सोमवार, 30 मार्च 2009

वहाँ चले हैं जूते, यहाँ चप्पल तो चलनी चाहिए

कुछ ऐसी ही नयी,
कोई ख़बर,
यहाँ भी निकलनी चाहिए,

हम बदलें ख़ुद को,
या बदल दें आईना,
हर हाल में ये,
सूरत बदलनी चाहिए,

इसको उसको सबको,
परखा लोकतंत्र बीमार ही रहा,
कुछ तो करो तदबीर ऐसी,
देश की तबियत सम्भल्नी चाहिए,

मत बने न बने ,
दाब भी चाहे कोई कर न सके,
कोशिश ये हो कि,
सबकी भडास निकलनी चाहिए,

हम कब मांगते हैं, उन्हें ,
वापस बुलाने का हक़,
हमारी तो इल्तजा है बस इतनी,
वहां चले हैं जूते,
यहाँ चप्पल तो चलनी चाहिए ..

7 टिप्‍पणियां:

  1. wo kahawat hai na
    laaton ke bhoot baaton se nahi mante
    usi ka parichayak hi aap ka blog
    chaliye ko to aaya in loogon se ladne

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  2. हम बदलें ख़ुद को,
    या बदल दें आईना,
    हर हाल में ये,
    सूरत बदलनी चाहिए,

    bahut badhiya rachana ajay kumaar ji badhai.

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  3. हर हाल में ये,
    सूरत बदलनी चाहिए,......
    अच्छा अंदाज है .आप कि रचना पढ़ कर मुझे दुष्यंत कुमार जी की याद आ रही है ,क्योंकि अंदाज और स्टाइल वैसी ही है .

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  4. lagtaa hai aap logon ke man mein bhee kahin na kahin yahee baatein chhupee huee thee, khair mera kehne kaa maksad sirf itnaa thaa ki ab badlaav to aanaa hee chaahiye.........

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला