सोमवार, 24 जून 2013

दो टूक ......




देश और दुनिया ने पूरे वैश्विक भूगोल में बढती हुई प्राकृतिक आपदाओं में से एक और आपदा झेली , उत्तराखंड में इस प्राकृतिक आपदा को बीते एक सप्ताह हो चुके हैं मगर उसका दंश अब भी लोग झेल रहे हैं । इस आपदा से जुडी तमाम खबरों , बहसों के बीच कुछ बातें तो बिल्कुल तो टूक समझने वाली हैं

*प्राकृतिक आपदाएं इस पृथ्वी पर नियमित रूप से आती रही हैं , इनका सटीक अनुमान लगाने में अब तक इंसान और विज्ञान पूरी तरह से विफ़ल रहा है । इतना ही नहीं प्रकृति के पांच प्रमुख तत्वों से बना हुआ इंसान कितना ही शक्तिशाली और प्रबल विज्ञानी हो जाए मगर सच यही है कि प्रकृति के किसी एक तत्व अकेले मात्र जैसे , हवा , पानी , मिट्टी ,आदि से ही नहीं जीत सकता तो यदि सर्वतत्व विध्वंसक रूख अख्तियार कर लें तो महाविनाश या महाप्रलय कोई आश्चर्य की बात नहीं रहेगी ।


*भारत और भारत जैसे देशों के राजनीतिज्ञ आज संवेदनहीनता के उस बिंदु को छू रहे हैं जहां से वे मिट्टी में दबे कुचले लोगों और पानी में डूबते टूटते इंसानों का दर्द महसूस करने के लिए हवाई दौरों पर लाखों रुपए खर्च हुआ दिखा भर सकते हैं , इससे ज्यादा यदि उम्मीद की जा सकती है , तो वो है सेना और सेना के जवान ।

*देश का समाज आज इतनी तेज़ी से अंधा होकर उपभोक्तावाद और विलासी जीवन शैली की तरफ़ बढ रहा है कि , बार बार प्रकृति द्वारा वो खुद और उसके अपनों को भी ऐसी चेतावनियां देने के बावजूद भी कहीं कुछ भी गंभीर सोचता करता नहीं दिखाई दे रहा है । आज की नस्लें , मिट्टी, पेड, पानी , पौधे , पक्षी सबके प्रति उपेक्षित और संवेदनहीन व्यवहार रख रही हैं ।


* प्राचीन काल से ही प्रकृति का एक शाश्वत नियम चलता चला आ रहा है , जो लड के बचेगा वही जिंदा रहेगा और इतिहास और खुद प्रकृति भी इस बात का गवाह रही है कि सृष्टि से सृजन से लेकर अब तक जाने कितनी ही बार उसने इस जीवन चक्र को खत्म होते , दोबारा जन्म लेते , पनपते , पकते और फ़िर खत्म होते देखा है और निरंतर देखती चली आ रही है । इसलिए यदि इंसान खुद पहाड पत्थर , पेड , नदी , समुद्रों के साथ दु:साहस करेगा तो प्रकृति भी अपना प्राकृतिक व्यवहार करके पारस्परिकता और संतुलन बनाएगी ही ।

* विकसित और पश्चिमी सभ्यता ने इतिहास से एक सबक बहुत अच्छी तरह से सीखा है और वो है जितना हो सके प्राणि मात्र के जीवन की रक्षा करना । इसके विपरीत अभी दुनिया के बहुत सारे देशों , जिनमें एक भारत भी है , का शासन और प्रशासन अभी इतना परिपक्व ही नहीं हुआ है कि आपदाओं के लिए की जाने वाली तैयारियां तो दूर उनसे जूझने और निपटने की सोच भी विकसित नहीं कर पाया है । भारत जैसे सवा अरब की जनसंख्या बाहुल्य देश में , आपदा नियंत्रण का पहला नियम - प्राणिमात्र के जीवन की रक्षा ,का नियम और तैयारी ऐसी होनी चाहिए कि लोगों को हज़ारों की संख्या में एकसाथ बचाया जा सके ,वो भी आठ दस दिन का लंबा समय लेकर नहीं , तुरंत से भी तुरंत ।  यदि सेना अपने दम , अपनी हिम्मत , अपने जज़्बे और उपलब्ध संसाधनों से जानों को लगातार बचाती आ रही है तो फ़िर " आपदा नियंत्रण " की पूरी कमान भारतीय सेना को सौंप दी जानी चाहिए , और साधन और संसाधन जुटाने की शक्ति भी । 



*सच तो ये है कि , प्राकृतिक आपदाओं की रफ़्तार , अब तेज़ होने लगी है , विश्व भर से लगातार ऐसी दुर्घटनाओं के समाचार मिल रहे हैं । उससे बडा सच ये है कि इन सबके बावजूद इंसान निरा मूरख , अब भी लगातार , बहुत बार तो बेवजह भी , प्रकृति को ललकारता , छेडता और उपेक्षित कर रहा है । सबसे बडा सच ये है कि इस धरती पर सभ्यताओं के सृजन और विनाश की सैकडों दास्तानें लिखी हुई है सदियों से , सिर्फ़ समय , प्रकृति और ये धरती ही इन सबकी गवाह रही हैं जब उसने इंसान से कई गुना बडे और ज्यादा शक्तिशाली जीवों को विलुप्त कर दिया तो फ़िर .............................



*पहाड , नदियां , पेड , मिट्टी, हवा , धूप , बारिश , ये मानव सभ्यता के वो बुजुर्ग हैं जिनके कोमल स्वरूप के कारण ही आज इंसानी सभ्यता इस स्थिति में पहुंच चुकी है कि वो खुद ही सारे भस्मासुरी प्रयोग करके अपने जीवदायी कारकों को नष्ट कर देने पर तुली है तो प्रतिकार में इन बुजुर्गों के क्रोध की प्रतिक्रिया ऐसी ही होती आई है इसलिए इंसान को अब भी इनकी इज़्ज़त करनी सीख लेनी चाहिए ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. मानव का खुद को सर्वशक्तिमान मानने का अहंकार ही एक दिन इसे ले डूबेगा।

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  2. दो टूक बात तो यही है! पर भविष्य के दो टूको को संगृहीत करने के चक्कर में मानव इस से अनजान सा बन लगा रहता है बस!मगर कब तक...???
    कुँवर जी,

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  3. इंसान का अपना ही किया धरा है सब.

    रामराम.

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  4. विचारपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति!

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  5. इंसानी भूख की जब कोई सेम न हो ... तो ऐसा ही होता है ...

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला