शनिवार, 21 नवंबर 2009
दिल्ली ब्लॉग बैठक में हिन्दी ब्लॉग्गिंग और मीडिया पर चर्चा
पिछली दोनों पोस्टों में दिल्ली ब्लोग बैठकी और पाबला जी , तथा द्विवेदी जी केदिल्ली प्रवास के दौरान हुई चर्चाओं पर मैं काफ़ी कुछ लिख चुका हूं ..। आजउसी को आगे बढाते हुए फ़िर कुछ उन मुद्दों पर लिखने जा रहा हूं जो हमारीबातचीत के दौरान निकल कर सामने आई ॥इनमें से पहला मुद्दा था ..हिंदीब्लोग्गिंग और मीडिया ...इससे जुडी दो बातें मुख्य रूप से हमारे बीच चर्चा केलिये आईं । पहली ये कि क्या सचमुच ही हिंदी मीडिया ..यहां मीडिया से मेरा तातपर्य प्रिंट मीडिया का है ...हिंदीब्लोग्गिंग और ब्लोगर्स को महत्व देने लगा है ....और क्या देर सवेर ये महत्व बढने वाला है ॥
बात जब निकली तो जिक्र हुआ ..विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं द्वारा नियमित अनियमित रूप् से स्तंभों केमाध्यम से ब्लोग पोस्ट्स को स्थान दिये जाने के बढते हुए चलन की । चूंकि पाबला जी का अनोखा ब्लोग ब्लोगऔन प्रिंट इसी विशेषता को लिये हुए है और हमारी भी भागीदारी उसमें होती है सो जाहिर था कि इस विषय परखुल कर बातें हुई ॥ बैठक के दौरान खुशदीप भाई ने वही बात उठा दी जो कुछ दिनों पहले अविनाश वाचस्पति जीने उठाई थी ...यानि जो भी समाचार पत्र ब्लोग पोस्ट्स को उठा कर छाप रहे हैं उन्हें इसके एवज में कुछ पारिश्रमिकके रूप में ही सही उस पोस्ट के लेखक को भी देना चाहिये । यहां विमर्श के दौरान मैंने अपना वही मत रखा जो मैंपहले भी कहता रहा हूं । इस विचार से अलग मेरा मानना ये था , जिसे मैंने कहा भी कि ....आज यदि ब्लोग पोस्टसका जिक्र हिंदी के समाचार पत्रों में किया जा रहा है तो हर लिहाज से न सिर्फ़ महत्वपूर्ण है बल्कि हिंदी ब्लोग्गिंग केलिये फ़ायदेमंद भी है । आज ब्लोग पोस्ट्स को वही लोग पढ पा रहे हैं जो नेट के माध्यम से जुडे हुए हैं मगर जब येपोस्ट किसी समाचार पत्र या पत्रिका में आ जाती हैं तो इसका दोहरा लाभ होता है । पहला ये कि आपकी कही गयीबात को विस्तार मिल जाता है ..यानि पत्र-पत्रिका के माध्यम से वो लाखों लोगों की पहुंच में आ जाती है ..दूसरा येकि चूंकि उनमें ब्लोग्स का जिक्र भी होता है इसलिये स्वाभाविक रूप से पढने वाले के मन में ब्लोग्स के प्रति , ब्लोग्गिंग के प्रति जो जिज्ञासा पैदा करती है ....वो कालांतर में एक नया ब्लोगर के रूप में सामने आती है ॥
रही बात पारिश्रमिक के रूप में कुछ देने की तो जो पत्र नियमित रूप से ब्लोग पोस्ट्स लगा रहे हैं वे उसे संपादकों केनाम पत्र , या पाठकों की राय ....जैसे स्तंभों के विकल्प के रूप में स्थान दे रहे हैं जिसके लिये जाहिर है कि कोईपारिश्रमिक नहीं दिया जाता । हां जो पत्र पूरी पोस्ट को आलेख के रूप में छाप लेते हैं उन्हें जरूर इस विषय मेंसोचने के लिये कहा जाना चाहिये क्योंकि आखिर उस पोस्ट की जगह छपने वाले आलेख के लेखक को भी तो वेभुगतान करते ही होंगे । हालांकि पाबला जी , और हम सबके बीच इस बात की भी चर्चा हुई कि अधिकांश पत्र ..बारबार एक ही जैसी पोस्टों, बल्कि ब्लोगों , को स्थान देते हैं जिससे उसकी उपयोगिता थोडी कम सी हो गई है ॥ वैसेइसका एक कारण जो मेरी समझ में आया वो ये कि जिस तरह प्रिंट मीडिया में एक बीट से जुडे सभी लोग ..चाहे वोफ़ील्ड में हों या डेस्क पर आपस में तालमेल बनाए रखते हैं ..उसी तरह इन पत्रों में ब्लोग पोस्ट्स को स्थान देनेवाले भी तो आपस में संवाद करते ही होंगे तो सभी पत्रों में एक ही तरह की पोस्टों को स्थान मिलने पर कोई आश्चर्यनहीं होना चाहिये॥
हिंदी ब्लोग्गिंग और मीडिया के संदर्भ में मेरा दूसरा प्रश्न था पाबला जी से किजैसा कि कहा जा रहा कि ...हिंदी ब्लोग्गिंग वैकल्पिक मीडिया का रूप लेता जारहा है ..तो क्या ये सच में हो रहा है ॥ मेरे पूछने का मंतव्य था कि ....पाबला जीमैंने जब ब्लोग्गिंग की ताकत के बारे में सुना था तो ..इराक युद्ध के दौरान चर्चामें आया ब्लोग सलाम पैक्स के बारे में पढा था ..सुना था कि इस ब्लोग कीपोस्ट इतनी प्रभावी थी कि बीबीसी जैसी संस्था तक उस पर आधारित होकररिपोर्टिंग कर रही थी ...तो क्या ये कभी संभव है कि ये हिंदी ब्लोग्गिंग में कुछ ऐसा हो सके । ...पाबला जी ने मेरीआशा के अनुरूप दोनों संभावनाएं व्यक्त कीं....ऐसा नहीं है अभी हिंदी ब्लोग्गिंग में कुछ साहसिक नहीं हो रहा हैमगर उस स्तर का नि:संदेह नहीं हो पा रहा है और इसके बहुत से कारण हैं । निकट भविष्य में ऐसा हो पाएगाइसकी उम्मीद भी नहीं है ..मगर ये असंभव जैसा भी नहीं है ॥ जब ब्लोग्गर्स विकल्प और बदलाव को परखने कोऔर खुद को उसके लिए झोंकने के लिये परस्तुत करेंगे तो हिंदी ब्लोग्गिंग भी अपने नये आयाम स्थापित करेगी॥
देखिये आज फ़िर बात एक ही मुद्दे पर कितनी लंबी हो गई ..और हां मेरे से फ़ोटुएं किसी तरह रो पीट के एक आधही लोड हो पाती हैं सो पाबला जी से निवेदन कर दिया है ...पोस्ट मैं ठेले जा रहा हूं और भर भर के फ़ोटुएं वे दिखाएंगेऔर विश्वास रखिये ..वो कमाल की होंगी .....॥आगे बात करेंगे ....चलिये जब करेंगे ..तभी करेंगे ........................
... ....
waah !
जवाब देंहटाएंachha laga......
विमर्श उत्तम रहा। अगली कड़ी शीघ्र लाइए। ये टालमटोल की मुद्रा ठीक नहीं है। फोटो न रहे तो भी चलेगा।
जवाब देंहटाएंकिश्तों में विस्तृत रिपोर्ट को पढने का मज़ा ही कुछ और है....
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इंतज़ार कर रहा हूँ
इंतज़ार बेसब्री से..
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लागीरी अभी अपने शैशव काल में है। पाठक इसी लिए कम दिखाई देते हैं। इसे अभी जवान होने दीजिए। वैसे भी जब टेलिविजन आरंभ हुआ था तो कितने घरों में था?
जवाब देंहटाएंभौत बतिया लिये भाई!
जवाब देंहटाएंबढ़िया विचार विमर्श रहा |
जवाब देंहटाएंझा जी ,
जवाब देंहटाएंएकदम मस्त चर्चा किये है आप पाबला जी से हिंदी ब्लॉग्गिंग के विषय में ..........माने केवल खाना पीना नहीं था बकायेदा विचार विमर्श किये थे आप लोग ! बहुत बढ़िया.................आगे का हुआ जल्दी बताएगा !
आपकी इस पोस्ट मे दो मुद्दे हैं 1 क्या अखबारों/पत्रिकाओं द्वारा ब्लॉग से ली जा रही सामग्री पर पारिश्रमिक दिया जाना चाहिये ? और 2 क्या ब्लोग इतना सशक्त माध्यम बन रहा है कि वह प्रिंट मीदिया की बराबरी कर सके ।
जवाब देंहटाएंयह सही है कि अगर पूरा आलेख या उसका कोई अंश भी अखबार लेते हैं तो उसके लिये कोई आचार सन्हिता तो होनी चाहिये । अगर वे साभार प्रकाशित करते है या पारिश्रमिक देते हैं इसके लिये कॉपीराइट एक्ट को खंगालना पड़ेगा । इस मुद्दे पर दोनो को मिल जुल कर विचार करना होगा । और यह उसी स्थिति मे स्म्भव है जब यह माध्यम इतना सशक्त हो जाये । इसके लिये ब्लॉग्स पर स्तरीय सामग्री का आग्रह भी होगा । ऐसा नहीं है कि ब्लॉग्स पर स्तरीय सामग्री नही है यहाँ बहुत कुछ उल्लेखनीय है और उसका महत्व है । इस मह्त्व को स्थापित करने मे हर ब्लॉगर को जी जान लग देना होगा ।
बहुत अच्छी लगी आप की यह चर्चा, ओर बहुत सी नयी बाते ओर जानकारियां भी मिली, कल की पोस्ट का इंतजार रहे्गा
जवाब देंहटाएंसार्थकता से परिपुर्ण रही चर्चा. आगे का इंतजार है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शर्त लगा लो,
जवाब देंहटाएंमाल उड़ाने के कोई पैसा नहीं देगा
ये सही है ब्लाग अभी उतना सशक्त माध्यम नही बन पाया है मगर उसे ऐसा बनने से कोई रोक भी नही सकता।द्विवेदी जी की राय से सहमत हूं धीरे-धीरे ये अपनी जगह बना लेगा।रहा सवाल अख़्बारो मे छपने पर पारिश्रमिक का तो काजल कुमार कुछ कह रहे हैं।एक बात ज़रूर है कि अभी हमे प्रचार-प्रसार की ज़रूरत ज्यादा है जिस दिन ये पाप्यूलर हो जायेगा पैसा अपने आप बरसेगा,लेकिन उस्के लिये क्वालिटी भी लगेगी।इस माध्यम के फ़लने-फ़ूलने और अपने ब्लाग परिवार के रोज़ बढने की आशा के साथ इतना ही कहना चाहूंगा,हैप्पी ब्लागिंग्।
जवाब देंहटाएंपारिश्रमिक की ज़रूरत तो नही लगती। लेकिन लेखक से सहमति तो होनी चाहिए। वरना कभी कोई विवाद उत्पन्न हो सकता है।
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लोगिंग अभी पनप ही रहा है और एक दिन सशक्त अवश्य होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
जीजीस का स्थान अच्छा रहा ,मीटिंग के लिए।
जिस तरह ब्लागिंग में समाचार पत्रों से कुछ समाचार को लेकर लिखते हैं उसी प्रकार यदि समाचार पत्र भी ब्लाग से सामग्री लेकर लिखते हैं तो हर्ज तो नहीं। इस तरह मीडिया और ब्लाग एक दूसरे के पूरक हो जाएंगे। रही बात पैसे की तो लालच बुरी बला है :)
जवाब देंहटाएंबढिया है.
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