ब्लौगिंगि में रहते हुए हम चाहे अनचाहे एक दायरा , एक रिश्ता कायम कर ही लेते हैं और इसके बनने केबाद फ़िर सिलसिला शुरू होता है निरंतर संवाद का ।ये संवाद सिर्फ़ ब्लोग्गिंग और उसके विषयों तक हीनहीं सिमित रहता , धीरे धीरे इसमें परिवार, हमारेअपने उनके अपने, उनका सुख दुख सब शामिलहोता जाता है । ये बात मानता तो मैं शुरू से ही थामगर इस बात का प्रमाण मिल गया पिछले चारपांच दिनों में ही । पाबला जी से लगभग नियमित संवाद होते रहने के कारण मन में अब ये हूक उठनेलगी थी कि कब उनसे मिला जाए। लगता था कि बस अब बहुत हुआ अब तो एक बार उनकाआशिर्वाद लेकर उनके गले लगने का समय आ ही गया है । सो इच्छा जाहिर कर दी गयी। आगे कीकहानी तो पाबला जी खुद बता ही चुके हैं । मेरे आग्रह को बिल्कुल टाल नहीं सकने की स्थिति में उन्हेंमेरे घर में ही रहने का मेरा अनुरोध मानना ही पडा। भिलाई से निकलते हुए संदेश छोडा जा चुका थाकि कब पहुंच रहे है । बस इसके बाद इंतज़ार की घडियां शुरू हो गई । ट्रेन कुछ विलंब से पहुंची ॥
श्रीमती जी भी पहले से ही पाबला से से परिचित थी ...मेरी तरह हीनेट के माध्यम से ..सो वे भी काफ़ी उत्साहित थी ..आखिर उनकीपार्टी बडी होने वाली थी ।पाबला जी के साथ पहली बार आमनासामना हुआ तो जादू की झप्पी ने मीठी ठंड के बीच जिस नर्मउष्मा का एहसास कराया उसे मैं शब्दों में नहीं ढाल सकता ।पाबला जी के घर पहुंचते ही ..वही हुआ जिसकी मुझे आशंका थी ...श्रीमती जी को जहां उनमें अपनेमिंटू पाजी दिख रहे थे ..वहीं पाबला जी को भी ......वे अपनी छोटी बहन सी लगीं । ऊपर से सोने पेसुहागा ये कि दोनों ही दनदनाती पंजाबी में शुरू हो गये...और हम हो लिये किनारे । जैसा कि पहले हीतय कर चुके थे कि ..पाबला जी और द्विवेदी जी दिल्ली आगमन के शुभ अवसर को यूं तो खाली हाथसे जाने नहीं देंगे सो आनन फ़ानन में एक ब्लोग बैठक आयोजन करने का निर्णय लिया मैंने ।फ़टाफ़ट जहां भी जो उपयुक्त स्थान मिला उसे बुक किया गया और पोस्टों के माध्यम से सूचना भीपहुंचाई गई..मेरे पास जिनका संचार संपर्क था उन्हें निजि रूप से भी सूचित किया गया ।
पाबला जी के दिल्ली प्रवास के दौरान जो चर्चा और बातें हुई वो तोमैं आपसे अलग अलग पोस्टों के माध्यम से बांटूंगा ही फ़िलहालतो आप ब्लोग बैठक का हाल जानिये । समय ११ बजे से तय थासो मैं और पाबला जी समय से पहले ही वहां पहुंच चुके थे । सबसेपहले आने वाले मित्र ब्लोग्गर थे श्री राजीव तनेजा जी जो अपनेवादेनुसार सपत्नीक श्रीमती संजू तनेजा जी के साथ पधारे , उन्हें भी फ़टाक से पाबला जी की झप्पीमिली..। भाभी जी को साथ आये देख हमारा तो हौसला और बढ गया , हम उनसे फ़रीदाबाद में भीमिल चुके थे , । आखिर हमने उन्हें कह ही दिया कि जब भी ब्लोगजगत में किसी ब्लोग्गर को पत्नीसंकट का सामना करना पडा तो वो बेधडक राजीव भाई और संजू भाभी का उदाहरण दे कर अपनाबचाव कर सकता है ॥ इसके बाद आये खुशदीप भाई ...अब जब चार यार जमा हो ही चुके थे तो फ़िरतो सब्र कहां और चैन कहां ..इरफ़ान भाई के चुटीले कार्टूनों और उनकी मार , खुशदीप भाई के स्लौगओवर , और राजीव भाई की पहेली की आपसी नोंक झोंग होती रही । हम राजीव भाई से मनवाने मेंलगे थे कि अब उनकी पोस्टों की लंबाई सिर्फ़ पौने दो किलोमीटर ही होनी चाहिये ..वे डेढ पर अडे थे ..।इस बीच द्विवेदी जी जिनके वल्ल्भगढ से निकल पडने की सूचना हमें मिल चुकी थी ..उनका इंतजारलंबा ही होता जा रहा था ..खैर हमारे नाशते ..(अरे स्नैक्स फ़्नैक्स जी ), को निपटाते निपटाते उनकीआवक भी हो गई । समय बीत रहा था ..कैसे किसी को पता नहीं चल रहा था ॥
बीच बीच में , मित्र ब्लोग्गर्स के नहीं पहुंच पाने और नहीं आ सकने के फ़ोन संवाद भी मिल रहे थेमगर जब सारे दिग्गज बैठे ही थे तो फ़िर सिलसिला रुकने वाला कहां था ...। खाना पीना निपटातेनिपटाते ..भाई .विनीत उत्पल भी पहुंच गए ...। हमारे बीच जिन जिन मुद्दों पर बात हुई वे थे ..हिंदीब्लोग्गिंग में एक अघोषित आचार संहिता की जरूरत, हिंदी ब्लोग्गिंग और तकनीक , अंग्रेजी औरहिंदी ब्लोग्गिंग में फ़र्क , नकारात्मकता और सकारात्मकता , मीडिया और ब्लोग्गिंग , और्ब्लोग्गिंग और पाठक , टिप्पणियां उनका महत्व और चरित्र , और बहुत सारे विषय ..जिन परविस्तार से अगली पोस्ट में लिखूंगा ॥ ...
शाम होने लगी थी और सबके विदा होने की बारी भी ।धीरे धीरे सब इस बैठकी को उसके अंजाम तकपहुंचा रहे थे । मगर मन मान कहां रहा था । सो वहां से उठे तो सब बाहर खडे हो लिये । और फ़िरचला गप्पों और फ़ोटूओं का दौर ।इस बीच पहुंचे पहुंचे हमारे मीडिया मित्र भी अपने वादेनुसार पहुंचचुके थे और अपना काम कर चुके थे ॥
द्विवेदी जी , पाबला जी, और मैं, ..यानि अदालत, तीसरा खंबा ......तीनों रात्रि में एक ही साथ रहे ...।घूमने फ़िरने खाने पीने के दौरान बहुत सा विचार विमर्श हुआ ।जाहिर है कि ब्लोग्गिंग के अलावा भीऔर न्यायिक व्ययवस्था ,महानगरीय जीवन ..आदि पर । अगला दिन भाई खुशदीप जी औरइरफ़ान जी के नाम आरक्षित था ॥ ... ..
पाबला जी घर वापसी के लिए विदा हो गए.....मुझे नहीं पता कि उन्हें विदा करते समय मेरा कुछ छूटाजा रहा था कि उनका ....मगर मूक भाषा ने तय कर दिया था कि जल्दी ही एक दूसरी मुलाकात होगीआपस में ...किस किस की...कहां पर ....कब ..ये तो सब तो नियति तय कर ही देगी ॥
वैसे भी पाबला जी ने जब जब मेरी खिंचाई की तो मैंने उन्हें हर बार यही कहा...
जो ट्रेन भिलाई से दिल्ली आती है ............वही ट्रेन दिल्ली से भिलाई भी ...........
"ब्लौगिंगि में रहते हुए हम चाहे अनचाहे एक दायरा , एक रिश्ता कायम कर ही लेते हैं "
जवाब देंहटाएंऔर इसी को भाई लोग गुटबाज़ी का ठप्पा लगा देते हैं:)
kaash! main bhi aap logon ke saath hota.... pabla ji se milne ki badi tamanna thi.... ab yeh tamanna lucknow mein zaroor poori hogi....
जवाब देंहटाएंबहुत दुःख है अजय भईया न पहुच पानें की । प्लान तो पूरा बन ही चुका थी कि अचानक कुछ ऐसी घटना हो गयी कि पहुच ना पाया । आपने बहुत ही मजेदार तरीके से रिपोर्ट प्रस्तुत की है ।
जवाब देंहटाएंफरीदाबाद से बाहर होने के कारण रविवार को ही ललित शर्मा जी का फोन आने के बाद इस बैठक का पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी | इसलिए आने से वंचित रह गए ,खैर फिर कभी आपसे मिलने का मौका मिलेगा |
जवाब देंहटाएंभाई साहब ऐसा कोई सुनहरा मौका आया करे तो हम को भी थोडा बता दीजिएगा छोटा भाई समझ कर आप सब लोगो से मिलने के लिए हम भी लालायित रहते है..अबकी बार बताइगा .
जवाब देंहटाएंहम चुक गये.. अगली बारी सही..
जवाब देंहटाएंआपके अनुभव पढकर अच्छा लगा .. अगले वर्ष से मैं भी इस तरह के हर आयोजन में शामिल हो सकूंगी !!
जवाब देंहटाएंअजय जी
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
होनी को मेरा आना मंजूर नहीं था क्योंकि मै चला था आप के पास लेकिन तभी मेरे मित्र के एक्सीडेंट कि खबर मिली और मुझे सफदरजंग हॉस्पिटल जाना पड़ा उसका हाल देखने के बाद और कुछ याद नहीं रहा, खैर फिर कभी हम भी दिल्ली में ही हैं.
रत्नेश त्रिपाठी
मिले आप लोग प्रसन्नता मुझे हुई। इसे क्या कहेंगे?
जवाब देंहटाएंजल्दी से दूसरी पोस्ट लाइए।
अजय भाई, ज्यादा कुछ नहीं बस वही जो पाबला जी को कहा था, "कुछ तो मजबूरियां होगी वर्ना हम बेवफा ना थे !"
जवाब देंहटाएंमैं बता नहीं सकता ना पहुँचने का कितना अफ़सोस है मुझे !
kaash ham bhi delhi main hote............
जवाब देंहटाएंbarhaal aapke anubhav padh kar hi aanad le lete hain
अजय भाई ये आभासी दुनिया असली दुनिया से भी अच्छी है।एक छोटी सी गलतफ़हमी मे जब मै सरक गया था तब पाब्ला जी ने खुद पहल कर मुझे समझाइश दी,ऐसा कोई क्यों करे?असली दुनिया मे तो नज़र नही आते ऐसे मामले।पाब्ला जी सच मे खुशदिल इंसान है और आप भी।द्विवेदी जी से मिलकर तो ऐसा लगा था कि वे मेरे बुज़ुर्ग है और उनकी बात सुनकर तो उनके प्रति श्रद्धा और बढ गई।पाब्ला जी ने दिल्ली जाने से पहले मुझसे पूछा ज़रुर था दिल्ली चलने के लिये मगर फ़िर एक बार लिख रहा हूं कि शायद मेरे नसीब मे आप,राजीव,इरफ़ान,विनित और खुशदीप जैसे अच्छे लोगो से मिलना नही लिखा था। खैर फ़िर कभी सही किस्मत ने चाहा तो ज़रुर मिलेंगे। हैप्पी ब्लागिंग्।
जवाब देंहटाएंआगे फिर कभी कोई ऎसा कार्यक्रम बने तो हम भी जरूर शामिल होने का प्रयास करेंगें...अब की बार तो पाबला जी का फोन आने के बावजूद भी इस बैठक में सम्मिलित होने का कार्यक्रम नहीं बन पाया.....
जवाब देंहटाएंबड़ा रोचक वृतांत रहा...टिप्पणियों के विषय में बात हुई, जानना सुखद रहा.
जवाब देंहटाएंयह डॉयलाग तो छा गया भई:
जो ट्रेन भिलाई से दिल्ली आती है ............वही ट्रेन दिल्ली से भिलाई भी ...........
हा हा!!
हाय!!हम दिल्ली में क्यूँ न हुए!!
बहुत सुंदर लगा, आना तो ह्म भी चाहते है... कमबखत दुरिया बहुत बडी है....
जवाब देंहटाएंअजय जी,
जवाब देंहटाएंदिल्ली से भिलाई आने वाली ट्रेन का इंतज़ार रहेगा
बी एस पाबला
emotional...emotional...
जवाब देंहटाएंअगर आभासी होती तो क्या हम में इतना प्यार होता की मिलने चले आते इतनी दूर से???
जवाब देंहटाएंमैं २४ नोव. को पहुंचूंगा और २५ को मिलूंगा आप से बड़े भाई. आप इस नो. पे बात कर सकते हैं ०९८१८६०३५०८
लेकिन ये मेरा नहीं एक मित्र का है
मैं ना होऊं तो सन्देश दे सकते हैं..
जय हिंद...
मजेदार रहा, वृतांत
जवाब देंहटाएंइतनी बड़ी दिल्ली में इतने कम लोग !
जवाब देंहटाएं@डॉ महेश सिन्हा
जवाब देंहटाएंशोर में कांव-कांव करने से कहीं बेहतर है, आठ दस लोग ही बिना किसी लाग-लपेट दिल खोलकर एक दूसरे से बात कर लें....ये नहीं कि जमावड़े से आकर शोर मचाने लगें कि हाय ये नहीं हुआ, हाय वो नहीं हुआ...हमें पूछा नहीं...ये कोई संबंधियों वाले रिश्ते नहीं थे जहां नाक का इतना ध्यान रखा जाए...ये तो दिल के रिश्ते हैं...दिल वाले ही समझ सकते हैं....
जय हिंद...
जो ट्रेन दिल्ली से भिलाई आती है उससे उतरने वाले को दुर्ग स्टेशन पर ही उतरना पड़ता है जानी..... और दुर्ग में शरद कोकास रहता है ।
जवाब देंहटाएंअब क्या बतायें ..पाबला जी के साथ हाय हम ना हुए >.।
@ खुशदीप जी
जवाब देंहटाएंमेरा सन्दर्भ - एक महानगर में इतने कम लोगों का जुड़ना यह दिखाता है कि हिंदी ब्लागरों की संख्या अभी कितनी कम है . पाबला जी इतनी दूर से दौड़े चले आये अपनी भावना से . आपका सन्दर्भ शायद इलाहाबाद सम्मलेन से सम्बंधित है . जिस तरह दुनिया में विभ्हीं प्रकार के लोग हैं तो वैसा ही तो ब्लॉग जगत में भी होगा . आपकी भावनाएं अपनी जगह सही हैं .
बढ़िया रहा।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
इसे कहते हैं जिंदादिली।
जवाब देंहटाएं------------------
11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
बढिया रिपोर्ट...
जवाब देंहटाएंफिर से मिलने की तमन्ना है...
जल्द ही कुछ ना कुछ सोचते हैँ इस बारे में
bahut badhiya tasveeren...puranee yaden taza ho gaeen
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