सोमवार, 17 मार्च 2008

यार सुना है कि ........

मैं चाहता हूँ,
कि कोई मुझसे,
मोहब्बत करके ,मुझे,
ठोकर मार दे,
मैं टूट कर ,
बिखर जाऊं,
यार, सुना है कि,
दीवाने ,
अच्छा लिखते हैं॥

मैं सोचता हूँ,
कि, क्यों न,
एक बार , मैं भी,
मर कर देखूं,
यार , सुना है कि ,
मरने के बाद,
हर इंसान को,
अच्छा कहते हैं॥

मैं चाहता हूँ,
कि लिखूं,
खूब अंट-शंट ,
सनसनाता साहित्य,
यार सुना है कि,
नाम- दाम भी,
मिलता है, और यूं,
लोग खूब छपते हैं॥

काश कि मिलता,
कोई गुनी चिकित्सक,
तो उससे इलाज ,
करवाता क़ानून का,
यार सुना है कि,
इसके हाथ बड़े-लंबे,
मगर आँख-कान,
काम नहीं करते हैं...

पता नहीं, मैं भी क्या-क्या सुनता रहता हूँ।

अगला पन्ना ,:- लो जी , स्यापा पै गया (व्यंग्य )

4 टिप्‍पणियां:

  1. अपनें मनोभावों को बखूबी पेश किया है।

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  2. अच्छी प्रस्तुति !!
    काफ़ी ऊहापोह मची है आपके मन मे।

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  3. aapka sahitya aise hi bahut sundar hai.prem ki pareshaniyon ko gale lagaane ki chahat na rakhiye.aapki kavitayen bahut sundar hai

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  4. aap teeno kaa dhanyavaad.ab fir se maidaan mein aa chukaa hoon.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला