पोस्ट लिखने से पहले एक क्लेमर लगा दूं , (जी हां मुझे किसी डिस्क्लेमर की कोई जरूरत नहीं क्योंकि पिछले कुछ समय में इतने सारे ब्लॉगरीय अनुभवों से इतना तो जान ही चुका हूं कि अपने ब्लॉग के सब दादा हैं , कई तो परदादा भी हैं , हम भी देर सवेर हो ही जाएंगे , हां ध्यान रहे कि पोता कोई नहीं है ) तो क्लेमर ये कि इस पोस्ट का हर उस किसी से कुछ न कुछ लेना देना है , जिसे जो लेना हो ले ले जिसे जो देना हो दे दे ) ।
पिछले अनुभवों में एक सबसे बडा अनुभव ये रहा कि हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मकता का मोल अगर दो पैसा है तो नकारात्मकता का शेयर बाज़ार अरबों खरबों का है ,सम्मान का भाव टके का है तो अपमान की कीमत अनमोल है , फ़िर क्या तेरी क्या मेरी । और हां एक कमाल की बात ये कि , ये आपके चाहने न चाहने , होने न होने से नहीं होता ये होना है तो होता ही है ।
संदर्भ की जरूरत इसलिए नहीं क्योंकि हमेशा की तरह हिंदी ब्लॉगिंग में सबसे ज्यादा प्रवाहमान पोस्टें और गतिवान माहौल कभी होता है तो वो तभी होता है जब कोई ताज़ा ताज़ा ब्लॉगर सम्मेलन , मिलन , बैठकी हुई हो । आखिर हो भी क्यों न , यही तो वो समय होता है जब तमाम तरह के दंड पेले जा सकते हैं या पेले जाते हैं सो पिछले साल के अभूतपूर्व छीछालेदारी के बावजूद जब इस बार भी हमारे बीच के कुछ ब्लॉगर साथियों ने फ़िर से हिंदी ब्लॉगरों में से कुछ को सम्मानित करने की योजना बनाई तो तभी लग गया था कि ओह , बिग ब्लॉग सीज़न टू , कौन बनेगा ब्लॉगपति सीज़न टू भी कम हंगामेदार नहीं रहने वाला है । अब चूंकि इसकी धमक चमक तभी सुनाई देने लगी जब इसकी पहली रूपरेखा के रूप में एक पोस्ट सामने आई । जल्दी ही ये रूपरेखा और उसके बाद निकला नतीज़ा कुछ कुछ इस तरह का हो गया , कि कम से कम मुझे वो स्टार परिवार अवार्ड या फ़िर कलर्स परिवार अवार्ड सरीखा ही लगने लगा था । मगर चूंकि मामला सम्मान का था , प्रोत्साहन का था वो भी हिंदी ब्लॉगिंग , हिंदी ब्लॉगर्स का था तो हाथ तालियों के लिए अपने आप उठ गए । वैसे भी मेरा मानना हमेशा से यही रहा है कि जब हम खुद अपनी इज़्ज़त नहीं कर सकते , एक दूसरे का सम्मान नहीं कर सकते तो फ़िर काहे के लिए इतना उबाल मारते हैं जब सरेआम कोई मंच से कह जाता है कि अधिकांश हिंदी ब्लॉगर लंपट हैं , वो भी तब जब हम खुद लंपटई दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते तो वे कैसे चूकें जो जाने कबसे इसी ताक में बैठे रहते हैं कि कोई मौका मिले और जम के लताडा जाए इन ब्लॉगरों को , हुंह्ह कभी अपने को साहित्यकार समझने लगते हैं तो कभी पत्रकार , और संपादक तो खैर हईये हैं सबके सब ।
किसी के आतिथ्य की जिम्मेदारी निभाना सिर्फ़ वही समझ सकता है जो निभाता है ,वर्ना घर पर आने की खबर भर सुनकर कईयों को बांग्लादेश तक का वीज़ा बनवा कर जरूरी काम से निकलते देखा जा सकता है , ऐसे में ब्लॉगर जमात , वो भी हिंदी ब्लॉगर जमात का जमावडा लगाकर उनका आ बैल मुझे मार वाली हिम्मत कर जाना कोई कम पगलेटपन वाला बात नहीं है ,लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग करने जैसा पागलपन कर रहे हैं तो फ़िर ये पगलेटपना और ज्यादा हो जाए तो इसमें चौंकना कैसा । लेकिन ये उदवेग इतने भर से ही नहीं रुका सा लगा और सम्मान कार्यक्रम होने तक वो लगभग सम्मान क्रियाकर्म हो चला । इस क्रियाकर्म की समाप्ति पर पता चला कि न सिर्फ़ निर्धारित वर्गीकरण ,बल्कि सम्मानित होने वाले तक बदल गए । कुछ नाम इतने अप्रत्याशित थे कि वे सहज़ प्रवृत्तियों से सीधे ही असहज़ता की ओर ले चले सबको । मुझे खुद "वर्ष २०११ का ब्लॉग खबरी " के रूप में नामांकित और सम्मानित किया गया लेकिन साथ में जोडा गया ब्लॉग "झा जी कहिन "जिसपर मेरी जानकारी के मुताबिक पिछले एक वर्ष में ऐसी कोई पोस्ट या चर्चा मैंने नहीं लगाई है जिसे एक ब्लॉग खबरी के रूप में लगा सकूं । किंतु इसके बावजूद भी मैंने हर्ष पूर्वक उस सम्मान को स्वीकार किया क्योंकि जब तालीम और तहज़ीब ने यही सिखाया है अब तक कि यदि कोई इज़्ज़त दे आपको तो सिर झुका के उसे स्वीकार करना ही मानव धर्म है ।
हां एक ब्लॉगर के रूप में एक ब्लॉग खबरी के रूप में बहुत सारे नामों पर, जिनका ईशारा बहुत सी पोस्टों में किया जा चुका है और अब भी किया ही जा रहा है , जरूर ही आश्चर्य और क्षुब्धता भी हुई , लेकिन मुझे हुई तो हुई । आयोजकों के लिए उन्हें सम्मानित करने (ध्यान रहे कि अपमानित करने के लिए यहां हिंदी ब्लॉग जगत में वज़हें तलाशनी नहीं पडतीं ) के लिए जरूर वाज़िब वजहें रहीं होंगी और सबसे अहम बात ये कि आखिर वे साथी ब्लॉगर्स हैं तो हमारे आपके बीच के ही तो फ़िर उनके सम्मानित हो जाने से कुढ के मर जाने लायक भावना नहीं पैदा हो सकी और माफ़ करिएगा हो भी नहीं पाएगी । मेरे लिए पिछले कुछ घंटों में इस संदर्भ में आई पोस्टों में सिर्फ़ वो पोस्टें सहेजनीय और स्मरणीय रहेंगी जिनमें हमारे साथी ब्लॉगर्स के मुस्कुराते चेहरे , एक दूसरे से बतियाते भाव वाली फ़ोटुएं देखने को मिलीं । शेष , इस पोस्ट सहित तमाम पोस्टें तो हमेशा की तरह गर्त में ही जाती रही हैं और जाएंगी । पुरस्कार समारोह के अतिरिक्त वहां निर्धारित विभिन्न परिचर्चाओं के बारे में कहीं कुछ विशेष न लिखे पढे जाने के कारण और भी निराशा हाथ लगी और ये और भी तब बढ गई जब एक बार फ़िर से एक सत्र को रद्द करने की पिछली भूल को दोहराए जाने का समाचार मिला , खैर ये भी ठीकरा आयोजकों के जिम्मे फ़ूटता है सो फ़ूटा ।
इस कार्यक्रम की समाप्ति के आई पोस्टों में जब इस कार्यक्रम की चर्चा , खबर आने लगी तो उसके समांनांतर वो पोस्टें भी आईं जो बेशक कही तो सहज प्रवृत्तियों के रूप में थीं लेकिन सिर्फ़ चौबीस घंटों के अंदर टिप्पणियों का माल मसाला लगा के उसे इतना असहज़ कर दिया गया मानो इस वर्ष हिंदी ब्लॉगिंग की सबसे बडी दुर्घटना यही घटी कि हमारे ही कुछ साथियों ने हमारे ही कुछ साथियों का सम्मान कर दिया । सो इसके एवज़ में न सिर्फ़ सम्मानित करने वालों , सम्मानित होने वालों को नामी बेनामी सुनामी बनके बनके हमारे ही कुछ साथी दो टके का कहते दिखे तो कुछ साथी पूरी प्रश्नावली दाग बैठे । देखने पढने वाली बात ये कि कुछ साथी जो पिछले दिनों ब्लॉग आपात काल में नज़रबंद थे अचानक ही ऐसी पोस्टों पर नूमदार होकर अपने ब्लॉगरीय अनुभव को साहित्यिक छटा से लपेट कर यूं पिल पडे मानो कंधों पर बोफ़ोर्स लिए बस इसी एक वज़ह से रुके हुए थे । और ऐसा नहीं है कि वे खुद कभी ऐसे किसी आयोजन , किसी सम्मेलन , किसी सहभागिता के हिस्सेदार नहीं बने या आगे नहीं बनेंगे , हां ये जरूर है कि तब इस रवैये में ठीक वैसा ही फ़र्क आ जाता है जैसा किसी की सोच और शैला में तब आता है जब बेटी के विवाह के समय दहेज़ को भर भर के कोसता व्यक्ति अपने बेटे की शादी के समय पूरी सूची लेकर खडा हो जाता है । सोचता हूं यदि यही सब वज़हें हिंदी ब्लॉगिंग को रफ़्तार देती हैं , उन्हें (दुर)गति प्रदान करती हैं तो चलिए यही सही । जो भी हो , ये सब भी आनी जानी है । तो आइए इस लंपटगिरी को इसी तरह प्रवाह देते रहें और एक दूसरे को यूं ही सम्मानित अपमानित करते और होते रहें ।