मंगलवार, 5 जनवरी 2010
हिंदी की सेवा, विदाऊट ऐनी मेवा.....नो वे जी , नो वे
इस दुनिया में निंदक नियरे राखिए टाईप मेरे दो ही दोस्त हैं, नहीं नहीं ऐसा नहीं है कि दोस्त नहीं हैं, या कि निंदा नहीं करते, बस ये है कि वे सब नियरे नहीं हैं ,,,,,फ़ायरे हैं , अरे यार मतलब फ़ार अवे हैं....बहुत दूर ॥हां तो वो दोनों दोस्त हैं चिट्ठा सिंह और लपटन जी । आजकल चिट्ठासिंग हैप्पी नव वर्ष ,मना रहे हैं सो लपटन जी ही आ धमके । वे भी हमारी तरह ही एक जागरूक ब्लोग प्रेमी हैं । बस हमही को जगाते धकियाते रहते हैं ।
तब आजकल तो बहुते शोर मचा हुआ है जी । हम तो सोचे कि नया साल में आप लोगन कुछ नया नया बात करोगे कुछ नया बात विचार होगा । मगर देखते हैं तो लगता है कि खाली दिन तारीख बदला है आप लोग नहीं बदले । और आजकल तो सुने हैं कि हिंदी को लेकर बडी जोरदार बहस छेडे हुए हैं सब । मसलन ब्लोग लिख कर सुने हैं कि इतराए फ़िर रहे हो , कहते हो कि हिंदी की सेवा कर रहे हैं ..??????
देखिए लपटन जी आप भी लगता है चिट्ठसिंग के साथ रह रह के बिगड गए हैं , सब खराब सोहबत का असर है । और इसमें क्या शक है हम लोग हिंदी की सेवा कर रहे हैं , बिल्कुल कर रहे हैं तुम्हारे कहने से थोडे मान लेंगे कि ऐसा नहीं है ।
अब लपटन जी की बारी थी लपटें उगलने की , " हां बेटा तुम तो जब वो बीस बीस रुपए वाली मोटे मोटे उपन्यास चाटा करते थे तब भी तुम्हें ऐसा ही लगता था कि तुम हिंदी की सेवा कर रहे हो। ज्यादा मेरा मुंह न खुलवाओ सच तो ये हैं कि तुम लोग हिंदी की सेवा नहीं कर रहे बल्कि हिंदी तुम्हारी सेवा कर रही है । और सबसे बडी बात ये कि सेवा वो जिसके बाद आगे जाकर उसके बदले में तुम्हें मेवा मिले । नहीं समझे न आओ हम तुम्हें समझाते हैं , तुम लपेटते जाओ फ़िर न कहना कि लपटन जी ने कायदे से समझाया नहीं । लो हम अपना हर्बल और हाईजेनिक ज्ञान तुमसे और तुम्हारे माध्यम से सबसे बांटते हैं ।
देखो भैय्या तुम खुद ही बताओ पैदा होने से ले के मरने तक हिंदी खुद ही तुम्हारी सेवा में लगी रहती है कि नहीं । सुबह उठने से लेकर , नहाने धोने, खाने पीने, देखने सुनने, और अब तो माशा अल्ला लिखने पढने में भी हिंदी ही तुम्हारी सेवा कर रही है कि नहीं । अबे छोडो जाओ एक बात बताओ , आज तक कोई ऐसा सपना भी देखा है तुमने जिसमें इंग्रेजी में कोई वार्तालाप हो रहा हो, या गाना गा रहा हो । नहीं न । अबे घामड एक बात बताओ ये हिंदी ही है कि तुम्हारी घर मजे में हंस बोल रहा है । नहीं समझे न देखो तुम मैथिल और परजाई पंजाबी । अब ऐसे में तो बेटा होता ये कि परजाई कोई चुटकुला सुनाती पंजाबी और तुम खींसे निपोडते मैथिली में और सबसे ज्यादा टेंशन होती बाल गोपाल को वे तो बेचारे बस .......दुविधा में दोनो गए , माया मिली न राम । अब ऐसे में तो सिर्फ़ हिंदी ही बची न लाज बचाने वाली । मैं सकपकाता सा ये हर्बल प्रवचन सुन रहा था । लपटन दिव्य ज्ञान को आगे बढाते हुए बोले । अब सुनो काम की बात ये तो इतना झाजीपना दिखाते फ़िरते हो न बिटवा, कभी एक लाईना, कभी दु लाईना, कभी पूरा का पूरा पन्ना सब कुछ हिंदी में ठेले जा रहे हो । वो भी जैसा मन करता है वैसा । बताओ कभी हिंदी ने कहा है कि बस भैय्या बहुत हुआ अब तो आप कौनो और भाषा भी ट्राई मारो न । तब पता चलेगा कि केतना बडका लेखक और लेखक छोडो पाठक हो जी । नहीं न । ऊ तो भला मनाओ गूगल बाबा को जो तुम लोगन को फ़्री फ़ंड में प्लौट काट के दिए हैं ,,,और तुम लोगन हो कि ऊ पर कौनो बढिया सा शांतिनिकेतन बनाते कि लगे हो अखाडा खोदने , लंगोटा, लोटा कस कस के ।
अब हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ , हम भी आखिर कब तक लपेटते, " भटाक से कूद के बोले , हुंह ...तो आपके हिसाब से तो फ़िर कौनो हिंदी की सेवा नहीं कर रहा है ...बताईये भला बचा कौन ????"
लपटन एकदम उसी अंदाज में मुस्काए जिस अंदाज में आजकल कौनो सीरीयल का कुटिल चरित्र मुस्कुराता है , और बोले , " अरे झाजी आप झाएजी रह जाओगे हमेशा ....हम शुरू में ही कहे थे सेवा वही जिसके बदले में मेवा मिले । माने ये कि हिंदी की सच्ची सेवा कर रहे हैं वे सच्चे साधक , जो दिन रात हिंदी के बढावे का प्रचार -प्रसार का रोना रो रहे हैं , छाती पीट रहे हैं , मानो हिंदी मर रही हो, और उसके आखिरी सांस लेते ही सब गूंगे बहरे हो जाने वाले वाले हैं । और हां सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात तो सुन लो भाई ......असली सेवा में सिर्फ़ वे लोग शामिल हैं जो इस बहाने से अपने लिए मेवा का जुगाड कर लेते हैं । अब यार ये मत पूछ बैठना कि कौन और कैसे , ये सबको पता चल जाता है । बांकी जो तुम्हारे जईसे लोग हैं न ऊ सब फ़ोकट में ब्लोगिया रहे हैं .....और ई भ्रम पाले जा रहे हैं कि सेवा कर रहे हैं ।
लपटन जी हमारा थोबडा लटका छोड लटकते फ़टकते चल दिए .....अब हम का कहते ...??????
कुछ ना कहो कुछ भी ना कहो
जवाब देंहटाएंहर्बल प्रवचन भी सेवा है।
जवाब देंहटाएंबढिया पोस्ट आभार
लपटन की रपटन
जवाब देंहटाएंटन टनाटन
ठन ठनाठन
कब बन गई
खबर ही न हुइ्र।
सही तो कह रहे हैं भाईसाह्ब लपटन जी, सेवा तो वही कहलाती है जब मेवा मिले।
जवाब देंहटाएंवैसे अपने तो फ़ोकट में ही हिन्दी का झन्डा उठाकर चल रहे हैं :)
झा जी आज कल जो हालात हैं बस इतना ही कहूंगा --
जवाब देंहटाएंमुट्ठी बन्द किये बैठा हूं कोई देख न ले
चांद पकड़ने घर से निकला जुगनू हाथ लगे
सरकती जाए है रूख़ से नकाब आहिस्ता आहिस्ता :-)
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
लपटन की रपट तो एकदम झकास...पाबला जी के सुर को आगे बढ़ाऊं तो निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता-आहिस्ता
जवाब देंहटाएंसच्ची सच्ची बोल गए
जवाब देंहटाएंबातों ही बातों में तौल गए।
हिन्दी की सेवा तो जैसे तैसे हो ही रही है पर लपटन जी ने बिल्कुल सही बात कही,कुछ ना कुछ स्वार्थ सबका ही होता है भले जिस भी प्रकार का हो!!!
जवाब देंहटाएंबडी मेहनत से कमेंट लिखा था पर कम्प्यूटर ने नकार दिया। शायद टिप्पणी उसे भी नहीं भायी। सो केवल बधाई देकर अपना सा मुंह लेकर लौटते हैं :(
जवाब देंहटाएंAb itnon ke baad ham kya kahen?
जवाब देंहटाएंयह वाकई दिव्य विचार है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट जी:)
जवाब देंहटाएंहमें तो लगता है कि हम हिन्दी की सेवा नहीं कर रहे बल्कि हिन्दी ही हमारी सेवा कर रही है !
जवाब देंहटाएंसच्ची बात...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंलपटन जी फिट रहें...आज के जमाने में.. :)
जवाब देंहटाएं’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
लपटन जी तो खरी खरी पर उतर आये हैं.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
are ye seedhi seedhi sachchi baat kahe keh di bhaai....ab ham ka kareen..?
जवाब देंहटाएंकाहे को ऐसी भाषा लिखते हो भाई की रुक-रुक के..संभाल-संभाल के...समझ-समझ के पढ़ना पड़ता है?
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