गुरुवार, 11 नवंबर 2010

जालियांवाला बाग ,शहीदी कुआं ....और कुछ यादें ..पंजाब यात्रा -५


पिछली पोस्ट में आप पढ चुके हैं कि कैसे हमने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की सैर और कुछ खरीददारी वैगेरह के बाद , वहीं पास में ही स्थित , जालियांवाला बाग की ओर बढ चले । जालियांवाला बाग के लिए मेरी धुंधली स्मृति में सिर्फ़ इतना था कि जब पिताजी के साथ गया था तो उस कुएं में झांक कर देखा था जिसे अब जाकर जाना कि शहीदी कुआं कहा जाता है । मुझे ये याद नहीं कि उस वक्त वो कुआं कैसा बना हुआ था , मगर अब जबकि उसे देखा तो पाया कि यकीनन ऐसा तो कतई नहीं था ।




जालियांवाला बाग के गेट के सामने ही आपको ढेर सारे लोग मिल जाएंगे कुछ उनमें से वो होंगे जो जालियांवाला बाग की तस्वीरों की मिनि एलबम बेचते दिख जाएंगे और कुछ वे जो आपको वाघा बॉर्डर ले जाने को तत्पर होंगे । खैर हम अंदर की तरफ़ चल पडे । अंदर एक बहुत ही खूबसूरत बाग बना हुआ दिखा । पहली ही झलक में जालियांवाला बाग की खूबसूरती को आप भांप सकते हैं ।














धूप तेज़ थी , इसलिए अंदर घुसते ही सब सुस्ताने बैठ गए । और मैं अपनी आदत से मजबूर उन्हें वहां छोड चल दिया आसपास का ज़ायज़ा लेने ।





मैं महसूस करके देखना चाह रहा था कि आखिर उस दिन क्या कैसे हुआ होगा । वो बाग चारों तरफ़ आबादी से घिरा हुआ है पता नहीं तब था कि नहीं । मैं यही सोच रहा था कि जब जनरल डायर ने सिपाहियों को बदस्तूर गोली चलाने और जब तक कि एक भी खडा व्यक्ति दिखे तब तक चलाते रहने का आदेश दिया होगा तो क्या गोलियों की आवाज आसपास के लोगों को सुनाई नहीं दी होगी और जिस बाग के दरवाजे को बंद करके दस हज़ार से अधिक लोगों पर गोलियों चलवाई जा रही थीं उस भीड में क्या अमृतसर का कोई ऐसा भी घर था जहां से वहां उस समय कोई मौजूद नहीं होगा तो फ़िर उस दरवाजे के खुलने के बाद कैसा हाहाकार मचा होगा । मैं सोच रहा था और कदम इधर उधर चल रहे थे । गेट के साथ बने हुए छोटे से चित्र गलियारे में पहुंच कर मैंने जैसे ही क्लिक किया ..मुझे टोका गया कि फ़ोटो खींचना मना है । मैंने फ़ौरन ही माफ़ी मांगी और फ़िर अच्छी तरह से उस चित्र गैलरी को देखने लगा । मैं समझ नहीं पाया कि आखिर किस कारण से मुझे रोका गया ..वो इकलौता चित्र ये था जो गलती से मैं खींच चुका था ।

साथ में बने एक और चित्रशाला में लगी विशाल पेंटिंग

साथ में ही अमर ज्योति , जिसकी लौ लगातार जलती रहती है । इसका निर्माण 1961 में कराया गया था ।






पुत्र आयुष बडे ही गौर से इस बाग के ऐतिहासिक महत्व के बारे में पूछ रहा था और मैं और उसकी मम्मी उसे बताती जा रही थीं ।


बीच बीच में साढू साहब के सुपुत्र जॉनी भी बहुत ही ध्यानपूर्वक सब सुन रहे थे । हम सब शहीदी कुएं की तरफ़ बढ चले ।



शहीदी कुएं में बहुत ही तब्दीली आ गई थी । सब उसे गौर से देख रहे थे । श्रीमती जी ने जैसे ही कुएं में झांका और जब मैंने उन्हें बताया कि उस दिन ये कुआं लोगों के लाशों के ढेर और उनके रक्त से ही भर गया था ।

कुएं के अंदर का दृश्य

उनका मन इतना तिक्त और विचलित हुआ कि वे ज्यादा देर तक खडी नहीं रह सकीं और आगे की ओर बढ चलीं । मैं थोडी देर तक और घूमता रहा ।

