बुधवार, 30 मार्च 2011

मैच दोबारा से कराइए ......

चचा आफ़रीदी ..बहुत पिटाएंगे अबकि 



अरे रे रे रे रुकिए रुकिए जी , आप तो नाहक हमको गरिया दिए शीर्षक पढ के ..अरे दम धरिए महाराज ..पहिले पूरी बात सुन समझ तो लीजीए जी । इत्ते ऐतिहासिक मैच को जादा हिस्टोरिकल बनाने के लिए .अपने मोहन जी ने अंतरदेशी लिक के डाल दिया था कि ,

सुनो बे भईया ज़रदारी , हो गई तैयारी ,
चिट्ठी की भावना को समझो , आओ बढाएं यारी ..

बस फ़ौरन से पेश्तर नवाब साब मान भी गए ..अरे मानते भी कैसे नहीं ,,सोचा होगा कि चलो अब दोस्त मुलुक में पल रहा अपन बच्चा अफ़जल अजमल से मुलाकात हो ही जाए ..और जाने कौन कौन मंसूबों को बांधे आ ही गए फ़टाफ़ट ..

दुनो जन ..बहुत मेलमिलाप से आपसी खेल भावना से मिले और फ़िर आमने सामने बैठ गए । तय हुआ कि खेल के साथ ही वार्ता भी चलाई जाए ..लेकिन तब तकले समय ही हो गया टॉस का बस दुनो जन बोले रुकिए पहिले टॉस देख लेते हैं ..टॉस जैसे ही जीता भारत ..



सुनिए मिस्टर ज़रदारी .
लैट्स स्टार्ट टुवार्ड्स यारी .
 
सरदारी विद ज़रदारी 


....वार्ता शुरू करें क्या ...अब वे पहले ही टॉस हारने के कारण अफ़रीदी को गरिया रहे थे ..सो बोले ..रुकिए थोडा वेट करते हैं ,


एक ही ओवर में सहवाग उमर का बत्ती गुल कर दिए ..मोहन जी फ़िर मुस्किया के देखे और बोले

..सो मिस्टर ज़रदारी
...बोलें बारी बारी .
.वार्ता शुरू करें क्या ..जरदारी और थोडा सा फ़ुंकते हुए बोले ...वेट सर वेट ..


एके ओवर में दू विकेट जब रियज़वा लिया ...यैस मिस्टर सरदारी .

.नाऊ वी कैन प्रोसीड टू आवर टेबल .
..वी आर नाउ इन लेबल ...
वार्ता शुरू करें क्या ...मोहन जी बोले ..

आई हैव वेट सो कितनी ही बार
..तुस्सी हो गए क्यों इत्ते बेकरार

और इस तरह से पूरा मैच के दारौन ...यही वार्ता शुरू करें क्या वार्ता शुरू करें क्या ..का दौर चलता रहा ....


आखिरकार हो गया पाकिस्तान का बंटाधार ,
सारे पाक खिलाडी दांत गए चियार ..
.और फ़ायनली लास्टली दोनों टेबल पर बैठ ही गए ..तो मोहन जी बोले ..


हां बोलिए ज़रदारी जी नवाब
कौन सी समस्या पहले सुलझाई जाए जनाब            .वार्ता शुरू करें क्या ?

जरदारी बौखलाए , सुन्न से सन्नाए ..बोले ..

मारिए गोली समस्या को आप हमारी जान बचाइए ,
अब वापस कैसे जाएं घर को , मैच दोबारा से कराइए ......

जे हैं चंपियन ...असली चंपियन 

बस तैयार बैठा हूं दसवां विकेट गिरा और ये दबाया प्रकाशित करें का बटन ........ठीक आखिरी विकेट के गिरते ही

मंगलवार, 29 मार्च 2011

किक्रेट की कूटनीति ..मोहाली मिलन ..और पगलाए हुए दो देश ...








देखिए कितना दोस्ताना सा रिश्ता है दोनों के बीच , हमेशा से ही है जी



न तो भारत पाकिस्तान पहली बार इस तरह से सेमीफ़ायनल में पहुंचे हैं ..न ही क्रिकेट विश्व कप में इस तरह दोनों का आमने सामने आना कोई धूमकेतु के धरती पर आ जाने जैसा कुछ है ...और न ही  क्रिकेट के नाम पर पहले से ही पगलाए दो देशों के लिए ये कोई अनोखी बात है ..तो फ़िर आखिर अचानक ही ऐसा क्यों देखा और दिखाया जा रहा है मानो भारत पाकिस्तान का क्रिकेट मैच इस शताब्दी में होने वाली कुछ बहुत ही अनोखी घटनाओं , दुर्घटनाओं में से एक है । ये जरूर है कि अब चूंकि समाचार चैनलों द्वारा किसी भी बात को ग्लैमराईज़ करने या हौव्वा खडा कर देने की लत के कारण वर्तमान में देश का सबसे बडा मुद्दा यही है । सब कुछ इसी के इर्द गिर्द घूम रहा है .।


यदि पागल पन सिर्फ़ इतने पर ही सीमित होता तो भी ठीक था ..लेकिन लगता है कि इसका दायरा राजनीतिक और कूटनीतिक गलियारों तक भी पहुंचा हुआ है । भारतीय प्रधानमंत्री ने पडोसी देश के मुखिया को न्यौता भिजवा दिया ..जैसा कि अपेक्षित ही था उन्होंने फ़ट से मान भी लिया । और अब उन दोनों का एक क्रिकेट मैच में एक साथ उपस्थित होने को लेकर और उसके बाद कुछ बातचीत होने को लेकर इतना स्यापा मचा हुआ है मानो सब कुछ तय कर लिया गया है कि इस मोहाली के इस मिलन के बाद .दोनों देशों के बीच अमन चैन का एक नया दौर शुरू हो जाएगा । वाह वाह क्या सपने देखे और दिखाए जा रहे हैं । एक मैच ..जिसे दोस्ताना टाईप मैच बनाया दिखाया जा रहा है ...उसकी असलियत से वाकिफ़ होने के बावजूद दोनों देशों के कूटनीतिज्ञ बेशक ये नाटक रच रहे हैं लेकिन किसे नहीं पता है कि दोनों देशों के बीच एक पल के लिए भी दोस्ताना भावना तो क्या कई बार खेल भावना जैसी स्थिति से भी अलग जाकर मैच होता है । खेल दुनिया भी इस बात से भलीभांति परिचित है कि दोनों देशों के बीच , जब मैच होता है तो ऑस्ट्रेलिया -इंग्लैंड के सनातनी प्रेम से भी ज्यादा प्यार छलकता है ...दोनों ही ओर की जनता तो जनता खिलाडियों के बीच भी इतने प्रेम और भाइचारे का संवाद खेल के दौरान होता है कि ..खुद खेल भावना की भावना यदि कोई होती होगी तो कसम से तर ही जाती होगी । तो इतने दोस्ताने भरे माहौल से अच्छा मौका इस देश के पास और क्या होगा ..को दोनों देशों के समझदार मुखिया दशकों पुरानी समस्याओं को झट से हल करके ..उन लाखों शहीदों की कुर्बानी को सार्थक कर देंगी जिन्होंने इसके लिए न सिर्फ़ अपना बल्कि अपने पीछे पेट्रोल पंप और अनुदान पाने के लिए कतारों में खडे अपने आश्रितों को भी इस देश के लिए भेंट कर दिया । लेकिन फ़िर इससे पहले भी कई बार आए मौकों पर ..सरदारी जी ज़रदारी जी के इतने निकट क्यों न आ सके ....हर साल कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे महानकली रियैलिटी टीवी शोज़ , खासकर वो फ़ूहड से हास्य शोज़ या फ़िर संगीत के नाम कोरस में गाने वाले तमाम गायकों के अमर गायक बनने का सपना दिखाने वाले रियलटी शोज़ ,उनमें भी होने वाले तमाम सेमिफ़ायनल और ग्रांड फ़िनाले के मौके पर ऐसा ही कोई आमंत्रण भेज देते । क्या पता कब जम्मू समस्या से सुलट के कशमीर का कलेश सब खत्म हो गया होता ..। फ़िर इस जैसे मौके तो जाने कितनी बार के बाद एक बार आए न आए ..जबकि इन शोज़ में तो चाहे तो उसके फ़र्स्ट , नहीं तो सेकेंड या थर्ड फ़ोर्थ और उसके बाद अनंत काल तक के लिए ..ये गोलमेज सम्मेलन करने के मौकों की संभावनाएं बरकरार थीं । कम से कम छिछोरे कॉमेडियन दोनों को हंसाते तो रहते गंभीर वार्तालाप के दौरान ।


वैसे जब इतने ऐतिहासिक कदम उठाए जा रहे हैं तो मन में कई तरह की शंकाएं और दुविधाएं हमारे जैसे कुछ अक्रिकेटियों के मन में आ ही जाती है और अक्रिकेटियो ही क्यों क्रिकेट के प्रेमियों या कहिए न कि पूरे देश के गैर कूटनीतिक सोच वाले आम लोगों के मन में भी आ रही होंगी कि जब ये मौका इतना ही युगांतकारी  है तो फ़िर कसाब अफ़ज़ल और उस जैसे तमाम राजकीय अतिथियों को भी सादरसहित न सही आदरसहित ही इसके दर्शन का मौका देना चाहिए था ..क्य़ा पता मसला सुलझ ही जाए और वे खुशी खुशी गले मिलके अपने मुलुक में गुलुक हो सकें । एक और बात ये कि खेल को पैसे में कैसे बदलते हैं इसका फ़ार्मूला इजाद करने वाले सटोरियों को भी खास रूप से बुलाया जाना चाहिए था , ....आखिर कितना बडा आर्थिक प्रवाह वे देश के अंदर कर जाते हैं इस एक मैच के स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाते हुए । इस पोस्ट के लिखे जाने के चौबीस घंटों के बाद ही दुनिया को ये  पता चल न चले कि  दोनों नें गोल मेज पर आपसी बांहों को मिला कर गोला बनाया कि नहीं ,ये पता जरूर चल जाएगा कि गेंदबाज ने कितनी बार अपने दांतो मसूढो से गेंद को काटा , कितनी बार उसे जाने कौन सी अजीब सी चुनी हुई जगह घिस कर गरम या नरम किया , किसने कितनी बार एक दूसरे के कानों आंखों में एक दूसरे के पुरखों का उद्धार किया ..या ऐसे ही और कई विस्मरणीय क्षण गवाह बन चुके होंगे । इसके अलावा जो हारेगा जीतेगा उनके लिए भी अपने पर्सनल के लिए कुछ यादें मिल जाएंगी उन्हें बाय डिफ़ॉल्ट ..मसलन किसका पुतला फ़ूंका और किसके घर पर पथराव किया गया आदि आदि टाईप के जनांदोलन से जुडी यादें , उनके अपने देश में माला या जूतों से उनका स्वागत ....अब क्या किया जाए ...पहले ही कहा था कि खेल भावना की भावना कुछ ज्यादा भी भावनात्मक रुप से घुसी हुई है दर्शकों में वे थ्री डी इफ़्फ़ेक्ट की तरह दिखती बुझती रहती हैं । तो चलिए कि स्वागत किया जाए उस महान दिन का जो कि आपको अगले साल आने वाले महाप्रलय से पहले नसीब हुआ है ....अरे आप तैयार हैं न ....


