शनिवार, 9 अगस्त 2008

यार इस तरह तो अपना ब्लॉगजगत फिसड्डी ही रहेगा

जब से कमबख्त इस ब्लॉग्गिंग का असाध्य रोग लगा है , तन मन और धन ( यार रोज़ पन्द्रह रुपये कैफे वाले को देने पड़ते हैं ) यानि कुल मिला कर अपने अन्दर जो भी आदमी और शैतान, आत्मा और परात्मा है सब इस ब्लॉग्गिंग में ही लीन और विलीन हैं । जब देखो इसी ब्लॉग्गिंग के बारे में चिंतन मनन , विचार कुविचार, और शोध चलता रहता है। और ऐसा नहीं है की इसमें सिर्फ़ मैं ही लगा हुआ हूँ , मेरी तरह ख़ुद को एक टाप क्लास धाँसू चिट्ठाकार समझने वाले और भी चित्कुत्ये यही सोचते हैं। तो अचानक ही हमारे जैसे तमाम चिट्ठाकारों का एक अखिल इंतर्नैतीय सम्मलेन हुआ और उसपर ब्लॉग्गिंग के भूत ( अरे यार भूत से मेरा मतलब अपने उड़नतश्तरी, या रवीश जी, या प्रमोद जी किसी भी सदात्मा से नहीं है, आप लोग तो अर्थ का अनर्थ कर के समझते हैं ) , भविष्य की घनघोर विवेचना हुई। हाँ वर्तमान के बारे में कोई बात नहीं हुई , क्योंकि बात करते करते ही वर्तमान भूत बन जाता है और जो करने वाली बात होती है वह पहले से ही भविष्य बनी होती है। खैर गोली मारिये इस समय के चक्कर को । सबने एक मत से माना की इस तरह तो हम ब्लॉग्गिंग को कोई नया मुकाम नहीं दे पायेंगे, जिसके कई कारण बताये गए ।

यहाँ पर सब अच्छे लोग ही एक साथ जमा हो गए हैं । इतिहास गवाह रहा है की बिना किस लड़ाई झगडे, विरोध, आपसी खीचतान के कोई भी चर्चा और रेटिंग नहीं मिलती, अपने टैलेंट शो को ही देख लो जितना ज्यादा, गली गलौज , थूका फजीहत होती है शो उतना ही हित हो जाता है। यहाँ पर कभी कभार कोशिश होती भी है तो बेह्कारे भडास वाले ही करते हैं, ऐसे कैसे चलेगा.....

इतना ही नहीं , लोग न सिर्फ़ अच्छा लिख , पढ़ , देख, सुन , दिखा, सुना , रहे हैं, बल्कि प्रतिक्रया भी लिखते हैं तो उसमें भी कोई आलोचना नहीं कोई टांग खिचाई नहीं, सबको प्रोत्साहित किया जा रहा है , यार इस तरह तो सब के सब शान्ति पूर्वक सिर्फ़ लिखते ही रहेंगे, और किसी में भी आगे बढ़ने की नयी बुलंदियों की चाहत नहीं पैदा होगी। हालांकि मुझ पर एक और दोष लगा की आप जैसे ब्लॉगर तो अपनी आलोचना का जवाब भी पूरी विनम्रता से दे देते हैं, जिन्होंने आपसे ये कहा की आप लिख तो बकवास रहे हैं मगर हम पढ़ रहे हैं, उन्हें आपने क्यों कहा की शुक्र है की आप हमारा बकवास पढ़ तो रहे हैं वरना आजकल तो कोई प्रेमचंद को नहीं पढ़ रहा , टाईम नहीं है न जी।

एक अन्य कारण बताया गया की आप लोगों की सोच बिल्कुल सिमित हो गयी है, जो जैसा होता उसे वैसा ही देखते और दिहाते हैं, कोई गंदी और ग़लत बात नहीं करते, यानि कुल मिलाकर कोई अनोखा एंगल कोई एक्सक्लूसिव दृष्टिकोण है ही नहीं आप लोगों में, पिछले दिनों भाई समीर जी ने अपनी एक पोस्ट में विदेशी लेखकों और चित्रकारों वाला एंगल दिया भी था तो पूरी विनम्रता से,

तो ऐसे कब तक चलता रहेगा, क्या आप लोग नहीं चाहते की सारा मीडिया, टी वी , रेडियो , सब जगह हमारी चर्चा शुरू हो जाए । क्या कहा , नहीं चाहते, इस तरह तो बिल्कुल नहीं, तो फ़िर बने रहिये सिर्फ़ ब्लॉगर, हे भगवान् कितना समझाया आप लोगों को मगर आप लोग तो तरक्की चाहते ही नहीं हैं.

6 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो!! लो जी शुरू हो गए,
    आपकी कलम घसीटी तो बेकार की है इसे छोड़कर मूंगफली की दुकान डाल ले.

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  2. नहीं जी नहीं बिल्कुल चाहते हैं हम तरक्की.
    बोलिए क्या-क्या करना पड़ेगा?
    :) :)

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  3. अजय जी,यह तो दोस्तो की मफ़िल हे, गप्पे मारो, कुछ दिल की बात करो, कुछ दुसरो की सुनओ,कोई किसी से पंगा ले सनु कि,विदेशीयो के पीछे क्यो भागे ?? देसी क्या कम अकल हे???

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  4. यहीं से शुरु करते हैं तरक्की करना गरियाते हुए:॒॒॒॒॒ हा हा!!!

    कह तो गहरी बात रहे हो महाराज. देश का भविष्य युवाओं के हाथ है. आप शुरु हो जाओ. :)

    बहुत बढ़िया मसला.

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  5. मै सिर्फ़ इतना कहूँगा
    "करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान "
    शेष झा साहब ख़ुद समझदार हैं

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  6. achha jee lagtaa hai ki aap log ekdum pakiyail blogger hain bhai , aur haan ee sab hum apne par lagoo hone ke liye thode kahe the, padhte rahiye aapse jyaadaa hamein mazaa aataa hai aapko padhwaane mein.dhanyavaad.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला