रविवार, 12 जुलाई 2009

मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से , हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?








मुई इस निगोड़े ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ,
बिन इसके इक दिन अब तो,
जीना भी दुश्वार हुआ...

रिश्ते नाते हुए बेमानी,
दोस्त भी कतराते हैं,
बीवी बच्चे भी कोसें,जाओ तुम्हारा
ब्लॉग्गिंग ही परिवार हुआ...

अब लगे है नौकरी भी भारी,
क्या हुआ जो है सरकारी,
नौकरी क्यूँ बना कैरियर अपना,
हाय क्यूँ नहीं व्यापार हुआ....

लिखना छूटा-पढ़ना छूटा (किताबों का ),
हर कोई रहता, रूठा रूठा ,
जब से घुसे हैं ब्लॉग्गिंग में,
तगडा बंटाधार हुआ......

भाड़ में गयी दुनिया सारी ,
और दुनिया के लिए हम भाड़ में,
जब से पहुंचे इस दुनिया में,
कंप्यटर ही संसार हुआ...

बेलन चले , और बर्तन भी,
कभी मिले तीखे ताने,
क्या क्या बतलायें आपको,
इस ब्लॉगर के साथ क्या क्या अत्याचार हुआ....


अजी इतने तक तो बात ये रुकती,
हम सह जाते चुप रह जाते,
मगर अपनी मम्मी के साथ , हमसे लड़ने को,
बेटा भी तैयार हुआ.....

चार अक्षर क्या लिख पाए,
सबको अभी कहाँ टिपियाये,
इतना जुल्मो सितम हुआ,,,
हाय बेगाना घर-बार हुआ..


पिछले दिनों की जो कसर थी सारी,
निकालने की थी आज तैयारी,
इन ससुरे, ससुरालियों ने ,
हाय ये सन्डे भी बेकार किया......


मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?

19 टिप्‍पणियां:

  1. एक ब्‍लागिंग के कारण इतना कष्‍ट !!

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  2. लागी छूटें ना अब तो ...

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  3. ये तो प्यार के साईड इफेक्ट है जी..

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  4. भाई ये तो हमने लिखा था फ़िर हमारा दरद आपने कैसे छाप दिया? :)

    रामराम

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  5. यह एक बिमारी है, जो एक बार लग जाये तो छुटती नही इस का एक ही इलाज है...?
    अजी मुफ़्त मै थोडे बतायेगे.. लेकिन शर्तिया आराम आयेगा, आराम ना आने पर पेसा वापिस.

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  6. कोढ़ नौकरी पहले ही थी,ब्लॉग कोढ़ में खाज हुआ

    झा जी वाह जी क्या लिखते हो आज फ़ाश यह राज हुआ

    यहाँ टिप्पणी करने को मन खुशी खुशी तैयार हुआ !
    ..........................प्यार हुआ !

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  7. निगोड़ी कैसी ब्लॉगिंग है …

    देखियेगा कहीं ससुरे, ससुरालियों की नज़र ना पड़ जाये यहाँ! वरना गेंहूँ के साथ …

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. निगोड़े-निगोड़ी की जोड़ी सलामत रहे। :)

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  10. आपने बिल्कुल सही फ़रमाया!
    काफी दिन हो गए मेरे ब्लॉग पर नहीं आए अगर वक़्त मिले तो ज़रूर आइयेगा!

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  11. सारे ब्लोगर्स की दास्ताँ लिख दी है आपने...ब्लोगिंग लत है जनाब...लग गयी तो..लागी छूटे न...
    नीरज

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  12. हरेक ब्लॉगर की यही व्यथा है। बढ़िया शब्द दिये आपने उन सबकी व्यथा को।

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  13. ये तो जन जन की कथा लिख डाली आभार्

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  14. ये तो वाही लड्डू हो गया जो खाए वो भी पछताए जा न खाए वो भी पछताए

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला