रविवार, 20 दिसंबर 2009

मैं ब्लोग पोस्ट ऐसे पढता हूं .....और आप !



हां आज जाने किन पोस्टों को पढते पढते ये विचार अचानक ही मन में आया कि मैं ब्लोग पोस्ट को कैसे पढता हूं ....क्या सभी मेरी तरह ही पढते हैं ...या कोई और भी तरीका होता है ..इससे अलग इससे अनोखा । तो सोचा आज आप सभी से अपनी बात को बांटते हुए जाना जाए कि ....क्या कहां कैसे होता है । मेरा पहला काम होता है एक साथ कम से कम पांच एग्रीगेटर्स को खोल लेना । जाहिर कि इसमें ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत, रफ़्तार, और हिंदी ब्लोगस के अलावा एक आध और भी । और ये खुले ही रहते हैं ..जब तक कि मेरा पठन चलता रहता है ।

इसके बाद मेरा सबसे पहला काम होता है .पोस्ट का शीर्षक .....। जी हां ये वो पहली बात होती है जो मुझे खींचती है किसी भी पोस्ट की तरफ़ ....कई बार तो शीर्षक ही इतने दिलचस्प होते हैं कि जब तक पन्ना खुलता है ...उत्सुकता चरम पर पहुंच चुकी होती है । फ़िर जब से चर्चा करनी शुरू की है तब से तो मेरे लिए शीर्षक का महत्व बहुत ही बढ जाता है .....क्योंकि उसे मुझे चर्चा में उपयोग करना पडता है । यहां मैं अपने नए साथियों को बता दूं कि मेरा अनुभव ये कहता है कि .....यदि किसी पोस्ट का शीर्षक आपने बहुत सटीक और बढिया लगा दिया तो समझिए कि आपकी पैकिंग बहुत अच्छी है और माल देखने लोग आएंगे ही ॥

ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ शीर्षक देख कर ही पोस्टों को खंगालता हूं । अब जबकि इतना समय हो गया है तो सभी की लेखनी/ उनके विषय/ उनका अंदाज देख के अनुमान लगा लेता हूं कि किस लेखक/लेखिका ने क्या लिखा होगा ....और फ़िर उनकी पोस्ट का अवलोकन होता है । कभी कभी उम्मीद के अनुसार ही सब मिलता है तो कभी कभी ....बिल्कुल उलट । मगर दोनों ही परिस्थितियों में मुझे आनंद खूब आता है । सच कहूं तो जब पोस्ट पढने का आनंद ....का स्वाद आपको लग जाएगा तो फ़िर कुछ नहीं सूझता । और मुझे तो न सिर्फ़ पढने बल्कि अपनी राय/ अपने विचार/ अपनी बात कहने की आदत भी लग चुकी है ॥हालांकि अब मुझे इसका खामियाजा भी भुगतना पडता है ....मगर हर चीज़ के दो पहलू होते हैं सो ये भी सही ॥

आगे बढने से पहले कुछ बातों का जिक्र करना चाहूंगा । मैं देख रहा हूं कि आजकल जो भी पोस्टें किसी भी विषय को मुद्दा बना के लिखी जा रही हैं उसे पाठक /पाठिका किसी भी रूप में लेते हों और उस बिंदु पर उनकी चाहे जो भी सहमति या असहमति हो .......मगर आजकल एक चलन सा जोरों पर है कि पोस्ट में वर्णित मुद्दा तो वहीं छूट जाता है और बात शुरू हो जाती है व्यक्तिगत टिप्पणियों की । इसके बाद तो यहां लोगों को ये निर्धारित करते भी देर नहीं लगती कि ....अमुक व्यक्ति ने ये कहा तो वो फ़लानी मानसिकता वाला हो गया ।अमुक ने ये पोस्ट लिखी है तो जरूर ही वो उसी मानसिकता वाला होगा ।यदि कोई निरंतर ही उसी शैली में उसी बात को रख रहा है तो एक मिनट के लिए माना भी जा सकता है मगर किसी एक पोस्ट या किसी पोस्ट की जवाबी पोस्ट से ही निर्धारण कर देना कि अमुक की मानसिकता ही ऐसी है ...कुछ अतिशयोक्ति सी लगती है । और अब तो माशा अल्लाह ! लोग भाषा भी खूब इस्तेमाल कर रहे हैं .....और नाम भी बखूबी लिया जा रहा है । चलिए छोडिए ................

