सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

कमाल है, हर साल पर्यावरण दिवस मनाते हैं...फ़िर ये बाढ क्यों....?



अभी तो दिल्ली की गरमी से थोडी बहुत राहत मिलनी शुरू हुई थी...थोडी सी बूंदा बांदी से लगने लगा था कि अब कम से कम इस बात का एहसास तो होगा कि सच में ही अक्तूबर का महीना आ गया है। मगर ये क्या अब सुन रहा हूं कि दक्षिण भारत में भारी बारिश से भयंकर बाढ आ गयी है। लाखों घर और नगर डूबे पडे हैं। इस बार बिहार से बंगलौर शिफ़्ट हो गये बाढ देवता.....मतलब चाहे जगह बदल लो .....मगर आओगे जरूर।


लेकिन ये क्या मतलब है जी इस बात का....जब हम हर साल इत्ते धूमधाम से विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं..कित्ता कुछ करते हैं...कित्ता भारी भारी लिखते हैं....सारी संधियों पर भी हमने साईन वाईन कर दिये हैं...और तो और नयी नयी योजनायें भी बनाते हैं...अरे उसको छोडो....अब तो हम हर साल कभी किसी नदी को ....तो कभी किसी जलीय जीव को ..राष्ट्रीय दर्ज़ा दे रहे हैं..पता है राष्ट्रीय दर्ज़ा .....बताओ भला क्या कसर रह गयी....ये मुंए.....बाढ, भूकंप, तूफ़ान, ....फ़िर भी बेशर्मों की तरह मुंह उठाये चले आते है .......क्या इन्हें नहीं पता हमारी इस डेडिकेशन का.......

तभी आकाशवाणी होती है... .बेटा डेडिकेशन ...एक बात बताओ....कभी तुम लोगों ने पेड पौधे लगाये...कभी नदियों की मरती स्थिति के लिये कुछ सोचा...पहाड जो टूट टूट कर गिर रहे हैं...ग्लेशियर पिघल रहे हैं...इन सबके लिये कभी कुछ किया...........?

देखिये अभी तो हम ..पर्यावरण दिवस मना रहे हैं...जब मौका मिलेगा...फ़ुर्सत ्होगी तब ये भी कर लेंगे...अरे हां...हमारे मंत्री जी लगाते तो हैं हर बरस पेड आपने उनकी फ़ोटो नहीं देखी क्या...और सुनिये मिस्टर हवा सांऊड जी ....ये जो आप हमें करने की नसीहत दे रहे हैं......आप अमरीका को क्यूं नही कहते...आखिर उसने ही तो सारा बेडा गर्क किया हुआ है...वो भी तो नहीं करता ये सब...

अबे ओ, ये अपने मंत्रियों का तो नाम न ले ...आज तक तूने किसी मंत्री को भूकंप मे धंसते...या बाढ में डूबते....या तूफ़ान में उड जाते देखा है....नहीं न...तो क्या हुआ , और जहां तक अमरीका की बात है तो भाई...उसने अपने यहां यदि बम बनाये हैं तो इस बात के भी पूरे इंतजाम किये हैं कि यदि कोइ दूसरा उस पर वो बम फ़ोडेगा तो वो कैसे निपटेगा...इसी तरह उसने अपने यहां ...एक आपदा प्रबंधन नाम की नीति बनाई हुई है...सो उसे चिंता नहीं है इसकी...और फ़िर वो कौन सा तुम लोगों जैसे पर्यावरण दिवस...संधि ...वैगेरह में पडता है.......? समझे .....तो मनाते रहो तुम.....और मरते रहो तुम........

आकाशवाणी बंद हो जाती है...।

11 टिप्‍पणियां:

  1. हमने तो देखा है जी सांसद जया प्रदा को बैलगाडी में बैठ कर बाढ़ वाले इलाके में जाते हुए और जोर जोर से रोते हुए !
    बताया गया लोगो का कष्ट देख कर रोई थी पर हमे तो लगा बैलगाडी के डूबने के डर से रो रही थी ! बाकी आपकी आकाशवाणी जाने !!

    जवाब देंहटाएं
  2. अब क्या काहे अजय भाई कैसा पर्यावरण दिव्वास मनाते है एक दो पेड़ लगा देते है और दो दिन बाद गाय चार जाती है

    जवाब देंहटाएं
  3. ped lagane aur lagwane se jyada pred kaat diye jate hai...ek lagao aur char kato to kya matlab vriksh lagane ka....sudhar jaruri hai nahi sab kuch tabah ho jayega dhire dhire..badhiya charcha..dhanywaad!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. ".कित्ता कुछ करते हैं...कित्ता भारी भारी लिखते हैं...."

    यदि कल्पना घोडे होतॆ तो बुद्धु भी सवारी करते.... इस अंग्रेज़ी कहावत के मुताबिक यदि लेखन से पर्यावरण सुधर जाता तो आज हम जन्नत में होते:)

    जवाब देंहटाएं
  5. थोड़ा और तामझाम से मनाओ पर्यावरण दिवस. ब्लॉग प्र लिख कर सोचते हो कि पर्यावरण पर लिख दिया..अरे, पत्रिका में साहित्य लिखो तब न बुझायेगा कि कुछ लिखे हो.

    आकाशवाणी रिकार्ड करके पॉडकास्ट कर देते तो ठीक रहता..हमउ सुन लेते.

    जवाब देंहटाएं
  6. ई शिवम मिश्रा जी तो बहुते बढिया बात बोले हैँ ना?

    जवाब देंहटाएं
  7. अरे राजीव भाई, जयाप्रदा ने और कुछ नहीं सामने से आज़म खां को आते देख लिया था...

    झा जी, ये तीखी बात को उड़न तश्तरी और आप का कहीं फोबिया तो नहीं हो गया...या फिर ये जनाब कभी सावन में ही अंधे हुए थे...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  8. चुटीली भाषा और सच्ची बात ...अच्छा लिखा है अजय जी

    जवाब देंहटाएं
  9. दिवस MANAANE का MTLAB PED LAGAANE से THODI होता है ..........PED LAGANA NETA लोगों का काम नहीं है ........

    जवाब देंहटाएं
  10. ab aisa hai ajay bhaiya ki manane ko to ham hindi diwas bhi manate hain... par usse kya ho sakta hai..

    जवाब देंहटाएं

मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला