते में न रहें , उनके लिए भी खास तैयारी चल रही है .....और भविष्य सब कुछ अपने आप तय कर देगा ।
चलते चलते उनके लिए भी कुछ बातें कहता चलूं जिनको लगता है कि हमें ऐसे विवादों में , ऐसी बातों में किसी का भी नाम प्रत्यक्ष /अप्रत्यक्ष रूप से लेना जरूर चाहिए ..मगर शायद हम ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि ..हिंदी के ब्लोग्गर कायर होते हैं ( और वे खुद हिंदी ब्लोग्गिंग में सिर्फ़ इस बात को साबित करने के लिए हैं कि हिंदी ब्लोग्गर्स कायर होते हैं ) कि जब वे कोई लिंक लगा कर ये साबित कर रहे होते हैं कि हमारे जैसे कुछ ब्लोग्गर्स ..असल में तालिबान की तरह पनप रहे राक्षसी ब्लोग्गर हैं जिन्हें ये ब्लोगजगत बढावा दे रहा है और उसका परिणाम इस ब्लोगजगत को एक दिन भुगतना होगा , तो उन्हें ये बता दूं स्पष्ट रूप से ......कि यहां कौन क्या है , क्या लिख रहा है , क्या पढ रहा है , या कहने का मतलब ये कि एक ब्लोग्गर के रूप में , एक पाठक के रूप में , उसका क्या और कैसा योगदान है ??? ये सबको पता है ।तो इसलिए उन सबसे यही आग्रह है कि ......आप अपने अंदर के जानवर को चाहे जैसे भी रखें ..उसे चाहे जैसा भी ...चारा पानी खिलाएं ....बस एक ही इल्तज़ा है कि ....किसी दूसरे के अंदर के जानवर को उकसा कर न जगाएं ........क्या पता अंदर से निकला जानवर डायनासोर ही साबित हो ????????
यही तो मैं भी कह रहा हूँ... बार बार.... आजकल मेरे लाठी -बल्लम होली की छुट्ठी मनाने गए हैं.... और मैं हज़ार चूहे खा के..... हज को भी नहीं जा रहा.... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
जवाब देंहटाएंओह! यह फोटो आपने मेरी तब खींची जब पिछली बार मुझे गुस्सा आया था..... हाँ! याद आ गया...सब लोग कह भी रहे थे... कि महफूज़ भाई...आप गुस्से में और हैंडसम लगते हो...
जवाब देंहटाएंक्या मारा है अजय भईया आपने पढ़कर मानिये मजा आ गया , और महफूज भाई आप ऐसे भी थे कभी बताया नहीं ।
जवाब देंहटाएंसही लिखा है।
जवाब देंहटाएंअजय भाई आप की बात बिलकुल सही है, छद्म प्रोफ़ाईलधारी वाले ओर बिना फ़ोटो के या किसी बच्चे की या हीरो हीरोईन की फ़ोटो वाले ब्लांग पर जाना ही बन्द कर दे, उन की टिपण्णियो का जबाब ही ना दो उन पर गोर ही ना करो, क्योकि जितने भी झगडे होते है आधे से ज्यादा इन्ही लोगो की करतूत से होते है: ओर जो किसी की भी टांग खींचे पहले उसे समझाया जाये, अगर ना समझे तो सब उस से रास्ता अलग कर ले, झगडे की कोई बात ही नही, आप का लेख दोवारा पढूंगा अभी तो नींद मै हुं ओर गला भी बहुत तंग कर रहा है आवाज बिलकुल बन्द है
जवाब देंहटाएंसच कहा है किसी ने कि फितरत नहीं बदलती किसी की भी
जवाब देंहटाएंइशारा स्पष्ट है आपका।
मैंने शायद ही इनकी कोई पोस्ट हिन्दी ब्लॉगिंग की अच्छाई को उज़ागर करती देखी हो।
और इनकी मिथ्या प्रोफ़ाईल की संख्या का तो कहना ही क्या!
बी एस पाबला
आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी और सच्ची है....सही समय पर सही गुहार के लिये आपको धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर
क्या झा जी,
जवाब देंहटाएंकाहे खून जलावत हैं...जो जैसा बोएगा, वैसा काटेगा...आप अपने अंदर के एंग्री यंगमैन को सोया रहने दो और बस प्यार बांटते चलो...और मैं जानता हूं कि इस मामले में झा जी दा जवाब नहीं...
जय हिंद...
ajay bhaai ham par gussa mat utaaro
जवाब देंहटाएंhamne to kisee kaa kahee naam nahee liyaa hai. ye to saare log hee samajhdaar jyaadaa ho gaye hain.
bahut badhiyaa likhaa hai.
हम तो बहुत दिनो से भीतर के इंसान को ही जगाने की कोशिश मे हैं ..जानवर तो दूर की बात है ।
जवाब देंहटाएंमैंने तो जो कहना था के दिया...नही..कह दिया
जवाब देंहटाएंजानवर और वो भी डायनोसार..बड़ी भयानक दुर्गति होगी.
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख.
ऐ हो झा जी ..काहे वास्ते इतना गुसियाये हुए हैं...जिसको देखो वही एक गितवा गा रहा है ...आज है लगी हुई यहाँ वहां इधर उधर.....
जवाब देंहटाएंअरे शांत हो जाइए प्रभू शांत....महफूज़ मियाँ को बड़ी मुस्किल से लाइन में लाये हैं...अब आप शुरू मत हो जाइए....कहाँ गए खुशदीप जी...अरे खुशदीप जी ..देखिये अगर सबके अंदर जा जनवार बहर आ जाई तो ब्लॉग जगत पूरा zoo न बन जाई ....
अरे जस करनी तस भोगहूँ ताता ,नरक जात कान्हे पछताता...
हाँ नहीं तो ..!!
गितवा है....
जवाब देंहटाएंआग है लगी हुई यहाँ वहाँ इधर उधर.....
बिलकुल सहमत न खुद के जानवर को जगाएं और न ही दूसरों को -
जवाब देंहटाएंडायनासोर तो लुप्त हो गया मगर यह आज भी जिन्दा है
जो तो को काँटा बुवै ताहि बोउ तू फूल।
जवाब देंहटाएंतो को फूल को फूल है वाको है तिरसूल॥
nice
जवाब देंहटाएंये तो आपने चेतावनी अब दी है. पर जो अपने और दूसरों के जानवर को पहले से जगाये बैठा है, उनका क्या?:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया स्वाभाविक गुस्से का इज़हार करता हुआ आपका यह लेख अच्छा लगा है ! आपका इशारा तो मैं नहीं समझ सका मगर यह सच है, कि कुछ तीसमारखां अपने आपको ब्लाग जगत का करणधार समझते हैं, कुछ मूर्ख अनुयायिओं के कारण बढ़ता हुआ उनका जोश उफान पर ही रहता है , ऐसे लोगों का नशा देर सबेर टूटना एक स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक है ! ऐसे लोगों के खिलाफ साफ़ साफ़ आवाज उठाना ही समय की पुकार है ! अगर ऐसा नहीं किया गया तो यह अन्याय और भले लोगों को अपमानित करने की प्रक्रिया चलती ही रहेगी !
जवाब देंहटाएंसूपर्णखा और मारीच के बारे में लोगों को जागरूक करिए और साफ़ साफ़ आवाज़ में करिए ताकि लोगों को इन सज्जनों की पहचान हो सके यही समय की पुकार है ! शुभकामनायें !!
ांजय जी मै खुशदीप जी की बात से सहमत हूँ। आप अच्छा काम कर रहे हैं बस अपने काम की तरफ ध्यान दें जब हम लोग ऐसे लोगों को अधिक तवज्जो देते हैं तो वो सब की नज़रों मे आते हैं । मेरे जैसे लोगों को तो बिलकुल पत नही कि यहां कोई ग्रुपिस्म चल रहा है। आप मस्त रहें बस आप जैसे लोगों की जरूरत है ब्लाग वुड को। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंउन सबसे यही आग्रह है कि ......आप अपने अंदर के जानवर को चाहे जैसे भी रखें ..उसे चाहे जैसा भी ...चारा पानी खिलाएं ....बस एक ही इल्तज़ा है कि ....किसी दूसरे के अंदर के जानवर को उकसा कर न जगाएं ........क्या पता अंदर से निकला जानवर डायनासोर ही साबित हो ????????
जवाब देंहटाएंलाख टके की एक बात
प्रणाम स्वीकार करें
बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया झा साहब आपने। कल ही हमारे भीतर के जानवर को कुछ लोगों ने जगाने की कोशिश की थी, मगर हमारे भीतर का जानवर ठहरा कुंभकरण का चेला। सो जागा ही नहीं वरना वो भी बवालोसॉर प्रजाति का है। हा हा।
जवाब देंहटाएंआप एकदम वाजिब कह रहे हैं साहब। इस बात पर विचार होना चाहिए।
फोटू तो ऐसी लगाएंगे हैं कि जल्द ही कोई शीलाजीत बेचनेवाली कंपनी आपको कुछ दाम दे जाएगी।.
जवाब देंहटाएंभैया हम तो इतने लेख पढ़ ही नहीं पाते, इसलिए इतनी बातों का पता ही नहीं चलता की कोई क्या लिख रहा है उल्टा पुल्टा।
जवाब देंहटाएंबस इतना जानते हैं की अच्छा अच्छा लिखो, सुनो और बोलो।
हम तो कुछ न कहें तो ही ठीक है, और वैसे भी सबने बोल दिया है तो हम क्यों बोलें और क्या बोलें, वैसे भी हमें डाईनोसोरस से बहुत डर लगता है। और वो हम हैं नहीं, नहीं तो वैसे ही लुप्त हो जायेंगे।
जवाब देंहटाएंLet's call spade a spade ! Who r these bloody 'jhandu' elements spoiling ur mood Jha ji ? Give some hints so that we remain alert.
जवाब देंहटाएंवो मारा पापड़ वाले को,
जवाब देंहटाएंधमाका जोर का है, गुंज अभी तक है।
लेकिन बहरे सुनते हैं क्या? एक चंगाई सभा का आयोजन किया जाए जिससे चराचर जगत व्याप्त रुग्णताएं दूर हों,
आपकी बात से सहमत हुँ,
वो मारा पापड़ वाले को,
जवाब देंहटाएंधमाका जोर का है, गुंज अभी तक है।
लेकिन बहरे सुनते हैं क्या? एक चंगाई सभा का आयोजन किया जाए जिससे चराचर जगत व्याप्त रुग्णताएं दूर हों,
आपकी बात से सहमत हुँ,
भैया जानवर तो बहुतेरे होते हैं चूहा भी, बिल्ली भी, गधा भी, कुत्ता भी..... आदि.इत्यादि।
जवाब देंहटाएंजानवर कोइ जागे... पर टाइम पर जागे। सबका अपना अपना महत्व है। दूसरे फिल्मों के नायक की तरह क्लाइमेक्स पर न जागे।
किसने हिम्मत कर दी आपके भीतर के डायनासोर को जगाने की ....??
जवाब देंहटाएं