शुक्रवार, 25 मार्च 2011

आरक्षण और रेल , क्रिकेट का खेल , और एक अदद शहीद दिवस ..कुछ भी कभी भी





पिछले दिनों कुछ घटनाएं ऐसी थीं तो बहुत आसपास भी नहीं घटते हुए मस्तिष्क को आंदोलित किए रहीं । ताज्जुब की बात ये रही कि विश्व को अचंभे और अचक में जहां दुर्घटनाओं ने डाला वहीं भारत खुद की उत्पन्न  घटनाओं से ही उथल पुथल करता रहा । राजनीतिक घटनाक्रम को बिल्कुल सिर से परे करते हुए ..सिरे से इसलिए क्योंकि भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर किसी भी बात या बहस को आगे बढाने से लगता है कि व्यर्थ ही अपना समय और सोच ज़ाया कर रहे हैं ..क्योंकि इस भैंसालोटन प्रजातंत्र की व्यवस्था में फ़िलहाल तो मोहन जी और उनकी मदाम  जी ने ये तय कर लिया है कि पूरी बेशर्मी से वो अपने त्याग को इंज्वाय करते ही रहेंगें ..वाह रे त्यागी जी और वाह रे उनका त्याग । तो इससे परे जिस घटना ने सबसे पहले ध्यान खींचा वो था जाटों का आरक्षण आंदोलन । न न न न न, बिल्कुल नहीं न तो आरक्षण , न ही जाट और न ही उनका आंदोलन ही मेरे भीतर उठे मानसिक  द्वंद का बायस था ..मैं ये भी नहीं सोच रहा था उस वक्त कि आखिर रेल की पटरियों का रेल के आरक्षण से तो एक पल को सूत्र बिठाया जा सकता है लेकिन रेल की पटरियों के इस सामाजिक आरक्षण से कैसा तालमेल हो सकता है ये अपने बूते से बाहर की बात लगी  । मुझे सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की हुई कि जाटों ने लगभग पंद्रह दिनों तक एक खास क्षेत्र में रेल का चक्का जाम तक कर दिया । प्रशासन हर बार की तरह फ़िर से एक बार खुद को अपंग और बेबस साबित करने में सफ़ल रही और इसके लिए इस बार भी उसे कोई खास मशक्कत नहीं करनी पडी । विश्व की सबसे बडी परिवहन व्यवस्थाओं में से एक भारतीय रेल ने इसका विकल्प क्या निकाला देखिए , लगभग दस दिनों तक ट्रेनों की आवाजाही बाधित रही और बाद में कुछ रेलगाडियों के परिचालन को स्थगित ही कर दिया गया । सवाल यहां आंदोलन , या फ़िर उसके स्वरूप का नहीं है सवाल यहां ये है कि आखिर क्यों हर बार सडकों , पटरियों को ही ऐसे आंदोलनों , हडतालों , और बंद के निशाने पर लिया जाता है । आम आदमी को कठिनाई में पहुंचा कर उनका ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए जिन्हें ऐसे किसी बंद से कोई फ़र्क नहीं पडता , सडक रेल न सही , हवाई जहाज ही सही । आंदोलनकारी हवा में तो आंदोलन करने से रहे । हर बार इस बात की प्रतीक्षा की जाती है कि आखिरकार बाद में जब न्यायपालिका बुरी तरह लताडेगी तब फ़िर से इस स्थिति पर नियंत्रण पाया जाएगा । आरक्षण की व्यवस्था , उसका लाभ या हानि , असीमित काल तक चलने चलाने वाली प्रथा और इन मुद्दों पर तो बहसें होती और चलती रहेंगी लेकिन अब तो विचार इस बात पर होना चाहिए कि आखिर कब तक , कब तक एक आम आदमी इन आंदोलनों और ऐसे सभी बंद ,हडताल और आंदोलनों के कारण सडक और रेलों के धक्के खाने पर मजबूर किया जाता रहेगा वो भी आम आदमियों के दूसरे झुंड द्वारा ही ।

 
अब बात क्रिकेट की , यूं तो वैसे भी विश्व कप की खुमारी चल रही है उपर से मेजबानी भी अपने ही हाथ फ़िर इंडिया ब्लू को तो इस बार लोगों ने इतना ब्लो किया हुआ है कि ऐसा लग रहा है कि विश्व कप इस बार फ़िर हां अट्ठाईस बरसों के बाद एक बार फ़िर से वही दीवानगी पैदा की जाने वाली है क्रिकेट को लेकर । जैसा कि मैं अपने एक पोस्ट में इससे पहले बता भी चुका हूं कि इस बार आश्वर्यजनक रूप से  क्रिकेट में सट्टे के जिस खेल से और मेरा परिचय हुआ उसने मुझ जैसे क्रिकेट के बिल्कुल भी नहीं दीवाने आदमी की भी दिलचस्पी इन हो रहे क्रिकेट मैचों में थोडी बहुत तो जगा ही दी । बातों बातों में जब उस दिन मुझे ये पता चला कि ये सारा खेल कुछ खेल से इतर कुछ और ही अलग तरह के खेल जैसा है । इन सब बातों में सच्चाई कितनी है ये तो ईश्वर ही जाने और वे जानें जो इन सबमें लिप्त हैं । लेकिन मेरी समझ में फ़िर भी ये नहीं आता कि सिर्फ़ गेंद बल्ला भांजने के एवज में यदि जनता इन्हें न सिर्फ़ बेशुमार पैसा , नाम , दीवानापन और कई तो अपना सर्वस्व ही लुटाए बैठे हैं और ये सब जानते हुए भी आखिर ऐसा कौन सी वो वजह होती है जो खिलाडी इन सट्टा बाजों के झांसे में फ़ंस जाते हैं । जो भी हो इन दिनों मैं सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर अपने स्टेटस अपडेट में इन सट्टेबाजों की अटकलों का जिक्र भर कर देता हूं और फ़िर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वही होता है जो लगता नहीं है कि हो पाएगा तो एक बार फ़िर से उन अटकलों को टटोलता हूं । अगर उनकी मानी जाए , ( अब तक लाख मन के  न  मानने के बावजूद और बहुत बार ठीक उलट हालात हो जाने के बावजूद भी यही हुआ है जो फ़ुसकारा उन्होंने छोड दिया ) तो भारत पाकिस्तान के बीच का सेमीफ़ायनल भारत जीतेगा और विश्व कप भी । और इसके पीछे बडे कमाल के तर्क भी हैं भाई लोगों के ..सचिन का आखिरी विश्व कप है ..आगे सुनिए भारतीय बोर्ड का सीधा सीधा प्लानिंग है कि अगले दस बरसों के लिए यदि भारतीय पब्लिक को पगला के रखना है क्रिकेट के नाम पे तो इस बार का विश्व कप तो लेना ही होगा ..वर्ना आईपीएल का बैंड बजाने की भी धमकाहट मिली है । रही सही कसर पूरी कर दी है डॉन जी ने सुना है ....खिलाडियों के कप प्लेट मांजने वालों तक को ..मंहगे रेस्तरां में मुर्गी खाते देखा गया है । चलिए बहरहाल जो भी हो लेकिन एक बात तो खुशी की है कि भारत अब तक रेस में बना हुआ है और यदि सट्टा बाबा की लफ़्फ़ाजी में कोई दम है तो फ़िर तो इस बार ...ब्लू बीड ...ब्लू बीड हो जाएगा ।


२३ मार्च यानि शहीद दिवस ...ये शहीद दिवस या खेल दिवस या ऐसा ही कोई अन्य दिवस जब आता है और जिस ढंग से उसे मनाने का ढकोसला किया जाता है वो देख कर मुझे अक्सर लगता है कि एक ये बात भी उन कुछ अनुकरणीय बातों में से एक ये भी है कि अपने देश के शहीदों और देश के जवानों और देश पर मर मिटने वालों का कृतज्ञ कैसे रहा जाता है । ऐसे अवसरों पर उनकी भावना , और श्रद्धा सचमुच ही यहां की तरह नाटकीय सी नहीं लगती । इस दिवस पर तो अब सरकार इतनी बेशर्म हो जाती है कि गांधी और नेहरू दिवसों की औपचारिकता को भी निभाने की कोशिश नहीं करती, और करे भी क्यों अब इन शहीदों को , इनकी शहादत को , इनके जीवन को एक तिल्सम और आकर्षण , एक आदर्श मानने वाले पागल अब बचे ही कितने हैं । कुछ की संख्या में इतिहास को भलीभांति महसूसने वाले कुछ लोग ही भगत सिंह , राजगुरू और सुखदेव को वो मानते हैं कि जिसके कारण आज देश को ये हक मिला है कि वो दिवस भी मना सके वर्ना ब्रिटिश हुकूमत ने तो अपना दिवस करने के लिए सभी गुलाम देशों को एक चिर रात्रि में धकेल दिया ही था । शहीद दिवस पर पढते हुए देखा पाया कि कई स्थानों पर इस बात के लिए रोष व्यक्त किया था कि आज बहुत से इतिहासकार इन बागी देशभक्तों को आतंकवादी करार देने पर तुले हुए हैं और अपनी पुस्तकों में लिख भी रहे हैं । मुझे आश्वर्य हुआ इस बात पर कि , वे जो भी अति बुद्धिमान लोग हैं ..उन्हें ये बात समझ में कैसे नहीं आई कि आज जिस ठसक से वो अपनी पुस्तकों में जिन्हें आतंकवादी कह रहे हैं , ये सब उन्हीं के बलिदान के कारण संभव हो सका है । यदि वे आतंकवादी थे तो फ़िर आज के अफ़जल और अजमल कौन हैं ...क्योंकि कोई पागल भी इन दोनों की तुलना करने की हिम्मत नहीं कर सकता ..लेकिन किंचित ही ये विद्वान सिर्फ़ पागल नहीं महापागल होंगें तभी तो ऐसा लिख बता और साबित करना चाह रहे हैं । सरकार , उससे पोषित संस्थाओं से शहीद दिवस की भावना को समझ सकने की अपेक्षा करना सरासर बेमानी है , इसलिए मुझे लगता है कि ऐसे अवसरों पर सबसे बेहतर कार्य यही हो सकता है कि अपने घर के बच्चों को इन वीर सपूतों की बातें , उनकी कहानियां सुना कर उनसे इनका परिचय कराएं .....मैंने तो यही किया ..