यही है वो स्थान जहां से गोलियां चलाई गईं थीं





अब तक शाम के पांच बज चुके थे और अभी दुर्गयाना मंदिर भी जाना था ।

जब तक हम दुर्गयाना मंदिर पहुंचे , वहां दुर्गा पूजा के कारण इतनी अधिक भीड हो चुकी थी कि , गेट के पास खडे पुलिसकर्मी ने हमें सलाह दी कि , हमें छोटे बच्चों के साथ अभी अंदर नहीं जाना चाहिए । और मैं मन मसोस कर जसदेव जी को वापसी का ईशारा कर चुका था ....।


मगर हां अभी पंजाब से वापसी नहीं हुई थी । आगे की पोस्टों में मैं आपको मिलवाऊंगा होशियारपुर में एक अनोखे हनुमान जी की प्रथा से और फ़िर चलेंगे घूमने ...प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के कॉलेज ...जहां उन्होंने पढाई की और बाद में पढाया भी ....

11 टिप्‍पणियां:

  1. अजय भाई, आपका बहुत बहुत आभार ... इस पावन भूमि के दर्शन करवाने के लिए !

    सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ ...

    सभी अमर शहीदों को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन !

    जवाब देंहटाएं
  2. जलियांवाला बाग़ का विकास देखकर हैरान हूँ । बहुत सुन्दर लग रहा है आपके चित्रों में । हम तो १५ साल पहले गए थे भाई ।
    बढ़िया प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुति ..
    सुन्दर चित्र ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति ....पढते पढते मन उस समय में पहुँच गया जब यह हुआ होगा ...कैसा मंजर रहा होगा ...?

    जवाब देंहटाएं
  5. जी सच कहा डा. दराल सर , सचमुच ही अब जालियांवाला बाग को एक बहुत ही सुंदर टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित किया गया है

    जवाब देंहटाएं
  6. संगीता जी ,
    मैं खुद यही सोचता रहा था वहां घूमते हुए और यकीन मानिए जब आप कुएं में झाकेंगी तो रोम रोम सिहर उठता है उस दिन का मंजर सोच के ...जाने वो अंग्रेज किस मिट्टी के बने थे असल में तो दुनिया को सभ्यता का पाठ पढाने वाले वे ही सबसे बडे वहशी थे ।

    जवाब देंहटाएं
  7. हमारे देश के शहीदों का कैसा भाग्‍य है? जो देश के लिए शहीद हो गए वे आज कहीं नहीं हैं लेकिन गांधी, नेहरू, जिन्‍ना के परिवारों से चिड़ी का बच्‍चा भी आजादी के लिए शहीद नहीं हुआ आज वे हिन्‍दुस्‍थान और पाकिस्‍तान लिए बैठे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. ओह आपने बहुत ही महत्वपूर्ण बात उठा दी अजित गुप्ता जी । सच है कि देश की सबसे बडी विडंबना यही है , मगर शायद ये इस वजह से भी रहा क्योंकि अधिकांश समय तो यही राजनीतिक दल शासक की भूमिका में रहा । अभी तो जाने कितने ही गुमनामीं में छुपे हुए हैं जिनकी कभी सुध नहीं ली गई । क्या उस दिन जालियांवाला बाग में मौत को गले लगाने वाला आज के इन घटिया नेताओं से जरा सा भी कम था ..बल्कि उनसे तो इन राजनेताओं की तुलना भी नहीं की जा सकती । आम लोगों को उन शहीदों को सम्मान देने की भावना को जगाना होगा ...। आभार आपका एक नया विषय देने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  9. कल्पना नहीं कर सकता हूँ कि इतनी सुन्दर जगह पर इतना जघन्य अपराध किया था अंग्रेजों ने।

    जवाब देंहटाएं
  10. जंहा जाकर मन विचलित हो जाए वंहा जाने से बचना चाहूँगा | आपके इस प्रस्तुतीकरण हेतु धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत बेहतरीन पोस्ट लगी भैया...अंदर के गैलरी में लगी वो विशाल पेंटिंग सच में लाजवाब बनायीं गयी है और एक पल जो उस तस्वीर को गौर से देखिये तो अंदर तक रूह सिहर उठती है....

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला