रविवार, 3 जनवरी 2010

ग्लोबल वार्मिंग देख ली अब विलेजियल ग्रीनरी देखिए (ग्राम प्रवास -भाग ४ )

जब भी मैं ग्लोबल वार्मिंग की बातें सुनता हूं , इस मुद्दे पर होने वाले सम्मेलनों, जैसा कि एक अभी हाल ही मेंकोपेनहेगन में भी संपन्न हुआ था , के बारे में पढता देखता हूं तो जो एक पहली बात मेरे मन में आती है वो ये किजो निरक्षर, ग्रामीण आबादी शायद इस ग्लोबल वार्मिंग का भी नहीं जानती होगी वो अभी भी एकस्वाभाविक आदत के अनुरूप प्रतिवर्ष लाखों पेड पौधे लगा रहे हैं , और शायद यही गनीमत है कि वे ऐसा कर रहे हैंतभी हम शहरी आबादी जो जाने इस ग्लोबल वार्मिंग पर हर साल नए नए संकल्प नई नई चिंताए दिखा करकैसी कैसी बडी बातें करते हैं , मगर कि सिर्फ़ बातों तक ही सीमित रह जाते हैं सच तो ये है कि हमारीसंवेदनशीलता , अब इन पेडों, मिट्टी, पशुओं, पक्षियों के लिए खत्म सी हो गई है इसलिए जब भी गांव जाता हूंतो फ़िर लौटने के बाद शहर में बिताए दिनों के लिए आखों के लिए जरूरी हरी उर्जा वहां से समेट कर रख लेता हूं जितने भी दिन ग्राम्य जीवन को जिया तो खूब जिया ताल तलैया, तालाब पोखर, बाग बगीचे, आम के बडे बडेकलम सबको नजदीक से देखा पढा और समझा सच कहूं तो चुप खडे घने जंगलों से गुफ़त्गू करने का जो आनंद हैवो अलौकिक होता है

आज की पोस्ट में देखिए और महसूस कीजिए कि जब तस्वीरों में छुपी इनकी हरियाली आखों को मन को इतनासुकून पहुंचाती है तो इनसे आमने सामने मुलाकात का मजा कैसा होगा .????


(गांव का तालाब )




(मेरे अपने हाथ से लगाए गए आम के पेड )
























(एक और आम का पेड जिसे देख कर लगा कि जब अपनी
संतान जवान होती है तो कितना गर्व होता है )


















(और ये देखिए ये है विलेजियल ग्रीनींग )















(और घर के पीछे लगा ये छोटा सा बगीचा , जहां
सिर्फ़ फ़ूल बल्कि, गोभी, बैंगन, आलू, भिंडी जैसी सब्जियों के पौधे लगे हैं बल्कि अरहर की दाल के पौधे भी हैं , जी हैं वही अरहर जो आजकल सौ रुपए किलो है )










और दूर तक फ़ैले आम के बाग जिनमें जाने
कितने और किस किस फ़ल फ़ूल के पेड पौधे हैं

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर पोस्ट ,नव वर्ष की मंगल मय शुभकामनायें .

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  2. बहुत सुंदर चित्र हैं। हम तो इन का इंतजार ही कर रहे थे।

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  3. सभी चित्र बहुत सुंदर, धन्यवाद

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  4. सच है "चुप खडे घने जंगलों से गुफ़त्गू करने का जो आनंद है, वो अलौकिक होता है।"

    आपकी संताने तो खासी बड़ी हो गई हैं :-)

    बी एस पाबला

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  5. सही है गांव की हरियाली के कहने ही क्या हैं? अब हमारा गांव भी हरियाली खोते जा रहा है। क्योकि नयी राजधानी के कारण भु माफ़ियों की जद मे आ गया है। बस अब जमीन बेचो, बाईक, दारु, मुर्गा, जुआ और फ़िर कोर्ट कचहरी। सारे ही तो रोग आ गए विकास के साथ, पता नही कैसा विकास है विनाश जैसा।

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  6. बिल्कुल सही कहा आपने कही ना कही तो यह पेड़ पौधे शहर के पर्यावरण को भी सुरक्षित कर रहे है..शहर वालों का ध्यान ही नही जाता जबकि आज भी गाँव वाले पेड़ पौधों के प्रति अपना प्रेम बनाए रखे है..और यह निरंतर चलता भी रहेगा...

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  7. बहुत ही सुखद लग रहा है चित्रों में हरियाली को देखना...असलियत में देखने को मिले तो कहने ही क्या...
    बढिया पोस्ट

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  8. आनन्द आया देख कर...



    ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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  9. चित्र देखकर आनंद आगया और सहसा गांव की यदों मे लौट गये. आपने ये चित्र खींच कर बहुत अच्छा किया.

    रामराम.

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  10. वाह ! इतनी हरियाली. मन ऑक्सीजन से भर गया..

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  11. गाँव की तो हवा में ही ताजगी होती है।
    सुन्दर चित्र।

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  12. nav varsh ki mangal shubhkaamnaaye ,aapke vichar aur karm dono uttam hai ,sahi kaha aapne ped har kisi ko lagana chahiye ,ye saari tasvir hame bahut kuchh sikh de rahi hai .

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  13. गीत याद आ गया "गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा..."

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला