कुछ ऐसी ही नयी,
कोई ख़बर,
यहाँ भी निकलनी चाहिए,
हम बदलें ख़ुद को,
या बदल दें आईना,
हर हाल में ये,
सूरत बदलनी चाहिए,
इसको उसको सबको,
परखा लोकतंत्र बीमार ही रहा,
कुछ तो करो तदबीर ऐसी,
देश की तबियत सम्भल्नी चाहिए,
मत बने न बने ,
दाब भी चाहे कोई कर न सके,
कोशिश ये हो कि,
सबकी भडास निकलनी चाहिए,
हम कब मांगते हैं, उन्हें ,
वापस बुलाने का हक़,
हमारी तो इल्तजा है बस इतनी,
वहां चले हैं जूते,
यहाँ चप्पल तो चलनी चाहिए ..
wo kahawat hai na
जवाब देंहटाएंlaaton ke bhoot baaton se nahi mante
usi ka parichayak hi aap ka blog
chaliye ko to aaya in loogon se ladne
हम बदलें ख़ुद को,
जवाब देंहटाएंया बदल दें आईना,
हर हाल में ये,
सूरत बदलनी चाहिए,
bahut badhiya rachana ajay kumaar ji badhai.
aakrosh bhari rachna .
जवाब देंहटाएं- vijay
हर हाल में ये,
जवाब देंहटाएंसूरत बदलनी चाहिए,......
अच्छा अंदाज है .आप कि रचना पढ़ कर मुझे दुष्यंत कुमार जी की याद आ रही है ,क्योंकि अंदाज और स्टाइल वैसी ही है .
ajay ji... behtarin shabdo ka isteml kiya hai....
जवाब देंहटाएंbadhayi ho..
lagtaa hai aap logon ke man mein bhee kahin na kahin yahee baatein chhupee huee thee, khair mera kehne kaa maksad sirf itnaa thaa ki ab badlaav to aanaa hee chaahiye.........
जवाब देंहटाएंbahut khub jha ji, likhte rahiye
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