बुधवार, 4 अगस्त 2010

कैसे कह दूं यार .....कि कोई फ़र्क नहीं पडता .....अजय कुमार झा



अपन शुरू से ही मस्तमौला टाईप के प्राणी रहे हैं .......जहां बैठे वहीं धूनी शूनी जमा ली ....ये नहीं देखा कि ....कंपनी देने के इंसान साथ बैठेंगे या भूत प्रेतों की टोली ............जो जैसा मिला ..उसीसे हो लिए ......बस थोडी देर की ही झिझक और कैफ़ियत .....फ़िर क्या झाजी और क्या प्राजी ...। इसलिए ही अक्सर ये कहते सुनते पाए जाते कि ...चलो यार कोई फ़र्क नहीं पडता ......। मगर जाने क्यों ..कभी कभी लगा कि नहीं यार ऐसा कैसे ..........कि कोई फ़र्क नहीं पडता ??




सिर्फ़ एक दो माह पहले ही ब्लॉगवाणी जैसा प्यारा, दमदार, और सबसे लोकप्रिय ( ब्लॉगवाणी की हैसियत तो कुछ ऐसी थी , आप उससे प्यार करें ...या आप उससे कुढ कर नफ़रत करें .......मगर दोनों ही स्थितियों में आप उसकी उपेक्षा नहीं कर सकते ) , यकायक ही चलते चलते ..फ़्रीज़ हो गया ..........वो भी भरी गर्मी में ..। जाने कितनी ही मिन्नतें , प्रार्थनाएं , मनुहार , और पोस्टों के बावजूद , वो न मानना था .......न ही माना ...। चर्चा चली तो ..कहा गया ...छोडो यार कोई फ़र्क नहीं पडता .....सब कुछ नार्मल हो जाएगा ....कोई न कोई उसकी जगह भी आ जाएगा ..ब्लॉगिंग भी नहीं रुकेगी ........। और सच में ही सब कुछ वैसा ही हुआ .....चिट्ठाजगत के साथ इंडली , और हमारीवाणी जैसे नए एग्रीगेटर्स ने पदार्पण भी किया ..........मगर फ़िर भी .......हां फ़िर भी ......कैसे कह दूं यार ..कि कोई फ़र्क नहीं पडा......। आंकडे बता रहे हैं कि पाठकों की संख्या ....आधे से भी कम हो गई है .....अब हम बिपाशा बसु या आमिर खान तो ठहरे नहीं कि ....लोग ब्लॉगवाणे के सहारे नहीं ....डायरेक्ट गूगल बाबा के हलक में घुस कर हमें पढने के लिए भागे आएं .........क्यों है न ?


टेलिविजन ने ब्लैक एंड व्हाईट से लेकर रंगीन तक के सफ़र के साथ ही इंसान के सफ़र को ...हिंदी और इंगलिश के सफ़र ...दोनों ही फ़्लेवर का मजा दिया ..और अब तो लद गए वो जमाने जब कितने चैनल टाईप के सवाल पूछे जाते थे ....अब तो लाईफ़ झिंगालाला हो रही है सबकी ...तो ऐसे में एक दिन अचानक ही टीवी में बोला पटाखा ...और उसके बाद शांति ही शांति ......। ये क्या हुआ ....फ़िर कहा गया छोडो यार ....कोई फ़र्क नहीं पडता ......और भी गम हैं जमाने में .....और फ़िर एक टीवी की ही आवाज और चित्र नहीं है न घर में , बांकी की चिल्ल पों तो मची ही हुई है .........। मैकेनिक जी बुलवाए गए ........जाते जाते कह गए कि चौबीस घंटे में वापस आएंगे ये बुद्धु बक्से जी महाराज .......। और पूछिए मत वो कमी ( अरे उस टीवी वाली खाली जगह के अलावा भी ) जो खली .....वो तो इतना खली ...कि बस समझिए कि वो खली ...खली जितनी खली ......। और तब भी मन में आया कि कैसे कह दूं यार ...........कि कोई फ़र्क नहीं पडता ।


इसी दौर में ......खराब स्वास्थ्य के कारण .....हुआ कि जिस ब्लॉगिंग से हम इस कदर चिपके हुए थे कि ....घर से लेकर बाहर तक श्रीमती जी ने उसे हमारा ..extra marital affairs तक घोषित कर दिया था ....अपनी उस ....प्रेयसी से भी हमें, मिनट , घंटे, दिन तो दूर हफ़्ता और महीना तक दूर होना पडा .....। और सोचिए कि उस पर ही कहा गया कि ......कोई बात नहीं यार .....कोई फ़र्क नहीं पडता .....। मगर ये हम ही जानते हैं .........ओह नहीं ये तो आप सब भी जानते हैं कि ....फ़र्क तो पडता है .....कितना पडता है .......भले एक पोस्ट लेखक के रूप में न सही ........एक पाठक ( बताईये यहां हम झा जी से पाठक जी हो जाते हैं ) के रूप में ....वो भी टिप्पेरे पाठक के रूप में....... हमारी गैरमौजूदगी से फ़र्क पडता है न .......बिल्कुल पडता है जी .........क्यों है न ????

20 टिप्‍पणियां:

  1. फर्क तो हर चीज से पढता है झा जी - पर ये दुनिया फिर भी चलती रहती है.....

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  2. आपकी टिपण्णी का बटन कहीं खो सा गया लगता है - क्या फर्क पडता है - टिपण्णी तो दे ही दी - पर फर्क पडता है औरों को ढूँढने में मुश्किल हो सकती है :)

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  3. फर्क तो पड़ता है भाई !!
    बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है इस लिए ही तो बेशर्म बन कर बोले थे ब्लॉग पर आया करो कमेन्ट दे कर जाया करो !!

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  4. बहुत फ़र्क़ पड़ता है पाठक जी, ओह, सॉरी, झा जी।

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  5. कैसे कह दूं यार ...........कि कोई फ़र्क नहीं पडता ...बहुत पड़ता है.

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  6. शायद सबके मन की बात कह दी ...फर्क तो हर बात से पड़ता है ..पर जो चीज़ नहीं मिलनी उसके लिए आदत बदलनी पड़ती है ..

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  7. आपने सही कहा...बहुत फर्क पड़ता है...

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  8. बहुत फ़र्क पडता है, लेकिन हमे उन लोगो की मजबुरी भी समझनी चाहिये... जरुर कोई खास बात होगी जो ब्लागंबाणी रुठ गई, जरुर हम मै से कोई बेवफ़ा होगा... किसी को फ़र्क पडा हो या ना पडा हो मुझे दुख जरुर हुआ, जेसे कोई अच्छा मित्र बिछुड गया हो...

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  9. अरसा पहले दूरदर्शन पर एक विज्ञापन आया करता था, हैलमेट के बारे में(सर पर पहनने वाले हैलमेट के बारे में), आखिरी लाईन थी,
    ’फ़रक तां पैंदा है जी।’
    मौजूं है ये लाईन यहां भी।

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  10. कैसे कहें हम,
    ब्लॉगिंग ने क्या-क्या खेल दिखाए,
    औरों को तो पतझड़ लूटे,
    मारा हमें टिप्पणियों के सूखे ने....
    बीच भंवर से अब निकला न जाए...
    कैसे कहें हम...

    जय हिंद...

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. अजय भाई, मगर मेरा अनुभव आपसे उल्टा है। ब्लॉगवाणी के समय संवाद डॉट कॉम की तीन माह की एवरेज एलेक्सा रैक तीन लाख के आस पास थी, आज यह एक लाख की उछाल के साथ दो लाख सोलह हजार पर है। और पिछले एक माह की रैंकिंग की बात करूँ तो यह वर्तमान में एक लाख तिरान्नबे हजार है।
    अब आप पूछोगे कि जब ब्लॉगवाणी बंद है, तो पाठक कहाँ से आ रहे हैं? सीधा सा जवाब है कि नियमित पाठक, आप द्वारा की गयी टिप्पणियों और गूगल सर्च से। यानी अगर मैटर आम आदमी के उपयोग का होगा, तो पाठक उसे खोजते हुए पहुँच ही जाएँगे। जैसे फूल की गंध सूँघ कर भंवरा अपने को रोक नहीं पाता, ठीक वैसे।

    …………..
    अंधेरे का राही...
    किस तरह अश्लील है कविता...

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  13. सच कहा आपने फ़र्क तो पड़ता है...
    हाल इसीलिए बद हैं क्योंकि हर कोई कह के निकल लेता है कि..कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

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  14. फ़र्क तो पडता ही है और सभी को।

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  15. कैसे कह दूँ ...

    ब्लॉगवाणी में ठहराव आया 18 जून 2010 को

    अपने लोकप्रिय ब्लॉग पर मैं नियमित लिखता था तो
    18 जून से 18 जुलाई 2009 की अवधि (ब्लॉगवाणी सक्रिय) में
    6212 पन्ने देखे गए, मतलब रोज़ाना 200

    यात्रा पर जाने के कारण लिखना बंद हो गया तो
    18 जून 2010 से 18 जुलाई 2010 की अवधि (ब्लॉगवाणी निष्क्रिय) में
    10512 पन्ने देखे गए, मतलब रोज़ाना 340

    बाकी सभी ब्लॉग्स का यही हाल है

    कैसे कह दूँ ...

    बी एस पाबला

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  16. बिल्कुल फ़रक पडता है जी, आपकी गैरमौजूदगी में बडा सूना सूना सा लगता है.

    रामराम

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  17. इस बार आपके लिए कुछ विशेष है...आइये जानिये आज के चर्चा मंच पर ..


    आप की रचना 06 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

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  18. फर्क तो पडता ही है |बहुत खूब लिखा है |
    आशा

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  19. मजेदार ...ऐसे लगा झा जी बोले चले जा रहे है ...फर्क तो बहुत पड़ता है ...मगर इसे एडिक्शन कहते हैं ...प्यास , नशा , तड़प ये शब्द भी बयाँ करते हैं कुछ उसी हालत को ..बदनाम होने से अच्छा है थोड़ा थोड़ा मन पहले ही इस से हटा लो । लेख पसंद आया ।

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला