शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

आप लिखते रहे , क्रांति अपने आप आयेगी......

ये बात मैं उन दिनों की कर रहा हूँ जब लड़कपन से निकल कर थोडा आगे की तरफ़ बढ़ा था, मुझे ये तो याद नहीं की लिखने का शौक ठीक ठीक कब शुरू हुआ था मगर शायद ये बीज मुझ में पनपने बहुत पहले ही जन्म ले चुके थे। शुरुआत बिल्कुल वैसे ही हुई थी जैसे आम तौर पर हम में से सभी की हुई होगी, स्कूल कॉलेज के दिनों में जो भी दिल सोचता था , और यदि वो कलम के अनुरूप होता था तो कुछ न कुछ कागजों पर निकल ही आता था। मगर जहाँ तक मुझे याद है, जब बहुत दिनों के बाद मेरा गाँव जाना हुआ तो मुझे ये जानकर बहुत आश्चर्य हुआ की वहां कभी बिजली नहीं आती जबकि खंभे सालों से लगे हुए थे, मुझे तब पता नहीं था की इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए। वापस लौटा तो मन में एक कसमसाहट सी थी, अपने पड़ोस में रहने वाले वकील अंकल ने सुझाव दिया की क्यूँ न मैं एक पत्र सम्पादक के नाम लिखूं, मुझे तब ये नहीं पता था की ये सम्पादक के नाम पत्र क्या होता है.और वो शायद मेरा पहला आधिकारिक कुछ ऐसा था समाचार पत्र में छपा था । हालाँकि उसका असर सिर्फ़ ये हुआ की वहां के स्थानीय बिजली ऑफिस से कुछ लोग मेरे बारे में पूछते हुए घर (गाँव वाले) पर पहुंचे , किंतु ये बात भी मुझे रोमांचित कर गयी।
इसके बाद तो एक ऐसा अनथक सिलसिला शुरू हुआ की क्या कहूँ, समाचार पत्रों में, विभिन्न रेडियो प्रसारणों में, परिचितों, सम्बन्धियों को और यहाँ तक की बहुत से अपरिचितों को भी ढेरों पत्र लिखे मैंने। जो बीबीसी सुनते होंगे उन्होंने अक्सर एक नाम सुना होगा, अजय कुमार झा, दिलशाद गार्डेन से , वो मैं ही था। एक दिन एक मित्र की सलाह पर मैंने मदर टेरेसा को उनके , थोड़े दिनों बाद उनके आश्रम से धन्यवाद संदेश आया, इसने मेरे लिए एक और रास्ता खोल दिया। इसके बाद तो मैंने वोया हिन्दी सेवा के बंद होने पर अक्रीकी राष्ट्रपति से लेकर किरायेदार वेरीफिकेशन मुहीम के लिए दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को , ढेरों पत्र विभिन्न मंत्रालयों को, भारतीय राष्ट्रपति को, और पता नहीं किन्हें किन्हें लिखता रहा हूँ या कहूँ की अब भी लिख ही रहा हूँ। ।
मुझसे मेरे शुरुआती दिनों में किस ने पूछा था की भाई आप जो इतना लिखते हैं उसका असर भी होता है कुछ, मुझे तो नहीं लगता की ऐसे लिखने से कोई क्रांति आयेगी। मगर उन सज्जन को मैंने यकीन दिलाया और मुझे बा भी पूरा विश्वास है की क्रांति जरूर आयेगी और उसमें हमारी लेखनी का भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान होगा। जहाँ तक मुझे प्राप्त सफलताओं की बात है तो वो भी बहुत लम्बी है, अभी सिर्फ़ इतना भर की आज जो भी मैं सोच पाता लिख पाता हूँ सब उन्हें दिनों की बदौलत है और हाँ इतना यकीन तो सबको दिला सकता हूँ की लेखनी से काम हो सकता है की धीरे धीरे हो मगर जब होता है न तो बस दुनिया देखती है, तो आप भी तैयार हैं मेरे साथ दुनिया को दिखाने के लिए की कलम से ही क्रांति आती है .............

9 टिप्‍पणियां:

  1. सहमत हूँ . कलम अभिव्यक्ति से बहुत कुछ विचार धारा बदली जा सकती है . इतिहास गवाह है.

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  2. मेरा भी ऐसा ही विचार है। बस मेरे पत्रों का किसी ने जवाब तक नहीं दिया, न ही कोई मुझे खोजते हुये मेरे घर आया। शायद खोजते हुये कोई आयेगा भी तो डंडा लेकर ही आयेगा!

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  3. अजय भाई, आप के इन प्रयासों से क्रान्ति तो नहीं हो सकती। लेकिन यह उस तरफ एक कदम तो है। जब भी आप समाज हित में कुछ करते हैं तो वह कर्म आप को जरूर कुछ न कुछ देता है। वह प्रतिभा तो निखारता ही है। आप अपनी इस आदत को कभी न छोड़ें।

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  4. एकदम सहमत हूँ, मैंने सम्पादक के नाम पहला पत्र 1991 में लिखा था, उस समय अखबार में नाम छपना ही अपनी उपलब्धि मानता था, लेकिन जैसे-जैसे सामाजिक, राजनैतिक समस्याओं को उठाता/लिखता गया, एक पहचान बनने लगी, धीरे-धीरे लेख बड़े होते गये, अन्य अखबारों और पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए तो लगने लगा कि "बहुत कुछ" न सही लेकिन "कुछ-कुछ" तो अवश्य होता है… हालांकि भारत के "व्यवस्था रूपी नक्कारखाने" में हम जैसी तूतियों की आवाज़ आसानी से नहीं सुनी जाती, लेकिन जब तूतियों की संख्या 10, 100, 1000, 10000 होती जायेगी तब नक्कारखाना क्या करेगा?

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  5. aap sabkaa bahut bahut dhanyavaad aur aabhaar, dinesh jee,aapkee baaton se aur aapke protsaahan se sahmat hoon, dhanyavaad.

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  6. beetee sadee ke 9ve dasak ke praarambh main droom paan ke khilaaf article likhaa thaa.doosron kaa to pataa nahin uske agle din se maine cigrets ko talaak de diyaa.
    jhallevichar.blogspot.com

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  7. TOTALLY agreed with u..!

    being a writer we can change the world...!
    we have lot's of examples of our freedom fighters. like bhaghat singh, veer savarkar nd many more..!

    writing makes the impact on society..!
    itz like dat what we read, we becomes..!

    congrats for your achievements.

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  8. हां बहुत बडा सच है ये. हमारे देश में पहले भी कलम के द्वारा क्रांति आई थी आगे फिर आयेगी. आमीन.

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मैंने तो जो कहना था कह दिया...और अब बारी आपकी है..जो भी लगे..बिलकुल स्पष्ट कहिये ..मैं आपको भी पढ़ना चाहता हूँ......और अपने लिखे को जानने के लिए आपकी प्रतिक्रियाओं से बेहतर और क्या हो सकता है भला