इसके बाद मैं अपनी रुचि के अनुसार ...विधा के हिसाब से पोस्टों को पढने का प्रयास करता हूं ......जैसे कविता /कहानी/व्यंग्य /लेख /नए चिट्ठे आदि के अनुसार । चूंकि ऐग्रीगेटर्स अलग अलग खोले रहता हूं इसलिए अक्सर उनपे कोई अनछुआ अनदेखा सा ब्लोग मिलता है तो खुशी दोगुनी हो जाती है । और किसी ब्लोग का पहला फ़ौलोवर बनने का तो आनंद ही अनुपम होता है । मैं जो पढता हूं ...मतलब बिल्कुल नहीं छोडता ....वो है चिट्ठियों की चर्चाएं .....और जो बिल्कुल नहीं पढता वो धर्म के नाम पर या एक दूसरे के नाम पर भडास निकालने वाली पोस्टों को कभी भी नहीं पढता ॥

तो ऐसे पढता हूं मैं ....और आप ..........?????????

19 टिप्‍पणियां:

  1. चलो...आज एक बात तो आपसे सीखने को मिली कि एक साथ ज़्यादा ऐग्रीगेटर खोलने चाहिए....

    जवाब देंहटाएं
  2. अजय भाई हम तो केवल ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत और जीमेल रीडर पर ही निर्भर रहते हैं। रोज हालांकि इतना समय नहीं होता कि ज्यादा पोस्टें पढ़ पायें फ़िर भी व्यस्तता के बीच कुछ अच्छे और रेग्यूलर ब्लॉगों को जरुर पढ़ता हूँ, अगर लिंक नहीं मिलती एग्रीगेटर पर तो सीधे ही वेबएड्रेस टाईप करके चेक कर लेता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अजय भाई,
    आपका एक फंडा तो अपना भी है...धर्म को लेकर भड़ास या व्यक्तिगत तौर पर एक-दूसरे को ललकारने वाली पोस्ट को दूर से ही सलाम कह कर आगे बढ़ जाना...वैसे ये सब अब पहले से बहुत कम हो गया है...हां आजकल पुरुष और
    नारी विमर्श के नाम पर तनातनी कुछ बढ़ती नज़र आ रही है...इसे कम करने के लिए अजय जी मेरा एक सुझाव भी है, अभी तक जो भी ब्लॉगर सम्मेलन या मुलाकातें होती रही हैं वहां आधी दुनिया की भागीदारी बहुत कम या
    न के बराबर हो पाई है...आगे कुछ भी ऐसा कार्यक्रम बनाया जाए तो इस कमी को पेश न आने देने की कोशिश की जानी चाहिए...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  4. हम तो अपने निजी एग्रीगेटर पर इक्कठा किए ब्लॉग पढ़ते हैं, जिसे हर रविवार को अपडेट कर लेता हूँ

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  5. अजय जी एक बहुत अच्छी बात कही आपने की जिस पोस्ट की शीर्षक अच्छी हो उसे ज़्यादा पाठक मिल जाते है..यह से बिल्कुल सही है हम खुद शीर्षक से ही पोस्ट ओपन करते है..आज के बाद हम और दूसरे एग्रीगेटर के पोस्टों को भी ज़रूर देखेंगे अभी तक बाद ब्लॉगवानी ही देखते रहते थे. ..बढ़िया बढ़िया बात कही आपने..अच्छा लगा..धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. इसका अर्थ यह है कि आप बहुत सारे पोस्‍टों को पढते हैं .. तरीका तो मेरा भी लगभग आप जैसा ही है !!

    जवाब देंहटाएं
  7. अभी तक तो ब्लॉगर पठन सूची से पढ़ रहे थे

    जवाब देंहटाएं
  8. आप कैसे भी पोस्ट पढ़ें, पढ़ना महत्वपूर्ण है। आप की आज की पोस्ट की महत्वपूर्ण बात यह कि पोस्ट के विषय से नहीं भटकना चाहिए। ब्लागर को चाहिए कि वह टिप्पणियों को इस तरह से निर्धारित करे कि मूल बात गर्द में न दब जाए। टिप्पणीकार उसे इतर ले जाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  9. पाबला जी से निवेदन है कि वो अपने निजी एग्रीगेटर में मरा नाम जोड़ ले, शायद कभी अपडेट होते डिलिट हो गया है :)


    बकिया तो सबका अपना अपना स्टाईल, उपलब्ध समय और पसंद..हम तो एक उ हैं अजय झा, उनका ब्लॉग ध्यान से पढ़ता हूँ और जिनका वो बता दें.


    यदि किसी के यहाँ न पहुँच पाऊँ तो झा जी को पकड़ा जाये. :)

    जवाब देंहटाएं
  10. हम तो कोई एक ऐग्रीगेटर खोल कर उसी की सारी पोस्टे खंगाल लेते हैं.....लेकिन अब आप की तरह हम भी कोशिश करेगें....

    जवाब देंहटाएं


  11. झा जी, मैं तो सारे ब्लॉगपोस्ट +1.25 सिलिन्ड्रिकल 108 डिग्री के चश्में से पढ़ता हूँ ।
    अलबत्ता धर्म को समझने के प्रयास में अधर्मियों की पोस्ट भी पढ़नी है, सो वह भी पढ़ लेता हूँ !
    टिप्पणियों को लेकर आपका पर्यवेक्षण सटीक है !

    जवाब देंहटाएं
  12. कुछ आकर्षक शीर्षक ही सुझा देते तो मै आगामी पोस्टो का वही शीर्षक रख लेता.

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह इतने ब्लाग अग्रीगेटर एक साथ ? हम से तो एक ब्लागवानी ही पूरा नहीं पढा जाता। देखते हैं कोशिश कर के धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  14. "यदि कोई निरंतर ही उसी शैली में उसी बात को रख रहा है तो एक मिनट के लिए माना भी जा सकता है मगर किसी एक पोस्ट या किसी पोस्ट की जवाबी पोस्ट से ही निर्धारण कर देना कि अमुक की मानसिकता ही ऐसी है ...कुछ अतिशयोक्ति सी लगती है।"

    "रुपये में बीस आने सही" बात कही है आपने अजय जी!

    लेखन पूर्वाग्रह से मुक्त और सकारात्मक सन्देश देने वाले होने चाहिये।

    जवाब देंहटाएं
  15. ब्लॉग पढने का शानदार तरीका बताने के लिए आभार ....काश इतना समय हो पता हमारे पास कि हम सभी ब्लोग्स को इसी तरह पढ़ पाते ...बहुत से छूट ही जाते हैं ...!!

    जवाब देंहटाएं
  16. अरे भाई आप तो बड़े ज्ञानी निकले।
    लेकिन ये नहीं बताया की इतने सारे ब्लॉग कितने समय में पढ़ लेते हैं।
    ओशो रजनीश सिर्फ पेज पलटते थे और सब कुछ पढ़ लेते थे।
    उनका राज़ हमें आज तक समझ नहीं आया, वर्ना हम भी अपना लेते ये स्टाइल ।
    जल्दी ही आपसे मिलना पड़ेगा।

    जवाब देंहटाएं
  17. भाई हम तो अपनी ताऊवाणी से पढते हैं सब पोस्ट. कब की गारंटी नही है. मूड आगया तब पढ लिया और मूड आया तो टिपिया भी दिया.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  18. आप ने इस लेख मै बहुत सी काम की बाते भी बता दी, बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला