बुधवार, 27 जनवरी 2010
वर्चुअल स्पेस बनाम फ़िजिकल एपियरेंस, चर्चा डोमेन मामला, ब्लोग्गर मीट ,.......इन्हीं संजीदा शब्दों पर कुछ असंजीदा और बकवास सी बातें
छत्तीसगढ की ब्लोग्गर्स मीट से बहुत कुछ अपेक्षित निकला , और कुछ ऐसा भी जो अपेक्षित नहीं था । इस मीट की रिपोर्टिंग की पोस्टों में कई सारी बातें निकल के आ रही हैं , और मुझे कोई आशचर्य नहीं कि हिंदी ब्लोग्गिंग की स्वाभाविकता के अनुरूप उस सम्मेलन की सकारात्मक बातों को दरकिनार करते हुए चर्चा डोमेन का मुद्दा ज्यादा हावी रहा या शायद उसे ज्यादा तरज़ीह दी गई है , और कहूं कि अब भी दी ही जा रही हैं । हालांकि एक अच्छी बात ये रही है कि नए ब्लोग्गर्स मित्र जिन्हें इस विवाद से कोई लेना देना नहीं है , और न ही उन्हें जो मजे से ब्लोग्गिंग कर रहे हैं , वे मस्त हैं , इश्वर करे कि वे मस्त ही रहें ताकि ब्लोग्गिंग के इस नकारात्मक पहलू मे आने से तो बचें ही । इस मीट की रिपोर्ट में संजीत भाई ने पोस्ट लगाई उसमें विनीत भाई ने टिप्पणी के रूप में जिन शब्दों का उपयोग किया वे थे वर्चुअल स्पेस बनाम फ़िजिकल एपियरेंस । हालांकि ब्लोग्गिंग को विनीत भाई जिस गंभीरता और संजीदगी से लेते हैं उससे कभी कभी रश्क होने लगता है कि क्या इतनी संजीदगी के लायक परिपक्व हुआ भी है हिंदी ब्लोग जगत ।
हां बात बेशक सुनने कहने में अच्छी न लगे , मगर है तो हकीकत ही , कम से कम मेरा तो यही निजि विचार है । अब बात करते हैं हिंदी ब्लोग्गिंग मे वर्चुअल स्पेस की , यहां बहस शुरू करने से पहले ये जानना जरूरी है कि जिस वर्चुअल यानि आभासी दुनिया की बात हो रही है क्या सच में हिंदी ब्लोग्गिंग अभी भी वर्चुअल रह गया है । जो मित्र इसे पश्चिमी देशों , अंग्रेजी भाषा या और अन्य किसी भाषा के अनुरूप हिंदी ब्लोग जगत को भी मात्र आभासी दुनिया मानने की भूल कर रहे हैं उन्हें ये बात अच्छी तरह समझनी होगी कि हिंदी ब्लोगजगत उन तमाम अन्य भाषाओं की ब्लोग्गिंग जैसा कभी भी मात्र आभासी नहीं रहा । पहले जब कुछ सैकडा ब्लोग्गर्स थे तब भी , आज जब हजारों ब्लोग्गर्स हैं तब भी और कल जब संख्या लाखों में पहुंचे तब भी । और फ़िर आखिर किन वजहों से यहां कोई मात्र आभासी बना रहना चाहेगा , क्या करने के लिए । यदि मुझसे ही पूछा जाए कि मैं आभासी बना रहता तो बहुत कुछ कर पाता शायद वो सब , जो अब अपनी पहचान बता कर नहीं कर पाता , या शायद कि करना नहीं चाहता । जब बडे बडे पहचान वाले नेता अभिनेता, कलाकार , साहित्यकार भी इस दुनिया में आने के बाद , जबकि हम जानते हैं कि बेशक अमिताभ बच्चन , या मनोज बाजपेयी के ब्लोग पर कुछ पढ के टीप आते हैं और शायद जीवन भर कभी उनसे रूबरू न हों मगर वे भी आभासी कहां रह पाए हैं , और उनकी भी फ़िजिकल एपियरेंस तो हो ही रही है इस समाज के बीच , ब्लोग्गिंग के समाज से निकल कर । हिंदी ब्लोग्गिंग में जब , किसी साहित्यकार पत्रकार का निधन होता है तो क्यों ये वर्चुअल संसार अपने फ़िजिकल अनुभवों , उनसे जुडे सभी बातों /यादों को अपनी पोस्टों के माध्यम से साझा करने लगता है । आखिर किसी त्यौहार पर, किसी के जन्मदिवस पर, किसी समारोह की सूचना पर क्यों संदेशों का आदान प्रदान होने लगता है , और सबसे बडी बात कि बधाई लेने देने वालों को बखूबी पता होता है कि वे किसे बधाई ले दे रहे हैं ? अभी उस वर्चुएलिटि के नाम पर यदि हिंदी ब्लोग्गिंग में कुछ हो रहा है तो वो है सिर्फ़ अनाम शनाम बन के किसी को गाली देना , भद्दे तरीके से उसकी आलोचना करना , किसी विवाद को बढावा देना, उकसाना , और अब तो वो भी फ़िजिकैलिटी तक पहुंच रहा है जी ।
अब बात चर्चा डोमेन की , हालांकि ये दो बेहद मजबूत ब्लोग पक्षों के बीच की बात है और मुझे पता नहीं कि आखिर मुझे यहां इस विषय में कुछ कहना चाहिए या नहीं मगर चूंकि वर्चुअल स्पेस बनाम फ़िजिकल अपियरेंस और चर्चा डोमेन विवाद लगभग संदर्भ में ही सामने आए हैं तो स्वाभाविक रूप से इसकी बात भी निकल ही आई । मुझे हैरत और अफ़सोस है कि जब किसी लटपट से मुद्दे पर हम इत्ता सारा पढ लिख जाते हैं तो फ़िर इस मुद्दे पर आखिर ये चुप्पी क्यों , जब यहां सबके मत जानने की बात हो रही है , सबकी राय पूछी जा रही है तो कहिए न खुल के । चर्चा डोमेन का मामला ( मैं मामला ही कहूंगा , विवाद नहीं क्योंकि जबरन उसे विवादित बनाने के बावजूद मुझे ये मामला ही लगता है ) जब शुरू हुआ और उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप चिट्ठाचर्चा ब्लोग ने अपना प्रतिरोध दर्ज़ किया तो सबसे पहले तो मुझे थ्री इडियट के आमिर खान और पाईव प्वाईंट समवन के लेखक चेतन भगत की याद हो आई , यानि पूरी पिक्चर हिट होने के बाद विवाद की शुरूआत , मगर फ़िर इतने दिनों की चुप्पी क्यों , जैसा कि चर्चा डौट.कौम की तरफ़ से कहा गया है कि अब जबकि डेढ महीने तक उस पर काम होने के बाद ये बात उठी है .....। चलिए शुरू से शुरू करते हैं , मैं उतना तकनीक सबल नहीं हूं इसलिए ज्यादा नहीं जानता , अभी भी जब कोई नया ब्लोग बनाने की कोशिश करता हूं तो नाम डालने से पहले आता है ....संभावना जांचे ....यानि कि कहीं वो पहले ही तो नहीं दर्ज़ हो चुका है ....नहीं तो फ़िर आप उस नाम को ले सकते हैं । यहां वर्चुअल वाले ये स्पष्टीकरण दे सकें तो अच्छा होगा कि यदि सिर्फ़ यही criteria है नए डोमेन और ब्लोग बनाने का तो फ़िर इसमें फ़िजिकैलिटी की संभावना क्यों तलाश की गई .....मान लीजीए कि यदि अमेरिका से मि. रिचर्डसन ...या जांबिया से मि. हावर्ड ( जाहिर है वर्चुअल लोग , विशुद्ध वर्चुअल लोग तो आपको ऐसे ही मिलेंगे हिंदी ब्लोग्गिंग में ) चर्चा डोमेन को ले लेते तब भी यही दुहाई कोई दे पाता क्या ??? तो सिर्फ़ इसलिए न क्योंकि जिन्होंने लिया है उन्हें आप फ़िजिकली जानते हैं इसलिए आ गए आमने सामने ? अब बात करते हैं नैतिकता की ....हालांकि एक चर्चामंच के रूप में चिट्ठाचर्चा ब्लोग का अपना एक विशिष्ट स्थान रहा है और आगे भी रहेगा ...मगर जब इसे नैतिकता से जोडने की बातें होती हैं न ....तो मैं सोचता हूं कि ये बातें इतनी ही संजीदगी से तब क्यों नहीं होती जब ...चिट्ठाचर्चा में चर्चा के साथ और कई बार तो चर्चा के अलावा भी वो सब होता है चलता है या होने और चलने दिया जाता है जो किसी भी तरह से नैतिकता के दायरे में तो नहीं ही कहा जा सकता । और इन दिनों एक उंगली करता ब्लोग जब ....उन्हीं पुराने गरिमामय दिनों (जिन दिनों की दुहाई बार बार दी जा रही है )की टिप्पणियां ( जो कि जाहिर है सिर्फ़ उन्हीं लोगों की आपसी टिप्पणियां हैं जो तब ब्लोग्गिंग करते थे , पुराने ,वरिष्ठ ,और भी जो लगाना चाहें, वो ब्लोग्गर ) दिखा पढा रहा है तो लगता है कि पराकाष्ठा तो पहले ही हो चुकी है । चर्चा डोमेन मामले का फ़ैसला जो भी हो , मगर अभी से ये भी कह देना कि जैसा चिट्ठाचर्चा ब्लोग कर चुका है वो कोई और कर के दिखाए तो .......ये तो वक्त पर ही छोड दिया जाए तो बेहतर बात होगी । वैसे मेरी समझ में तो अब जितनी भी चर्चाएं इन दिनों प्रयोग के रूप में सामने आ रही हैं वे बखूबी अपना काम , कम से कम , साफ़ नीयत से तो कर ही रही हैं । आगे इस विषय पर होने वाले फ़ैसले की प्रतीक्ष तो रहेगी ही ॥
अब चलते चलते बात दिल्ली ब्लोगर बैठक की ........अरे रे रे...जब इतना पढ ही लिया तो ये भी झेलते जाईये न .....मैं ये बात उन लोगों के लिए कह रहा हूं जिन्हें शायद इस ब्लोगगर बैठक के आयोजन की घोषणा में भी कोई ......कुछ ढका छुपा , दिख रहा है ....उन्हें फ़िर से स्पष्ट कर दूं कि ये बिल्कुल उसी तरह से है जैसे मैंने आपको अपने घर पे चाय और खाने पर बुलाया है (घर छोटा है इसलिए उस निर्धारित स्थान को ही मेरा दालान मान लीजीए न ) और इसके लिए मुझे न तो कोई प्रायोजक मिला है न ही प्रभु की कृपा से मुझे इसकी जरूरत है ,बस जो भी हुआ या हो रहा है या कि आगे होगा वो अपनी गाढी कमाई ( जाहिर है कि ये कहने की जरूरत नहीं है कि इस ब्लोग्गिंग , ब्लोग्गर बैठक और इन क्रियाकलापों से मुझे कोई कमाई नहीं हो रही है , और न ही मेरा स्ट्टेस किसी बडे हीरो वाला हुआ या होगा )में से ही होगा तो फ़िर सबके साथ बैठ कर बतियाएने के लिए मुझे किसी एजेंडे या झंडे की जरूरत कभी महसूस नहीं हुई । सभी आमंत्रित हैं जो भी आना चाहें । फ़िलहाल तो बस इतना ही तय है कि राज भाटिया जी सात समुंदर पार से मिलने के लिए आ रहे हैं तो ये एक सुंदर बहाना बन गया है । इसलिए मन में सिर्फ़ मिलन की चाहत लिए इस ब्लोग्गर बैठक के आयोजन का निर्णय ले लिया है , उम्मीद है कि आपको अफ़सोस नहीं होगा मिलके । आज बहुत ज्यादा झेलना पडा न आपको .........मिलता हूं
सही व्याख्या की अजय
जवाब देंहटाएंहम कहावतों में जीते हैं जितने मुह उतनी बातें
भौतिक जगत में नहीं कह पाते तो आभाषी दुनिया में बेनामी आ जाते हैं
लोगों की मचमच को छोड़िए और अपना काम पूरी लगन और मेहनत से करते रहिए...
जवाब देंहटाएंपता नहीं क्यूँ लोग चर्चा डोट कॉम के पीछे पड़े हैं.... अरे भई.... अगर किसी ने चर्चा डोट कॉम ले ही लिया है.... तो परेशानी क्या है? जिसने लिया है उससे खरीद लो...चाहे लाखों रुपये लगे.... वैसे आभासी अब यहाँ कुछ नहीं रहा .... मेरा तो भरा पूरा परिवार है अब यहाँ.... हम लोगों को सिर्फ अपना काम करना चाहिए...
जवाब देंहटाएंपता नही हमे कब अकल आयेगी, इन्ही करतुतो के चलते देश गुलाम हुआ था, आप का लेख बिलकुल सही है अब जिन्हे समझना है समझे, ओर मस्त रहे खांम्खा की बहस से क्या लाभ, लोग खुद तो कुछ करते नही दुसरो को करने नही देते, आप मस्त रह्रे को आगे बढते रहे, डोमेनो की बात बे सिर पेर की है अब अगर मुझे कोई बडी कम्पनी का डोमेनो मिल जाये तो क्या कमपनी मुझे फ़ांसी देगी?बाकी बात महफ़ुज भाई ने साफ़ साफ़ कह दी है
जवाब देंहटाएंजिसने लिया है उससे खरीद लो...?
जवाब देंहटाएंखरीदने की कूवत होती तो 25 लोगों की डेडिकेटेड टीम पीठ दिखा कर नहीं भागती!सीना ठोक कर कहती कि हमारे दिल का टुकड़ा है,पांच साल पाल पोस कर बड़ा किया है।भावनात्मक लगाव है।हमारा माल हमें दे दो।
अपने लाड़ले को बचाने के लिए,छाती से चिपकाये रखने के लिये भावुक लोग क्या नहीं करते?
सब खोखली बाते है।हमेशा की तरह।
सार्थक बात कह दी अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंपोस्ट खुलने में कुछ परेशानी आ रही है भैया...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
सार्थक आलेख/ उम्दा विश्लेषण.
जवाब देंहटाएंआगामी ब्लॉगर बैठक के लिए शुभकामनाएँ.
डोमेन नाम खरीदने पर इतनी हाय तौबा क्यों ...दुःख है
जवाब देंहटाएंब्लॉग परिवार अब इतना आभासी भी नहीं रहा ...सच है
ब्लोगर बैठक के लिए बहुत शुभकामनायें ..... !!
आपने खुलकर बातें सामने रखी है, दरअसल यह विमर्श का निमंत्रण है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय झा जी बहुत ही सुन्दर ढंग से आज ब्लॉग जगत की खींचा तानी को चित्रित किया है.
जवाब देंहटाएंस्वागत योग्य है. मुझे तो लगने लगा है आज सभी "ब्लॉग लेखन केवल हम जानी" दर्शाना चाहते हैं. ठीक है भाई जानते हैं लिखना, कौन नकार रहा है इस बात से लेकिन हमें "जित देखूं तित खींचा तानी" वाला माहौल नहीं चाहिए. अपनी अपनी अभिव्यक्ति सार्थक लेख आलेख के साथ और यदि बन पड़े तो नवागंतुकों के लिए मार्ग-दर्शक टिपण्णी के साथ प्रस्तुत करें. ये सब तू बड़ा की मैं वाली बात विवादस्पद चीजें नहीं होनी चाहिए. बहुत ही अच्छे विचार लगे झा जी के. दिल्ली की आगामी मीटिंग हेतु हमारी शुभकामनाएं
आपने सही कहा है-सार्थक लेख है। आभार
जवाब देंहटाएंये है एक ऐसा करारा जवाब
जवाब देंहटाएंजिसने कर दिया लाजवाब
आपने मजाक मजाक मे बहुत कुछ कह डाला. पर यहां समझने की किसको पडी है? खैर आपने आपकी तरफ़ से बहुत ही सार्थक कह दिया है. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपने जो सवाल रखा है कि क्या इतनी संजीदगी के लायक परिपक्व हुआ भी है हिंदी ब्लोग जगत?
जवाब देंहटाएंतो यही कहा जा सकता है कि ब्लॉगजगत उसके उपयोगकर्ताओं पर ही निर्भर करता है अगर वे परिपक्व लेखन करेंगे तो ब्लॉगजगत स्वमेव ही परिपक्व होना है।
बिल्कुल सही सही बातें कही हैं आपने अजय जी!
जवाब देंहटाएंनाम नहीं काम की ही वैल्यू होती है काम सही होगा तो नाम अपने आप होगा चाहे वह नाम चिट्ठाचर्चा.ब्लोगस्पॉट.काम का हो या चिट्ठाचर्चा.कॉम का।
हम लोगों के साथ विडम्बना तो यह है कि नेट में हिन्दी को आगे बढ़ाने के बजा हम विवाद में ही बने रहना चाहते हैं।