पिछले दस दिनों से लगातार नज़रें , और कान सिर्फ़ उत्तराखंड त्रासदी की दर्द नाक खबरें , ही टटोल रही हैं , किसी अन्य बात की तरह ध्यान ही नहीं जा रहा है , चाह कर भी । घर पर , आसपास और भी बहुत सारी गतिविधियां चल रही हैं , क्रिकेट मैच से सीरीयल तक सबकुछ देखा जा रहा है । मगर मैं बार बार घर पर आए सारे समाचार पत्रों को उलटता पुलटता हूं , मौका मिलते ही खबरिया चैनलों पर बार बार दिखाए जा रहे लगभग एक जैसे समाचार और खबरों को ही बार बार और जाने कितनी ही बार देखता हूं । इस बीच फ़ेसबुक ब्लॉगस और अन्य सभी प्लेटफ़ार्मों पर भी पहुंचता हूं , वहां भी यही सब कुछ । ऐसा शायद इसलिए हो रहा है क्योंकि , अपने गृह प्रदेश बिहार में 1987 , में आई प्रलयकारी बाढ और अगले ही साल यानि 1988 , में आए विनाशकारी भूकंप के दर्द को बिल्कुल करीब से महसूस किया था मैंने । जाने कितने ही आंगन कफ़न के थान के थान लील कर सफ़ेद हो गए थे उस बार भी । और यकीन जानिए ये दर्द सिर्फ़ और सिर्फ़ जिसने झेला , जिस पर बीती सिर्फ़ वही जानता है अन्य कोई नहीं , कोई नहीं ।
जो बात अब तक मैं समझ पाया हूं वो ये कि उत्तराखंड की इस आपदा के बाद हज़ारों घर और हज़ारों आखें हमेशा के लिए खुली रहने वाली हैं उन अपनों के इंतज़ार में , जिनका पता कभी नहीं चलेगा , सरकारी आंकडों में तो नहीं ही , न ही अन्य किसी माध्यम में ....कभी नहीं और ये दर्द अब उनके जीवन के लिए सबसे बडा नासूर बन जाएगा । इन सबके बीच मुझे कुछ ऐसा भी महसूस हुआ कि जिन पर लानत भेजी जानी चाहिए और कुछ ऐसा भी जिन्हें शाबासी और दुआ दी जानी चाहिए ............
लानत भेजिने इन्हें
केंद्र और राज्य सरकार को , दोनों ही सरकारें , जबकि इत्तेफ़ाकन दोनों स्थानों पर एक ही दल की सरकार है , तब भी , या शायद तभी , दोनों ही सरकारें इस आपदा के बाद इतनी असंवेदनशील और अकर्मठ निकलीं कि जहां केंद्र सरकार ने राहत और मदद भेजने के लिए आठ दिनों का लंबा समय सिर्फ़ इसलिए लिया क्योंकि उनके महासचिव और उनके अनुसार देश के तथाकथित भावी युवराज विदेश यात्रा से लौट कर उस राहत दल को हरी झंडी दिखाने वाले थे । रही बात राज्य सरकार तो जो सरकार आपदा के एक सप्ताह बाद भी मृत व्यक्तियों की संख्या पांच सौ मात्र बताने में ही लगी भिडी हुई थी , उस सरकार ने कहीं कहीं पीडितों को 2700/- रुपए मात्र की भारी भरकम राहत राशि दे कर अपनी पीठ ठोंक ली । राज्य सरकार के इंतज़ाम का आलम यही था कि अब तक देखे सुने पढे सभी समाचार सूत्रों में एक भी , गिनती के एक भी पीडित , घायल , फ़ंसे , वापस आए , किसी एक ने भी राज्य सरकार व प्रशासन की मदद तो दूर उपस्थिति के बारे में भी कुछ ज़िक्र किया होता तो बात थी , इसलिए इन्हें भरपूर लानत भेजी जानी चाहिए ।
केंद्र और राज्य सरकार को , दोनों ही सरकारें , जबकि इत्तेफ़ाकन दोनों स्थानों पर एक ही दल की सरकार है , तब भी , या शायद तभी , दोनों ही सरकारें इस आपदा के बाद इतनी असंवेदनशील और अकर्मठ निकलीं कि जहां केंद्र सरकार ने राहत और मदद भेजने के लिए आठ दिनों का लंबा समय सिर्फ़ इसलिए लिया क्योंकि उनके महासचिव और उनके अनुसार देश के तथाकथित भावी युवराज विदेश यात्रा से लौट कर उस राहत दल को हरी झंडी दिखाने वाले थे । रही बात राज्य सरकार तो जो सरकार आपदा के एक सप्ताह बाद भी मृत व्यक्तियों की संख्या पांच सौ मात्र बताने में ही लगी भिडी हुई थी , उस सरकार ने कहीं कहीं पीडितों को 2700/- रुपए मात्र की भारी भरकम राहत राशि दे कर अपनी पीठ ठोंक ली । राज्य सरकार के इंतज़ाम का आलम यही था कि अब तक देखे सुने पढे सभी समाचार सूत्रों में एक भी , गिनती के एक भी पीडित , घायल , फ़ंसे , वापस आए , किसी एक ने भी राज्य सरकार व प्रशासन की मदद तो दूर उपस्थिति के बारे में भी कुछ ज़िक्र किया होता तो बात थी , इसलिए इन्हें भरपूर लानत भेजी जानी चाहिए ।
राजनेता व राजनीतिक दल :- इस देश में इन्हें तो सतत लानत भेजा जाना चाहिए , क्योंकि इनका स्वार्थ और घटिया नीति हमेशा ही ऐसी आपदाओं में खुल कर सामने आ जाती है । सांसदों का आपसी झगडा हो या , फ़िर मदद राहत के नाम पर एक दूसरे पर की जाने वाली छींटाकशी ,या फ़िर हवाई दौरों से जमीनी दर्द का आकलन विश्लेषण करने का इतना बरसों पुराना रवैया , हर घटना , हर व्यवहार इनका ऐसा ही होता आया है कि इन पर जितनी लानत भेजी जाए कम है । और लोग बाग गुस्से में अब भेज भी रहे हैं , बानगी देखिए।
धन कुबेर :- आपने हमने अक्सर ये देखा है कि विश्व में जब धन कुबेरों की सूची छपती है तो उसमें ये जरूर ज़िक्र होता है कि फ़लाना ढिमकाना जी ने अरबों खरबों की संपत्ति बना कर विश्व के धन्ना सेठों में नाम लिखा लिया है , इतना ही नहीं हमारे खिलाडी , अभिनेता , और बहुत सारे अधिकारी तक के पास अरबों खरबों के वारे न्यारे होने की खबरें मिलती हैं । हाल का ही उदाहरण देखिए न , अभी हाल ही में क्रिकेट चैंपियनशिप जीतने वाली टीम के खिलाडियों को करोडों रुपए की राशि बतौर इनाम दी गई है , लेकिन हाय रे इन धन कुबेरों का दिल । न ही किसी ने दो बोल बोले न ही किसी ने मदद का कोई हाथ बढाया , इन्हें तो लानत भेजी ही जानी चाहिए ।
मीडिया :- देश का मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक अभी बहुत अपरिपक्व है , जबकि आज चौबीसों घंटों प्रसारित होने वाले समाचार चैनलों की संख्या सैकडों के भी पार है । आज सबके पास अथाह धन , श्रम व संसाधन होने के बावजूद सबका रवैय्या , खो खो खेल रहे बच्चों की तरह दिखाई देता है , खासकर ऐसे संवेदनशील समय में तो ये और ज्यादा बचकाना व्यवहार करने लगते हैं । इसमें कोई संदेह नहीं कि अब मीडिया सिर्फ़ स्टूडियोज़ में बैठ कर वातानुकूलित रिपोर्टिंग करने से आगे जाकर ऑन द स्पॉट जीवंत रिपोर्टिंग की तरफ़ बढ चले हैं मगर , पहले मैं पहले मैं की बचकानी होड , इन्हें अब भी हास्यास्पद बना दे रही थी । एक विशेष बात और ये तमाम मीडिया कर्मी , पत्रकार , कैमरामैन और समाचार चैनल ऐसी घटनाओं , आपदाओं और खबरों की रिपोर्टिंग के लिए अपने निजि हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल क्यों नहीं करते , क्यों नहीं खरीदते , वायुसेना और अन्य राहत हेलीकाप्टरों पर सवार होकर जाना आना ऐसे समय में उचित नहीं लगता है , थोडी लानत इनके हिस्से भी ।
आपदा प्रबंधन :- इस पूरी व्यवस्था पर लाखों करोडों रुपए का खर्च प्रति वर्ष दिखाया जाता है जबकि असलियत में जब जब इनकी जरूरत महसूस हुई है ये हमेशा ही एकदम फ़ेलियर साबित होते आए हैं । आपदा के लिए दूरगामी नीतियां और योजनाएं तो दूर , आपदा में फ़ंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकालना , हेलीकॉप्टर , सेटेलाइट फ़ोन , राहत सामग्रियां , आदि तमाम मूलभूल वस्तुएं भी इनके पास नहीं होती जरूरत के समय और तो और ले देकर जो सहायता फ़ोन नंबर उपलब्ध कराए जाते हैं उनकी वास्तविकता भी किसी से छुपी नहीं है इनकी भी लानत मलामत की जानी चाहिए ।
अब उनकी बात जिन्हें शाबाशी दी जानी चाहिए :
हमारी सेना :- भारतीय सेना , जिसने इतिहास से लेकर वर्तमान तक और युद्दकाल से लेकर शांति काल में आई ऐसी आपदाओं तक में अपने हौसले, अपनी हिम्मत , अपनी ताकत और अदम्य इच्छा शक्ति के दम पर रुख ही बदल कर रख दिया है , इस बार भी जो काम किया है वो पूरी इंसानियत के माथे पर ताज़ धरने जैसा है । इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि बेहद खराब मौसम में अपने जान की बाज़ी लगाकर फ़ंसे हुए लोगों को निकालने का ऐसा जुनून कि वो खुद को मौत के मुंह में लेकर चले गए , ऐसी सेना , ऐसे जवानों को कोटि कोटि नमन और सतत नमन ।
हेलीकॉप्टर : सोचता हूं कि जब इस देश में वैज्ञानिक ये संदेश देते हैं कि हम चांद पर पहुंचने वाले हैं , नाभिकीय शक्ति में हम विश्व के गिने चुने देशों में से एक हैं तो फ़िर ऐसे में , सेना के साथ कदम से कदम मिला कर मानव और इंसानियत को बचाने में अपना सवर्स्व लुटा देने वाले इन हेलीकॉप्टरों की संख्या सिर्फ़ इतनी ही क्यों ??????? क्यों नहीं इनका एक इतना बडा बेडा तैयार किया जाता जो ऐसे विपदाकारी समय में सबसे अचूक साधन बन कर उभरता आया है । बाढ , भू स्खलन , दुर्घटानाओं और इन जैसी अन्य सब आपदा-विपदाओं में हेलीकॉप्टरों का योगदान सबसे ज्यादा अचूक और अतुलनीय होता है । इसलिए ये भी शाबासी के योग्य है , नि:संदेह हैं ।
मीडिया : जी हां , मीडिया , बेशक मैंने ऊपर कहा कि उसके कुछ अपरिपक्व और बचकाने से कदम उसकी स्थिति को हास्यास्पद बना देते हैं किंतु , इस आपदा में भी जिस तरह से मीडिया ने पीडितों , वहां फ़ंसे हुए लोगों , सरकार प्रशासन की उदासीनता , सैनिकों की जांबाजी और कई अनकही अनछुई दास्तानों की पल पल की खबरों को पूरे देश और विश्व तक पहुंचाया वो काबिले तारीफ़ है । कई बार हमने पत्रकारों को रोते , सिसकते और रुंधते हुए देखा । मीडिया के इस जज़्बे को भी सलाम और शाबासी ।