अपने वादे के मुताबिक कल चिट्ठों की शतकीय चर्चा में मशगूल था कि अचानक ही ब्लोगवाणी के पन्ने पर लिखा हुआ आता है.....अब विदाई का समय आ गया ....मैं भी दूसरों की तरह चौंक गया....ये कैसा हादसा.....इस घटना को दुर्घटना मान कर ही हादसा कह रहा हूं...क्यों कि हादसा वही होता है जब कोई अपना अज़ीस ....अप्रत्याशित रूप से असमय ही बीच में छोड कर चला जाता है....हाथ अपने आप ...उस समय साथ उपलब्ध सभी मित्रों, ब्लोग्गर साथियों को सूचना पहुंचाने के लिये चल पडते हैं...इसी बीच कुछ मित्रों के फ़ोन भी आने शुरू हो जाते हैं....जाहिर है ...सब कुछ वैसा ही चल रहा है जैसा ...किसी दुर्घटना के बाद होता है....
इस झटके से थोडा उबरते हुए ..पूरी सूचना पढता हूं......हुंम्म्म्म्म.......तो आखिरकार ये हो ही गया........क्या कहा ....आखिरकार....यानि...कि ये सब हो सकता था....जी बिल्कुल...आशंका तो थी.....किस या किन किन वजहों से....छोडिये जी....जो जानते हैं...वे ये सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं......तो क्या इस पोस्ट का कोई हाथ नहीं....बिल्कुल क्यूं नहीं......फ़र्ज़ किया जाये कि ...कोई व्यक्ति शिशुपाल की तरह ...वार पर वार किये जा रहा है...या कि बहुत सारे लोग एक ही जगह पर निशाना लगाये जा रहे हों....और जिस पर निशाना लगाया जा रहा है ..उसने तय कर लिया है कि अब बस.....यदि सौवीं बार भी उस पर ही निशाना साधा गया तो .....तो सौंवी बार भी उसी पर साध दिया गया.....वो भी खुले आम.....बिल्कुल ठीक उसी तरह जैसे किसी को चौराहे पर ...और जब कि चौराहा भी उसी के मोहल्ले का हो....लाकर बिना कपडों के खडा कर दिया जाये.....और फ़िर इसके बाद जो भी हुआ ...वो सब स्वाभाविक था....और कल से लेकर अब तक जब धीरे धीरे कई बातें सामने आ रही हैं तो लग रहा है कि ....ये अति सर्वत्र वर्जयेत,......की अति जिसने ब्लोगवाणी टीम को आखिरकार इस कदम को उठाने के लिये मजबूर कर दिया......मगर ..ब्लोगवाणी के इस कदम ने अपने पीछे कई सवाल छोड दिये....
१. क्या ये कुछ लोगों को पहले से पता था कि कि ऐसा हो सकता था...क्योंकि इशारा कुछ वैसा ही किया जा रहा है..और जिस प्रकरण का जिक्र किया जा रहा है ..उसे बीते अभी ज्यादा दिन भी नहीं हुए हैं.....
२. क्या वो पोस्ट ही वो आखिरी विकल्प या रास्ता था ...जो इन खामियों (तथाकथित ) को सामने लाने के लिये करना पडा....क्या इस बात की शिकायत ...सीधे ब्लोगवाणी के मेल पते पर नहीं की जा सकती थी...
३. क्या इन सवालों से , आशंकाओं से ब्लोगवाणी तक पहुंचने वाले आम ब्लोग्गर/ पाठक को कोई सरोकार था...
४. क्या ब्लोगवाणी को बंद करने से पहले हम जैसे हज़ारों आम ब्लोग्गर्स की भावना/हमारे मत / हमारे विचार/हमारी सहमति-असहमति ...की कोई जरूरत नहीं थी......
५. क्या इससे बेहतर ये नहीं होता कि ...ब्लोगवाणी के उस विवादास्पद ....पसंद पैटर्न को ही हटा दिया जाता....
इसी तरह के बहुत सारे प्रश्न हैं...जो मेरे जैसे हर ब्लोग्गर के मन में उठ रहे हैं......
अब बात करते हैं...कि इससे सबक क्या मिला.........
कहते हैं कि यदि किसी घटना-दुर्घटना से आपने कोई सबक नहीं लिया तो ...फ़िर आगे भविष्य ...राम ही जाने.......
जैसा कि मैं बहुत पहले से ही कहता आ रहा हूं....कि आज हिंदी ब्लोगजगत में ....ब्लोग्स की संख्या बहुत तेज़ी से बढती जा रही है तो ......आज नहीं तो कल ....और इस घटना के बाद तो ये निहायत ही जरूरी हो जाता है ....कि ज्यादा से ज्यादा ऐग्रीगेटर्स का विकल्प ...सबके लिये सामने आये...ताकि इन और इन जैसे किसी दूसरे हालात की वजह से यदि कोई ऐग्रीगेटर ..थोडे दिनों के लिये विराम ले ..या रुक जाये तो...पाठकों के सामने ऐसी अपंगता वाली स्थिति न रहे......
अभी जो स्थिति है...उसमें सिर्फ़ एक चिट्ठाजगत ही बच गया है......तो हे महान लोगों...यदि खुदा न खास्ता आप में से किसी को इससे भी कोई शिकायत है .....तो आप उसे यूं सरे आम सामने न रखें....कोई दूसरा रास्ता ..जो विद्वानजन आपको बता देंगे .....उसे ही अपनायें...वर्ना अभी तो हिंदी ब्लोगजगत की शैशव काल में ही मौत सी हो रही है..इसके बाद तो भ्रूण हत्या वाली स्थिति हो जायेगी....
लगे हाथ एक सलाह उनके लिये भी जो बंधु सिर्फ़ दूसरों की लेखनी और विषयों को निशाना बना कर लिख रहे हैं....मित्र यदि लिखने को कुछ न रहे...या कोई विषय न सूझ रहा हो...तब भी ..यानि बिल्कुल अंतिम विकल्प के रूप में भी वैसी पोस्टें लिखने से बेहतर होगा कि आप दूसरों को पढने और टीपने में समय दें....अन्यथा यदि एग्रीगेटर्स बंद हो सकते हैं तो ब्लोग..........?
अब बात कुछ विकल्प की...इसमें की दो राय नहीं कि ब्लोगवाणी का न तो कोई विकल्प था और न ही मुझे आगे दिखता है ....मगर फ़िर भी ...आप अपने मन को संतोष पहुंचाने के लिये ....चिट्ठाजगत के अलावा यदि यहां वहां झांकना चाहें तो इन जगहों भटक सकते हैं.....ठीक उसी तरह जैसे लैला की तलाश में मजनूं भटका करता था......
मगर ये आपकी प्यास में चंद बूंदों से ज्यादा कुछ भी साबित नहीं होंगे......उम्मीद है कि ब्लोगवाणी जल्दी ही हमारे बीच लौट कर ..हमारी प्यास बुझायेगा....आज दशहरे कि दिन और क्या मांगूं ...हे राम हमारी अयोध्या हमें तू वापस करे दे.......
सवा चार बजे की इस पोस्ट पर अभी तक एक टिप्पणी का न आना जतला रहा है कि ब्लॉगवाणी का बेवाणी होना कितना गंभीर मसला है। लिखने का सब असला बेकार है यदि वो पाठकों तक नहीं पहुंच पा रहा है। स्वांत सुखाय ही सही, पर दूसरों को भी मिले सुख तो इसमें किसी को क्यों हो दुख।
जवाब देंहटाएंऔर पसंद तो बहुत है ये पोस्ट पर चटका कहां लगाएं। आज माउस भी परेशान है। उसको भी कुछ खालीपन सा नजर आ रहा है।
जवाब देंहटाएंआप से सहमत हैं। ब्लागवाणी सबसे बेहतरीन हिन्दी ब्लाग एग्रीगेटर था। लेकिन अब नहीं है। विकल्प तलाशना पड़ेंगे या फिर बनाने पड़ेंगे।
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही सटीकता और बेबाक लिखा है. मेरी समझ से ब्लागवाणी को पुनर्विचार की आवश्यकता है.
जवाब देंहटाएंआपको इष्टमित्रों एवम कुटुंब जनों सहित विजयादशमी की रामराम.
अरे सुन लो ब्लांगबाणी के संचालको, लोग कितने परेशान है आप के बिना, लोट आओ, जो गलती करे उसे कान से पकड कर बाहर निकाल दो, क्यो हम सब का मन दुखा रहे हो, लोट आओ जी, हम सब आप के संग है.
जवाब देंहटाएंझा जी आप ने बहुत सुंदर लिखा. धन्यवादआप को ओर आप के परिवार को विजयदशमी की शुभकामनाएँ!
ब्लोग्वानी बंद होने पर बेहद अफ़सोस है ,...
जवाब देंहटाएंजो हो रहा है, वो हमारे बस का नहीं है...जो हमारे बस का ही नहीं तो उस पर मलाल कैसा...कहते हैं हर मुश्किल घड़ी में कोई न कोई अच्छाई छिपी होती है...शायद ये सब वैसे ही सफाई के लिए हो रहा हो, जैसे दीवाली से पहले हम अपने घरों की सफाई करते हैं...
जवाब देंहटाएं"..हे राम हमारी अयोध्या हमें तू वापस करे दे....."
जवाब देंहटाएंउठते नहीं हैं हाथ अब इस दुआ के बाद॥
मुझे इस बात का बेहद दुःख एवं अफ़सोस है की कुछ विघ्नसंतोषी लोगों की आवाज के आगे हजारों प्रशंसकों की आवाज अनसुनी की गई ..यह हिंदी ब्लॉग जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है. यहाँ की गुटबाजी भयानक आत्मघाती रूप ले रही है. आज तमस और असुरी शक्तिओं पर प्रकाश और सात्विक शक्तिओं के विजय के दिन यह समाचार मुझे खिन्न किये जा रहा है. विनम्र अनुरोध है की ब्लोग्वानी टीम अपने फैसले पर पुनर्विचार करे.
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जवाब देंहटाएंहॉम कूश्श नेंहि बोलेगा, झा जी ।
अटकलों की गुँज़ाइश अभी शेष है, देखिये ।
कुछ जन दुःखद बता रहे हैं, तो कुछ सुखद परिवर्तन की बाट जोहने लग पड़े हैं .. ..
हज्जार छिनरो जब एक्कै भतार को नोंचेंगी, तो कौन माई का लाल टिका रहेगा ?
वह पूर्व सूचना दे भी देते, तो बहुतेरे मूरख सरीखे ज्ञानी इसे धमकी या धौंस-पट्टी साबित करने में जुट जाते,
मौज़ के धनी ठिठोलियाँ रच डालते, कुछ बाबू ज़ेन्टलमैन आँकड़ों का अम्बार लगा देते । एतना बोल दिआ, पईले हॉम बोला था के हॉम कूश्श नेंहि बोलेगा, झा जी, तो नेंहि बोलेगा ।
सटीक और बेबाक लिखा है ....... ब्लोग्वानी KE बंद होने KA अफ़सोस है
जवाब देंहटाएंकुछ बातें अत्यन्त जरूरी और प्रासंगिक हैं ।
जवाब देंहटाएंब्लॉगवाणी से पुनर्विचार की अपील । आभार ।
पूरा घटनाक्रम अफसोसजनक एवं दुखद है...संचालकों से पुनर्विचार का आग्रह है.
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